14-04-2014, 06:44 PM | #1 |
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धर्मशाला की सैर
जब 1960 में यह आध्यात्मिक तिब्बती गुरु दलाईलामा का अस्थायी निवास बना तब से यहां पूरी दुनिया से बौद्धधर्म के अनुयायी आने लगे। इसे अब ‘मिनी ल्हासा’ भी कहा जाने लगा है। धर्मशाला दो भागों में बंटा है। शहर के पहले हिस्से को लोअर धर्मशाला, और दूसरे हिस्से को अपर धर्मशाला यानी मैक्लोडगंज कहा जाता है। लोअर धर्मशाला से मैक्लोडगंज की दूरी लगभग 9 किलोमीटर है। लोअर धर्मशाला में आपको शॉपिंग और पुरानी इमारतों को देखने के ज्यादा विकल्प हैं। धर्मशाला के बस अड्डे से सटा कोतवाली बाजार शहर का सबसे ज्यादा चहलपहल वाला इलाका है। मैक्लोडगंज धर्मशाला बस अड्डे से करीब 9 किमी. की ऊंचाई पर बसे छोटे से शहर मैक्लोडगंज को आप कई संस्कृतियों का संगम कह सकते हैं। यहां पर तिब्बती लोग अधिक हैं, क्योंकि तिब्बत पर चीन के आक्रमण के बाद बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा यहीं आ गए थे। तिब्बती गतिविधियों का केंद होने के नाते इसे लिटिल ल्हासा भी कहा जाता है। यहां पर दलाई लामा के मंदिर के साथ-साथ तिब्बत म्यूजियम भी देखा जा सकता है । बौद्ध मठ मेक्लोडगंज के प्रमुख बौद्ध मठ में बुद्ध की विशाल प्रतिमा हर किसी को अपनी ओर खींचती है। यहां पर तिब्बत इंस्टीट्यूट ऑफ परफॉमिर्ंग आर्ट सेंटर भी है, जहां हर साल अप्रैल में एक शानदार फेस्टिवल का आयोजन किया जाता है। डल झील मैक्लोडगंज से करीब दो किमी दूरी पर बनी इस झील का नाम सुनकर आपको कश्मीर की डल झील की याद आ जाएगी। यह डल झील की तरह विशाल तो नहीं है, लेकिन है बहुत खूबसूरत झील। झील के चारों ओर लगे बड़े-बड़े देवदार के पेड़ यहां आने वाले पर्यटकों को खूब आकर्षित करते हैं। त्रिउंड समुद्रतल से लगभग 9,280 फुट की ऊंचाई पर स्थित त्रिउंड बहुत ही मनोरम जगह है। यहां से कुछ दूरी से स्नो लाइन शुरू हो जाती है। ट्रैकिंग के शौकीन यहां की पहाडि़यों में ट्रैकिंग का लुत्फ उठा सकते हैं। कांगड़ा आर्ट म्यूजियम कांगड़ा के प्राचीन इतिहास की झलक के साथ-साथ पांचवीं सदी की कई दुर्लभ वस्तुओं को अगर आप नजदीक से देखना चाहते हैं, इस म्यूजियम को देखने जरूर जाएं। वॉर मेमोरियल धर्मशाला मेन बस स्टैंड से करीब एक किमी की दूरी पर स्थित शहीद स्मारक देश की आजादी के बाद हुई वॉर के शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए बनाई गई है। कुनाल पथरी धर्मशाला मेन बस स्टैंड से करीब तीन किमी दूरी पर स्थित कुनाल पथरी में ज्यादातर पर्यटक पैदल घूमते हुए आना पसंद करते हैं। यहां का मुख्य आकर्षण रॉक टेंपल है। सेंट जॉन चर्च अगर आप धर्मशाला से मैक्लोडगंज जा रहे हैं, तो रास्ते में कुछ पल इस चर्च पर जरूर बिताएं। यहां प्राचीन चर्च के अलावा अंग्रेज वायसराय लार्ड एल्गिन का स्मारक भी है। करेरी झील अगर आप रोमांच के शौकीन हैं, तो इस झील तक जा सकते हैं। ओक और देवदार के पेड़ और झील के आसपास की हरियाली ट्रेकिंग के शौकीनों को अपनी और खींचती है। पालमपुर की सैर समुदतल से करीब 1206 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस छोटे से शहर को कांगड़ा का दिल कहा जाता है। इसलिए धर्मशाला जाएं तो एक दिन पालमपुर की सैर के लिए भी रखिए। धर्मशाला में मौसम हर ऋतु के साथ भले ही बदलता हो, लेकिन पालमपुर को हर सीजन का टूरिस्ट स्पॉट कहा जाता है। आज कांगड़ा की चाय की भी दुनिया में अपनी अलग पहचान बन चुकी है। अगर आपके पास कुछ ज्यादा वक्त है, तो पठानकोट से चलने वाली टॉय ट्रेन से यहां पहुंचिए। धर्मशाला से पालमपुर तक आप लोकल बस से दो से ढाई घंटे में पहुंच सकते हैं। टॉय ट्रेन से लगभग दोगुना वक्त लगता है हालांकि बस के मुकाबले एक तिहाई किराया लगता है। जब यह टॉय ट्रेन रास्ते में पड़ने वाले घुमावदार मोड़ों से गुजरती है, तो धौलागिरि पर्वतमाला की खूबसूरती देखते ही बनती है। वैसे, पालमपुर और धर्मशाला के बीच प्राइवेट ऑपरेटरों की बेहतरीन बस सेवा उपलब्ध है, जो सुबह से देर शाम तक आधे घंटे के अंतराल में चलती है। कैसे पहुंचे सड़क मार्ग कश्मीरी गेट दिल्ली बस टर्मिनल से हिमाचल रोडवेज की धर्मशाला के लिए डीलक्स, एसी और वॉल्वो बस सेवा हिमाचल पर्यटन विभाग द्वारा संचालित डीलक्स बस सेवा कनॉट प्लेस चंद्रलोक बिल्डिंग से उपलब्ध। रेल मार्ग पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से पठानकोट तक ट्रेन से जा सकते हैं। यहां से धर्मशाला के लिए हिमाचल रोडवेज और प्राइवेट बस सेवा उपलब्ध है। पठानकोट से धर्मशाला की दूरी 78 किमी है, जो ढाई से तीन घंटे में तय की जा सकती है। कहां ठहरें हिमाचल पर्यटन का धर्मशाला और मैक्लोडगंज में डीलक्स होटल हैं। कोतवाली बाजार में ठहरने की सस्ती सुविधा है। यात्रा का उपयुक्त समय अप्रैल से जून व सितंबर से नवंबर के बीच होता है। |
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