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Old 24-02-2013, 07:56 PM   #21
jai_bhardwaj
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Default Re: ग़ज़लें, नज्में और गीत

पहली बार जब मैं जेल गया
मेरे हाथों में
एक खिलौने का डब्बा था
उसमें कुछ कंचे थे
गली में पड़ा मिला
एक जंग खाया चाकू था
कुछ बिजली के फ्यूज हुए तार थे
और तब मैं यह भी नहीं जानता था
कि आतंकवादी होने का मतलब क्या होता है
दूसरी बार जब जेल गया
तो मैं कुछ बड़ा हो गया था
और एक अजीज दोस्त से
बतिया रहा था
एक नक्सली की पुलिसिया हत्या के बाद
अखबार में छपी खबर और तस्वीर के बारे में
तब मैं नहीं जानता था नक्सली होने का मतलब
और यह भी नहीं कि नक्सली शब्द उचारना,
जबान पर लाना कोई जुर्म है
तीसरी बार जब जेल गया
तब मैने बिल्कुल नहीं जाना
कि मैं जेल क्यों गया
इतना मालूम चला था अखबारों से
कि उनका प्रचार कामयाब हुआ
और पूरा देश घृणा करने लगा है मुझसे
हालांकि, जेल में मिलने आती
अपनी नन्ही बच्ची की आंखों में
मैं देख लिया करता था अपना चेहरा
उसकी आंखें बोलती थीं
मैं दोषी नहीं

--krishnakant
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

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Old 01-03-2013, 06:11 PM   #22
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Default Re: ग़ज़लें, नज्में और गीत

गौरी पनघट से नहीं, भरती नल से नीर।
छरहरी काया न रही, थुलथुल हुआ शरीर।।
थुलथुल हुआ शरीर, नित्य ही वैद्य बुलावे,
दूध परहेज छोड़, पिज्जा ही मंगवावे,
सुनलो कहे अशोक, नहि यह गाँव की छोरी,
आयी दुल्हन गाँव, बन के शहर की गौरी।।
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Old 01-03-2013, 06:11 PM   #23
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Default Re: ग़ज़लें, नज्में और गीत

पगडंडी दिखती कहाँ, चौतरफा अब रोड।
समयचक्र के साथ ही, बदले कितने मोड़।।
बदले कितने मोड़, बनी डामर की सड़कें,
कृषि चोखा व्यापार,कृषक भी बचे न कड़के,
खड़ी गाँव के द्वार, देखो कृषक की मंडी,
भूले अब तो लोग, गाँव की वह पगडंडी।।
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Old 03-03-2013, 08:21 PM   #24
jai_bhardwaj
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उसके होते हुए वक्त का एहसास नहीं,
कितना तनहा मुझे जाते हुए कर जाता है

उसकी आँखों में बसेरा है मेरी उल्फत का,
ये अलग बात कि वो इस बात से फिर जाता है

तज्करा मुझसे वो करता है मेरा कुछ ऐसे,
जैसे बादल किसी बस्ती पे बिखर जाता है

मेरी चुपचाप तबियत को भी यूँ लगता है
रंग बे-कैफ से लम्हों में वो भर जाता है

कांप उठता है अकेले में वजूद ऐ 'अमर',
जब कभी भूले से भी लफ्ज-ए-हिजर आता है

साजिद नाज़िर 'अमर'
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Old 03-03-2013, 08:21 PM   #25
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छुप जाती हैं आइना दिखा कर तेरी यादें,
सोने नहीं देतीं मुझे शब् भर तेरी यादें

तू जैसे मेरे पास है और माहो-ए-सुखन है,
महफ़िल सी जमा देती हैं अक्सर तेरी यादें

मैं क्यों ना फिरूं तपती दोपहरों में अक्सर,
फिरती हैं तसव्वुर में खुले सर तेरी यादें

जब तेज हवा चलती है बस्ती में सरेशाम,
बरसती हैं इतराफ से पत्थर तेरी यादें।

-नासिर काजमी
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Old 03-03-2013, 08:23 PM   #26
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मुलाकातें हमारी बे-इरादा क्यों नहीं होतीं,
मुहब्बत की गुजर कहीं कुशादा क्यों नहीं होतीं

हमारे दरमियान ये अजनबियत का धुवां क्यों है,
हमारी चाहतें हद से ज्यादा क्यों नहीं होती

मेरे जज़्बात की खुशबू उतरती क्यों नहीं तुझमे,
तेरे दिल की सभी राहें कुशादा क्यों नहीं होती

खुशी की चंद बूंदे जिस्म को गीला कर तो देती हैं,
मयस्सर रहती लेकिन ज्यादा क्यों नहीं होतीं

तेरे नज़दीक रहके भी ये दूरी का गुमां कैसा,
तेरी बाहें मेरी खातिर कुशादा क्यों नहीं होतीं

बड़े नाज़-ओ-अदा अक्सर ये दिखलाती हैं रास्तों में,
ये सोहनी लडकियां 'इरफ़ान' सादा क्यों नहीं होती

