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Old 05-02-2012, 10:18 PM   #21
Dr. Rakesh Srivastava
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Default Re: उपन्यास : टुकड़ा - टुकड़ा सच


( 12 )


पायल को जिस घड़ी का बेसब्री से इन्तजार था , वो नज़दीक आ गयी थी . चंचल और पायल की शादी की तारीख सांचे में ढलकर स्पष्ट आकार ले चुकी थी . कार्ड भी छप चुके थे .
पायल गुलशन के घर उसको अपनी शादी का निमंत्रण - पत्र देने जा रही थी . आज उसकी हिम्मत नहीं पड़ रही थी , गुलशन से नज़रें मिलानें की . एक तरफ उसे अपनी और चंचल की शादी तय होने की ख़ुशी थी , तो दूसरी और अंध प्रेम के कारण गुलशन की बर्बादी का गम था . वह जानती थी कि गुलशन अभी तक आस लगाए बैठा है कि वो चंचल से दूर छिटककर उसकी बाहों में कभी न कभी आ गिरेगी .
जब वो गुलशन के घर पहुँची , तो उसने देखा कि वह दरवाजे की तरफ पीठ किये बैठा है और हाथ में उसी की तस्वीर लिये देख रहा है .
पायल के पसीज गए दिल की नमी आँखों में उतर आयी . वह दबे पाँव गुलशन के सामने खड़ी हो गयी .
उसे सामने देखकर गुलशन बोला -- " बैठो . "
बैठते हुए पायल ने बात शुरू करने की गरज से पूछ लिया -- " किसकी तस्वीर देखी जा रही थी ? "
गुलशन निराशा से बोला -- " जिसे पाने की आस लिये जिन्दा हूँ . "
उसकी बात सुनकर पायल ने सोचा कि वो बिना कार्ड दिए ही वापस लौट जाये . मगर फिर उसके दिमाग में दूसरा विचार आया कि उसे अँधेरे में रखना उचित नहीं . बता देना ही ठीक रहेगा . सच्चाई से मुंह मोड़ना हितकर नहीं .
पायल ने अपराधी सा सर झुकाकर अपनी शादी का एक कार्ड गुलशन की ओर बढ़ा दिया .
गुलशन ने लिफाफा हाथ में थामते हुए पूछा -- "क्या है ? "
जवाब देने के लिये पायल के होठ काँपे , मगर जुबान कमजोर पड़कर गूँगी हो गयी .
गुलशन ने लिफाफा खोलकर जैसे ही कार्ड देखा , उसका पूरा शरीर सूखे पत्ते कि भाँति काँप गया और चेहरा अचानक इस कदर अपशगुनी पीला पड़ गया जैसे कि लिफ़ाफ़े पर लगी शगुन की हल्दी का रंग . उसे लगा - - - उसकी आँखों में खूब बड़े दो मोतियाबिन्द उभर आये हैं , जिनके चलते उसके दिमाग में कुछ देर को अँधेरा छा गया हो . और सहमी पायल ने उस क्षण उसकी पथराई आँखों में भयंकर पीड़ा को पसीजते देखा . गुलशन ने अपनी बाईं छाती को हाथ से मसलकर थोड़ी देर तक अपने फड़कते होठ काटे , चेहरे पर बेचैनी लाया और फिर लगातार पायल की तरफ कातर दृष्टि से निहारने लगा . पायल की नज़रें स्वतः झुक गईं .
थोड़ी देर बाद !
पायल बिना आँख मिलाये ही उससे बोली -- " गुलशन ! एक बात पूछूँ ? "
वह धीमी पराजित आवाज़ में बोला -- " अभी भी कुछ पूछने को बचा है ? "
" हाँ . तुम्हें अपना वादा याद है न ? जो तुमने चंचल के घर पर पहली मुलाक़ात में मुझसे किया था . "
और उसके इस प्रश्न के साथ ही अपमान और पीड़ा की न जाने कितनी सूइयाँ गुलशन के शरीर में घुस गयीं . ऐसा लगा , जैसे उसे किसी ने तमाचा मारकर तेज़ाब से भरे टब में धकेल दिया हो .
