05-08-2013, 07:51 PM | #1 |
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होता है ..... चलता है ......
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
05-08-2013, 07:51 PM | #2 |
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Re: होता है ..... चलता है ......
सोनू के दूकान के पास से जब रश्मि गुजरी तो ऊपर वर्णित स्विट्ज़रलैंड की वादी को देखकर सनसनाहट में उसने अपने होंठ काट लिए.... एक सिसकारी भरी और सारी ताकत किस्मत जैसी किसी अदृश्य चीज़ को गरियाने में लगा दिया...
सोनू, रश्मि का पुराना आशिक, कक्षा आठ से उसके ट्यूशन-कोचिंग के दिनों से उसके आगे-पीछे डोलता हुआ. रश्मि जब भी घर से निकलती तो उसे गली के मोड से कोलेज और कोलेज से गली के मोड तक सशरीर छोड़ता सोनू. उसके बाद रश्मि को अपनी आखों से उसके बेडरूम तक छोड़ता था... आज उसके प्यार में बर्बाद होकर उसी मोड पर सी.डी. की दूकान खोले बैठा है जो अब कितनी भी घिसी हुई सी.डी. चलने में एक्सपर्ट हो चुका है, वो एक ग्राहक को जो उसे सोनू भईया बुलाता है उसे बता रहा है कि “ये सी.डी. साली चलेगी कैसे नहीं, इसपर दो बूंद पानी डालो, सूती कपडे से पोछो फिर चलाओ और देखो”... क्योंकि ग्राहक की शिकायत थी की “भईया यह सिनेमा हर हाल में देखे के है, शंकरवा बोला है कि इसमें हीरोइन कपडे उतारकर कर हीरो से फोटू बनवाती है”.
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05-08-2013, 07:52 PM | #3 |
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Re: होता है ..... चलता है ......
उसके पास राम तेरी गंगा मैली, मेरा नाम जोकर, आस्था, एक छोटी सी लव स्टोरी से लेकर सलमा की जवानी, रंगीला बुढ्ढा, वन एक्स, डबल एक्स और ट्रिपल एक्स जैसी सी. डी. हैं... जहां आवारों का जमघट है और फलाना फिलिम में ढीमकाना सीन तक के चर्चे हैं विथ एक्सप्रेशन एंड ऐक्ट...
यों सोनू का जिंदगी का सिलेबस बस काफी सिमट चुका है, सुबह उठकर माई के हाथ का चाय पीना, नहाना, तुलसी में जल देना और दस बजे तक दूकान खोल देना.. इन सबके बीच में तुलसी में जल देते वक्त मुई गर्दन रश्मि के घर के तरफ मुड ही जाती थी... गोया यही एक कॉमन चीज़ रह गई थी...पर इससे पहले भी सिलेबस कहाँ ज्यादा था... घर के उलाहने थे, थोड़ी सी जिम्मेदारी थी, रोज का आटा-दाल, नून का घटना था और इन सब में गड्ड-मड्ड होते सोनू के मन में बसी रश्मि थी.
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05-08-2013, 07:52 PM | #4 |
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Re: होता है ..... चलता है ......
हाँ तब सी.डी. की दूकान नहीं थी, थी तो बस एक सायकल जिसपर लड़कियों को हीरो फिल्मों में ही बिठाकर हरे-भरे पगडंडियों पर घुमाता हुआ ठीक लगता है... आगे बैठे हुए लड़की और उसके कानों में ‘आई लव यू’ कहता लड़का, इसे करते हुए दोनों आनंदित होते है और आप देखकर... “जब लड़की आगे बैठती है तो सीन कैसा रोमांटिक लगता है पर पीछे बैठते ही सीन कैसे संघर्षवाला लगने लगता है रे बाबा, दुपहरी जाग जाती है”
रश्मि भी उसी हेरोइन के तरह होती तो जिनगी केतना खुशहाल होता, ना.. ना वो तो है हेरोइन... इसमें कोई शक नहीं, गर्दन झुकाकर हँसती है तो कैसे सरसों लहलहाने लगता है खेत में, गेंहू की सारी बालियाँ हहरा उठती है, लगता है कोई राह बनाते जा रहा हो पर उसकी छाया तक न दिखती हो, जुल्फन को झटका देती है तो लगता है कि किसी बात को फेर से कहेगी... खैर...“होता है, चलता है, दुनिया है...” सोनू सोचता है.
