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Old 25-10-2013, 09:51 AM   #11
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मकड़ी अपने जाले में क्यों नहीं फंसती?
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आपने घर की दीवारों पर जाले लगे तो अवश्य देखे होंगे। ये जाले मकड़ी ही बनाती है, अपने शिकार को फंसाने के लिए। आओ आज मकड़ी के बारे में जानें।

मकड़ी आर्थोपोडा संघ की एक प्राणी है। एक शोध के अनुसार मकड़ी हमारी धरती के प्रचीनतम जीवों में से है। यह लगभग पिछले 4.5 करोड़ वर्षों से इस धरती पर रह रही है। वैज्ञानिकों को मकड़ी का लगभग सवा करोड़ वर्ष पुराना जीवाश्म भी मिला है।

मकड़ी एक प्रकार का कीट है। इसका शरीर शिरोवक्ष और पेट में बँटा होता है। इसके शिरोवक्ष से इसके चार जोड़े पैर लगे होते हैं। इसकी लगभग 40000 प्रजातियाँ बताई जाती हैं। रूस के एक वैज्ञानिक प्रो. अलैग्जैंडर पीटरनेकोफ ने मकड़ियों पर गहन अध्ययन किया। उनके अनुसार मकड़ियों की प्रमुख 92 प्रजातियाँ ही हैं। पीटरनेकोफ ने अपनी प्रयोगशाला में बहुत सी मकड़ियाँ रखी हुई थीं। वे उनकी हर प्रकार की हरकतों पर ध्यान रखते थे।

मकड़ी के पेट में एक थैली होती है, जिससे एक चिपचिपा पदार्थ निकलता है। मकड़ी के पिछले भाग में स्पिनरेट नाम का अंग होता है। स्पिनरेट की सहायता से ही मकड़ी इस चिपचिपे द्रव को अपने पेट से बाहर निकालती है। बाहर निकलकर यह द्रव सूख कर तंतु जैसा बन जाता है। इस से ही मकड़ी अपना जाला बुनती है। मकड़ी के जाले में दो प्रकार के तंतु होते हैं। जिस तंतु से मकड़ी जाले का फ्रेम बनाती है वह सूखा होता है। जाले के बीच के धागे स्पोक्स नाम के चिपचिपे तंतु से बने होते हैं। जाले के चिपचिपे तंतुओं से ही चिपक कर शिकार फंस जाता है। एक बार चिपकने के बाद शिकार छूट नहीं पाता। शिकार के फंसने के बाद मकड़ी सूखे तंतुओं वाले धागों पर चलती हुई शिकार तक पहुँचती है। इसी कारण मकड़ी अपने जाले में नहीं उलझती। वैसे भी मकड़ी के शरीर पर तेल की एक विशेष परत चढ़ी होती है, जो उसे जाले के लेसदार भाग के साथ चिपकने से बचाती है।

प्रो. अलैग्जैंडर पीटरनेकोफ के अनुसार मकड़ी की छह प्रजातियाँ ऐसी भी हैं जो स्वयं के बनाए जाले में उलझ कर रह जाती हैं। वास्तव में वे जाला अपने चारों ओर ही बुन लेती हैं। फिर जाले से बाहर निकलने या उसमें घूमने से असमर्थ रहते हुए मर जाती हैं।
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Old 25-10-2013, 09:52 AM   #12
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विमान यात्रा के दौरान "थर्मोमीटर" रखना क्यों होता है वर्जित?
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क्या आपने कभी गौर किया है कि विमानयात्रा के दौरान जो कुछ संसाधन आप अपने साथ नहीं ले जा सकते उसमें परम्परागत थर्मोमीटर भी शामिल है. अब एक थर्मोमीटर से क्या नुकसान हो सकता है?

परम्परागत थर्मोमीटर में पारा होता है जो कि जहरीला होता है. इसलिए सामान्य रूप से यह बात समझ में आती है कि थर्मोमीटर को लेकर हवाई यात्रा करने वाले यात्री से परेशानी उत्पन्न हो सकती है. परंतु बात मात्र इतनी सी ही नहीं है.