वह तड़पकर बोला -- " वादा ! मात्र वादे की बात करती हो . अरे मुझे तो कॉलेज के जमाने के वो फागुनी बयार में डूबे सतरंगी दिन भी याद हैं , जिन्हें तुम भूल चुकी हो . फिर भी पायल - - - मेरे वादे पर यकीन रखो . वादा खिलाफी नहीं होगी . क्योंकि मैं तुम्हें प्यार करता हूँ . पवित्र प्यार . और असली प्यार वादे से कभी मुकर नहीं सकता . "
पायल बोली -- " गुलशन ! मैं चाहती हूँ कि शादी करके तुम भी सुख का जीवन व्यतीत करो . मानोगे न मेरी बात ? करोगे न विवाह ? "
" विवाह - - - शादी - - - ब्याह ! ये किसी और ही देश की जुबाने हैं पायल . मैं ये भाषा नहीं जानता . मै तो सिर्फ गम की जुबान बोलता हूँ . सच तो ये है पायल - - - कि जिस तरह कोई कांटेदार बेल नन्हे से पौधे को अपनी लपेट में ले लेती है , उसी तरह तुम्हारे प्यार ने मुझे अपनी बाहों में समेट लिया है . "
पायल चुप रही . वह बोलती भी क्या .
गुलशन ने बड़ी मासूमीयत व बेबसी से कहा -- " एक बात पूछूँ पायल ? क्या तुम्हें मुझ पर बिल्कुल दया नहीं आती ? "
इतना कहकर गुलशन पायल के कन्धों पर अपने कंपकपाते हाथ टिकाकर और उसकी आँखों में आँखें डालकर रो पड़ा . उसके आँसू एकबारगी भरभरा कर बह उठे . मानो कोई पहाड़ी बादल अचानक फट पड़े और अपने भीतर तैर रहे कुल पानी को एक साथ ज़मीन पर छोड़कर त्वरित बाढ़ का कारण बन जाये . ऐसी वेग वान बाढ़ ! जिसकी चपेट में आकर बड़े - बड़े स्थिर पत्थर भी लुढ़क कर बह जायें .
पायल के लिये ये बड़ी असमंजस की घड़ी थी . उसके लिये गुलशन की यह ह्रदय विदारक स्थिति असहनीय हो गयी . उसे लगा कि वह गुलशन की आँखों से उमड़ रहे आंसुओं की बाढ़ में डूबी - बही जा रही है . उसकी आँखों से भी आंसुओं की तेज़ धारायें फूट पड़ीं . उससे रहा न गया और दिल के हाथों मजबूर होकर वह गुलशन से लिपट गयी . गुलशन के प्रति उसके मन में करुणा इस तरह फूट पड़ी , जैसे पुत्र - वत्सला जननी के स्तनों से ममता की निर्झरनी दुग्ध - धारा . जब कुछ न सूझा तो उसके सिर को अपनी छाती से टिकाकर वह अपने हाथों से जहाँ - तहां गुलशन को सहलाकर उसे मौन सांत्वना देने लगी .
कुछ देर बाद !
भावुक भयी पायल ने कहा -- " गुलशन ! लगता है तुम जैसा विशाल मना भी भावना में बहकर मेरे आचरण का तटस्थ व उचित मूल्यांकन नहीं कर सका . सुनो ! प्रत्येक व्यक्ति की सोच - - - उसकी प्राथमिकतायें और जीने के तरीके प्रथक - प्रथक होते हैं . कोई ज़रूरी तो नहीं कि प्रत्येक व्यक्ति तुम्हारे ही दृष्टिकोण से तुम्हारी सुविधानुसार सोचे व करे . स्वनिर्मित पूर्वाग्रहों के कारण शायद तुम यह सोच भी नहीं सकते कि मेरे मन में तुम्हारे प्रति कितना श्रृद्धा - भाव है . मैं तुम्हारी भलमनसाहत की बड़ी कद्र करती हूँ . किन्तु इज्जत करना एक बात है और प्यार व शादी करना बिल्कुल उलट दूसरी . इज्जत किसी भी श्रेष्ठ व्यक्ति की - की जा सकती है मगर गंभीर प्यार करने व उसे सफल विवाह तक पहुंचाने के वास्ते खुले व विस्तृत दिमाग से काम लेना पड़ता है . जबकि तुम प्यार और शादी के सन्दर्भ में दिमाग से नहीं बल्कि एकतरफा दिल से काम ले रहे हो . सच पूछो तो मैं स्वयं से अधिक तुम्हें पसन्द करती हूँ . इसीलिये तुम्हारा दुःख मुझसे देखा नहीं जाता . तुम्हारी दशा देखकर एक अपराध - बोध सा मुझ पर गहरा प्रभाव डाल रहा है . लगता है - -- - तुम्हारे इस बिगड़े हाल के लिये मैं और सिर्फ मैं ही जिम्मेदार हूँ . यदि कहीं यह प्रभाव स्थायी रूप धारण कर गया तो शायद मैं खुद को कभी माफ़ नहीं कर सकूंगी . लेकिन हकीकत ये भी है कि मैं चंचल से