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05-08-2013, 07:52 PM | #5 |
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Re: होता है ..... चलता है ......
तो आज रश्मि दूकान के सामने से क्या गुजरी सोनू फ्लैश्बैक में चला गया... उफ़ क्या दिन थे, अंग्रेजी के पासपोर्ट के पैसे से फोन करना, छोटू के हातों मुरब्बा भिजवाना, कैसे रस ले के खाती थी जुगनी (रश्मि का प्यार भरा नाम) झूला पर झूलते हुए, रेनोल्ड्स के लीड में लपेट कर चिठ्टी देना, चुम्मा लेने की कोशिश करते ही उसका हाथ छुडा के इठलाकर भाग जाना...... “यह लड़कियां लास्ट मोमेंट पर हाथ छुडा के काहे भाग जाती है, समझ नहीं आया आज तक” ... सोनू सोचता है.
“होता है, चलता है, दुनिया है...”
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05-08-2013, 07:52 PM | #6 |
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Re: होता है ..... चलता है ......
“होता है, चलता है, दुनिया है” वाला फलसफा कासिम नगर के इस बस्ती में भी दोहराई जा रही थी... कासिम नगर, बिहार के m+y समीकरण पर आधारित था. यानी मुस्लिम + यादव समीकरण जिसके आधार पर लालू ने 20 बरस कुर्सी गर्म रखी और निवासियों की हालत उस बंदरिया की तरह कर दी जो अपने मरे हुए बच्चे को कलेजे से लगाकर घूमती रहती है, जिसे 5 दिन बाद भी यह विश्वास रहता है की उसका बच्चा जिंदा है (जुगाड़ में घूमने वाले यह कतई ना समझें की हम नीतीश सरकार से आह्लादित हैं).
इस समीकरण का एक फायदा यह भी था कि राजद के प्रदेश युवा सदस्य भी बोलेरो, क्वालिस और स्कोर्पियो से उतर सीना ठोंक कर कहते कि ‘रिकॉर्ड उठा कर देख लीजिए, है कोई माई का लाल जो बिहार के इतिहास में एक भी एक भी दंगा बता दे’.. और हम इस झुनझुने को लेकर संतुष्ट हो जाते. इसलिए यह कासिम शहर नहीं, नगर था. खैर मारिये साहब इन लोगों को, आप भी सोचेंगे की कहाँ की बात कहाँ ले जा रहा है, नगर की पृष्ठभूमि बताने के बहाने राजनीति बताने लगा (पर ताल्लुक है मीलोर्ड)
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05-08-2013, 07:53 PM | #7 |
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Re: होता है ..... चलता है ......
“होता है, चलता है, दुनिया है” यह जुमला था सोनू के सबसे अच्छे दोस्त गुड्डू का.
गुड्डू, रंग सांवला, माथा चौड़ा और चेहरा गोल, बालों हमेशा शैम्पू किये हुए रहते और शौक यह कि जिधर गर्दन झुकाएं, मांग उधर से फट जाए. यह हेयर स्टाइल उन्होंने ‘बेवफा सनम’ में किशन कुमार से चुराई थी. गुड्डू विशुद्ध प्रक्टिकल आदमी थे, एक हाथ ले-एक हाथ दे वाली नीति पर चलते विशेष कर लड़कियों के मामले में. कुछ और खास आदतें भी थी उनकी. मसलन, स्टील वाली ढीली घडी पहनना और बार बार झूलते घडी को ऊपर लाते वक्त बालों पर हाथ फेर तिरछी नज़र से यह भी देख लेना कि यह पोज़ किसने-किसने देखा. यह तरीका उन्होंने अपने कोचिंग की कई लड़कियों से सीखा था जो अपने गालों पर लटें झुलाती रहती और उसे अपने कान के पीछे करते वक्त देख लेती की कौन कौन उनकी इस अदा को देख निसार हो रहा है.
