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15-05-2014, 11:16 PM | #1 |
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Re: बॉलीवुड शख्सियत
महमूद का अनोखा म्यूजिक सेंस
महमूद के एक व्यक्तित्व में कई व्यक्तित्व समाए हुए थे. उन्हें संगीत की बेहतर समझ थी. उन्होंने जॉनी वाकर को सामने रखकर कई गाने अपनी फिल्मों में गाए हैं. दूसरे पार्श्वगायक मन्ना डे ने जितने नटखट गाने गाए हैं, ज्यादातर का पार्श्वगायन महमूद के लिए हुआ है. मन्ना डे ने अपनी आत्मकथा में महमूद का आभार भी माना है. जब महमूद फिल्म निर्माता बन गए तो उन्होंने अनेक संगीतकारों को मौका देकर आगे बढ़ाया. मिसाल के बतौर आरडी बर्मन (छोटे नवाब), राजेश रोशन (कुंआरा बाप) तथा बासु-मनोहारी (सबसे बड़ा रुपैय्या) के नाम गिनाए जा सकते हैं. महमूद का अनोखा म्यूजिक सेंस महमूद के एक व्यक्तित्व में कई व्यक्तित्व समाए हुए थे. उन्हें संगीत की बेहतर समझ थी. उन्होंने जॉनी वाकर को सामने रखकर कई गाने अपनी फिल्मों में गाए हैं. दूसरे पार्श्वगायक मन्ना डे ने जितने नटखट गाने गाए हैं, ज्यादातर का पार्श्वगायन महमूद के लिए हुआ है. मन्ना डे ने अपनी आत्मकथा में महमूद का आभार भी माना है. जब महमूद फिल्म निर्माता बन गए तो उन्होंने अनेक संगीतकारों को मौका देकर आगे बढ़ाया. मिसाल के बतौर आरडी बर्मन (छोटे नवाब), राजेश रोशन (कुंआरा बाप) तथा बासु-मनोहारी (सबसे बड़ा रुपैय्या) के नाम गिनाए जा सकते हैं. ^
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15-05-2014, 11:21 PM | #2 |
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Re: बॉलीवुड शख्सियत
जीरो से हीरो तक
अपने घर से नग्न अवस्था में बाहर आने वाला बालक अपने साथ जीरो लेकर चला था. जब कॉमेडियन के रूप में वह फिल्मों के लिए अनिवार्य हो गए तो छोटे बजट की फिल्मों में उन्हें हीरो के रोल मिलने लगे. इनमें छोटे नवाब (निर्माता-महमूद), फर्स्ट लव, प्यासे पंछी, कहीं प्यार ना हो जाए, शबनम, भूत बंगला, नमस्ते जी जैसी फिल्में प्रमुख हैं. आईएस जौहर के साथ भी महमूद की ट्यूनिंग उम्दा रही. जौहर-महमूद इन गोआ के बाद जौहर-महमूद इन हांगकांग इस जोड़ी की यादगार फिल्में हैं. साठ के दशक में मध्य से हिन्दी फिल्मों के लिए महमूद का फिल्म में होना उसकी सफलता की गारंटी बन गया था. इस दौर में बड़े बैनर, बड़ी फिल्में और बड़े सितारों के साथ काम करने का मौका मिला. ऐसी फिल्मों का यहां सिर्फ उल्लेख किया जा सकता है- पत्थर के सनम, दो कलियां, नीलकमल, औलाद, प्यार किये जा, हमजोली, पड़ोसन आदि. फिल्म पड़ोसन महमूद के करियर की ऑल टाइम ग्रेट फिल्म है. यदि पांच कॉमेडी फिल्मों की तालिका बनाई जाए, तो निश्चित रूप से उनमें से एक पड़ोसन रहेगी. शुभा खोटे के बाद कॉमेडी-पार्टनर के रूप में दूसरी लेडी हैं अरुणा ईरानी. महमूद का साथ पाकर अरुणा का करियर इतना आगे बढ़ गया कि महमूद ने अपने प्रोडक्शन हाउस में उनको हीरोइन बनाकर फिल्म बॉम्बे टू गोआ (1972) बनाई.
