20-03-2013, 12:50 PM | #221 | |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
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बहुत सुन्दर बोध कथा कही है आपने, अलैक जी. जिस घर या हृदय में हर किसी के लिए प्रेम छलकता है वहां धन और सफलता के साथ सुख व शान्ति का भी बसेरा होता है. आपका हार्दिक धन्यवाद. |
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30-03-2013, 04:18 AM | #222 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
आप भला तो जग भला
किसी भी कार्यालय में कर्मचारी को दिनभर के टारगेट को पूरा करने के लिए टीम की तरह काम करने की जरूरत होती है। यह दरअसल तब खासकर लागू होता है जब एक टाइम लिमिट में काम पूरा करना होता है। सहयोगियों और सहकर्मियों की मदद के लिए तैयार रहने या उनकी मदद से आपको अलग संतुष्टि महसूस कर सकते हैं। अगर परफ्यूम लगाने का शौक है, कार्यालय में जाने से पहले उसकी स्मेल लाइट या सॉफ्ट रखें। हम यह यकीन के साथ नहीं कह सकते कि हर परफ्यूम की खुशबू हमारे सहयोगियों को पसंद आएगी ही आएगी। हार्ड स्मेल से सहकर्मियों को परेशानी हो सकती है और आफिस में डिस्कम्फर्ट की फीलिंग आ सकती है। हमारी कुछ आदतें ऐसी हो सकती हैं, जिनसे दूसरे परेशानी महसूस कर सकते हैं। जैसे, अक्सर नाक खोदना, पेन या पेंसिल खोलना बंद करना वगैरह वगैरह। ये कुछ ऐसी हरकतें हैं जिन्हे आप करते हैं तो आप खुद तो अच्छा महसूस कर सकते हैं लेकिन जरूरी नहीं कि आपके साथ काम करने वाले उसे सही मानते हों। आखिर आप अपनी आदतों के कारण ही तो लोगों के बीच लोकप्रिय हो सकते हैं। ऐसे में ध्यान रखें कि कोई ऐसा काम नहीं करें जिससे आपके साथियों को परेशानी पैदा हो। इसलिए जरूरी है कि आप ऐसी आदतों पर जो दूसरों को अच्छी नहीं लगती हों, पर नजर रखना आज से ही शुरू कर दें, नहीं तो लोगों को परेशानी हो सकती है। अगर ऐसा कुछ हो तो उस पर तुरंत काबू करने की कोशिश करें। आप तुरंत ही फर्क महसूस करेंगे। आपको लगने लगेगा कि आपके साथी आपसे घुल-मिल कर बात भी कर रहे हैं और आपको पूरी तवज्जो भी दे रहे हैं। कुल मिला कर कहा जा सकता है कि लोग आपसे कैसा व्यवहार करें, यह आप पर ही निर्भर है। कहा भी गया है कि आप भला तो जग भला। दूसरों को परेशानी में डालने वाला कोई काम नहीं करें, इसी में आपकी भलाई है।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु Last edited by Dark Saint Alaick; 30-03-2013 at 04:22 AM. |
30-03-2013, 04:19 AM | #223 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
मेहमान की आवभगत
एक गांव में किसान अपनी पत्नी के साथ रहता था। वह स्वभाव में बेहद भोला-भाला और सीधा-सादा था। उस किसान की एक आदत थी कि उसे घर में मेहमानों की आवभगत करने में बड़ा ही मजा आता। जो भी मेहमान उसके घर आता वह उसके लिए तरह तरह के पकवान बनवाता, उसकी पूरी आवभगत करता और इसी कोशिश में रहता था कि मेहमान को तकलीफ ना हो। वह मेहमान की सभी सुविधाओं का भी पूरा पूरा ख्याल रखता था और यही कोशिश करता था कि उसकी तरफ से कोई कमी ना रह जाए। मेहमानवाजी की इस आदत के कारण उसकी बीवी उससे बड़ी परेशान रहती थी लेकिन कुछ कर नहीं पाती थी। एक दिन फिर वह किसान एक मेहमान को लेकर घर आया। बीवी को हमेशा कि तरह से काफी झुंझलाहट हुई लेकिन वह कुछ कर नहीं