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Old 25-10-2013, 09:44 AM   #1
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Question रोचक जानकारियाँ

दो वक्त की रोटी के लिए झाड़ू-पोंछा लगाने वाली बन गई मशहूर लेखिका
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दो वक्त की रोटी की खातिर दूसरों के घरों में झाड़ू-पोंछा लगाने वाली बेबी हालदार किस तरह लेखिका बन गई, यह तो आपने सुना ही होगा। बेबी की दास्तान से पता चलता है कि इंसान के भीतर का दर्द किस तरह पूरी दुनिया के दर्द को वाणी देने की ताकत रखता है। बेबी हालदार की पहली किताब आलो आंधारि कुछ बरस पहले हिंदी में प्रकाशित हुई थी और अब तक उसके कई संस्करण छप चुके हैं। इसका बांग्ला संस्करण भी प्रकाशित हुआ है जिसका विमोचन सुपरिचित लेखिका तस्लीमा नसरीन ने किया। यह उपन्यास छपने के बाद बेबी के अड़ोस-पड़ोस में काम करने वाली दूसरी नौकरानियों को भी लगने लगा है कि यह तो उनकी ही कहानी है।

कमाल यह है कि बेबी हालदार आज भी खुद को काजेर मेये (काम करने वाली बाई) कहती हैं। 29 साल पहले जम्मू एवं कश्मीर के किसी ऐसी जगह में उनका जन्म हुआ, जहां उनके पिता सेना में थे। अभाव और दुख की पीड़ा झेलती बेबी अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि अपनी किताब आलो आंधारि को मानती हैं।

बेबी हालदार की आत्मकथा आप भी सुनिए, कुछ उन्हीं की जुबानी :

पिता सेना में थे,लेकिन घर से उनका सरोकार कम ही था। सेना की नौकरी से रिटायर होने के बाद पिता बिना किसी को कुछ बताए, कई-कई दिनों के लिए कहीं चले जाते। लौटते तो हर रोज घर में कलह होता। एक दिन पिता कहीं गए और उसके कुछ दिन बाद मां मन में दुख और गोद में मेरे छोटे भाई को लेकर यह कह कर चली गई कि बाजार जा रही हैं। इसके बाद मां घर नहीं लौटीं। इधर, पिता ने एक के बाद एक तीन शादियां कीं। इस दौरान मैं कभी अपनी नई मां के साथ रहती, कभी अपनी बड़ी बहन के ससुराल में और कभी अपनी बुआ के घर।

मां की अनुपस्थिति ने मन में पहाड़ जैसा दुख भर दिया था। यहां-वहां रहने और पिता की लापरवाही के कारण पढ़ने-लिखने से तो जैसे कोई रिश्ता ही नहीं बचा था। सातवीं तक की पढ़ाई करते-करते 13 वर्ष की उम्र में मेरी शादी,मुझसे लगभग दुगनी उम्र के एक युवक से कर दी गई। फिर तो जैसे अंतहीन दुखों का सिलसिला-सा शुरू हो गया। पति द्वारा अकारण मार-पीट लगभग हर रोज की बात थी। पति की प्रताड़ना और पैसों की तंगी के बीच जि़ल्लत भरे दिन सरकते रहे।

उसी क्रम में दो जून की रोटी की मशक्कत के बीच पति का अत्याचार बढ़ता गया। अंतत: एक दिन अपने बच्चों को लेकर घर से निकल गई। दुगार्पुर,फरीदाबाद,गुड़गांव। एक घर से दूसरे घर, नौकरानी के बतौर लंबे समय तक काम किया। नौकरानी के बजाय बंधुआ मजदूर कहना ज्यादा बेहतर होगा। सुबह से देर रात तक की हाड़तोड़ मेहनत के बाद भी खुशियों की कोई रोशनी कहीं नजर नहीं आ रही थी।

ऐसे ही किसी दिन मेरे एक जान-पहचान वाले ने मुझे गुड़गांव में एक नए घर में काम दिलवाया। यहां मैंने पाया कि इस घर का हर शख्स मेरे साथ इस तरह व्यवहार करता था, जैसे मैं इस घर की एक सदस्य हूं। घर के बुजुर्ग मुखिया, जिन्हें सब की तरह मैं भी तातुश कहती थी, (यह मुझे बाद में पता चला कि इसका अर्थ पिता है) अक्सर मुझसे मेरे घर-परिवार के बारे में पूछते रहते। उनकी कोशिश रहती कि हर तरह से मेरी मदद करें।