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Re: होता है ..... चलता है ......
गुड्डू की पसंदीदा पत्रिका सरस सलिल थी... वो इसके नियमित पाठक थे और जब भी वो इसकी किसी कहानी में यह पढते कि“...और ज़मींदार रात भर सलमा की जवानी को अपने बाहों में दबोचता रहा” वे बिफर जाते और पत्रिका को गरियाने लगते.. दरअसल उनकी शिकायत इस लाइन से नहीं बल्कि बार-बार इसके दोहराव से था. वे शाम के वक्त चाय की दुकान पर या दोपहर में सोनू के दूकान पर अक्सर अपने दोस्तों को इन कहानियों का सप्रंग व्याख्या करते और मित्रगण भी पर्याप्त रसास्वादन कर गुड्डू को गया-गुज़रा हुआ आदमी करार देते.
सिनेमाहाल में गुड्डू हमेशा आगे वाली सीट लेते और कारण पूछने पर हँसते हुए फिलोस्फिकल अंदाज़ में “यहाँ से ‘सब’ बड़ा और ‘छोटा’ दीखता है” कहते और देर तक हँसता रहते. जिसे जो समझना होता, समझ लेते.. और जब तक लोग उसे समझ पाते“होता है, चलता है, दुनिया है” वाला उसका तकिया कलाम सबको दूसरी अन्य बातों के लिए तैयार कर देता.
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05-08-2013, 07:53 PM | #9 |
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Re: होता है ..... चलता है ......
सोनू से कई मामले में उलट गुड्डू की खास आदत थी. वे किसी को भाव नहीं देते थे. वे सारी दुनिया को अपने कमर के आस-पास एक अंग विशेष पर तौलते थे. उनकी नज़र में इस अंग विशेष का बड़ा महत्त्व था. कुछेक मिनटों के अंतराल पर तिरंगा, शिखर, पांच हजारी जैसे गुटका का पैकेट फाड़ते हुए यह बताना नहीं भूलते थे कि इस वक्त उनकी नज़र में दुनिया की वर्तमान पोजीशन क्या है. गोया जब से गुड्डू इस इलाके में आये थे यही पोजीशन बता रहे थे.
“सारी दुनिया इसी से है”. ऐसा उनका विश्वास था. इसी प्रकार, रेलवे की परीक्षा में इस बार भी फेल होने पर वे ऊँगली से उसी अंगविशेष की ओर इशारा कर कहते "भगवान हमारा किस्मत ‘इसी’ से लिखा है... खैर...“होता है, चलता है, दुनिया है” फिर वे अपनी आशावादी सोच के साथ इस बस्ती में काबिज हो जाते. इस प्रकार, “होता है, चलता है, दुनिया है” वाया गुड्डू सबके जुबान पर चढ चुका था. ========x=x=x=============
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17-08-2013, 02:42 PM | #10 |
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Re: होता है ..... चलता है ......
[QUOTE=jai_bhardwaj;338266]
.... कहानी रश्मि द्वारा शादी के अवसर पर पहने लाल जोड़े से आरम्भ हो कर सोनू से होते हुये गुड्डू तक पहुँचती है. इस बीच, बिहार नरेशों लालू जी और नितीश जी से भी हमारी मुलाक़ात करवाती है. लेकिन कहानी मुख्यतः निम्नलिखित आशा और विश्वास के धरातल पर टिकी हुई दिखाई देती है. “सारी दुनिया इसी से है”. ऐसा उनका विश्वास था. इसी प्रकार, रेलवे की परीक्षा में इस बार भी फेल होने पर वे ऊँगली से उसी अंगविशेष की ओर इशारा कर कहते "भगवान हमारा किस्मत ‘इसी’ से लिखा है... खैर...“होता है, चलता है, दुनिया है” फिर वे अपनी आशावादी सोच के साथ इस बस्ती में काबिज हो जाते. इस प्रकार, “होता है, चलता है, दुनिया है” वाया गुड्डू सबके जुबान पर चढ चुका था. |
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