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Old 11-01-2011, 06:43 AM   #1
ABHAY
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Post ~!!गोनू झा!!~

गोनू झा के स्वर्ग बजाहट
गोनू झा एकटा राजाक दरबारी रहथि । ओ बहुत चतुर छलथि आओर राजाक राज-काज मे मदद करैत छलथि आओर हुनकर खूब मनोरंजन करैत छलथि ।

राजा हुनका बहु मानैत छलथिन्ह संगहि आओर लोक सेहो खूब मानैत छलैन्ह । हुनक उन्नति देखि कऽ सभ दरबारी डाह करैत छल आओर हुनका मिटा देबाक उपाय सोचैत छल । ओहि मे एकटा हजमो छल । ओकरा अपना ज्ञानक घमण्ड रहै । ओ गोनू झा के मिटेबाक बीड़ा उठेलक ।

गामक बाहर राजा के पिताक समाधि छल, राजा प्रतिदिन अपना पिताक समाधि पर फूल चढ़ावय जाय छलथि । पिता पर हुनकर अटूट श्रद्धा छल, हजमा जकर फायदा उठाबय चाहैत छल आओर एकटा चाल चलल ।

एक दिन राजा जखन पिताक समाधि पर फूल चढ़ाबेय गेला तखन ओहि पर एकटा पुर्जा राखल भेटलैन्ह । पुर्जा मे लिखल रहैय-बउआ अहाँ हमर बहुत भक्त छी हम अहाँ सँ अत्यन्त प्रसन्न छी । स्वर्ग मे हमरा पूजा-पाठ करबा मे बहुत दिक्कत होयत अछि ताहि लेल अहाँ शीघ्र गोनू झा के हमरा लग पठा दियऽ । गाम के पूरब मे जे श्मशानक मे ईंटक ढेरि अछि ओहि पर हुनका बैसा हुनका उपर दस पाँज पुआर राखि ओहि मे आगि लगा देबई तऽ ओ सीधे हमरा लग पहुँचि जैता । हम किछु दिनक बाद हुनका वापस भेज देब ।

शुभाशीर्वाद
अहाँक स्वर्गीय पिता

पुर्जा पढ़िकय राजा चकरेला, एहन आश्चर्यक बात तऽ ओ कतहु देखने नहि छलथि । ओ मोने-मोने बहुत तर्क वितर्क करय लगला ।
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Old 11-01-2011, 06:45 AM   #2
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गोनू झाक शत्रु के ई चाल अछि या पिता जीक आज्ञा निश्*चय नई कय सकला । ओहि दिन दरबार मे आबि राजा पुर्जा के हाल सबके सुनेलनि, सभ दरबारी खुश भऽ गेल । कियो कहय लागल-गोनू झा बहुत भाग्यवान छथि ताहि लेल स्वर्ग मे महाराजा याद कैलथिन्ह । क्यो बाजय – गोनू झा कतेक बड़का पुण्यात्मा छथि जे जीवैत स्वर्ग जैता । कियो डाह करैत बाजल- हमरा सभक सौभाग्य कहाँ ! नहिं तऽ सहर्ष जैबाक लेल तैयार भऽ जैतहुँ ।

एहि पर हजमा बाजल महाराज जिनक आदेश एलन्हि हुनके जैबाक चाही नई तऽ महाराज के मोन मे दुःख हेतैन्ह । साधारण लोक सँ काज नई हेत*इ तें तऽ गोनू झा के बुलाहट भेलैन्ह ।

इमहर राजा बड़ सोच मे पड़ि गेला, कतऊ दुष्ट सभ मिलकय गोनू झा के मारबाक षड्*यन्त्र तऽ नहि रचलक अछि या ठीके पिताजी ई पुर्जा भेजने छथि । ओना अक्षर पिताजीक लिखावट सँ मिलैत अछि । अन्त मे किंकर्तव्यबिमूढ़ भऽ ओ गोनू झा सँ विचार- विमर्श कयला ।

गोनू झा एखन तक सब चुपचाप सुनि रहल छलथि । दरबारिक षडयन्त्रक अनुभव हुनका भऽ गेल छलैन्ह आ ओ एहि सँ बचबाक लेल सोचि रहल छला । हुनक कुशाग्र बुद्धि किछुये काल मे समाधान ढूंढि निकाललक । ओ कहलथिन्ह – महाराज हम स्वर्ग जैबाक लेल तैयार छी परन्च तीन शर्त अछि ।