कुछ माह बाद अतिक्रमण हटाने के दौरान मेरे किराये के घर को भी ढहा दिया गया और अंतत: तातुश ने मुझे अपने बच्चों के साथ अपने घर में रहने की जगह दी। इसके बाद दूसरे घरों में काम करने का सिलसिला भी खत्म हो गया। तातुश के घर में सैकड़ों-हजारों किताबें थीं। बाद में पता चला कि तातुश प्रोफेसर के साथ-साथ बड़े कथाकार भी हैं। उनकी कहानियां और लेख इधर-उधर छपते रहते हैं। उनका नाम प्रबोध कुमार है। और यह भी कि तातुश हिंदी के सबसे बड़े उपन्यासकार प्रेमचंद के नाती हैं।

अक्सर किताबों की साफ-सफाई के दौरान मैं उन्हें उलटते-पलटते पढ़ने की कोशिश करती। खास तौर पर बांग्ला की किताबों को देखती तो मुझे अपने बचपन के दिन याद आ जाते।तातुश ने एक दिन मुझे ऐसा करते देखा तो उन्होंने एक किताब देकर मुझे उसका नाम पढ़ने को कहा। मैंने सोचा, पढ़ तो ठीक ही लूंगी लेकिन गलती हो गई तो? फिर तातुश ने टोका तो मैंने झट से किताब का नाम पढ़ दिया-आमार मेये बेला-तसलीमा नसरीन। तातुश ने किताब देते हुए कहा कि जब भी फुर्सत मिले, इस किताब को पढ़ जाना।

फिर एक दिन कॉपी-पेन देते हुए तातुश ने अपने जीवन के बारे में लिखने को कहा। मेरे लिए इतने दिनों बाद कुछ लिखने के लिए कलम पकड़ना किसी परीक्षा से कम न था। मैंने हर रोज काम खत्म करने के बाद देर रात गए तक अपने बारे में लिखना शुरू किया। पन्नों पर अपने बारे में लिखना ऐसा लगता था, जैसे फिर से उन्हीं दुखों से सामना हो रहा हो।

तातुश उन पन्नों को पढ़ते, उन्हें सुधारते और उनकी जेराक्स करवाते। लिखने का यह काम महीनों चलता रहा। एक दिन मेरे नाम एक पैकेट आया, जिसमें कुछ पत्रिकाएं थीं। अंदर देखा तो देखती रह गई। अपने बच्चों को दिखाया और उन्हें पढ़ने को कहा। मेरी बेटी ने पढ़ा- बेबी हालदार! मेरे बच्चे चौंक गए- मां, किताब में तुम्हारा नाम। तातुश के कहानीकार दोस्त अशोक सेकसरिया और रमेश गोस्वामी ने कहा,ये तो एन फ्रैंक की डायरी से भी अच्छी रचना है।

बेबी हालदार कहती हैं, मैं अपनी कहानी लिखती गई..लिखती गई। फिर एक दिन एक प्रकाशक आए। वो मेरी किताब छापना चाहते थे। तातुश ने बांग्ला में लिखी मेरी आत्मकथा का अनुवाद हिंदी में कर दिया था। इस तरह मेरी पहली किताब छपी- आलो आंधारि।