थर्मोमीटर मे मौजूद पारा स्वयं विमान के लिए घातक सिद्ध हो सकता है. विमान की बॉडी टाइटेनियम और एल्यूमीनियम से बनी होती है. एल्यूमीनियम एक ऐसी धातु है जो ऑक्सिजन के साथ तुरंत सम्पर्क कायम कर रसायनिक प्रक्रिया शुरू कर देती है. इससे हवा में मौजूद ऑक्सिजन एल्यूमीनियम की सतह को नुकसान पहुँचा सकता है.

सामान्यत: ऐसा हो नहीं पाता क्योंकि जैसे ही ऐसी कोई प्रतिक्रिया शुरू होती है एल्यूमीनियम की परत के ऊपर ओक्साइड की पतली परत जम जाती है और इससे एल्यूमीनियम की परत को नुकसान नहीं पहुँचता. परंतु पारा यहाँ खलनायक बन सकता है.

पारे का एक गुणधर्म ओक्साइड पर हमला करना भी है. यदि पारा ओक्साइड की परत के सम्पर्क में आए तो उसे नुकसान पहुँचा सकता है. दूसरी तरफ पारा एक जगह टिकता भी नहीं इसलिए व्यापक नुकसान की सम्भावना उत्पन्न हो जाती है. इसके बाद ऑक्सिजन एल्यूमीनियम की परत को भी नुकसान पहुँचाना शुरू कर देता है. इससे विमान की बॉडी को भारी नुकसान हो सकता है.

एक और बात - इस तरह की रसायनिक प्रक्रिया से उत्पन्न गर्मी से विमान के फ्यूल टैंक में धमाका भी हो सकता है.


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Old 25-10-2013, 09:53 AM   #13
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तेज हवाओं से कैसे सुरक्षित रहती है – बुर्ज खलीफा
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यह इमारत दुनिया की सबसे ऊँची इमारत है और निकट भविष्य में इस इमारत के इस रिकार्ड को तोड़ना असम्भव होगा. 2716 फीट ऊँची बुर्ज खलीफा [पहले बुर्ज दुबई] इतनी ऊँची है कि 90 किलोमीटर की दूरी से भी देखी जा सकती है!

लेकिन इतनी ऊँची इमारत को किस एक चीज से सबसे अधिक खतरा रहता होगा? तेज हवाओं से! डिस्कवरी न्यूज की एक खबर के अनुसार सिआटल की एक स्ट्रक्चरल और सिविल इंजीनियरिंग कम्पनी क्लेमेंसीस एसोसिएट्स के रोन क्लेमेंसिस मानते हैं कि बुर्ज खलीफा करीब 5 फूट आगे पीछे झुलती होगी.

इसके लिए इंजीनियर एक साधारण सा फार्मूला अपनाते हैं. किसी भी इमारत की ऊँचाई को 500 से विभाजित कर दीजिए. यानी कि यदि 2716 को 500 से विभाजित किया जाए तो नतीजा मिलता है 5.5. यानी कि बुर्ज खलीफा की अधिकतम ऊँचाई पर हवा का दबाव उसे करीब 5 फीट तक झुलाता होगा.

लेकिन यह इमारत गिर नहीं सकती क्योंकि इस इमारत को बनाते समय स्ट्रक्चर इंजीनियरों ने इस बाबत को ध्यान में रखा था, और उस हिसाब से ही निर्माण कार्य किया था.

एक और बात है जो इस इमारत को हवाओं के थपेड़े सहने लायक बनाती है. यह इमारत वास्तव में कई छोटी छोटी इमारतों का मिश्रण है. ध्यान से देखें तो पता चलता है कि बुर्ज खलीफा चारों और से छोटी छोटी अनेक इमारतों को जोड़कर बनी है. हर इमारत की ऊँचाई अलग अलग है और इसलिए एक ही इमारत में कई छतें देखी जा सकती है.