पा रही थी। वह मेहमान की खातिरदारी में जुट गई। उसने सोचा कि चाहे कुछ भी हो जाए वह अब मेहमान को भगा कर ही मानेगी। उसे एक चालाकी सूझी। उसने चतुराई से किसान को हाथ-पैर धोने अंदर भेजा और बैठ गई नए आए मेहमान के पास। बातों ही बातों में वह कहने लगी,क्या करूं, इनका तो दिमाग खराब है। किसी को भी पकड़ लाते हैं और फिर उसे मूसल से मारते हैं। मेहमान घबराकर अपना बोरिया-बिस्तर समेट कर भागा। इतने में किसान अंदर से आया। मेहमान को जाता देख पत्नी से पूछा,वो कहां जा रहे हैं? किसान की पत्नी बोली,अरे कुछ नहीं। सासू मां की आखिरी निशानी मूसल मांग रहे थे। मैंने मना कर दिया तो नाराज होकर जाने लगे। किसान चिल्लाया,तू भी कैसी औरत है? मूसल बड़ी होती है या पावणे। ठहर जा, मैं उन्हें मूसल देकर आता हूं नही तो वे नाराज हो जाएंगे। किसान मूसल लेकर दौड़ा तो मेहमान ये सोचते हुए कि औरत सही कहती थी ,उसे देखकर और तेजी से दौड़ने लगा। उसे लगा किसान सच में पागल है। उधर किसान की बीवी हंस-हंस कर बेहाल हो गई।
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30-03-2013, 05:03 PM | #224 | |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
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06-04-2013, 09:31 AM | #225 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
यथार्थवादी बनकर करें काम
कभी-कभार हम कुछ लोगों या मामलों के बारे में अधिक संवेदनशील हो उठते हैं। ऐसे मामलों और लोगों के साथ काम करते हुए उनका ध्यान रखें। फिर समस्या के मूल में जाएं। एक बार उसका पता चलने पर उसे सुलझाने के लिए प्रयास करें। यदि ऐसा नहीं करेंगे तो आपको शीघ्र ही अन्य प्रोजेक्ट या टीम में स्थानांतरित कर दिया जाएगा जो आपके कॅरियर पर एक दाग की तरह होगा। इसी तरह महत्वाकांक्षी होना अच्छा है लेकिन एक यथार्थवादी योजना निर्माता होना बेहद जरूरी होता है। यदि आप कार्य के दौरान जल्दी संवेदनशील हो जाते हैं तो उससे जूझने के लिए योजना बनाना जरूरी होता है। अधूरे कार्यों को अपने मार्ग में रुकावट न बनने दें। अपनी कार्यशैली में यथार्थवादी बनें और उसी के अनुसार काम करें। यह सच है कि दफ्तर के हरेक कार्य में आप सिध्दहस्त नहीं हो सकते इसलिए अपने कमजोर पक्षों को पहचानें और उन्हें मजबूत करने पर जोर दें। कहा भी गया है कि मनुष्य हर काम में सिध्दहस्त नहीं हो सकता। वह भगवान नहीं, मनुष्य है और मनुष्य की एक सीमा होती है। ऐसे में अगर आप अपनी सीमाओं को नहीं जानेंगें तो तय है कि या तो आप वो काम नहीं कर पाएंगे जो आप करना चाहते हैं या अगर करेंगें भी तो उसमें गलती होना अवश्यंभावी है। गलत काम करना आपकी कमियों को ही दर्शाता है। अपनी सीमाएं पहचान कर ही आप भावनात्मक संतुलन बनाने में समर्थ होंगे। अपनी संवेदनाओं पर काबू करना एक दीर्घकालिक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में रातों-रात किसी करिश्मे की उम्मीद न करें और न ही अधीर होकर आधे रास्ते से ही लौट पड़ें। शुरुआत शांत मन से करें। जल्दबाजी आपको कहीं ना कहीं नुकसान पहुंचाएगी ही। हां, यह जरूरी है कि अपनी अति भावुकता के कारण हो सकने वाली समस्याओं को आप हमेशा दिमाग में रखें। यही इससे निपटने की कुंजी है। अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो आपकी विफलता तय है।
