28-01-2017, 10:34 AM | #61 |
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Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
कमलेश्वर / Kamleshwar बहुमुखी प्रतिभा के धनी और नयी कहानी आंदोलन के अगुआ रहे कमलेश्वर की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं: कहानी-संग्रहों में ज़िंदा मुर्दे व वही बात, आगामी अतीत, डाक बंगला, काली आँधी। चर्चित उपन्यासों में कितने पाकिस्तान, डाक बँगला, समुद्र में खोया हुआ आदमी, एक और चंद्रकांता। उन्होंने आत्मकथा, यात्रा-वृत्तांत और संस्मरण भी लिखे हैं। कमलेश्वर ने लगभग 100 फिल्मों के संवाद, कहानी या पटकथाएँ लिखीं। उन्होंने सारा आकाश, अमानुष, आँधी, सौतन की बेटी, लैला, व मौसम जैसी फ़िल्मों की पट-कथा के अतिरिक्त 'मि. नटवरलाल', 'द बर्निंग ट्रेन', 'राम बलराम' जैसी फ़िल्मों सहित अनेक हिंदी फ़िल्मों का लेखन किया। दूरदर्शन (टी.वी.) धरावाहिकों में 'चंद्रकांता', 'युग', 'बेताल पचीसी', 'आकाश गंगा', 'रेत पर लिखे नाम' इत्यादि का लेखन किया। वे दूरदर्शन के अतिरिक्त महानिदेशक के पद पर भी आसीन रहे तथा उन्होंने अनेक पत्र पत्रिकाओं का संपादन भी किया जैसे सारिका,कथा क्रम, गंगा, दैनिक जागरण और दैनिक भास्कर आदि. उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिये भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्म भूषण से अलंकृत किया गया। कमलेश्वर को āकितने पाकिस्तानā उपन्यास के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया किया।
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28-01-2017, 10:39 AM | #62 |
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Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
और आज की हमारी शख्सियत हैं (28 जनवरी)
पंजाब केसरी लाला लाजपत राय /Lala Lajpat Rai
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28-01-2017, 10:45 AM | #63 |
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Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
और आज की हमारी शख्सियत हैं (28 जनवरी)
पंजाब केसरी लाला लाजपत राय /Lala Lajpat Rai महान देशभक्त लाला लाजपत राय का नाम भारत के महान क्रांतिकारियों में गिना जाता है। वे आजीवन ब्रिटिश साम्राज्यवाद की ताकत से लड़ते रहे और उसी का सामना करते हुए उन्होंने अपने प्राणों की आहुती दे दी। लालाजी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गरम दल के प्रमुख नेता (लाल बाल पाल में से एक) तथा पूरे पंजाब के प्रतिनिधि थे। उन्हें 'पंजाब के शेर' की उपाधि भी मिली थी। उन्होंने क़ानून की शिक्षा प्राप्त कर कुछ समय तक वकालत भी की थी, किन्तु बाद में स्वामी दयानन्द के सम्पर्क में आने के कारण वे आर्य समाज के के प्रबल समर्थक बन गये। यहीं से उनमें उग्र राष्ट्रीयता की भावना जागृत हुई। सन 1928 में सारे देश में साइमन कमीशन के विरोध में विरोध प्रदर्शन हुये और जलूस निकाले गए. इनको दबाने के लिये अंग्रेजों द्वारा दमन चक्र शुरू कर दिया गयाl लोगों को तितर बितर करने के लिये जगह जगह लाठी चार्ज हुये और गिरफ्तारियां की गयींl 30 अक्टूबर 1928 को लाला जी के नेतृत्व में लाहौर में एक विशाल जलूस निकाला गयाl अपनी दमनकारी नीतियों के अनुसार सरकारी अधिकारियों द्वारा शांतिपूर्ण और निहत्थे लोगों पर लाठी चार्ज का आदेश दिया गयाl अन्य लोगों के साथ साथ लाला जी भी इस लाठी चार्ज में बुरी तरह घायल हो गएl उनकी छाती पर लाठी के घातक वार किये गए थेl गंभीर चोटों की वजह से दिनांक 17 नवंबर 1928 को लाला जी ने प्राण त्याग दिएl मृत्यु से पहले लाला जी ने कहा था āमेरे शरीर पर पड़ी एक एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक एक कील का काम करेगीlā उन्होंने महात्मा हंसराज के साथ मिल कर उस वक़्त के पंजाब में दयानन्द एंग्लो वैदिक (DAV) शैक्षणिक संस्थाओं, स्कूलों व कॉलेजों की स्थापना कीl उन्होंने पंजाब नेशनल बैंक तथा लक्ष्मी बीमा कं. की भी स्थापना कीl उन्होंने 1920 में मुंबई (तब बम्बई) में आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) के पहले अधिवेशन की अध्यक्षता भी की थीl उन्होंने उस समय के उर्दू दैनिक वन्दे मातरम में लिखा था "मेरा मज़हब हक़परस्ती है, मेरी मिल्लत क़ौमपरस्ती है, मेरी इबादत खलकपरस्ती है, मेरी अदालत मेरा ज़मीर है, मेरी जायदाद मेरी क़लम है, मेरा मंदिर मेरा दिल है और मेरी उमंगें सदा जवान हैं।" लालाजी एक सच्चे स्वतंत्रता सेनानी, प्रतिबद्ध समाज सेवक, शिक्षाविद, मजदूरों के हक़ के लिये लड़ने वाले नेता, देशभक्त लेखक तथा निर्भीक पत्रकार थेl वे सच्चे अर्थों में भारत के गौरव थेl आज भारत के इस महान सपूत के जन्मदिवस पर हम उन्हें आदर एवम् श्रद्धापूर्वक नमन करते हैंl
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29-01-2017, 11:44 AM | #64 |
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Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
और आज की हमारी शख्सियत हैं (29 जनवरी)