अत्यधिक प्यार करती हूँ . उसके बगैर अपने भविष्य की कल्पना भी नहीं कर सकती . यह जानने सुनने के बावजूद भी अगर तुम सोचते हो कि मुझसे विवाह करने के अतिरिक्त तुम्हारे पास सुख से रहने का कोई और विकल्प नहीं है तो मैं अपने ह्रदय में तुम्हारे प्रति असीम श्रृद्धा कि खातिर तुम्हारे प्यार पर अपना प्यार कुर्बान कर दूँगी . चंचल को बेमन से त्याग कर तुमसे शादी कर लूंगी . क्योंकि युगों - युगों से स्त्री जाति से त्याग की ही अपेक्षा तो की जाती रही है और अबला स्त्री चाहे - अनचाहे मन - बेमन से प्रायः ऐसा करती भी आयी है . जाओ गुलशन - - - तुम भी क्या याद करोगे कि कोई लड़की तुम्हारी ज़िन्दगी में आयी थी . मगर हाँ - - - एक बात अभी से साफ़ करे देती हूँ - - - कि सच्चे मन से तुम्हें प्यार दे पाऊंगी या नहीं - - - ये तो अभी मैं भी नहीं कह सकती . ये तो आने वाला वक्त ही बतायेगा . चलो - - - तुमसे सहानुभूति और श्रृद्धा वश ही सही - - - किन्तु आज मैं स्वयं को तुम्हारे संरक्षण में , तुम्हारे फैसले पर समर्पित कर रही हूँ - - - आगे तुम्हारी मरजी . मैं जानती हूँ - - - अगर मैनें ऐसा न किया तो औरत जात पर बेवफाई का एक और बेमानी ठप्पा लग जायेगा . "
पायल का प्रस्ताव सुनकर गुलशन को अपने कानों पर पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ . उसे यकीन नहीं हो रहा था कि पायल पके आम सी यूँ अचानक उसकी झोली में टपक पड़ेगी . मगर ज्यों ही एक साथ उसके जिस्म , रूह और एहसास ने भी सुनने की गवाही दी और जब देर तक बिना रुके पायल के समर्पण के शब्द उसके दिमाग में शहनाई की तरह गूंजते रहे तो उसे अपने कानों पर भरोसा करना ही पड़ा . इसी के साथ उसकी नम आँखों के सामने तिरमिरे से नाचने लगे और वो कुछ बोलना भी चाहा , मगर आवाज़ में कम्पन आ गया और ऐसे नाज़ुक मौकों पर जैसा कि अक्सर होता है - - - शब्द जवाब दे गये .
और ऐसे समय पीने वालों को सिगरेट बहुत सहारा देती है . उसने एक सिगरेट मुंह से लगा कर सुलगा ली . इसी के साथ उसका दिमाग कम्प्यूटर की सी तेजी से चलने लगा .
बड़ी अजीब उलझन मुंह बाये खड़ी हो गयी थी गुलशन के सम्मुख . ऐसे हालात - - - जहाँ आवेदक भी वही था और निर्णायक भी वही . एक तरफ आवेदक की सी स्वच्छन्दता और दूसरी ओर निर्णायक की भारी भरकम ज़िम्मेदारी . वह दोनों में कोई तालमेल ही नहीं बैठा पा रहा था . आकांक्षा और उत्तरदायित्व के दो पाटों के बीच स्वयं को फंसा - पिसता अनुभव कर रहा था वह . कहाँ तो विगत कई वर्षों से वह पायल और उसके प्यार को पाने के लिये तड़प रहा था और कहाँ अब जब वह उसे नसीब भी हो रही थी तो बिना प्यार की गारन्टी के - - - उस पर रहम खाकर - - - भीख की तरह . इस हेतु उसने उसी के कन्धों पर फैसले की ज़िम्मेदारी भी डाल दी थी - - - समर्पण सहित उसका संरक्षण स्वीकार करके . वह सोच रहा था कि यदि वह चंचल के प्यार में डूबी - नहायी पायल की क्षणिक व तात्कालिक अनुकूल भावनाओं का लाभ उठाकर उससे शादी कर भी ले तो क्या इस अनमने बन्धन से उसका वैवाहिक जीवन सुखमय और सफल हो पायेगा . उसका चंचल मन बारम्बार कह रहा था कि वह पायल के द्रवित ह्रदय में अंकुरित सहानुभूति के ज्वार का लाभ उठाकर उससे शादी की हामी भर दे किन्तु उसकी सत्यवादी आत्मा इन विशेष परिस्थितियों में उसे ऐसा करने से रोक रही थी . और जैसा कि संस्कारवान लोगों में प्रायः होता है - - - मन और आत्मा के द्वंद्व में आत्मा की आवाज़ विजयी रही . इस रीति विशेष से जीतने की अपेक्षा हारने को उसके विवेक ने अधिक श्रेयस्कर समझा .