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06-04-2013, 09:32 AM | #226 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
अकबर का आधा भाई
बाल्यावस्था में अकबर की देखभाल एक दाई करती थीं। वह उन्हें अपना दूध भी पिलाती थी। राजा बन जाने के बावजूद भी वह अपने आया, जिसे वो दाई मां कहते थे, का बहुत सम्मान करते थे। दाई मां का भी एक पुत्र था। अकबर उसे अपने भाई समान समझते थे। जब उनका यह आधा भाई उनसे मिलने आता, बादशाह उसका आदर-सत्कार करते। उसकी आवभगत में बादशाह अकबर इतने व्यस्त हो जाते थे की दरबार भी नहीं जाते थे। उनकी यह आदत दरबारियों तथा बीरबल को पसंद नहीं थी क्योंकि इस तरह बादशाह का दरबार में उपस्थित न होना उन्हें हितकर नहीं लगता था। राज-काज सम्बंधी कई विषयों पर विचार-विमर्श करना होता था। देश-विदेश से आने वाले अतिथियों से भी बातचीत करनी होती थी। जब बादशाह दरबार में आएंगे ही नहीं तो काम कैसे चलेगा? दरबारी चिन्तित थे। एक दिन कुछ दरबारियों के साथ बीरबल अकबर के महल में गए। अकबर ने बीरबल से पूछा, मेरे आधे भाई के समान तुम्हारा भी कोई आधा भाई है? बीरबल ने कहा, जी महाराज। मेरा भी एक आधा भाई है। अकबर ने कहा, तुम उसे कभी दरबार में क्यों नहीं लाए? बीरबल ने कहा, महाराज अभी वह बहुत छोटा है। बादशाह ने कहा, तुम उसे यहां अवश्य लाओ। बीरबल ने बादशाह की बात मन ली। अगले दिन सभी दरबारी यह देख हैरान हो गए कि बीरबल एक बछड़े को अपने साथ खींचकर ला रहा है। यह देख बादशाह भी हैरत में पड़ गए और पूछा, तुम्हारा दिमाग सही है बीरबल? तुम इस बछड़े को यहां क्यों लाए हो? बीरबल ने कहा, महाराज मैने तो केवल आपकी बात का सम्मान किया है। बचपन से ही मेरी परवरिश गाय के दूध से ही हुई है। मैने उसका दूध पिया इसलिए वह मेरी मां समान हुई और उसका यह बछड़ा मेरा आधा भाई ही तो हुआ। अकबर हंस पड़े। वो समझ गए कि बीरबल उन्हें क्या कहना चाहता है।
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10-04-2013, 10:01 AM | #227 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
सोच सदा सकारात्मक रखें
जब भी आप अपने लक्ष्य के बारे में सोचें तो सबसे पहले आप में सकारात्मक सोच होनी चाहिए। यदि आप प्रशासनिक सेवा में जाना चाहते हैं तो आप अपनी पूरी लगन और मेहनत के साथ परीक्षा के विभिन्न चरणों को ध्यान में रखकर अपनी तैयारी करें। साथ ही यह भी ध्यान रखें कि आप चयनकर्ताओं की उम्मीदों पर खरे उतरें। अगर आप खुद को चयनकर्ताओं के अनुसार प्रस्तुत करेंगे तो आपको सफलता जरूर मिलेगी। इसमें कोई भी संदेह नहीं है कि आपकी सफलता को कोई भी रोक नहीं सकता है। इस दौरान जरूरी है कि आप अपनी सोच को सदा सकारात्मक बनाएं। अपनी कुशल रणनीति के आधार पर आप अपनी सफलता को सुनिश्चित कर सकते हैं। लेकिन केवल रणनीति बनाने से सफलता नहीं मिलती है बल्कि आप अपनी बनायी रणनीति को ईमानदारी से फॉलो करें। कोई भी कार्य करने से पहले हमें वैसा ही माहौल उत्पन्न करना चाहिए और उसके अनुसार काम करना चाहिए। इसके अलावा अपनी मेहनत हमेशा सही दिशा में करनी चाहिए। जिससे हमें सफलता के दरवाजे आसानी से खुलते हुए नजर आएंगे। अगर आप अपने जीवन में सफल लोगों से मिलेंगे तो देखेंगे कि उनकी सोच ही सकारात्मक होती है और वह किसी भी कार्य को हमेशा सकारात्मक ही लेते हैं। इसमें