१. हमरा तीन मास के समय देल जाय ।

२. जखन तक हम स्वर्ग सँ नहि घूमि कय आबी हमरा परिवार के सभ मास दस हजार टाका पारिश्रमिक के रूप मे देल जाय ।

३. एहि समय हमरा पचास हजार टाका देल जाय, जाहि सँ घरक सभ इन्तजाम कय कऽ जाय ।

राजा चकित भय कहलखिन-की अहाँ स्वर्ग जायब? की अहाँ एहि बात के सत्य मानैत छी ?
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Old 11-01-2011, 06:45 AM   #3
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मोनू झा कहलखिन – महाराज हम सचमुच स्वर्ग जायब । अहाँ चिन्ता जुनि करी । उदास भाव सँ राजा गोनू झाक शर्त मानि लेलथिन । सभ दरबारी के आनन्द आओर आश्चर्य के भाव रहै । हजमा अपना जीत पर हँसि रहल छल । तीन मासक बाद राज्यक सभ लोक गांव के पुवारी कातक श्मशान पर पहुँचल जे आई गोनू झा स्वर्ग जैता । सब प्रजा दुःखी छल, राजा सेहो ओतय पहुँच कानि रहल छला । परन्च गोनू झा के मुख कनिको मलीन नई भेल छल ओ हँसिते माँटिक ढेरि पर बैस गेला आओर पुआर सँ हुनका झाँपि देल गेल एवं आगि लगा देल गेल । ई देखि राजा आओर सभ दरबारी कानि रहल छलथि ओतहि हजमा प्रसन्न भऽ रहल छल । एहि घटनाक छः मास बीति गेल छल, गोनू झा एखन तक लौट कय घर नहि आयल छलथि । ई सोचि राजा बहुत दुःखी रहैत छलाह आओर गोनू झा बिना दरबारो मे मन नई लगैत छलैन्ह ।

एक दिन राजा दरबार मे गोनू झाक चर्च करैत रहथि तऽ ओतबहि मे एक दरबारी सूचना देलक जे गोनू झा आबि रहल छथि । लोक आश्चर्य सँ चकित रहथि जे एहि खबर के झूठ मानी वा सत्य । ओतबहि मे गोनू झा अबेत देखाय लगलाह । गोनू झा पहिने सँ बेसी मोटा गेल छलथि । किछु लोक हुनका भूत बूझि भागि रहल छल, लेकिन राजा स्तम्भित छलथि ।

गोनू झा आबि राजा के प्रणाम केलखिन आओर एकटा पुर्जा राजा के दय देलखिन । किछु कालक बाद राजा कहलखिन- गोनू झा ! की अहाँ सचमुच जीवित छी?

गोनू झा हँसिकय कहलखिन- महाराज एखन तक तऽ जीवित छी । ई देखि हजमाक प्राण सुखि गेल आओर ओ डरे पसीना सँ तर-बतर भऽ रहल छल ।
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Old 11-01-2011, 06:52 AM   #4
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गोनू झा कहलखिन- महाराज ! हम स्वर्ग सँ आबि रहल छी । अहाँक पिता ओतय बहुत खुश छथि । परंतु हुनका हजामत कराबय मे तकलीफ छैन्ह, केश-दाढ़ी सभ बढ़ि गेल छैन्ह, ताहि लेल ओ हजाम के भेजय वास्ते ई पुर्जा भेजने छथि । एहि पुर्जा मे एयह बात लीखि पठेने छथि ।

गोनू झाक बात सुनतहि हजमा भागय लागल । लेकिन सिपाही ओकरा धऽ पकड़लक । आब तऽ हजमाक दशा बिगड़ि गेल, सब दरबारी आश्चर्य सँ अवाक्छल । राजा कहलखिन- ओहि बेर जखन गोनू झा जाय छलथि तऽ तू बढ़ि- चढ़ि कय बाजेत छलें तऽ एखन डर किये होयत छउ ?

