22-12-2015, 02:06 PM | #1 |
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शुक्र है खुद का
न जाने कितने नींद से जागते नहीं मिला है कुछ वक़्त कुछ करने के लिये कब वक़्त मिलना ख़तम हो जायेगा पता नहीं हम जीते हैं यह सोच हम हमेशा रहेंगे जब कि कोई भी हमेशा रहेगा नहीं इस हक़ीक़त को समझने में समझदारी है केवल सपनो की दुनियां में रहने में नहीं बंसी(मधुर) |
23-12-2015, 09:13 PM | #2 |
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Re: शुक्र है खुद का
अत्यंत गूढ़ अर्थ वाली एक सुंदर कविता. धन्यवाद.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
24-12-2015, 03:45 PM | #3 |
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Re: शुक्र है खुद का
जीवन की वास्तविकता और परम सत्य को उजागर करती बढीया कविता ।
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14-01-2016, 01:51 PM | #4 |
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Re: शुक्र है खुद का
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14-01-2016, 01:51 PM | #5 |
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Re: शुक्र है खुद का
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