29-05-2014, 10:07 PM | #11 |
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Re: विभाजन कथा: टोबा टेक सिंह
जब बिशन सिंह की बारी आई और वागह के उस पार का मुताल्लिक़ अफ़सर उसका नाम रजिस्टर में दर्ज करने लगा तो उसने पूछा : "टोबा टेक सिंह कहाँ है, पाकिस्तान में या हिंदुस्तान में?"
यह सुनकर बिशन सिंह उछलकर एक तरफ़ हटा और दौड़कर अपने बचे हुए साथियों के पास पहुँच गया। पाकिस्तानी सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया और दूसरी तरफ़ ले जाने लगे, मगर उसने चलने से इनकार कर दिया, "टोबा टेक सिंह यहाँ है!" और ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगा, "औपड़ दि गड़ गड़ दि अनैक्स दि बेध्यानां दि मुँग दि दाल आफ दी टोबा टेक सिंह एंड पाकिस्तान!" उसे बहुत समझाया गया कि देखो, अब टोबा टेक सिंह हिंदुस्तान में चला गया है, अगर नहीं गया है तो उसे फौरन वहाँ भेज दिया जाएगा, मगर वह न माना! जब उसको ज़बर्दस्ती दूसरी तरफ़ ले जाने की कोशिश की गई तो वह दरमियान में एक जगह इस अंदाज़ में अपनी सूजी हुई टांगों पर खड़ा हो गया जैसे अब उसे कोई ताकत नहीं हिला सकेगी, आदमी चूँकि सीधा था, इसलिए उससे ज़्यादा ज़बर्दस्ती न की गई, उसको वहीं खड़ा रहने दिया गया, और तबादले का बाक़ी काम होता रहा। सूरज निकलने से पहले शांत पड़े बिशन सिंह के हलक के एक गगन भेदी चीख़ निकली। इधर-उधर से कई दौड़े आए और उन्होने देखा कि वह आदमी जो पंद्रह बरस तक दिन-रात अपनी टाँगों पर खड़ा रहा था, औंधे मुँह लेटा है - उधर खरदार तारों के पीछे हिंदुस्तान था, इधर वैसे ही तारों के पीछे पाकिस्तान, दरमियान में ज़मीन के उस टुकड़े पर जिसका कोई नाम नहीं था, टोबा टेक सिंह पड़ा था। **
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
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