इस तकनीक से भी इमारत को मजबूती मिली है. बुर्ज खलीफा नीचे से चौड़ी है, लेकिन एकदम ऊँचाई पर इसकी चौड़ाई काफी कम है और इसलिए नीवँ पर पड़ने वाला वजन भी विभाजित होकर कम हो जाता है. दूसरी तरफ कई सारी ऊँची नीची छतों की वजह से हवा का बहाव असंतुलित हो जाता है और इससे इमारत पर एक समान हवा का दबाव नहीं बन पाता.

इससे यह इमारत हवा के दबाव को आसानी से सह लेती है.




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Old 25-10-2013, 09:53 AM   #14
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7 सच मनुष्य शरीर के
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मानव शरीर मेँ सबसे मजबूत हड्डी जबङे की होती है।

ज्यादा खाने के बाद हमारी सुनने की क्षमता कम हो जाती है।

एक बार खाना खाने के बाद उसे पचाने मेँ हमारा शरीर लगभग 12 घंटे लेता है।

मानव दिमाग का एक-चोथाई हिस्सा आंखोँ को नियंत्रित करने मेँ ही लगा रहता है।

हमारी आंखोँ का लेँस जीवनभर ग्रोथ करता रहता है।

महिलाओँ का दिल पुरुषोँ के मुकाबले तेज धङकता है।

इंसान के दांत चट्टान की तरह कठोर होते हैँ।
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Old 25-10-2013, 09:54 AM   #15
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तकिए से आराम की नींदः-

अगर कंधे, पीठ या गले के दर्द के कारण आपको नींद में बाधा आ रही है तो शारीरिक मुद्रा में छोड़े से परिवर्तन से या ताकिया लगा कर आप आराम की नींद ले सकते हैं। दर्द से आराम के लिए ताकिया का सहारा लेना बेहतर उपाय है।
विशेषज्ञों की सलाह है कि दर्द होने पर पीठ के बल लेट जाइए और सिर एवं घुटनों के नीचे ताकिया लगा लें। अगर घुटनों के नीचे तिकोने आकार का ताकिया लगाएँ तो बेहतर होगा, क्योंकि इससे पीठ के निचले हिस्से का तनाव दूर होगा। अगर आपको गले में भी दर्द है तो आप ऐसे तकिए का प्रयोग करें जो आपके सिर व गले के बीच झूले की तरह हो और सिर को अगल-बगल या पीछे की ओर झुकने से रोके। एक ओर करवट करके लेटें और सिर के नीचे व घुटनों के बीच तकिया रखें।
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Old 25-10-2013, 09:54 AM   #16
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दस लाख डालर की जीभः-

जॉन हैरिसन की अमेरिका में सबसे शांत और मजेदार नौकरी है। 18 साल से वह एक आइसक्रीम कंपनी में चीफ टेस्टर (स्वाद चखनेवालों का प्रमुख) है। वह अब तक 180 लाख गैलन आइसक्रीम खा चुका है। 60 के पेटे में पहुंच चुके जॉन का काम यह सुनिश्चित कराना है कि लोग बेहतरीन आइसक्रीम खाएं। जॉन स्वाद चखने वालों में एक हस्ती बन चुका है। उसकी ख्याति इतनी फैल चुकी है कि ड्रेयर्स ग्रेड आइसक्रीम ने, जो कि एडीज ग्रेंड के नाम से भी बिकती है, जॉन की अति संवेदनशील जीभ का दस लाख डालर की बीमा करवा रखा है। वह 60 किस्म की आइसक्रीम को वह गले से नीचे नहीं उतारता। जॉन कहता है कि अगर वो आइसक्रीम निगल लेता है तो उसका मन व पेट, दोनों भर जायेंगे। इसलिए वह इससे बेहद बचता है। जॉन आइसक्रीम चखने के लिए सोने का पानी चढ़ी चम्मचों का प्रयोग करता है। अमूमन अन्य धातु या प्लास्टिक की चम्मचें आइसक्रीम पर अपना फ्लेवर (गंध व स्वाद) छोड़ देती है।
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हमारे सुरक्षाकर्मी "खाकी" कपड़े क्यों पहनते है? खाकी का अर्थ?
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भारत के कुछेक राज्यों को छोड़कर अन्य सभी राज्यों के पुलिस बल के कपड़ों का रंग 'खाकी" होता है. कुछ लोग इस रंग का उच्चारण "खाखी' भी करते हैं जो कि गलत है. सही शब्द खाकी है. इस तथ्य से संबंधित दो प्रश्न उपस्थित होते हैं, पहला तो यह कि इस रंग को खाकी क्यों कहते हैं और दूसरा यह कि हमारे सुरक्षा दलों के कपडों का रंग खाकी ही क्यों चुना गया?