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15-05-2014, 11:25 PM | #3 |
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Re: बॉलीवुड शख्सियत
एक ढलता हुआ सूरज
अपने करियर के शिखर पर जाकर महमूद अपने आपको संभाल नहीं पाए. जरूरत से ज्यादा कॉमेडी और इमोशनल रोल करने से वे टाइप्ड हो गए. एक के बाद एक लगातार फिल्में रिलीज होने से भी दर्शक महमूद-मेनिया के शिकार होने लगे. सत्तर का दशक ढलते-ढलते महमूद के सूरज की गर्मी ठण्डी होने लगी. देव आनंद के केम्प में शरीक होकर उन्होंने डॉर्लिंग-डॉर्लिंग (1977), देस परदेस (1978) और लूटमार (1980) फिल्में की थीं. ये फिल्में देव आनंद के लिए भी कमजोर साबित हुईं. महमूद की इनमें चरित्र भूमिकाएं थीं. अस्सी के दशक में महमूद और निचली पायदान पर चले गए. दादा कोंडके का हाथ पकड़कर उन्होंने अंधेरी रात में दिया तेरे हाथ में और खोल दे मेरी जुबान जैसी स्तरहीन फूहड़ फिल्में की. महमूद के जीवन के आखिरी दिन अकेले और बीमारी से संघर्ष में बीते. लगातार ऑक्सीजन सिलेंडर लगाने से फिल्मी दुनिया से दूर होते चले गए. आखिरी समय में भारत भी छूट गया. उन्होंने 24 जुलाई 2004 को पेनसिल्वेनिया (अमेरिका) के अस्पताल में आखिरी सांस ली.
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08-07-2014, 08:46 PM | #4 |
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Re: बॉलीवुड शख्सियत
श्री पृथीराज कपूर की बायोग्राफी इतने सुंदर तरीके से देने के लिए आपका हार्दिक आभार.........
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18-07-2014, 10:20 PM | #5 |
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Re: बॉलीवुड शख्सियत
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18-07-2014, 10:28 PM | #6 |
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Re: बॉलीवुड शख्सियत
हिन्दुस्तानी सिनेमा के 100 वर्ष के इतिहास पर जब हम नज़र डालते हैं तो उसकी नींव में अपना खून पसीना देने वाले कुछ महान फिल्मकारों के नाम बरबस ही हमारे मन मस्तिष्क में उभर आते हैं। ऐसी ही विभूतियों में से एक थे सोहराब मेरवानजी मोदी जिनका जन्म बंबई (अब मुंबई) में एक संयुक्त पारसी परिवार में 2 नवंबर 1897 को हुआ था। उन दिनों परंपराएं चरम पर थीं और सोहराब अपने माता-पिता की ग्यारहवीं संतान थे। सोहराब की समझ और हास्य बोध बचपन से ही परिष्कृत होने लगे थे।
^^ बंबई में जन्मे सोहराब मोदी का बचपन रामपुर में बीता, जहां उनके पिता नवाब के यहां सुपरिंटेंडेंट थे। नवाब रामपुर का पुस्तकालय बहुत समृद्ध था। रामपुर में ही सोहराब मोदी ने फर्राटेदार उर्दू सीखी। अभिनय की प्रारंभिक शिक्षा उन्हें अपने भाई रुस्तम की नाटक कंपनी सुबोध थिएट्रिकल कंपनी से मिली,जिसमें उन्होंने 1924 से काम करना शुरू कर दिया था। वहीं उन्होंने संवाद को गंभीर और सधी आवाज में बोलने की कला सीखी, जो बाद में उनकी विशेषता बन गयी। कुछ ही समय में वे नाटकों में उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाने लगे। ‘हैमलेट’ और ‘द सोल आफ डाटर’ उनके लोकप्रिय नाटक थे जिनमें उन्होंने अभिनय किया।
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18-07-2014, 10:46 PM | #7 |
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Re: बॉलीवुड शख्सियत
बाद में उनका परिवार रामपुर से बंबई चला आया। वहां उन्होंने परेल के न्यू हाईस्कूल से मैट्रिक पास किया। जब ये अपने प्रिंसिपल से यह पूछने गये कि भविष्य में क्या करें, तो उनके प्रिंसिपल ने कहा,‘तुम्हारी आवाज सुन कर तो यही लगता है कि तुम्हे या तो नेता बनना चाहिए या अभिनेता।’ और सोहराब अभिनेता बन गये। उनकी आवाज की तरह बुलंद थी। अंधे तक उनकी फिल्मों के संवाद सुनने जाते थे।