और उधर !
सुलग कर क्षीण होती सिगरेट के साथ - साथ गुलशन के निर्णय हेतु बेचैनी से प्रतीक्षारत पायल का धैर्य भी समाप्त होता जा रहा था . गुलशन की आकाश से भी लम्बी लगती खामोशी के मध्य उसके उत्सुक कानों से जब और अधिक बर्दाश्त न हुआ तो उसके धड़ - धड़ धड़कते दिल ने डरे - दबे पाँव जबान पर आकर गुलशन से जिज्ञासा प्रकट की -- " क्या फैसला रचा तुमने ? किस विधि लिखी मेरी तकदीर ? "
" हँ हं ! " गुलशन ने संतोष से लबालब मंद मुस्कान बिखेर कर कहा -- " हम कौन होते हैं किसी की तकदीर लिखने वाले ! ईश्वर का लिखा भला कोई पलट सका है !!हम तो अधिक से अधिक उसे बांचने का अधकचरा प्रयास भर कर सकते हैं . "
" फिर भी - - - क्या बाँचा ? मैं भी तो कुछ सुनूँ . " उसके शरीर का एक - एक रोम - कूप कान बनकर सुनने को चौकन्ना हो गया .
गुलशन परिपक्वों की तरह बोला -- " पायल ! जिस घड़ी तुमने परम विश्वास से मुझे अपना संरक्षक कहकर निर्णय का अधिकार भी मुझे ही सौंप दिया , उसी पल मुझ पर यह जिम्मेदारी स्वतः नियत हो गयी थी कि मैं खुद से ऊपर उठकर तुम्हारे हितों को सर्वोपरि रखूँ ."
" गुलशन ! यूँ पहेलियाँ न बुझाओ . ज़रा जल्दी स्पष्ट कहो - - - मुझे करना क्या होगा ? "
" करना क्या है - - - तुम्हारी व चंचल की शादी के जो कार्ड छपे हैं - - - उन्हें जल्द से जल्द बांटना भर होगा . " उसने बुजुर्गों की तरह पायल के सिर पर हाथ सहलाकर पूछा -- " समझी कि नहीं ? ''
पायल आश्चर्य मिश्रित ख़ुशी से आँखें नम करके रुंधे कंठ से बोली -- " समझी ! खूब समझी . "
" पगली ! क्या समझी ? "
" यही - - - कि अब तक मैं ये समझती थी कि केवल ऐफिल टॉवर ही बहुत ऊँचा है - - - किन्तु आज तुम्हें और भी ठीक से समझने के बाद समझी कि अब तक मैं गलत समझती थी . " इतना कहकर उसने अपने पांवों के पंजों पर खूब तनकर बड़ी मुश्किल से गुलशन के चौड़े बुलंद मस्तक को श्रृद्धा वश चूम लिया . न जाने आज क्यों उसे गुलशन का कद कुछ बढ़ा - बढ़ा सा लग रहा था .