कोलकाता के रोशनाई प्रकाशन ने इस किताब को प्रकाशित किया है। कुछ ही समय में किताब का दूसरा संस्करण निकला.. फिर इसका बांग्ला संस्करण। ये कहानी कहती है कि इंसान के लिए अच्छा यही है कि वह काम को छोटे या बड़े के रूप में देखने के बदले अपनी नजर वहां रखे जहां से उसकी जिंदगी को कोई मुकम्मल जहां हासिल हो सके।
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रोचक जानकारी मगरमच्छ भी रोता है
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मगरमच्छ के आंसूं वाला मुहावरा तो सभी ने सुना होगा जिसका अर्थ होता है दिखावे के लिए रोना या दुखी होना। इसके पीछे कारण यह है कि हैं। जब मगरमच्छ अथवा घड़ियाल किसी जीव-जन्तु को अपना भोजन बनाता है, तो कुछ ही देर बाद उसकी आंखों से आंसूं बहने लगते है। इस अवस्था में उसे देखकर ऐसा लगता है कि जैसे उसे अपने द्वारा मारे गए जीव-जन्तु की मृत्यु पर गहरा शोक हो रहा हो, परन्तु ऐसा कुछ भी नही है। सच तो यह है कि भोजन के बाद इस प्रकार से आंसू बहाना उसकी नैतिकता नहीं, बल्कि उसकी जैविक विवशता होती है।

वैज्ञानिक अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि जब मगरमच्छ अपने शिकार को निगलते हैं, तो उसके पेट में जाने के बाद से ही मगरमच्छों के आमाशय से पाचक द्रव्यों का स्त्राव शुरू होकर भोजन के साथ रासायनिक क्रियाएँ करने लगता है। इस प्रक्रिया के दौरान भोजन के पाचन के साथ-साथ मगरमच्छों के शरीर में लवणों के स्तर में भी वृध्दि होने लगती है तथा इन अतिरिक्त लवणों का उनके शरीर से निकलना आवश्यक होता है क्योंकि यदि ये लवण शीघ्र ही उत्सजित न हो पाएं, तो इनका उनके शरीर पर दुष्प्रभाव पड़ता है। अत: प्रकृति ने मगरमच्छों के शरीर से ऐसे हानिकारक लवणों की निकासी के लिए विशेष प्रकार की ग्रन्थियों की व्यवस्था की हुई है जोकि अन्य प्राणियों के उत्सर्ज़न से भिन्न होती है। मगरमच्छों के शरीर में उत्पन्न होने वाले ऐसे अतिरिक्त लवणों को पहले तो इन ग्रन्थियों के द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। फिर इन्हें शरीर से बाहर उत्सजित किया जाता है। किन्तु ये ग्रन्थियां मूत्राशय में नहीं, अपितु आंखों के कोनों में खुलती हैं। जिस समय मगरमच्छों के शरीर में अतिरिक्त लवणों का स्तर बढ़ जाता है, तो लवण नलिकाओं की मदद से उसका निष्कासन या रिसाव उनकी आंखों से होने लगता है। जिसे देखकर लगता है कि ये मगरमच्छ आंसू बहाते हुए रो रहे हैं।

इस बारे में वैज्ञानिकों का मानना है कि मगरमच्छ जैसे कृत्रिम आंसुओं का बहाव या लवणों का रिसाव केवल उन्हीं के शरीर में नहीं होता, बल्कि कई दूसरे प्राणियों के शरीर में भी अतिरिक्त लवणों के निष्कासन के लिए ऐसी अथवा इससे कुछ अलग प्रकार की विशेष ग्रन्थियां होती हैं। इनमें कुछ सांप और छिपकलियों जैसे रेंगने वाले सरीसृप भी शामिल हैं। हरे रंग वाली मादा कछुआ भी अण्डे देने के उपरान्त ऐसे ही कृत्रिम आंसू बहाती है, जबकि कुछ जीव-जन्तुओं के शरीर की लवण नलिकाएं मगरमच्छों की तरह उनकी आंखों में न खुलकर उनके नथुनों में खुलती हैं।
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Old 25-10-2013, 09:46 AM   #3
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Default Re: रोचक जानकारियाँ

क्रिकेट वर्ल्डकप से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियां...
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क्रिकेट वर्ल्डकप का अगला संस्करण वर्ष 2015 में ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में खेला जाएगा, जिसकी घोषणा मंगलवार सुबह की गई। माना जा रहा है कि टूर्नामेंट को विश्वभर में टीवी पर ही लगभग एक अरब लोग देखेंगे, और जिन मैदानों में इसके मैच खेले जाएंगे, वे इतनी दूर-दूर बसे शहरों में होंगे कि उनके टाइम जोन में भी छह-छह घंटे तक का अंतर होगा।