हजमा देखलक जे आब पोल खोलय पड़त, नहि तऽ मारल जायब । तें ओ थरथराईत बाजल-सरकार हमरा क्षमा करू । गोनू झा के स्वर्ग बजाबऽ वला पत्र हम लिखने छलहु ! स्वर्ग सँ कोनो पत्र नहि आयल छल ।

गोनू झा कोनो जादू – टोना जनेत छथि तें आगि सँ बचि गेला, परंच हम तऽ जरि कय मरि जायब । आब तँ राजा आश्*चर्य एवं क्रोध सँ लाल भय गेला आओर गोनू झा के पुछलखिन की बात अछि सच-सच कहू ।

गोनू झा कहलखिन- महाराज ओहि पत्र के देखिते हम बूझि गेल छलहुँ जे हमरा संगे कियो चक्रचालि खेल रहल अछि । तें अपना बचय के उपाय सोचि स्वर्ग गेनाई स्वीकार केने छलहुँ ।

तीन मासक समय लय कऽ हम ओहि माँटिक ढेरी सँ अपना घर तक सुरंग बना लेने छलहुँ आओर जखन हमरा पुआर सँ झाँपि देलक तऽ हम सुरंगक रस्ते अपना घर पहूँच गेलहुँ ।

ओमहर सब बुझलक जे आब गोनू झा जरि कय मरि गेला आओर हमर दुश्मन सभ खुशी मनाबय लागल छल । एमहर हमरा गुप्त रूप सँ पता लागल जे ई सब पूरा हजमाक षडयंत्र छल ।

ओना इ सब बिना प्रमाण के कहितउँ तऽ अहां लोकनि के फूसि लागैत तें प्रमाणक संग अहाँ सब के बतेलहुँ ।

राजा आओर सब दरबारी गोनू झा के बुद्धि पर दंग छलाह । ओतहि हजमा के कठोर दण्ड भेटल । संगहि गोनू झा के काफी इनाम भेटलैन्ह ।
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Old 11-01-2011, 07:06 AM   #5
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चोर कें छकेलैन/पकड़बेलैन गोनू झा
गोनू झा रहथि सतर्क लोक । यद्यपि ओ कोनो धनवान लोक नहि रहथि तथापि गौंआ आ अनगौंआ कें लगैक जे हो ने हो हुनका लग कोनो गाड़ल संपत्ति जरूर छनि । आ तें गामक वा अरोस-पड़ोस गामक चोर सभ हिनका घर मे चोरी करबाक युक्ति बनौलक । किछु दिन मंत्रणा कयलाक बाद दू तीन गोटे सबेरे हुनका दलानक एकटा झुरमुट मे नुका रहल । हुनका ई बुझबा मे भांगठ नहि रहलनि जे चोर हमरा घर तक आबि चुकल अछि आ तें चोर सभ कें छकेबाक लेल ओ झुरमुट सँ कनिये हटि कें खाट लगेलनि आ बैसि गेलाह ओतय । ओ पनबट्टी आ एक बाल्टी पानि आंगन सँ मंगेलनि आ बैसि गेलाह खाट पर । ओ पान खाथि आ पीक झुरमुट पर फेकथि । पुन: कुरड़ा करथि आ फेर ओएह प्रक्रिया – पान खायब आ कुरड़ा करब । ई क्रम बड़ी राति धरि चलैत रहल । जहन ओ रातिक भोजनक लेल समय पर नहि अयलाह तँ पत्नी दलान पर पहुँचलीह आ देखैत छथि जे एतय तँ तेसरे खेला भऽ रहल अछि ।

पत्नी लग मे बेसैत पुछलथिन – की अहाँ आई भोजन नहि करबैक । पत्नी के लग मे बैसबैत गोनू हुनका आँचर सँ मुँह पोछि लेलाह । पत्नी तमसाइत बजलीह जे ई की कयल । नवे साड़ी के खराब कय देल । गोनू बजलाह जे अहाँ तँ एक बेर मे तमसा गेलहुँ आ ई महानुभाव सभ तँ साँझे सँ हमर पानक पीक आ कुरड़ा के सहि रहल छथि आ तैयो एको बेर सगबगेलाह नहि । चोर सभ कें ई बुझबा मे भांगठ नहि रहलैक जे गोनू हमरा सभ कें देखि लेलैन आ ओ सभ बाहर निकलि हुनका पयर पर खैसि पड़ल । गोनू ओकरा सभ कें माफ कऽ देलनि ।