इस शब्द का मूल फारसी भाषा में निहित है. अंग्रेजों के जमाने में भारत में उर्दु भाषा का प्रभुत्व अधिक था और उर्दु में फारसी भाषा के शब्दों का काफी उपयोग किया जाता है. फारसी में धूल को खाक कहा जाता है. इसलिए इस मटमैले रंग को "खाकी" के रूप में चिह्नित किया जाता है क्योंकि यह रंग मिट्टी के रंग जैसा है. इस रंग को मुल्तानी मिट्टी के रंग के रूप में भी जाना जाता था.

वर्षों पहले अंग्रेजो नें अपनी ब्रिटिश-हिन्द फौज के कपडों के लिए इस रंग का चयन किया था. उस समय इस रंग के कपडों के उत्पादन ब्रिटेन में काफी बडे पैमाने पर होता था. इसकी एक वजह शायद यह थी कि इस रंग के कपडों पर मैल तुरंत ही नज़र नहीं आता है और दूसरी एक वजह यह भी है कि धूल के रंग से मिलता जुलता होने की वजह से सिपाही आसानी से खुद को छिपा सकते हैं.

आज़ादी के बाद हमने अंग्रेजों की बनाई कई प्रणालियों को आगे जारी रखा. इसमें पुलिस तथा अन्य सुरक्षा बलों के कपडों का रंग भी शामिल है. हालाँकि पाकिस्तान और बाद में बांग्लादेश ने अपने पुलिस बल के कपडों के रंग में परिवर्तन किया.

भारत के गोवा राज्य की पुलिस बल के कपडों का रंग सफेद होता है. गोवा में अंग्रेजों का नहीं बल्कि पुर्तगाली लोगों का राज था और पुलिस बल के कपडों का यह रंग उनके जमाने से जारी है.
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चेतावनी देने के लिए लाल रंग का ही इस्तेमाल क्यों होता है?
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ट्राफिक सिग्नल हो या जहाजों के द्वारा एक दूसरे को दिए जाने वाले संकेत, खिलाड़ी को खेल से बाहर कर देने का संकेत हो या रेलगाड़ी को रूकने का संदेश देने वाला संकेत, हर जगह लाल रंग का ही इस्तेमाल किया जाता है. आखिर लाल रंग ही चेतावनी देने के लिए क्यों इस्तेमाल किया जाता है?

इसकी मुख्यत: दो वजहें हो सकती है. पहली वजह यह है कि लाल रंग की तरंगों की लम्बाई अधिक होती है. यानी कि आप लाल रंग को काफी दूर से देख पाते हैं. इस वजह से तेज गति से आते वाहनों को रूकने का संकेत दे पाना सरल हो जाता है. दूसरी वजह है ब्रिटिश अधिकारियों की यह सोच कि चुँकि रक्त का रंग भी लाल होता है और यह रंग भड़काने वाला होता है, इसलिए चेतावनी देने के लिए इस रंग का उपयोग किया जाना चाहिए....
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अनजानी या खतरनाक चीजें "X" अक्षर से ही चिह्नित क्यों होती है?
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उदाहरण बहुत सारे हैं - X-ray, Planet-X, Project-X, X-files... गुप्त प्रोजेक्ट हो, गुप्त योजना हो, अनजानी कीरणें हों, अनजाना ग्रह हो या कुछ और, इन सभी चीजों को रोमन लिपि के X अक्षर से ही क्यों चिह्नित किया जाता है?

