17-06-2012, 10:59 AM | #51 |
Member
Join Date: Nov 2011
Location: Banglore/Moscow
Posts: 118
Rep Power: 15 |
Re: उपनिषदों का काव्यानुवाद
चैतदुपस्मरत्यभीक्ष्णँ सङ्कल्पः ॥५॥ ये जो मन हमारा ब्रह्म के अति निकट होता प्रतीत हो, साकार हो कि निराकार हो पर प्रभो में प्रतीति हो। फिर इष्ट में अतिशय निमग्न हो, प्रेम में व्याकुल रहे, साक्षात करने की अभीप्सा में ही मन आकुल रहे॥ [5] |
17-06-2012, 10:59 AM | #52 |
Member
Join Date: Nov 2011
Location: Banglore/Moscow
Posts: 118
Rep Power: 15 |
Re: उपनिषदों का काव्यानुवाद
तद्ध तद्वनं नाम तद्वनमित्युपासितव्यं स य ।
एतदेवं वेदाभि हैनँ सर्वाणि भूतानि संवाञ्छन्ति ॥६॥ सब प्राणियों को विश्व में , प्रिय परम प्रभु परमेश है, उसका निरंतन नित्य चिंतन, भक्त का उद्देश्य है। जो भक्त ईशमय हो सके, आनंदमय होता वही, आत्मीय बन कर विश्व का, सम्मान पाता हर कहीं॥ [6] |
17-06-2012, 11:00 AM | #53 |
Member
Join Date: Nov 2011
Location: Banglore/Moscow
Posts: 118
Rep Power: 15 |
Re: उपनिषदों का काव्यानुवाद
उपनिषदं भो ब्रूहीत्युक्ता त उपनिषद्ब्राह्मीं वाव त उपनिषदमब्रूमेति ॥७॥
गुरुदेव कृपया मर्म ब्रह्मा का यथोचित कीजिये, हमें जो भी सम्भव हो बताना, व्यक्त सब कर दीजिये। वत्स तुमको ब्रह्म विद्या का मर्म व्यक्त किया सभी, श्रोतस्य श्रोतम ब्रह्म का अथ मर्म हम कहते सभी॥ [7] |
17-06-2012, 11:00 AM | #54 |
Member
Join Date: Nov 2011
Location: Banglore/Moscow
Posts: 118
Rep Power: 15 |
Re: उपनिषदों का काव्यानुवाद
तसै तपो दमः कर्मेति प्रतिष्ठा वेदाः सर्वाङ्गानि सत्यमायतनम् ॥८॥
जो लक्ष्य ब्रह्म को मानकर, निष्काम तप, दम, भाव से, करें वेद धर्म का आचरण, यदि अमिय सिक्त स्वभाव से। सर्वस्य परब्रह्म ब्रह्मविद्या, प्राप्त कर सकते वही, वही सर्वथैव असाध्य ब्रह्म को, साध्य कर सकते मही॥ [8] |
17-06-2012, 11:01 AM | #55 |
Member
Join Date: Nov 2011
Location: Banglore/Moscow
Posts: 118
Rep Power: 15 |
Re: उपनिषदों का काव्यानुवाद
यो वा एतामेवं वेदापहत्य पाप्मानमनन्ते ।
स्वर्गे लोके ज्येये प्रतितिष्ठति प्रतितिष्ठति ॥९॥ उपनिषद रूपा ब्रह्मविद्या, आत्म तत्त्व जो जानते, करें कर्म चक्र का निर्दलन, गंतव्य को पहचानते। आवागमन के चक्र में, पुनरपि कभी बंधते नहीं, अरिहंत, पाप व पुण्य के, दुर्विन्ध्य गिरि रचते नहीं॥ [9] |
17-06-2012, 11:05 AM | #56 |
Member
Join Date: Nov 2011
Location: Banglore/Moscow