परंतु चोर सभ एहि अपमान कें बर्दास्त नहि कऽ सकल आ किछु दिनक बाद फेर हुनका घर मे चोरि करक लेल आयल । एहि बेर ओ सभ घरक अगल-बगल मे नुका रहल आ राति होयबाक इंतजार करय लागल । सतर्क गोनू फेर बुझि गेलाह जे चोर सभ आबि चुकल अछि आ एहि बेर शायद बिना चोरी कयने नहि रहत । ओ जानि -बूझि कें पत्नी सँ संपत्ति आदिक गप्प करब शुरू कयलनि ।
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Old 11-01-2011, 07:07 AM   #6
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गोनू – आई काल्हि समय बड़ खराब भऽ गेल अछि आ तें लोक कें सतर्क रहबाक चाही । पता नहि कोन दोग सँ चोर आयत आ सभटा सामान निपत्ता कय देत ।
पत्नी – अपना घर मे अछिये की जे चोर लेत ।

गोनू – से किएक कहैत छी । बाप-पुरषाक देल गहनाक पोटरी जे अछि ।
पत्नी – परन्तु एहि विषय मे हमरा अहाँ कहाँ कहलहुँ ।
गोनू – कहितौ कोना? अहाँक पेट मे बात नहि रहैत अछि आ भेद खुजैत देरी समान निपत्ता ।
पत्नी – तहन आबो तँ कहू जे ओ पोटरी कतय रखने छी ।
गोनू – घर मे राखब तँ चोर लऽ जायत आ तें बाड़ी मे जे आमक गाछ अछि ताहि पर अढ़ मे राखि देने छियैक ।

चोर सभ सभटा सुनिते रहय । लपालप पहुँचल आमक गाछ लग । टॉर्च सँ ऊपर देखलक तँ मोटरी देखेलैक । दनादन ऊपर चढ़ल आ गेल ओतय । परन्तु ई तँ घोरनक छत्ता छल । सभ चित्कार करैत ओतय सँ पड़ायल आ एहि व्यथे कईक मास धरि ओछाओन धेने रहल ।

चोरो सभ हारि मानय वला नहि छल । ओ सभ फेर गोनूक घर मे चोरि करबाक योजना बनेलक । एहि बेर ओ सभ सदल-बल पहुँचल । संगे मे किछु हथियारो लेलक ताकि जरूरत पड़ला पर एकर उपयोग कय कें गोनूक घर मे चोरि कय सकी । ओ सभ येनकेन प्रकारेण हुनक घर मे घुसि गेल आ धरनि पर जा कऽ नुका रहल आ राति हेबाक इंतजार करय लागल । गोनू कें ई बुझबा मे भांगठ नहि रहलैन जे एहि बेर ई सभ सदल-बल आयल अछि । तें ओ किछु और युक्ति सोचय लगलाह । अकस्मात ओ पत्नी सँ प्रश्न केलनि जे यदि अपना सभ कें पहिल बेटा होयत तँ ओकर की नाम रखबैक । पत्नी बेस नाराज भेलीह जे बेटा भेल नहिये आर नाम राखि लेब । तथापि गोनू नहि मानलनि । ओ बेटाक नाम रखबाक जिद्द करय लगलाह । हारि कें पत्नी कहलखिन जे बेटाक नाम बापे रखैत छैक से अहीं कोनो नाम राखि लिय । सोचि बिचारि कें गोनू पहिल बेटाक नाम ‘भुटकुन’ रखलनि । आब पत्नी सुतबाक उपक्रम करय लगलीह, ता गोनू फेर गप्प शुरू कयलनि ।
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Old 11-01-2011, 07:07 AM   #7
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गोनू – जँ दोसर बेटा होयर तँ की नाम रखबैक?
पत्नी – बेटा भेल एकोटा नहि आ नाम दोसरोक रखैत छी ।
गोनू – नाम राखि लेबा मे की हर्ज?
पत्नी -तहन एक्केटा-दूटाक कियाक चारि-पाँच टाक नाम एकहि बेर राखि लिय ।
गोनू – हमरो तँ सएह विचार छल ।
पत्नी – तहन जल्दी सँ सभक नाम कहू जे हम सूती, अन्यथा अहाँ सुतैये नहि देब ।
गोनू -दोसरक नाम मंगनू, तेसरक नाम चुल्हाई आ चारिमक नाम चोर रखबै ।
पत्नी – तखन इहो कहिये दिय जे यदि सभटा आँगन सँ बाहर रहत तँ केना बजेबैक सभटा कें?
गोनू – भुटकुन, मंगनू, चुल्हाई चोर हौ ।