इसके पीछे शायद ही कोई इतिहास या तथ्य है परंतु यह एक चलन है जो दशकों से चला आ रहा है. ऐसा माना जाता है कि जो भी चीज या घटना हमारे लिए अनजानी ना हो या जिसका स्रोत, असर या फिर कार्य हमें पता हो और सर्वमान्य और सार्वजनिक हो उनको चिह्नित करने के लिए रोमन लिपि के शुरूआती अक्षरों का इस्तेमाल किया जाता है - जैसे कि "A", "B", "C" आदि. परंतु जो चीजें गुप्त हो या फिर जिसके बारे में काफी कम जानकारी हो उन चीजों को चिह्नित करने की शुरूआत रोमन लिपि के अंतिम मूलाक्षरों से शुरू होती है, जैसे कि - "X".

सन 1596 में फ्रेंच गणितशास्त्री रेन देकार्त ने ग्राफ बनाते समय खड़ी और सीधी भूजा को चिह्नित करने के लिए "X" और "Y" मूलाक्षरों का इस्तेमाल किया था. तब त्रिआयामी कोण के बारे में विचार नहीं हुआ था और आगे चलकर जब एक और कोण जोड़ा गया तो उसे "Z" मूलाक्षर से पहचान मिली.

गणित, ज्यामिती और भूमिति में भी जिन उदाहरणों में स्पष्टता होती थी वहाँ शुरूआती मूलाक्षरों और जिन उदाहरणों में अस्पष्टता होती थी या फिर जिनके लिए कुछ खोज करनी पडती थी ऐसे उदाहरणों को अंतिम मूलाक्षरों के द्वारा चिह्नित किया जाता था.

समय बीतने के साथ यही चलन अन्य जगहों पर भी अपना लिया गया होगा ऐसी मान्यता है.
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राष्ट्रीय झंडे में क्या होता है "Charge"?
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Charge, Cap, Fag Staff, Hoist Rope, Fly... ये सारे शब्द राष्ट्रीय झंडों से जुडे हुए हैं. हर झंडे में एक चार्ज क्षैत्र होता है. इसके अलावा हर झंडे को कई अन्य क्षैत्रों के द्वारा चिह्नित भी किया जाता है. आइए जानें इनके बारे में.

चार्ज का अर्थ होता है झंडे का मुख्य भाग, यानी कि वह भाग जिससे झंडे की त्वरित पहचान हो सके. हमारे राष्ट्रीय झंडे की बात करें तो इसमें तीन रंग की पट्टियाँ है केसरी, सफेद और हरा. परंतु ठीक इन्हीं रंगों और पैटर्न के तीन और राष्ट्रीय झंडे भी हैं इसलिए ये चार्ज क्षैत्र नहीं हो सकते. इसलिए हमारे राष्ट्रीय झंडे का चार्ज क्षैत्र है "अशोक चक्र'. कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि हमारे झंडे का मुख्य भाग है अशोक चक्र जो बाकी झंडों से उसको अलग करता है.

इसके अलावा भी कई चिह्नित क्षैत्र होते हैं. झंडे को जिस स्तम्भ पर लगाया जाता है उसके शीर्ष भाग को Cap कहते हैं. स्तम्भ को Flag Staff कहते हैं. झंडे को हमेशा सीधा ही लगाया जाए इसके लिए ऊपर की तरह एक दट्टी लगाई जाती है जिसे Toggle कहते हैं. झंडे में लगने वाली रेशमी डोर को Hoist Rope कहते हैं. झंडे के स्तम्भ की तरफ रहने वाले अर्ध भाग को Hoist और स्तम्भ से दूर रहकर हवा में उडने वाले दूसरे अर्ध भाग को Fly कहते हैं. Fly भाग को ही सलामी दी जाती है.

सवाल यह है कि जब झंडे को सही तरह से ही लगाया जाए इसके लिए उसके ऊपरी भाग पर टोगल लगाई जाती है तो भी कई बार झंडा ऊल्टा क्यों फहरा दिया जाता है? जवाब सर्वविदित है. ऐसा मात्र दो वजहों से होता है - लापरवाही या जानबुझ कर की गई प्रवृति.




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