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Old 22-10-2011, 10:54 AM   #1
Kunal Thakur
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Join Date: Oct 2011
Location: New Delhi
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Default मैं बालक तू माता !!

मैं बालक तू माता !!मकर संक्रांति का दिन था | तीन दिन से पृथ्वी ने सूर्य के दर्शन नहीं किये थे | सुबह की हल्की फुहार ने मौसम को और ठंडा कर दिया था | भगवानपुर मोहल्ले के लोग चुड़ा-दही , सब्जी और तिलवा का भोग लगा चुके थे | कुछ लोग ठण्ड से बचने के लिए पूस की भरी दोपहरी में आग सेंक रहे थे | तो कुछ लोग रजाई ओढ़ कर आराम भी फरमा रहे थे | पर इसी मोहल्ले का मंगेश इन सुख सुविधा को छोड़ मंदिर परिसर में बड़े बेचैनी से घूम रहा था | १८ साल का हिस्ट पुष्ट मंगेश मोहल्ले के मिश्रा जी का ज्येष्ठ सुपुत्र है | ठण्ड से बचने के लिए उसने २ मोटे स्वेटर , टोपी पहन रखी थी , उप्पर से खादी का शाल ओढ़ रखा था | तभी मंदिर परिसर में रमेश, मंटू और संकेत ने प्रवेश किया | उन्हें देखते ही मंगेश क्रोध से तम तमा गया और गरज कर बोला ," इतने देर से इंतज़ार कर रहा हूँ , तुम लोग तिलवा-तिलकुट खाने में व्यस्त थे "| संकेत ने क्रोध का रुख मंटू की तरफ मोड़ दिया और बोला की मंटू अपने चाचा जी के यहाँ चुड़ा-दही खाने गया हुआ था | इसलिए लेट हो गए |
फिर चारो मित्र एक लकड़ी के बेंच पर बैठ गए | मंगेश ने बात आगे बढाई और कहा की २० दिन बाद सरस्वती पूजा है और हमलोगों के तरफ से कोई तैयारी शुरू भी नहीं हुई है | उधर ब्रहमपुरा मोहल्ले में चंदा इकेह्ठा भी हो गया | सभी मित्र काफी चिंतित हुएं खास कर पड़ोसी मोहल्ले ब्रहमपुरा की खबर से | मित्रो के बीच मंत्रणा शुरू हो गयी | पूजा स्थल , और लड़को को शामिल करना और चंदा इकेहटा करने पर विशेष बल दिया गया | ये भी तय हुआ की ब्रहमपुरा के सरस्वती पूजा से जाएदा भव्य पूजा हम लोग करेंगे | मंगेश को छोड़ सभी मित्र आस्वस्त लग रहे थे | मंगेश अभी भी संतुष्ट नहीं था | हो भी कैसे , दसंवी के इम्तेहान में उसे दूसरी बार बैठना था | पहली बार अध्यापको और वर्ग के छात्रों ने उसका सही ढंग से साथ नहीं दिया था | लेकिन इस बार वह कोई जोखिम उठाने के लिए तैयार नहीं था | इस बार वह सीधे तौर पर विद्या की देवी का साथ चाहता था | २ महीने बाद दसंवी के इम्तेहान शुरू होने वाले थे, उससे पहले सरस्वती पूजा एक बेहतरीन अवसर था सफलता सुनाश्चित करने के लिए | सब ने मिलकर पूजा आयोजन का बिगुल फूंक दिया | मंगेश ने उन लड़को को शामिल करने का फैसला किया जो उसकी तरह जरुरतमंद थे और जिनकी आस्था संदेह से परे थी | दस बारह लड़को की एक टोली तैयार हो गयी | चंदे की रशीद छप के आ गयी |