वस्तुत: ई सभ कियो गोनूक पड़ोसी छलाह । आवाज सुनतहि सभ कियो लाठी लऽ कऽ धमकैत गेलाह आ पुछलनि कहाँ यौ । गोनू कहलनि – हे सभ गोटे धरनि पर बैसल छल । एहि बेर चोरबा सभ जगहे पर पकड़ा गेल । ओ सभ धरनि पर सँ उतरैत गेल आ गोनूक पयर पर खसल आ फेर हुनका घर आ हुनका गाम मे चोरि नहि करबाक प्रतिज्ञा कयलक । गोनू ओकरा सभ कें माफ कऽ देलनि ।
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Old 11-01-2011, 07:09 AM   #8
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गोनूक बिलाड़ि
गोनू झाक बुद्धिमत्ताक लोहा सभ कियो मानैत छल । अपन बुद्धिमत्तेक बल पर ओ मिथिलाक राजदरवार मे आदर पबैत छलाह । एक बेर मिथिला नरेशक मोन मे एकटा विचार आयल । ओ अपन सभ दरबारी के बजौलनि आ एक-एकटा विलाड़ि सभ कें दैत आदेश देलैन जे एहि बिलाड़ि के तीन महीन धरि पालू-पोषू आ तत्पश्चात् जकर बिलाड़ि अधिक बलिष्ठ रहत, हुनका इनाम भेटत । नरेशक आदेश रहनि । सभ कियो आदेश मानबाक लेल विवश छलाह । सभ अपन-अपन बिलाड़ि लेलनि आ ओकर खूब पालन करय लगलाह जे कदाचित हमरे इनाम भेटि जायत ।

गोनू सेहो बिलाड़िक संग घर पहुँचलाह । ओहो ओकर सेवा-सुश्रुषा मे लागि गेलाह । घर मे महीस जे दूध दैन से बिलाड़िक भोजन मे चलि जाइक । दू-चारि दिन तँ ठीक लगलनि, परन्तु बाद मे गोनू कें ई बात ठीक नहि लगलनि जे महीस पोसी हम आ दूध पीबय ई बिलाड़ि । ओ एहि युक्ति मे लागि गेलाह जे कोन तरहें दूध बांचि जाय आ इनामो भेटि जाय । अंतत: हुनका एकटा उपाय सुझलनि ।