वैसे भारतीयों के लिहाज से इस टूर्नामेंट की सबसे रोचक जानकारी यही है कि पाकिस्तान कभी भी टूर्नामेंट के दौरान भारत को नहीं हरा पाया है। दोनों टीमें कुल पांच बार एक-दूसरे से इस वर्ल्डकप में भिड़ी हैं, और पांचों बार पाकिस्तान ने मुंह की खाई है। भारत और पाकिस्तान वर्ल्डकप के पहले चार संस्करणों (1987, 1983, 1979, 1975) के अलावा वर्ष 2007 के संस्करण में एक-दूसरे से नहीं टकराए, लेकिन शेष पांचों संस्करणों (2011, 2003, 1999, 1996, 1992) में भारत ने पाक को पटखनी दी।

हर चार साल में एक-दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट का सरताज तय करने के लिए होने वाले इस टूर्नामेंट का मौजूदा चैम्पियन भारत है, जिसने कुल दो बार - वर्ष 1983 में कपिल देव की कप्तानी में, और वर्ष 2011 में महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी में - यह खिताब जीता है। सबसे ज़्यादा बार इस खिताब को जीतने का रिकॉर्ड ऑस्ट्रेलिया के नाम है, जो चार बार (1987, 1999, 2003, 2007) इस पर काबिज हो चुके हैं। इन दोनों देशों के अलावा वेस्ट इंडीज दो बार (1975, 1979) तथा पाकिस्तान (1992) व श्रीलंका (1996) में क्रिकेट वर्ल्डकप विजेता बन चुके हैं।

इस बार टूर्नामेंट में 14 टीमें भाग लेने जा रही हैं, जिनमें टेस्ट खेलने वाली 10 टीमों के अलावा चार क्वालिफाइंग टीमें होंगी। टेस्ट खेलने वाले ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, इंग्लैंड, भारत, न्यूजीलैंड, पाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका, वेस्ट इंडीज और जिम्बाब्वे के अतिरिक्त आयरलैंड की टीम पहले ही क्वालिफाई कर चुकी है, जबकि शेष तीनों टीमों के रूप में संभवतः स्कॉटलैंड, हॉलैंड (नीदरलैंड), केन्या और कनाडा में से तीन का चयन उनकी मौजूदा रैंकिंग और परिणामों के आधार पर होगा।

44 दिनों तक चलने वाले इस क्रिकेट महाकुंभ के दौरान ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के 14 शहरों एडिलेड, ऑकलैंड, ब्रिस्बेन, कैनबरा, क्राइस्टचर्च, डुनेडिन, नेपियर, नेलसन, हैमिल्टन, होबार्ट, मेलबर्न, पर्थ, सिडनी तथा वेलिंगटन में कुल 49 मैच खेले जाएंगे। इन शहरों के टाइम जोन में छह घंटे तक का अंतर है। डेलाइट सेविंग टाइम के हिसाब से न्यूजीलैंड में खेले जाने वाले मैच ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट की तुलना में तीन घंटे पहले खेले जाएंगे, जबकि साल के उन दिनों में सिडनी का समय पश्चिमी तट पर स्थित पर्थ की तुलना में तीन घंटे आगे होगा है।

क्रिकेट विश्वकप का पहली बार आयोजन वर्ष 1975 में इंग्लैंड में किया गया था, जिसे लॉर्ड्स के मैदान में खेले गए फाइनल मैच में ऑस्ट्रेलिया को हराकर वेस्ट इंडीज़ ने जीता था। वर्ष 1979 में खेला गया दूसरा संस्करण भी वेस्ट इंडीज़ ने ही जीता था, जब उसने फाइनल मैच में लॉर्ड्स के ही मैदान में मेजबान इंग्लैंड को हराया। उसके बाद से वेस्ट इंडीज़ की टीम इसे कभी नहीं जीत पाई।

इस समय भारत इस कप का विजेता है, और उसने वर्ष 2011 के संस्करण के मुंबई में खेले गए फाइनल में श्रीलंका को हराया था। यह वर्ल्डकप के इतिहास में पहला मौका था, जब किसी देश ने घरेलू मैदान पर खिताब जीता। हालांकि श्रीलंका ने सह-मेजबान के रूप में वर्ष 1996 में खिताब जीता था, और वह भारत और पाकिस्तान के साथ मिलकर इसका आयोजन कर रहा था, लेकिन फाइनल मैच लाहौर (पाकिस्तान) में खेला गया था।