-इरफ़ान सादिक
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Old 10-03-2013, 02:50 PM   #27
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दिल की दीवारों पे किसी को ज़ख़्म न दो
एक ज़ख्म जिन्दगी का रुख़ बदल देती है ।

वक़्त भर देता है नासूर भी जिस्म के मगर
एक झोंका ही दिल-ए-ज़ख़्म को सबल देती है ।

हर डाल पर सैयाद है दिल के तीर लेकर
क़ैद पंछी पिंजड़े में लोगो को हज़ल देती है ।

जलाने बैठे है दीवाने दिल में आग लेकर
धुआँ दिल के जलने का हद-ए-नज़र देती है ।

जो अपने रक़्श से रौशन करती है महफिलें
मिटाकर खुद को वो सबके रात संवर देती है ।

पूछिये उन्हीं से हाल-ए-दिल क़फ़स-ए-उलफत का
औरों के लिए तो ये लफ़्ज़ बस ग़ज़ल देती है ।

हज़ल – तमाशा, मनोरंजन ,
रक़्श – नाच ,
क़फ़स – पिंजड़ा ,
उलफत – प्यार


(अंतरजाल के वृहद कोष से कर्षित एक हेम कण ......)
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Old 10-03-2013, 02:52 PM   #28
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Default Re: ग़ज़लें, नज्में और गीत

मुझे नही
मेरे काम को
चाहते है सब,
वरना -
मुट्ठी भर
मुट्ठी भर मिट्टी हूँ
हवाओं में
बिखर जाउँगा ।
वो काम ही है
जिससे -
एक-दूसरे को
पूछते है,
जानते है,
याद करते है,
फिर पूछेगा कौन मुझे यहाँ
अगर
किसी से करके वादे
फिर
मुकर जाउँगा ।
कर्म को पूजा
जानते है हम,
मगर-
भूल जाता हूँ कर्म
पूजा करके,
फिर किस्मत ने कहाँ
किस्मत को दी
धोखा हमने,
अब कर्म के बिना
पूजा में
क्या लेकर जाउँगा ।

(अंतरजाल के वृहद कोष से कर्षित एक अन्य हेम कण ......)
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Old 20-03-2013, 03:14 PM   #29
rajnish manga
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Default Re: ग़ज़लें, नज्में और गीत

ग़ज़ल

मेरी तरह किसी से मुहब्बत उसे भी थी.
ग़म को छुपा के हंसने की आदत उसे भी थी.


इस दिल से मुझको दुःख के सिवा और क्या मिला,
और दिल से इस किस्म की शिकायत उसे भी थी.

ऐ काश के कुछ पल तो उसके साथ गुज़रते,
उस पल के न मिलने की मलामत उसे भी थी.

तारीकियों में खुद अपने ही साए को ढूँढना,
खुद को तलाश करने की आदत उसे भी थी.


तन्हाइयों में खामशी को गौर से सुनना,
खामोशियों से ऐसी रफाकत उसे भी थी.


मैंने कभी न चाहा के वादे वफ़ा भी हो,
वादे हज़ार करने की आदत उसे भी थी.


आँखों में लिए आंसू रातों को जागना,
मेरी तरह किसी से मुहब्बत उसे भी थी.


(रचना: आमना रानी/ उर्दू वर्ल्ड .कॉम से साभार)

Last edited by rajnish manga; 20-03-2013 at 03:17 PM.
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Old 23-03-2013, 12:00 AM   #30
jai_bhardwaj
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Default Re: ग़ज़लें, नज्में और गीत

जिस दिन से वो आई मेरी जिंदगी में
उजाला बन कर छा गयी
सुबह की चाय में घुला उसका प्यार
मिठास से भर देता मेरे मन को
जब निकलने लगता ऑफिस को
तो दौड़कर आती और
कानों में बुदबुदा जाती
आपसे प्रेम करती हूं
मैं हौले से मुस्कुरा देता

कपकपाती सर्दी में उसके हाथ का स्वेटर
बदन को ही नहीं मन को भी
प्रेम की ऊष्मा से भर देता
हर शाम हलके हाथों से मेरे माथे को सहलाती और
धीरे से बुदबुदाती
मुझे आपसे बहुत प्रेम है
मैं हौले से उसका गाल थपथपा देता

लेकिन हमेशा उसकी आँखों में नज़र आती
अनजानी सी बेचैनी,अनजानी सी प्यास

पचपन साल वो साए की तरह
मेरे साथ चली
कल वो चली गयी इस दुनिया से
मेरे सामने था उसका बेजान शरीर
ठंडे बर्फ से सर्द हाथ और अधखुली आँखें
जिनमे वोही प्यास,वो ही बेचैनी थी
मैं रो पड़ा फूट फूट कर
थाम कर उसके सर्द हाथ
मैं बुदबुदाया उसके कानों में
मुझे तुमसे बेहद मोहब्बत है
अगले ही पल मैंने देखा
बंद हो गयी उसकी अधखुली आँखें

लगता है उसकी बरसों की प्यास बुझी
उसके जाने के बाद........
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