Posts: 118
Rep Power: 15 |
Re: उपनिषदों का काव्यानुवाद
कठोपनिषद
ॐ श्री परमात्मने नमः शांति पाठ ॐ सह नाववतु । सह नौ भुनक्तु । सह वीर्यं करवावहै । तेजस्वि नावधीतमस्तु । मा विद्विषावहै । रक्षा करो पोषण करो, गुरु शिष्य की प्रभु आप ही, ज्ञातव्य ज्ञान हो तेजमय, शक्ति मिले अतिशय मही। न हों पाराजित हम किसी से, ज्ञान विद्या क्षेत्र में, हो त्रिविध तापों की निवृति, न प्रेम शेष हो नेत्र में॥ |
17-06-2012, 11:06 AM | #57 |
Member
Join Date: Nov 2011
Location: Banglore/Moscow
Posts: 118
Rep Power: 15 |
Re: उपनिषदों का काव्यानुवाद
प्रथम अध्याय/प्रथम वल्ली/भाग-१
ॐ अशन् ह वै वाजश्रवस: सर्ववेदसं ददौ । तस्य ह नचिकेता नाम पुत्र आस ॥१॥ ॐ नाम से उपनिषद शुचि आदि हो स्वस्तिमयी, वाजश्रवा के पुत्र उद्दालक का यज्ञ मंगलमयी। नचिकेता नाम का पुत्र उनका लीन था सर्वज्ञ में, धन दान में सब दे दिया था, विश्वजीत इस यज्ञ में॥ [1] |
17-06-2012, 11:16 AM | #58 |
Member
Join Date: Nov 2011
Location: Banglore/Moscow
Posts: 118
Rep Power: 15 |
Re: उपनिषदों का काव्यानुवाद
तं ह कुमारं सन्तं दक्षिणासु नीयमानसु श्रद्धा आविवेश सोऽमन्यत ॥२॥
उपरांत यज्ञ के ब्राह्मणों को, दक्षिण के रूप में, गौएँ जो दी जानी थी, सब थी जीर्ण शीर्ण स्वरूप में। नचिकेता बालक था अपितु, आवेश में कुछ कुछ कहा, क्या दान योग्य है जीर्ण गौएँ, शेष इनमें क्या रहा॥ [2] |
17-06-2012, 11:16 AM | #59 |
Member
Join Date: Nov 2011
Location: Banglore/Moscow
Posts: 118
Rep Power: 15 |
Re: उपनिषदों का काव्यानुवाद
पीतोदका जग्धतृणा दुग्धदोहा निरिन्द्रिया: ।
अनन्दा नाम ते लोकास्तान् स गच्छति ता ददत् ॥३॥ ये दुग्ध हीन निरिन्द्रियाँ, गौएँ तो मरणासन्न हैं, यह दान व्यर्थ है, पिता मेरे, इतने कैसे प्रसन्न हैं? जो भी निरर्थक वस्तुएं हों, दान उनका व्यर्थ है, जो प्रेय श्रेय को दे सके, उस दान का ही अर्थ है॥ [3] |
17-06-2012, 11:16 AM | #60 |
Member
Join Date: Nov 2011
Location: Banglore/Moscow
Posts: 118
Rep Power: 15 |
Re: उपनिषदों का काव्यानुवाद
स होवाच पितरं तत कस्मै मां दास्यतीति ।
द्वितीयं तृतीयं तं होवाच मृत्यवे त्वा ददामीति॥४॥ इन अर्थों में, अति परम प्रिय धन, तात का मैं पुत्र हूँ, मुझे आप किसको दे रहे कृपया कहें, मैं व्यग्र हूँ। पुनि प्रश्न था, पुनि मौन था, पुनि प्रश्न उत्तर शेष था, तुझे मृत्यु को देता हूँ, ऋषि को, क्रोधमय आवेश था॥ [4] |
Bookmarks |
Tags |
upnishads |
|
|