" चहचहाकर पायल पुनः बोली -- " अच्छा - - - अब मैं चलती हूँ . मुझे अपनी एक सहेली को कार्ड देने जाना है . अभी तो जल्दी है . अगली बार जब मिलूंगी - - - तो बड़े अधिकार पूर्वक तुम्हारे वास्ते भी दो गाँठ हल्दी का प्रबन्ध करने का प्रयास करूंगी . तुम पर दबाव बनाकर . तुम्हें राजी करके . तुम्हारी तन्हाई की दवा की खातिर . किसी सुशीला के साथ तुम्हें गृहस्थी में जकड़ने के लिये . जिससे तुम्हें मेरी छाया से भी मुक्त होने में आसानी रहे . " इसी के साथ - - - गुज़रे ग्रहण के पश्चात भय मुक्त होकर नीड़ से बाहर उजाले में निकले पँछी की भांति वह फुर्र से कमरे के बाहर उड़ - सी गयी . और - - - और उसकी प्रसन्नता को आँखों से नापकर , स्वयं को अपनी उम्र से बड़ा अनुभव करते गुलशन ने यह सोचकर मुस्कान भरी संतोष की एक गहरी सांस ली - - - कि जोड़े निश्चित ही ऊपर से तय होकर नीचे आते हैं . व्यक्ति तो बस अपने तय जोड़ीदार की तलाश में तब तक भटकता है , जब तक वह मिल नहीं जाता .

[19]
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Old 05-02-2012, 10:20 PM   #22
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( अशुभ - 1 3 )

यूँ तो दूंढ - ढूंढ कर लड़कियाँ ताकना सदैव उनका प्रिय शगल था किन्तु इन दिनों ये उनका कुत्सित मनोरंजन नहीं बल्कि भय जन्य विवशता थी . हाँ - - - दो दिनों से पायल की तलाश में लल्लू - कल्लू शहर के गली - कूचों की ख़ाक छान रहे थे - - - मगर पायल तो क्या - - - उसका साया भी उनकी दूरबीन सी आँखों को नसीब नहीं हुआ था . उन्हें इसका डर था कि यदि आज भी वो लोग पायल को न पा सके तो जालिम सेठ उनके साथ न जाने कैसा सलूक करे . दोनों ने कार को सड़क किनारे लगा रखा था और वो सिगरेट फूंक - फूंक कर हर राहगीर मादा चेहरे की तुलना जेब में रखी और आँखों में बसी तस्वीर से कर रहे थे .
और तभी !
लल्लू अपनी ओर आती हुई एक लड़की को देख कर चौंक पड़ा . उसने जल्दी से जेब में रखी फोटो निकाली और लड़की के चेहरे से मिलायी . हाँ - - - आने वाली पायल ही थी .
ख़ुशी के मारे स्प्रिंग सा उछल कर लल्लू कल्लू से बोला -- " देख तो प्यारे ! छोकरी मिल गयी .
कल्लू ने उसकी बात को मज़ाक समझकर दूसरी तरफ ही देखते हुए जवाब दिया -- " हुँह - - - इतना आसान नहीं है , नौकरी और छोकरी का मिल जाना . "
" नहीं यार ! तेरी बहन की कसम . सच कहता हूँ . वो - - - उधर देख तो सही . "
" अबे - - - साले ! काट के धर दूँगा . तू होश में तो है ! कहाँ ? " अब वो भी गंभीर हो गया .
" वो देख - - - वो . वो इधर ही चली आ रही है , बसन्ती साड़ी पहने . "
" हाँ यार ! है तो वही . बिल्कुल वही . लगता है - - - गदराया बसन्ती सरसों का समूचा खेत ही खुद चलकर चला आ रहा है , सांड़ सेठ के चरने के खातिर . "
" क्या बात है , क्या हुस्न है ! " लल्लू होठों पर कामुक जबान फेरकर बुदबुदाया .
" हाँ प्यारे ! माल फुल्ली फ्रेस है और अधपका हुआ है . ना तो कच्चा है और ना ही ज्यादा पका हुआ है . "
" वाह - - - क्या कहने , कुछ ना पूछो . लगता है - - - अभी - अभी कसी चोली फट जायेगी और उसमें कसमसाते जवान पंक्षी फुर्र से हवा में उड़ जायेंगे . बिल्कुल असल मामला है , असल . आजकल की तरह नहीं कि ऊपर मचाये बम्पर शोर , अन्दर निकले बिल्कुल बोर . "
" यार ! गारन्टी से कह सकता हूँ - - - अभी बीस बसन्त ही देखी है . "
" हाँ - हाँ ! तुझे क्यों न मालूम होगी उसकी उम्र !! जैसे हर साल उससे राखी ही तो बंधवाता रहा है तू . " लल्लू ने हंसकर कल्लू की चुटकी ली .