अगिला दिन भोरे ओ महीस दुहलाह । दूध औंटबेलाह । गरम-गरम दूधक लोहिया ओ आंगन मे रखलाह आ तत्पश्चात् बिलाड़ि के बड़ प्रेम सँ चुचकारलाह । बिलाड़ि दूध देखैत देरी लगीच पहुँचल । गोनू बिलाड़ कें गरदनि सँ पकड़लाह आ गरम दूध मे ओकर मूड़ी डुबा देलनि । बिलाड़ि छटपटायल आ पुन: देह झाड़ि ओतय सँ भागल । आब बिलाड़ि दूध कें देखैत देरी भागि जाय । गोनू निश्चिंत भेलाह आ शान सँ दूध-दही अपने खाय लगलाह । धीरे-धीरे तीन महीनाक अवधि समाप्त भऽ गेल । ओ दिन आबि गेल जहिया मिथिला नरेश बिलाड़िक प्रतिपालनक लेल इनाम बँटताह । सभ कियो अपन-अपन बिलाड़िक संग उपस्थित भेलाह । गोनू सेहो अपन सामान्य बिलाड़ि कें लऽ दर्बार मे हाजिर भेलाह ।
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सभक बिलाड़ि एक सँ एक बलिष्ठ रहैक । मिथिला नरेशक लेल निर्णय करब कठिन रहैन । परन्तु गोनूक बिलाड़ि सभ सँ कमजोर रहनि । नरेश गोनू सँ एकर कारण पुछलाह । गोनू बजलाह – महाराज! हमर बिलाड़ि तऽ दूध पीबिते नहि अछि तखन हम की करी? बिलाड़ि दूध नहि पीबैत अछि, एहि गप्प पर सहसा केकरो विश्वास नहि भेलैक । तथापि प्रमाणक लेल एकटा बर्तन मे दूध मँगाओल गेल । दूध के देखितहि गोनूक बिलाड़ि ओतय सँ भागय लागल । सौंसे राज-दरबार देखलक जे गोनूक कहब ठीक छनि । अंतत: मिथिला नरेश बजलाह – बिनु दूध पीने गोनूक बिलाड़ि ठीक छनि तें इनाम गोनू कें भेटबाक चाही । संपूर्ण राजदरबार अचंभित रहि गेल नरेशक निर्णय सँ ।
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गोनूक इनाम
गोनू झा अपन बुद्धिमत्ता आ वाकपटुताक लेल नहि केवल मिथिले वरन्* अरोस-परोसक राज्य मे सेहो मशहूर रहथि । हुनक पहुँच राज दरवार धरि रहनि आ अपन एहि गुणक लेल सभ ठाम समादृत होथि । राज दरवार मे चाहे कोनो समस्या विशेष पर चर्चा हो या कोनो आन ठामक विद्वान सँ शास्त्रार्थक गप्प, सभ ठाम हुनक उपस्थिति अनिवार्य रहनि । शास्त्रार्थ वा अन्य क्रम मे ओ बेसीकाल इनाम सेहो पाबथि आ तें कतेको दरबारी सहित आन लोक सभ हुनक उन्नति सँ जरनि । एहने स्थिति एकटा द्वारपालक छल जे राज दरवारक मुख्य द्वार पर तैनात छल । गोनू झा कें कतेको इनाम आदि भेटलनि किन्तु ओ ओहि द्वारपाल के कहियो बख्शीश नहि देलाह आ तें ओ विशेष रूप सँ गोनू सँ नाराज रह।

एकबेर एहन संजोग भेल जे कोनो दोसर राज्यक विद्वान मिथिला दरबार मे पधारलथि आ एहि ठामक विद्वान लोकनि के कोनो विषय पर शास्त्रार्थ करबाक लेल चुनौती देलनि । यद्यपि गोनू दरबार मे उपस्थित नै छलाह, तथापि हुनक चुनौती कें स्वीकार कयल गेलनि । शास्त्रार्थ शुरु तँ भेल, परन्तु गोनूक अनुपस्थिति मे मिथिलाक विद्वान लोकनि पिछड़य लगलाह । ता गोनू के कतहु सँ खबरि भेलनि जे आई मिथिलाक प्रतिष्ठा दाव पर लागल अछि, तँ ओ तुरंत राज दरवार दिस विदा भेलाह ।

राज दरवारक मुख्य द्वार बन्न छल आ दरबार मे शास्त्रार्थ होयबाक कारणें प्राय: ककरो प्रवेशक अनुमति नहि छल । आ तें मौका देखि द्वारपाल गोनू कें सेहो रोकि देलक । गोनू ओकरा बुझेबाक प्रयास कयलनि जे हमरा भीतर जाय दयह, कारण आई अपना राज्यक प्रतिष्ठा दाँव पर लागल अछि । परन्तु ओ गोनू सँ बदला चुकेबाक एहन अवसर के हाथ सँ नहि जाय देबय चाहैत छल आ तें कतबो कहलाक बाद द्वार खोलबाक लेल राजी नहि भेल । गोनू कें ई बुझबा मे भांगठ नहि रहलनि जे आखिर ई किएक द्वार नहि खोलि रहल अछि । ओ प्रसंग के बदलैत बजलाह । ठीक छै तों द्वार खोल । आई हमरा जे इनाम मे भेटत से हम तोरे देबौक । द्वारपाल प्रसन्नचित्त होईत द्वार खोलि देलक आ गोनू दरबार मे हाजिर भेलाह ।
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