सफलता के चांस ज्यादा ही बढ़ जाते हैं। इस तरह से जो लोग अपनी असफलता और सफलता के लिए स्वयं को जिम्मेदार मानते हैं वे सकारात्मक सोच वाले होते हैं क्योंकि वे अपनी असफलता को किसी अन्य के माथे नहीं मढ़ते हैं। कभी-कभी यह भी होता है कि कड़ी मेहनत के बाद भी सफलता नहीं मिलती है। ऐसे में कुछ लोग हतोत्साहित हो जाते हैं। लेकिन जो अपने कॅरियर के चोटी पर पहुंचते हैं, वह अपनी असफलता का कारण ढूंढ़ते हैं और जल्द से जल्द उसे समाप्त करना चाहते हैं। ऐसे लोग जीवन में कभी भी पीछे नहीं रहते हैं।
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10-04-2013, 10:06 AM | #228 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
भगवान को दिया धोखा
एक गांव में एक आदमी रहता था। वह जो कहता था, करता नहीं था। एक बार दुर्भाग्य से वह आदमी बीमार पड़ गया। कुछ दिन तो उसने सोचा कि बीमारी मामूली होगी तो ठीक हो जाऊंगा, लेकिन बीमारी ठीक होने के लगातार बढ़ती चली गई। उसने गांव के चिकित्सक को दिखाया। चिकित्सक ने कुछ दिनों तक तो अपनी समझ के अनुसार उसका इलाज किया, लेकिन फिर भी बीमारी काबू में नहीं आई। उस चिकित्सक ने भी उसको जवाब दे दिया कि उसकी बीमारी का इलाज उसके पास नहीं है। उस व्यक्ति के जीवित रहने की उम्मीद बिल्कुल समाप्त हो गई थी। वह घबराया और उसने अंतिम हथियार के रूप में भगवान से विनती की कि यदि वह जीवित बच गया, तो सौ बैलों का दान भगवान कस लिए करेगा। भगवान ने उसकी विनती स्वीकार कर ली तथा वह व्यक्ति धीरे-धीरे ठीक होने लगा। जब वह व्यक्ति पूरी तरह ठीक हो गया, तो उसके मन में लालच आ गया और उसने बैलों की मूर्तियां बनवाई और वेदी पर रख कर प्रार्थना की कि ओ स्वर्ग में रहने वाले भगवान, मेरी भेंट स्वीकार करो। भगवान यह देख कर नाराज हो गए और उसे सबक सिखाने के लिए एक उपाय किया। उसी रात भगवान ने उस व्यक्ति को उसके सपने में दर्शन दिए और कहा, हे मानव, समुद्र किनारे जाओ। वहां पर तुम्हारे लिए सौ मुद्राएं रखी हैं। व्यक्ति को लालच आ गया और सुबह होते ही वह समुद्र किनारे पहुंचा, परन्तु उसे वहां कुछ नहीं मिला। लालच के चक्कर में वह समुद्र के किनारे-किनारे चलने लगा। वह एकदम निर्जन व वीरान जगह पर पहुंच गया, जहां चट्टानों की आड़ में समुद्री डाकू छिपे बैठे थे। डाकुओं ने उसे पकड़ा और बंदरगाह पर ले गए। वहां जाकर उन्होंने उसे गुलाम बनाकर बेच दिया तथा सौ मुद्राएं प्राप्त कर ली। उस व्यक्ति को सीख मिल गई धोखा देने वाले का कभी भला नहीं होता।
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15-04-2013, 12:51 AM | #229 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
जीत की खुशी का मोल नहीं
हमारा देश महान है। हम लगभग सवा अरब आबादी वाले देश के नागरिक हैं। यहां कई बड़ी समस्याएं हैं जिन्हें लेकर लगातार चर्चा व बहसें चलती रहती हैं। गरीबी और बेरोजगारी बड़ी समस्याएं हैं। इन पर गंभीरता से काम करने की जरूरत है। बैडमिंटन कोच पुलेला गोपी चंद ने एक बार कहा था कि देश की समस्याओं के बीच अगर आप खेल क्षेत्र को प्रोत्साहन देने की बात करते हैं या फिर खिलाड़ियों को सुविधाएं देने की बात करते हैं तो कहा जाता है कि यहां लोगों को भरपेट भोजन नहीं मिल रहा और आप विशाल खेल स्टेडियम बनाने की बात कर रहे हैं। लोगों के पास नौकरी नहीं