" साले ! बहन बनाता है . " कल्लू झेंप गया और खिसियानी हंसी हंसने के बाद अचानक गंभीर होकर बोला -- " यार ! सच पूछो तो मुझे तो दया आ रही है इस कमसिन हसीना पर . मन नहीं करता , इसे उस भैंसे के लिये उड़ाने का . साला अच्छे - भले भूगोल को रौंद कर इतिहास बना देगा . "
लल्लू ने समझाया -- " अबे - - - मन में पनपे दया के बीज को फ़ौरन मसल दे , वरना मारा जाएगा . बेटे ! बदमाश और दया का पुराना बैर है . शरीफ बनने की कोशिश की तो मंहगी पड़ेगी . साले सेठ की नज़र टेढ़ी हुई तो हमें उसकी मूंछ के बाल से नाक का बाल बनते देर न लगेगी और फिर वो अपुन को मंदिर के घंटे की तरह पीट - बजा कर हड्डियों तक का सुरमा बना देगा . याद रख - - - दुनिया शरीफ को बदमाश बनने के तो हज़ार मौके देती है मगर बदमाश को शरीफ बनने का एक भी नहीं . और फिर - - - सेठ का हुक्म नहीं बजायेगा , तो खायेगा क्या ? "
" - - - - - - . " कल्लू चुप रहा .
लल्लू पुनः बोला -- " जा ! जाकर शिकार पर जाल डाल . "
इन दोनों के नापाक इरादों से बेखबर , पायल हाथों में शादी का कार्ड लिये एक सहेली को देने जा रही थी .
जब वह इनकी कार के नज़दीक पहुंची , तो कल्लू उससे बड़े अदब से बोला -- " बहन जी ! जरा सुनिए तो . "
" कहिये ! " पायल अपनी बदकिस्मती के एकदम समीप आ गयी .
और तभी - - - -पीछे से कल्लू ने उसकी नाक पर क्लोरोफार्म से भीगा रूमाल रखकर उसे कार में ढकेल दिया .
कल्लू लपक कर कार चलाने लगा . उसे चन्दन की लकड़ी चील के घोसले तक पहुंचाने की जल्दी जो थी .


[20]
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( 1 4 )

होश में आने पर पायल ने स्वयं को एक कमरे में पाया . वो पलंग पर पड़ी थी . उसका सिर पीड़ा से फटा जा रहा था , जैसा कि क्लोरोफार्म का नशा टूटने पर प्रायः होता है . उसने गर्दन घुमा कर खोजी नज़रों से चारों तरफ देखा . कमरे की सभी खिड़कियाँ बन्द थीं . दरवाज़ा भी . वह सोचने लगी कि यहाँ तक वो कैसे आयी . तभी कोई आवाज़ सुनकर उसका ध्यान दरवाज़े की तरफ गया . आवाज़ दरवाज़ा खुलने की ही थी .
दरवाज़ा खुलते ही पायल चौंक पड़ी - - - क्योंकि अन्दर आने वाला व्यक्ति सेठ करोड़ी मल था . उसे देखते ही पायल का सम्पूर्ण शरीर डरे हुए कबूतर की भाँति काँप उठा . दरवाज़ा बन्द करके सेठ ने भीतर से चिटकनी चढ़ा दी और फिर वो पायल की ओर मुड़ा .
उसने पायल की ओर पहला कदम बढ़ाया , तो उसकी आँखों से शराब झाँक रही थी .
उसने पायल की ओर दूसरा कदम बढ़ाया , तो उसकी आँखों से एक अजीब सी भूख झाँक रही थी . दुनिया की सबसे पुरानी भूख , जो कभी नहीं मरती .
उसने पायल की ओर तीसरा कदम बढ़ाया , तो उसकी आँखों में डरावनी कहानियों के क्रूर खलनायक झाँक रहे थे .
उसने पायल की ओर चौथा कदम बढ़ाया , तो उसकी मरोड़ी मूछों की बड़ी - बड़ी नोकें शराफत के सीने में चुभने को विकल नज़र आ रहीं थीं .
उसने पायल की ओर पांचवां कदम बढ़ाया .
वह पायल की ओर बढ़ता ही रहा .
उसे अपनी ओर बढ़ता देखकर पायल के शरीर में भय की तरंग दौड़ गयी . वह घबड़ाकर पलंग के नीचे कूद गयी .
सेठ ने सड़े हुए अंगूरों के रस में डूबा एक भयानक कहकहा लगाया , जिसकी वजह से उसका पूरा शरीर कम्पन करने लगा .