हालांकि चार बार वर्ल्डकप का आयोजन इंग्लैंड में हो चुका है, लेकिन उसे तीन बार फाइनल में पहुंचने के बावजूद अब तक इसे जीतने का मौका नहीं मिल पाया है। वर्ष 1979 के फाइनल में इंग्लैंड की टीम अपनी ही धरती पर वेस्ट इंडीज़ से हारी थी, जबकि वर्ष 1987 में भारतीय भूमि पर वह ऑस्ट्रेलिया से हारी, और वर्ष 1992 में मेलबर्न में पाकिस्तान ने उन्हें हराकर टूर्नामेंट जीता। वर्ष 2003 में जिम्बाब्वे और केन्या के साथ मिलकर टूर्नामेंट का आयोजन करने वाली दक्षिण अफ्रीकी टीम इस टूर्नामेंट के फाइनल में भी कभी नहीं पहुंच पाई है।
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Default Re: रोचक जानकारियाँ

कहां से आया ओके (ok)?
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इतिहास में 23 मार्च का दिन 'ओके' का है।

1839 में पहली बार 'OK' को प्रकाशित किया गया था अमेरिकी अखबार बॉस्टन मॉर्निंग पोस्ट पर।

OK का मतलब था ऑल करेक्ट।

उस वक्त शिक्षित लोगों में शब्दों की गलत स्पेलिंग लिखने का फैशन था और उन्होंने 'All correct' को 'Oll Korrekt' लिखा।

एक दिन इसे छोटा कर बॉस्टन मॉर्निंग पोस्ट ने OK कर दिया। तब से लेकर आज तक हम सब 'ओके' ही बोलते हैं।
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Old 25-10-2013, 09:46 AM   #5
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Default Re: रोचक जानकारियाँ

अति रोचक जानकारी :--
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संसार की सबसे ऐतिहासिक घटना
अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन और
राष्ट्रपति जॉन एफ़ केनेडी के बीच मे यह
घटना घटी ।
1) अब्राहम लिंकन 1846 मे काँग्रेस के लिए चुने
गए।
जॉन एफ़ केनेडी 1946 मे काँग्रेस के लिए चुने गए।
2) अब्राहम लिंकन 1861 मे राष्ट्रपति बने ।
जॉन एफ़ केनेडी 1961 मे राष्ट्रपति बने।
3) लिंकन के सेक्रेटरी का नाम केनेडी था ।
केनेडी के सेक्रेटरी का नाम लिंकन था ।
4) दोनों ही सिविल राइट्स से संबंध रखते थे ।
5) व्हाइट हाउस मे रहने के दौरान
दोनों की पत्नियो ने अपने बच्चे खोये ।
6) दोनों राष्ट्रपति को शुक्रवार के दिन गोली मार
के हत्या की गई थी ।
7) दोनों राष्ट्रपति के सिर मे गोली मारी गई थी ।
दोनों राष्ट्रपति दक्षिण क्षेत्र से विजय हुवे थे।
8 ) दोनों राष्ट्रपति को दक्षिण क्षेत्र के
निवासी ने ही गोली मारी ।
9) दोनों राष्ट्रपतियों को मारने वाले
दोनों हत्यारो का नाम भी जॉनसन ही था।
10) लिंकन को मारने वाले हत्यारे का नाम एंड्रू
जॉनसन था जो की 1808 मे पैदा हुवा था ।
11) केनेडी को मारने वाले हत्यारे का नाम लिंडन
जॉनसन था जो की 1908 मे पैदा हुआ था।
12) दोनों हत्यारे थिएटर से भागे थे , और वियर
हाउस मे पकड़ाये थे ।
13) दोनों राष्ट्रपतियों के हत्यारो को अदालत मे
पेश करने से पहले ही मार डाला गया..
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Old 25-10-2013, 09:47 AM   #6
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Default Re: रोचक जानकारियाँ