मंगेश मोहल्ले का लाडला था | मोहल्ले में किसी भी लड़की की शादी हो , मंगेश तन और मन से उसमे लग जाता था | जब तक लड़की की ढोली न उठ जाये वह दिन को दिन और रात को रात न समझता था | पर्व-तह्वारो की भी सबसे जाएदा ख़ुशी उसी को रहती थी | मंगेश अपने कर्मठ छवि के कारण आस्वस्त था की पूजा के लिए चंदा आसानी से मिल जायेगा| चंदा इकेह्ठा करना कोई आसान काम नहीं होता चाहे वह चुनाव के लिए हो या पूजा के लिए | इसके लिए उत्साह , साहस और तीक्षण बुधि की जरुरत होती है |कुछ लोगो ने बढ़ चढ़ कर चंदा दिया खास कर व्यापर करने वाले और कम डिग्री धारण करने वाले लोगो ने | लेकिन मोहल्ले के कुछ बुध्जिवियों ने मंगेश और उसके दोस्तों को बहुत परेशान किया | जब भी टोली चंदा लेने जाती , उन से क्या क्या जटिल सवाल पूछ लेते | डॉक्टर शर्मा से भारी भरकम चंदे की उम्मीद थी | लेकिन डॉक्टर साहब ने लड़को पे तीखे सवाल दागे | जैसे सरस्वती जी की स्तुति में २ लाइन सुनाओ , सरस्वती जी के पिता जी का क्या नाम था , उनके वाहन का क्या नाम है ? डॉक्टर साहब के सामने मुंह खोलने का किसी लड़के में साहस न था | लड़कों के अल्प ज्ञान पर उन्होंने कुटिल मुस्कान छोड़ी और ग्यारह रूपए थमा दियें | गुप्ता जी वकील थे और मोहल्ले के इकमात्र व्यक्ति थे जिनके पास २ कार थी | लेकिन चन्दा देने के नाम पर पुरे नेता थे | ४ बार आश्वाशन दिया और पांचवी बार ग्यारह रूपए इस शर्त पर दियें की प्रसाद उनके घर पर पंहुचा दिया जाएँ | अथक प्रयास के बावजूद चन्दा बजट से कम जमा हुआ | टोली के सामने गंभीर समस्या उत्पन हो गयी | मंटू प्रणब दा की तरह संकट मोचन बन कर आया | उसने सुझाव दिया की क्यूँ न मोहल्ले के चौराहे से गुजरने वाले राहगीरों से चंदा लिया जाये | उसके मामा जी ने अपने ज़माने में यह तुरुप का पता अजमाया था | टोली ने यह तरीका आजमाया और उम्मीद से जाएदा चंदा इकेह्ठा हो गया | मंगेश पूजा से पहले २ रात बिना सोये प्रसाद कटा और पैक किया | मिश्रा जी उसे समझाते की बेटा परीक्षा पास है कभी किताबो को भी खोल कर देख लिया करो | लेकिन मंगेश अपने निर्णय पर अडिग था | सरस्वती पूजा का सफल आयोजन ही उसके सफलता की कुंजी थी | पूजा हुआ और काफी भव्य ढंग से हुआ | लोगो ने मंगेश के नेत्रत्व की तारीफ की और उसे मोहल्ले का गौरव बताया | पुत्र की भूरी भूरी प्रशंसा सुनकर मिश्रा जी की छाती चौड़ी हो जाती |
पूजा सम्पन हुआ और कुछ दिनों बाद दंसवी के इम्तेहान भी शुरू हो गए | प्रशन पत्र देख कर मंगेश के पसीने छुट गए | वह कभी सर खुजलाता , कभी बगले झांकता | किसी तरह परीक्षा संम्पन हुआ | मंगेश को ये तो पता था की परीक्षा अच्छे ढंग से नहीं हुए हैं पर उसे अपने आस्था पर पूरा विश्वास था की कम से कम वह उतीर्ण तो हो ही जायेगा | २ महीने बाद 'परिणाम नामक मनहूस चीज' भी निकल ही आया | सुबह सुबह नहा धोकर मंगेश सीधे मंदिर गया | वहां से अपने स्कूल गया | वहां कुछ बच्चे काफी खुश थे तो कुछ नज़रें चुराएँ चुप चाप कोने में खड़े थे | उन्हें देख मंगेश के हाथ पैर ठन्डे हो गए | रमेश और संकेत कूदते कूदते उसके पास आयें | वो कुछ कहते इससे पहले ही मंगेश समझ गया | वह आगे बढ़ कर मंटू को खोजने लगा | मंटू उसे साइकिल स्टैंड के पास खड़ा दिखाई दिया | मंटू के पास गया और उसके कंधे पर हाथ रखा | मंटू ने नज़रें उठाई और बोला , " दोस्त हम से कुछ गलती हुई , हमें विद्या के साथ शक्ति की भी जरुरत है | इस बार दुर्गा पूजा मनाएंगे |"


कृत : कुणाल

स्थान : मुजफ्फरपुर
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doctor, kunal, muzaffarpur, puja, sarswati


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