अचानक वह शांत होकर बोला -- " आखिर मिल ही गयी ! मिलती क्यों न !! हमने तुम्हारी खोज में कुओं तक में बांस जो डलवा दिए थे . कहाँ - कहाँ नहीं ढूँढा तुम्हें . "
इस वक्त सेठ पायल को मौत का परमिट काटने वाला जिन्न मालूम दे रहा था . उसने डरते - डरते पूछा -- " मुझे क्यों कैद किया है ? आखिर तुम्हें मुझसे क्या चाहिये ? "
" आय - - - हाय - - - हाय ! " सेठ बेशर्मी से बोला -- " मेरी जान !! अब तुम इतनी बच्ची भी नहीं रही कि तुम्हें दूध का रंग बताया जाय . सृष्टि की शुरुवात से लेकर आज तक एकान्त में एक मर्द जवान औरत से क्या चाहता रहा है ? तुम अच्छी तरह जानती हो कि मुझे तुमसे क्या चाहिये . इजाज़त हो तो बत्ती बुझा दूं ! तुम्हें भी सुविधा रहेगी और देश में बिजली की भी कुछ बचत हो जायेगी . कहो गुलबदन ! क्या इरादा है ? "
" नहीं s s s . " वह कानों पर हाथ लगाकर क्रोध में चीखी . सेठ के शब्द उसे ऐसे लगे जैसे किसी ने खौलता हुआ शीशा उसके कानों में उड़ेल दिया हो .
सेठ कुत्सित मुस्कान के साथ बोला -- " वा s s वाह ! जाने जाँ !! गुस्से में तो और भी क़यामत ढा रहा है तुम्हारा रूप . और किस - किस को क़त्ल करने का इरादा है ? नज़दीक आ जाओ मेरे . भूस में अँगार गिराकर दूर क्यों खड़ी हो ? " उसके भीतर वासना गरजने लगी - तरजने लगी .
उसने आगे बढ़कर ठीक उसी तरह झटक कर पायल को अपनी बाहों में ले लिया , जिस तरह से कोई बाज़ किसी मासूम चिड़िया को झपट लेता है .
" कमीने . " वह कसमसाई और एक झापड़ कामांध सेठ के गाल पर मार कर उसे झटका दिया . सेठ की पकड़ ढीली हो गयी . वह उसकी गिरफ्त से निकलकर दूर हो गयी , जैसे दाढ़ों के बीच भिंचा हुआ ग्रास फिसल जाये . चोट खाकर सेठ गुर्राया . उस कुत्ते की तरह , जिसे हड्डी के टुकड़े को सामने देखकर घिनौने ढंग से गुर्राने की आदत होती है .
वह बोला -- " ज्यादा चालाक बनने की कोशिश मत करो . मैंने ज़िन्दगी भर आदमी ही चराये हैं , जानवर नहीं . "
इसी के साथ - - - उसने लपककर पायल की साड़ी का एक छोर पकड़ लिया . वह अपनी कलाई लगातार घुमाकर साड़ी को अपने हाथ पर लपेटने लगा . उसकी लार से सनी जबान उसके होठों पर तेजी से फिर रही थी .
" कमीने - - - मैं तेरा खून पी जाऊंगी . " पायल ने चीखकर कहा .
साथ ही वह घूमने लगी , ताकि सेठ की पकड़ में न आ सके . इसी प्रयास में उसकी साड़ी , जो कि द्रोपदी कि चीर नहीं थी , पूरी तरह खुलकर गुलाबी - गोरे बदन से अलग हो गयी . वह ओट तलाशने दीवार की तरफ भागी . उसे ऐसा लग रहा था , जैसे वह किसी हिंसक पशु की मांद में दाखिल हो गई है .