डॉलर v/s रुपया

1947 में 1 डालर = 1.00 रूपये
1966 में 1 डालर = 7.50 रूपये
1975 में 1 डालर = 8.40 रूपये
1984 में 1 डालर = 12.36 रूपये
1990 में 1 डालर = 17.50 रूपये
1991 में 1 डालर = 24.58 रूपये
1992 में 1 डालर = 28.97 रूपये
1995 में 1 डालर = 34.96 रूपये
2000 में 1 डालर = 46.78 रूपये
2001 में 1 डालर = 47.93 रूपये
2002 में 1 डालर = 48.98 रूपये
2003 में 1 डालर = 45.57 रूपये
2004 में 1 डालर = 43.84 रूपये
2005 में 1 डालर = 46.11 रूपये
2007 में 1 डालर = 44.25 रूपये
2008 में 1 डालर = 49.82 रूपये
2009 में 1 डालर = 46.29 रूपये
2010 में 1 डालर = 45.09 रूपये
2011 में 1 डालर = 51.10 रूपये
2012 में 1 डालर = 54.47 रूपये
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Default Re: रोचक जानकारियाँ

रोचक तथ्य :-
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* कुछ कीड़े भोजन ना मिलने पर खुद
को ही खा जाते हैं.
* 70%फीसदी लिवर, 80 फीसदी आंत और एक
किडनी बगैर भी इंसान जिंदा रह सकता है।
* चीन में आप किसी व्यक्ति को 100
रूपया प्रति घंटा अपनी जगह लाइन मेंलगने के लिए
कह सकते है.
* .गरम पानी ठन्डे पानी से पहले बर्फ में बदल
जाता है.
* .Keyboard पर टॉयलेट सीट से 60
गुना ज्यादा germs होते है.
* हर सैकेंड 100 बार आसमानी बिजली धरती पर
गिरती है.
* सपनो में हम सिर्फ वही चीजें देख सकते हैं जो हम
पहले से देख चुके हैं.
* .हम शाम के मुकाबले सुबह लगभग 1 cm लम्बे
होते हैं.
* गुगल से 10 अरब से अधिक पेज जुडेहुए है जो हर
19 महीने में दुगने हो जाते है.
* जिस हाथ से आप लिखते हैं,
उसकी उंगलियों के नाखून ज्यादा तेजी से बढ़ते हैं।
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Default Re: रोचक जानकारियाँ

रोचक जानकारियाँ -->

* एक रानी मधुमक्खी प्रतिदिन 1500 अण्डे
देती है।
* केवल हाथी ही 4 घुटनों वाला एक मात्र जानवर
है।
* जब बिल्लियाँ खुश होती हैं तो वे अपनी आँखें
बंद कर लेती हैं।
* विश्व में प्रतिवर्ष लगभग 500,000
पता लगाए जा सकने वाले भूकंप आते हैं जिनमें से
लगभग 100,000 का अनुभव किया जा सकता है
और लगभग 100 विनाशकारी होते हैं।
* शरीर में केवल जीभ ही एक ऐसी मांस
पेशी जो केवल एक ओर से जुड़ी होती है।
* किसी भी सामान्य आकार के कागज को 7 से
अधिक बार दोहरा मोड़ा नहीं जा सकता।
* मनुष्य अपने द्वारा देखे गए सपनों मेंसे
90% को भूल जाता है।
* सोचते समय हम अपने दिमाग के लगभग
35% भाग का ही प्रयोग करते हैं।
* रंगीन टीवी आने के बाद से लोगों को आने
वाले सपनों में श्वेत श्याम सपनों की संख्या कम
हो गई है।
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Default Re: रोचक जानकारियाँ

विज्ञान और तकनीकी से सम्बन्धित कुछ रोचक जानकारी
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सबसे पहले बनी अलार्म घड़ी में केवल सुबह 4 बजे ही अलार्म बज सकता था।

एक रोल्स रॉयस कार के बनने में छः महीने लगते हैं जबकि एक टोयोटा कार के बनने में मात्र 13 घंटे।

टेलिविजन के सबसे पहले प्रयोग करने वाले चार देश हैं इंग्लैंड, अमेरिका रूस और ब्राजील।