हिकी'ज़ बंगाल गजट /Hicky's Bengal Gazette 29 जनवरी 1780 को भारत के पहले अखबार का प्रकाशन आरम्भ हुआ: भारत का पहला अख़बार
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29-01-2017, 11:52 AM | #65 |
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Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
और आज की हमारी शख्सियत हैं (29 जनवरी)
हिकी'ज़ बंगाल गजट /Hicky's Bengal Gazette 29 जनवरी 1780 जेम्स अगस्ट्न हिकी ने कलकत्ता से साप्ताहिक अखबार बंगाल गजट या हिकीज गजट का प्रकाशन शुरू किया. भारतीय पाठकों और दर्शकों के लिए आज अखबार, रेडियो और टेलीविजन में समाचार पढ़ने, सुनने और देखने के लिए हजारों विकल्प मौजूद हैं. लेकिन ज़रा सोचें कि अब से 237 वर्ष पहले समाचारों के आदान प्रदान का क्या स्वरूप होता होगा जब कोई अखबार या रेडियो टीवी नहीं थे. भारत का पहला अखबार 29 जनवरी 1780 को एक अंग्रेज जेम्स अगस्ट्न हिकी ने कोलकाता से निकाला. इसका नाम बंगाल गजट (Hickyās Bengal Gazette) था और इसे अंग्रेजी में निकाला गया. इसे हिकीज गजट भी कहा जाता है. यह चार पृष्ठों का अखबार हुआ करता था और सप्ताह में एक बार प्रकाशित होता था. हिकी भारत के पहले पत्रकार थे जिन्होंने प्रेस की स्वतंत्रता के लिये ब्रिटिश सरकार से संघर्ष किया. हिकी ने बिना डरे अखबार के जरिए भ्रष्टाचार और ब्रिटिश शासन की आलोचना की. हिकी को अपने इस दुस्साहस का अंजाम भारत छोड़ने के फरमान के तौर पर भुगतना पड़ा था. ब्रिटिश शासन की आलोचना करने के कारण बंगाल गजट को जब्त कर लिया गया था. 23 मार्च 1782 को अखबार का प्रकाशन बंद हो गया. इस तरह भारत में प्रिंट मीडिया की शुरूआत करने का श्रेय हिकी को ही जाता है.
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30-01-2017, 11:08 AM | #66 |
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Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
Etani mahtvapurna jankariyon se hame avagat karwane ke liye bahut bahut dhanywad bhai.
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30-01-2017, 07:16 PM | #67 | |
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Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
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30-01-2017, 07:22 PM | #68 |
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Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
और आज की हमारी शख्सियत हैं (30 जनवरी)
महात्मा गाँधी / Mahatma Gandhi राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को आज उनकी पुण्यतिथि पर सादर नमन करते हुये हमारी श्रद्धांजलि
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30-01-2017, 10:18 PM | #69 |
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Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
और आज की हमारी शख्सियत हैं (30 जनवरी)
अमृता शेर-गिल / Amrita Sher-Gil ^
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30-01-2017, 10:20 PM | #70 |
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Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
और आज की हमारी शख्सियत हैं (30 जनवरी)
अमृता शेर-गिल / Amrita Sher-Gil सिख पिता उमराव सिंह और हंगरी मूल की मां मेरी एंटोनी गोट्समन जो ओपेरा गायिका थीं, की यह पुत्री मात्र 8 वर्ष की आयु में पियानो-वायलिन बजाने के साथ-साथ कैनवस पर भी हाथ आजमाने लगी थी। अमृता शेरगिल का जन्म 30 जनवरी 1913 को हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में हुआ था। सन 1921 में अमृता शेरगिल का परिवार शिमला (समर हिल) आ गया। अमृता ने जल्द ही पियानो ओर वायलीन सीखना प्रारंभ कर दिया और मात्र 9 वर्ष की उम्र में ही अपनी बहन इंदिरा के साथ मिलकर उन्होंने शिमला के गैएटी थिएटर में संगीत कार्यक्रम पेश करना और नाटकों में भाग लेना प्रारंभ कर दिया। चित्रकला में अमृता की रूचि को देखते हुये उनकी माँ उन्हें 1924 में कला के लिये प्रसिद्ध स्थान फ्लोरेंस (इटली) ले आयीं। यहाँ उन्हें इतालवी मास्टर्स के कामों की जानकारी हासिल हुयी। कुछ समय बाद पुनः भारत आ गयीं। सन 1929 में जब अमृता 16 वर्ष की थीं तब अपनी माँ के साथ पेरिस (फ्रांस) चली गयीं जहां उन्होंने फ्रांसीसी कला शैलियों का अध्ययन और अभ्यास किया। सन 1934 में वे पुनः भारत लौट आयीं। वापस आकर उन्होंने अपने आप को भारत की परंपरागत कला की खोज में लगा दिया और अपनी मृत्यु तक यह कार्य करती रहीं। अपनी इन यात्राओं के दौरान उनका रुझान भारतीय जनजीवन और भारतीय विषयों की ओर मुड़ गया. वे अजंता के चित्रों तथा बंगाल के चित्रकारों से भी बहुत प्रभावित हुयीं। मात्र 28 वर्ष की आयु में ही लाहौर में उनका निधन हो गया। अमृता शेरगिल की एक बेनाम पेंटिंग सेफ्रनआर्ट ऑनलाइन नीलामी में 4.75 करोड़ रुपये (7.20 लाख डॉलर) में बिकी। देश की महिला कलाकारों में अग्रणी अमृता शेरगिल ने अपने एक दशक के संक्षिप्त कार्यकाल में भारतीय कला जगत पर गहरी छाप छोड़ी।
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