है और आप चाहते हैं कि खिलाड़ियों को बेहतरीन ट्रेनिंग दी जाए। शायद इसीलिए हमारे यहां कभी खेल से जुड़े मुद्दों को लेकर चर्चा नहीं होती। वैसे मुझे इस बात पर कोई अपत्ति नहीं है कि जब लोगों की बुनियादी जरूरतें पूरी न हो रही होंए तब आप भला खेल पर क्या चर्चा करेंगे। दरअसल देश की ज्वलंत समस्याओं का हल होना चाहिए। रोजी-रोटी बड़ी समस्या है। इन समस्याओं पर चर्चा भी होनी चाहिए और इनके समाधान भी खोजे जाने चाहिए। लेकिन जब हमारे देश का कोई खिलाड़ी वर्ल्ड चैंपियन बनता है या फिर इंडिया टीम किसी खेल प्रतियोगिता में विजय हासिल करती है तो देशवासियों को आपार खुशी मिलती है। क्या आपको उनकी खुशियों का अंदाजा है? उस समय हम सारी समस्याओं को भूलकर अपनी टीम की जीत का जश्न मनाते हैं। हर ऐसी जीत पर देशवासियों के चेहरे पर बिखरने वाली मुस्कान अनमोल है। उस जीत के समय हमें कहां याद रहता है कि हमारे देश की जीडीपी क्या है। जीत की खुशी का मोल नहीं है। लोगों को यह मौका मिलना चाहिये कि वे देश के खिलाड़ियों की जीत पर जश्न मना सकें, उस पर नाज कर सकें और खुशियां मना सकें। देशवासियों की खुशियों को आप पैसों से नहीं तौल सकते हैं। इसलिए खेलों को प्रोत्साहन मिलना चाहिए।
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15-04-2013, 12:54 AM | #230 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
हंस को मिली गलत सजा
एक राज्य में एक राजा था। किसी कारण वह अन्य गांव में जाना चाहता था। एक दिन वह धनुष-बाण सहित पैदल चल पड़ा। चलते-चलते थक गया और एक विशाल पेड़ के नीचे बैठ गया। राजा धनुष-बाण बगल में रखकर, चद्दर ओढ़कर सो गया। थोड़ी ही देर में उसे गहरी नींद लग गई। पेड़ की खाली डाली पर एक कौआ बैठा था। उसने राजा पर बीट कर दी। बीट से राजा की चादर गंदी हो गई थी। राजा खर्राटे ले रहा था। उसे पता नहीं चला कि उसकी चादर खराब हो गई है। कुछ समय के पश्चात कौआ वहां से उड़कर चला गया और थोड़ी ही देर में एक हंस उड़ता हुआ आया। हंस उसी डाली पर और उसी जगह पर बैठा जहां पहले वह कौआ बैठा हुआ था अब अचानक राजा की नींद खुली। उठते ही जब उसने अपनी चादर देखी तो वह बीट से गंदी हो चुकी थी। राजा स्वभाव से बड़ा क्रोधी था। उसकी नजर ऊपर वाली डाली पर गई, जहां हंस बैठा हुआ था। राजा ने समझा कि यह सब इसी हंस की ओछी हरकत है। इसी ने मेरी चादर गंदी की है। क्रोधी राजा ने आव देखा न ताव, ऊपर बैठे हंस को अपना तीखा बाण चलाकर घायल कर दिया। हंस बेचारा घायल होकर नीचे गिर पड़ा और तड़पने लगा। वह तड़पते हुए राजा से कहने लगा-अहं काको हतो राजन! हंसा,निर्मला जलरू। दुष्ट स्थान प्रभावेन,जातो जन्म निरर्थक। अर्थात हे राजन। मैंने ऐसा कौन सा अपराध किया कि तुमने मुझे अपने तीखे बाणों का निशाना बनाया है? मैं तो निर्मल जल में रहने वाला प्राणी हूं। ईश्वर की कैसी लीला है। सिर्फ एक बार कौए जैसे दुष्ट प्राणी की जगह पर बैठने मात्र से ही व्यर्थ में मेरे प्राण चले जा रहे हैं। फिर दुष्टों के साथ सदा रहने वालों का क्या हाल होता होगा? हंस ने प्राण छोड़ने से पूर्व कहा ,हे राजन, दुष्टों की संगति नहीं करना क्योंकि उनकी संगति का फल भी ऐसा ही होता है। राजा को अपने किए अपराध का बोध हो गया। वह अब पश्चाताप करने लगा।
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