जेट विमानों में केस्टर ऑयल का प्रयोग ल्यूब्रिकेंट की तरह किया जाता है।

घड़ियों में ल्यूब्रिकेंट की तरह प्रयोग किए जाने वाले तेल की कीमत लगभग $3,000 प्रति गैलन होती है।

पहला लाइफ बोट सन् 1845 में पेटेंट कराया गया।

थॉमस एल्वा एडीसन नें अपने जीवनकाल में अपने लगभग 1,300 आविष्कारों को पेटेंट करवाया।

एप्पल ii के लिए उपलब्ध पहला हॉर्ड ड्राइव्ह मात्र 5 मेगाबाइट का था।

इलेक्ट्रिक चेयर का आविष्कार एक डेंटिस्ट ने किया था।

जम्बो जेट विमान को टेक आफ करने के लिए 4,000 गैलन ईंधन की आवश्यकता होती है।

निटेंडो मूलतः एक ताशपत्ती बनाने वाली कम्पनी थी।
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मनुष्य कितनी गर्मी सहन कर सकता है?
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मनुष्य कितनी गर्मी सह सकता है? इस प्रश्न का उत्तर भिन्न-भिन्न देशों व क्षेत्रों के लोगों के लिए अलग-अलग हो सकता है। भारत व दक्षिणी देशों के लोग जितनी गर्मी सह सकते हैं, वह ठंडे देशों के लोगों के लिए असहनीय हो सकती है। भारत में ही कई स्थानों पर तापमान 46-47 डिग्री-सेलसियस तक पहुँच जाता है। मध्य आस्ट्रेलिया का तापमान तो कई बार 50 डिग्री से. से भी अधिक हो जाता है। धरती पर सब से अधिक तापमान 57 डिग्री से. रिकार्ड किया गया है। इतना तापमान कैलिफोर्निया की ‘मौत की घाटी’ में होता है।
कुछ भौतिक वैज्ञानिकों ने ऐसे प्रयोग भी किए हैं कि मनुष्य का शरीर अधिकतम कितना तापमान सहन कर सकता है। पता लगा है कि नमी रहित हवा में शरीर को धीरे-धीरे गरम किया जाए तो यह पानी के उबाल-बिंदु (100 डिग्री से.) से कहीं अधिक 160 डिग्री से. तक का तापमान सहन कर सकता है। ऐसा ब्लैकडेन तथा चेंटरी नाम के दो अंग्रेज वैज्ञानिकों ने प्रयोग द्वारा कर के दिखाया। इस प्रयोग के लिए वे ब्रेड (डब्लरोटी) बनाने वाली एक बेकरी में भट्टी बाल कर कई घंटे वहाँ व्यतीत करते थे। उस कमरे की हवा इतनी गर्म थी कि उसमें अंडा उबाला जा सकता था और कबाब भूना जा सकता था। परंतु काम करने वाले आदमियों को वहाँ कुछ नहीँ होता था।
मनुष्य के शरीर की इस सहनशीलता का राज क्या है? असल में हमारा शरीर इस तापमान का एक अंश भी ग्रहण नहीँ करता। शरीर अपना साधारण तापमान सुरक्षित रखता है। इस गर्मी के विरुद्ध उसका हथियार है– पसीना।पसीने का वाष्पीकरण हवा की उस परत का ताप हज़म कर जाता है, जो हमारी चमड़ी के सम्पर्क में आती है।इसलिए ही उस हवा का तापमान सहने योग्य स्तर तक कम हो जाता है। इसके लिए दो शर्तें है। एक तो शरीर गर्मी के स्रोत के सीधे सम्पर्क में न आए तथा दूसरा हवा पूरी तरह खुश्क हो।
हवा की नमी हमारे शरीर की गर्मी सहन करने की क्षमता पर गहरा प्रभाव डालती है। हम मई-जून के दौरान 42-43 डिग्री-से. के तापमान पर उतना असहज महसूस नहीं करते, जितना जुलाई-अगस्त में इससे कहीं कम तापमान में करते हैं। मई-जून में हवा खुश्क होती है व पसीने का वाष्पीकरण तेजी से होता है। जुलाई-अगस्त में हवा में बहुत अधिक नमी होती है, जिससे वाष्पीकरण की गति बहुत धीमी हो जाती है।
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