16 वर्ष की उम्र में वे ग्वालियर के टाउनहाल में फिल्मों का प्रदर्शन करते थे। बाद में अपने भाई रुस्तम की मदद से उन्होंने ट्रैवलिंग सिनेमा का व्यवसाय शुरू किया। फिर अपने भाई के साथ ही उन्होंने बंबई में स्टेज फिल्म कंपनी की स्थापना की। इस कंपनी की पहली फिल्म 1953 में बनी ‘खून का खून’ थी, जो उनके नाटक ‘हैमलेट’ का फिल्मी रूपांतर थी। इसमें सायरा बानो की मां नसीम बानो पहली बार परदे पर आयीं। ‘सैद –ए-हवस’ (1936) भी नाटक ‘किंग जान’ पर आधारित थी। सोहराब मूलतः नाटक से आये थे, यही वजह है कि उनकी पहले की फिल्मों में पारसी थिएटर की झलक मिलती है। ऐतिहासिक फिल्में बनाने में वे सबसे आगे थे। उन्होंने जितनी फिल्में बनायीं, नमें करीब आधा दर्जन फिल्में ऐतिहासिक थीं। 1936 में स्टेज फिल्म कंपनी मिनर्वा मूवीटोन हो गयी और इसका प्रतीक चिह्न शेर हो गया। अपने इस बैनर में उन्होंने जो फिल्में बनायीं वे थीं- आत्म तरंग (1937), खान बहादुर (1937), डाइवोर्स (1938), जेलर (1938), मीठा जहर (1938), पुकार (1939), भरोसा (1940),सिकंदर (1941), फिर मिलेंगे (1942), पृथ्वी वल्लभ ((1943).एक दिन का सुलतान (1945), मंझधार (1947), दौलत (1949), शीशमहल (1950), झांसी की रानी (1953), मिर्जा गालिब (1954), कुंदन (1955 ), राजहठ (1956), नौशेरवा-ए-आदिल (1957), जेलर (1958), मेरा घर मेरे बच्चे (1960), समय बड़ा बलवान (1969)। इसके अलावा उन्होंने सेंट्रल स्टूडियो के लिए ‘परख’ और शैली फिल्म्स के लिए ‘मीनाकुमारी की अमर कहानी’ बनायी।
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18-07-2014, 10:54 PM | #8 |
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Re: बॉलीवुड शख्सियत
भारत की पहली टेकनीकलर फिल्म ‘झांसी की रानी’ उन्होंने बनायी थी। इसके लिए वे हालीवुड से तकनीशियन और साज-सामान लाये थे। इसमें झांसी की रानी बनी थीं उनकी पत्नी महताब। सोहराब मोदी राजगुरु बने थे। इस फिल्म को उन्होंने बड़ी तबीयत से बनाया था , लेकिन फिल्म फ्लाप हो गयी। इस विफलता से उबरने के लिए उन्होंने ‘मिर्जा गालिब’ (सुरैया-भारतभूषण) बनायी। यह फिल्म व्यावसायिक तौर पर तो सफल रही ही इसे राष्ट्रपति का स्वर्ण पदक भी मिला। उन्होंने सामाजिक समस्याओं परभी कुछ यादगार फिल्में बनायीं। इनमें शराबखोरी की बुराई पर बनायी गयी फिल्म ‘मीठा जहर’ और तलाक की समस्या पर ‘डाईवोर्स’ उल्लेखनीय हैं। उनकी सर्वाधिक चर्चित और सफल ऐतिहासिक फिल्म थी ‘पुकार’। इसमें चंद्रमोहन (जहांगीर), नसीम बानो (नूरजहां), सोहराब मोदी (संग्राम सिंह) और सरदार अख्तर की प्रमुख भूमिकाएं थीं।
^ ^ फिल्म झांसी की रानी का पोस्टर और एक दृष्य इस फिल्म को न सिर्फ प्रेस बल्कि दर्शकों से भी भरपूर प्रशंसा मिली। ‘सिकंदर’ में पोरस और ‘पुकार’ में संग्राम सिंह की भूमिका में सोहराब मोदी के अभिनय की बड़ी प्रशंसा हुई।
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19-07-2014, 11:31 AM | #9 |
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Re: बॉलीवुड शख्सियत
ईस लोह पुरुष के बारेमे जानने की काफी इच्छा थी, और आपने शायद मेरे मन की बात जानली,मेरी मनोकामना पूर्ण करने के लिए आपका हार्दिक आभार.........
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19-07-2014, 12:45 PM | #10 |
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Re: बॉलीवुड शख्सियत
दिल खुश कर देने वाले शब्दों में सोहराब मोदी साहब विषयक आलेख की प्रशंसा करने के लिये मेरा हार्दिक आभार स्वीकार करें, डॉ श्री विजय जी. इंडस्ट्री के पुराने लोग उन्हें बब्बर शेर के नाम से यूँ ही नहीं बुलाते थे.
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