20-10-2014, 09:27 PM | #1 |
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‘बंसी’ तुझे दीवाली मनाने का कोई हक़ नहीं....bansi
दीवाली के महतव पर ध्यान देते नहीं दीये बाहर तो बहुत जलाते हैं मगर मन का अंधेरा तो मिटाते नहीं मीठाईयाँ आपस में तो बाँटते हैं मगर रिश्तों को दिल से मीठा तो बनाते नहीं सफाई तो हर दिवाली पर करते हैं मगर सफाई मन से मन की तो करते नहीं हर साल रावण को भी जलाते हैं मगर अन्दर के रावण को तो जलाते नहीं राम की पूजा तो करते हैं मगर राम के दिखाए रास्ते पर तो चलते नहीं दिवाली तो हर साल मानते हैं मगर अपने जीवन में सुधार तो लाते नहीं अगर मन का मैल निकल ना सकें तो भी मन में और मैल तो इकठ्ठा करें नहीं अगर रिश्तों में मिठास ना घोल सकें तो भी कड़वाहट को रिश्तों में तो बड़ाएँ नहीं राम के दिखाए रास्ते पर चलना कठिन है तो भी उस राह पर चलने की कोशिश तो छोड़ें नहीं ‘बंसी’ तू अपने को बदलने की कोशिश करता नहीं तो ‘बंसी’ तुझे दीवाली मनाने का कोई हक़ नहीं बंसी(मधुर) |
21-10-2014, 12:35 PM | #2 |
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Re: ‘बंसी’ तुझे दीवाली मनाने का कोई हक़ नहीं....bansi
विचारों की सुन्दर अभिव्यक्ति. आपकी अन्य रचनाओं की भांति यहाँ भी आपने व्यक्ति के द्वारा आत्म-विकास की दिशा में प्रवृत्त होने के लिये जरुरी क़दमों का उल्लेख किया है. लेकिन मैं मानता हूँ कि दिवाली मनाने का अधिकार सभी को है. आपने सुना होगा कि तिहाड़ जेल में भी दिवाली मनाई जाती है. मकसद है, अच्छे विचारों का संचरण होना, बुराई को त्यागना और अच्छाई का वरण करना. हर व्यक्ति अपने अपने तरीके से कोशिश करता है. इसका परिणाम भी हरेक के लिये अलग अलग श्रमसाध्य व समयसाध्य हो सकता है.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
21-10-2014, 10:03 PM | #3 | |
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Re: ‘बंसी’ तुझे दीवाली मनाने का कोई हक़ नहीं....bansi
Quote:
आपने सही कहा है दिवाली मनाने का अधिकार तो सब को है और मनानी भी चाहिया मेरा सोचना है कि अगर हम अपने जीवन को सुधारने की कोशिश ही नहीं करते तो दिवाली मनाना या ना मनाना एक ही है अगर हमने अपने जीवन को संवारना हैं ती वो हमें ही करना है कोई और यह नहीं कर सकता |
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