06-11-2011, 06:39 PM | #11 |
Administrator
|
Re: विद्यापति की कवितायें
कान्ह हेरल छल मन बड़ साध। कान्ह हेरइत भेलएत परमाद।। तबधरि अबुधि सुगुधि हो नारि। कि कहि कि सुनि किछु बुझय न पारि।। साओन घन सभ झर दु नयान। अविरल धक-धक करय परान।। की लागि सजनी दरसन भेल। रभसें अपन जिब पर हाथ देल।। न जानिअ किए करु मोहन चारे। हेरइत जिब हरि लय गेल मारे।। एत सब आदर गेल दरसाय। जत बिसरिअ तत बिसरि न जाय।। विद्यापति कह सुनु बर नारि। धैरज धरु चित मिलब मुरारि।।
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
06-11-2011, 06:39 PM | #12 |
Administrator
|
Re: विद्यापति की कवितायें
कामिनि करम सनाने
कामिनि करम सनाने हेरितहि हृदय हनम पंचनाने। चिकुर गरम जलधारा मुख ससि डरे जनि रोअम अन्हारा। कुच-जुग चारु चकेबा निअ कुल मिलत आनि कोने देवा। ते संकाएँ भुज-पासे बांधि धयल उडि जायत अकासे। तितल वसन तनु लागू मुनिहुक विद्यापति गाबे गुनमति धनि पुनमत जन पाबे।
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
06-11-2011, 06:40 PM | #13 |
Administrator
|
Re: विद्यापति की कवितायें
कि कहब हे सखि रातुक
कि कहब हे सखि रातुक बात। मानक पइल कुबानिक हाथ।। काच कंचन नहि जानय मूल। गुंजा रतन करय समतूल।। जे किछु कभु नहि कला रस जान। नीर खीर दुहु करय समान।। तन्हि सएँ कइसन पिरिति रसाल। बानर-कंठ कि सोतिय माल।। भनइ विद्यापति एह रस जान। बानर-मुह कि सोभय पान।।
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
06-11-2011, 06:41 PM | #14 |
Administrator
|
Re: विद्यापति की कवितायें
कुंज भवन सएँ निकसलि
कुंज भवन सएँ निकसलि रे रोकल गिरिधारी। एकहि नगर बसु माधव हे जनि करु बटमारी।। छोड कान्ह मोर आंचर रे फाटत नब सारी। अपजस होएत जगत भरि हे जानि करिअ उधारी।। संगक सखि अगुआइलि रे हम एकसरि नारी। दामिनि आय तुलायति हे एक राति अन्हारी।। भनहि विद्यापति गाओल रे सुनु गुनमति नारी। हरिक संग कछु डर नहि हे तोंहे परम गमारी।।
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
06-11-2011, 06:42 PM | #15 |
Administrator
|
Re: विद्यापति की कवितायें
कुच-जुग अंकुर उतपत् भेल
कुच-जुग अंकुर उतपत् भेल। चरन-चपल गति लोचन लेल।। अब सब अन रह आँचर हाथ लाजे सखीजन न पूछय बात।। कि कहब माधव वयसक संधि। हेरइत मानसिज मन रहु बंधि।। तइअओ काम हृदय अनुपाम। रोपल कलस ऊँच कम ठाम।। सुनइत रस-कथा थापय चीत। जइसे कुरंगिनि सुय संगीत।। सैसव जीवन उपजल बाद। केओ नहि मानय जय अवसाद।। विद्यापति कौतुक बलिहारि। सैसव से तनु छोडनहि पारि।।
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
06-11-2011, 06:43 PM | #16 |
Administrator
|
Re: विद्यापति की कवितायें
के पतिआ लय जायत रे
के पतिआ लय जायत रे, मोरा पिअतम पास। हिय नहि सहय असह दुखरे, भेल माओन मास।। एकसरि भवन पिआ बिनु रे, मोहि रहलो न जाय। सखि अनकर दुख दारुन रे, जग के पतिआय।। मोर मन हरि लय गेल रे, अपनो मन गेल। गोकुल तेजि मधुपुर बसु रे, कत अपजस लेल।। विद्यापति कवि गाओल रे, धनि धरु मन मास। आओत तोर मन भावन रे, एहि कातिक मास।।
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
06-11-2011, 06:43 PM | #17 |
Administrator
|
Re: विद्यापति की कवितायें
गीत
जनम होअए जनु,जआं पुनि होइ। जुबती भए जनमए जनु कोई।। होइए जुबती जनु हो रसमंति। रसओ बुझए जनु हो कुलमंति।। निधन मांगओं बिहि एक पए तोहि। थिरता दिहह अबसानहु मोहि।। मिलओ सामि नागर रसधार। परबस जन होअ हमर पिआर।। परबस होइअ बुझिह बिचारि। पाए बिचार हार कओन नारि।। भनइ विद्यापति अछ परकार। दंद-समुद होअ जिब दए पार।।
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
06-11-2011, 06:43 PM | #18 |
Administrator
|
Re: विद्यापति की कवितायें
चन्दा जनि उग आजुक
चन्दा जनि उग आजुक राति। पिया के लिखिअ पठाओब पांति।। साओन सएँ हम करब पिरीति। जत अभिमत अभि सारक रिति।। अथवा राहु बुझाओब हंसी पिबि जनु उगिलह सीतल ससी।। कोटि रतन जलधर तोहें लेह। आजुक रमनि धन तम कय देह।। भनइ विद्यापति सुभ अभिसार। भल जल करथइ परक उपकार।।
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
06-11-2011, 06:44 PM | #19 |
Administrator
|
Re: विद्यापति की कवितायें
चानन भेल विषम सर रे
चानन भेल विषम सर रे, भुषन भेल भारी। सपनहुँ नहि हरि आयल रे, गोकुल गिरधारी।। एकसरि ठाठि कदम-तर रे, पछ हरेधि मुरारी। हरि बिनु हृदय दगध भेल रे, झामर भेल सारी।। जाह जाह तोहें उधब हे, तोहें मधुपुर जाहे। चन्द्र बदनि नहि जीउति रे, बध लागत काह।। कवि विद्यापति गाओल रे, सुनु गुनमति नारी। आजु आओत हरि गोकुल रे, पथ चलु झटकारी।।
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
06-11-2011, 06:45 PM | #20 |
Administrator
|
Re: विद्यापति की कवितायें
जखन लेल हरि कंचुअ अचोडि
जखन लेल हरि कंचुअ अचोडि कत परि जुगुति कयलि अंग मोहि।। तखनुक कहिनी कहल न जाय। लाजे सुमुखि धनि रसलि लजाय।। कर न मिझाय दूर दीप। लाजे न मरय नारि कठजीव।। अंकम कठिन सहय के पार। कोमल हृदय उखडि गेल हार।। भनह विद्यापति तखनुक झन। कओन कहय सखि होयत बिहान।। भावार्थ : - जब भगवान कृष्ण (हरि) ने कंचुकी (वस्र) बाहर कर दिया तब मैंने अपने शरीर की लाज बचाने के लिए क्या-क्या यत्न नहीं किए। उस समय की बात का क्या जिक्र कर्रूँ, मैं तो लाज (शर्म) से सिकुड़ गई अर्थात् लाज से पाठ (लकड़ी) के समान कठोर हो गई। जलता दिपक कुछ दूरी पर था, जिसे मैं हाथ से बुझा नहीं सकी। नारी कठ जीव (लकड़ी के समान) होती है, वह लाज से कदापि मर नही सकती। कठोर आलिंगन को कौन बर्दाश्त करे, इसलिए कोमल हृदय पर हार का दाग पड़ गया। महाकवि विद्यापति उस समय का रहस्य बताते है कि कोई भी यह नहीं कह रहा था कि आज भोर (प्रात होगी अर्थात् रात में तो सखी, ऐसा लग रहा था, जैसे सुबह होगी ही नहीं।
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
Bookmarks |
|
|