अपनी दशा देखकर वह गिड़गिड़ाने लगी -- " मुझ पर दया करो . देखो ! मुझे अपवित्र मत करो . "
सेठ ने तेज़ कहकहा छोड़कर कहा -- " अच्छा - - - तो तुम अभी तक पवित्र हो ? क्या कहने मेरी सरकार के . घर से भागकर - - - न जाने किस - किस घाट का पानी पीकर आयी होगी और चली हो पवित्र बनने . बिना डकारे सौ - सौ चूहे खाकर बिल्लो रानी हज को जा रही हैं . हा - - हा - - हा . " सेठ की आँखें नशे में लाल हो रहीं थीं . वह बोलता रहा -- " हरामजादी ! पिछली बार तू स्टूल से मेरा सिर फोड़कर भागी थी . आज मैं तेरी किस्मत ही फोड़ दूंगा . साली ! तुझे तबले की थाप और सारंगी की झंकार के बीच न पहुंचा दिया , तो मेरा नाम सेठ करोड़ीमल नहीं . तुझे तो आज की रात मैं वो बनाकर छोडूंगा , जो रुपयों से गर्म बिस्तर पर पराये मर्दों से लापता बाप वाले पुत्तर पाती हैं . "
" मैं तेरी इच्छा कभी न पूरी होने दूँगी . मैंने अपनी इज्जत तुम जैसे कमीनों के लिए सहेज कर नहीं रखी है . "
" ससुरी - - - इज्जत वाली बनती है . आवारा शराबी भडुवे अंकल के साए में वर्षों रही लौंडिया बदचलन न होगी क्या ? "
" तू समझता है कि बांस के वंश में सब बांस ही रहते हैं . ये क्यों भूलता है कि जिस बांस कि लाठी बनती है , उसी बाँस की पवित्र बाँसुरी भी बनती है . "
" और आज वही बाँसुरी मैं बजाऊंगा . जी भरकर बजाऊंगा . सारे सुर निकालूँगा . कोई राग नहीं छोडूंगा . रात भर बजाऊंगा . हा - - हा - - हा . " सेठ अपने भद्दे दांतों का प्रदर्शन करते हुए हंसा .
इसके तुरन्त बाद उसने पायल पर चीते सी छलांग लगाकर उसे अपनी बाहों के घेरे में ले लिया .
पायल उसकी बाहों में फंसी हिरनी की भाँति तड़पने लगी . सेठ के हांथों की हरकत से ' चर्र s s s ' की एक आवाज़ हुई और उसका ब्लाउज फट गया . उसकी सुडौल गोरी देह का कुछ हिस्सा बेपर्दा होकर सेठ को ललचाने लगा .
वह कसमसाई -- " मुझे छोड़ दे कमीने . "
सेठ बोला -- " कैसे छोड़ दूं ! अभी तो तुम्हारे फूल जैसे शरीर को मसला भी नहीं है . "
" मैं - - - मैं कहती हूँ , जाने दे मुझे . "
" कहाँ जाओगी जान ! सेठ करोड़ी मल को जो माल पसन्द आ जाता है , वो एक रात उसका बिस्तर जरूर गर्म करता है . "
पायल सिसकने लगी . वह हिम्मत हारने लगी थी .
मगर सेठ ढिठाई से तर कहकहे छोड़ता रहा और कहता रहा -- " वाह - - - क्या बात है ! बिल्कुल पटाखा लग रही हो - - - पटाखा . आज की रात तुम्हारे रूप और जवानी की आतिशबाजी हमारे दिल में जगमगायेगी . "
पायल कमरे में रखी मेज़ से टकरा गयी . अपना सन्तुलन कायम न रख पाने के कारण वह पीठ के बल फर्श पर गिर पड़ी . सेठ भी उसी के ऊपर लड़खड़ाकर ढेर हो गया . सेठ का बोझ बर्दाश्त न कर पाने के कारण वह चीखने लगी .
" मुझे छोड़ दे कमीने - - - वर्ना मैं चीख - चीख कर भीड़ इकट्ठी कर लूंगी ."
" हा - - हा - - हा . " सेठ हँसा -- " चीखो ! जी भर कर चीखो . मेरी जान , ऐसे ही ख़ास कामों के लिए बना ये ख़ास कमरा - - - एक पूँजीपति , सेठ करोड़ीमल का है . इसीलिये इसका दरवाजा भी काफी समझदार है . से सिक्कों की खनक तो बाहर जाने देता है मगर अबला की सिसक को भीतर ही कैद कर लेता है . जानेमन ! कमरा साउण्ड - प्रूफ है . तुम्हारी चीखें दीवारों से टकराकर दम तोड़ देंगी . "
" उफ़ - - - कुत्ते . "
" चलो मैं कुत्ता ही सही मेरी जान , मगर तुम भी तो लावारिस दोना ही हो . लावारिस दोने में तो कोई भी कुत्ता मुंह मार सकता है . "
सेठ पायल के शरीर के चारों तरफ पड़े हुए अपनी बाहों के घेरे को तंग करने लगा . उसकी बाहों में कैद पायल फड़फड़ाती रही - - - जैसे कसाई के हाथ में जकड़ी हुई मुर्गी , जैसे शेर के पंजे में कसमसाती हुई हिरनी , जैसे बगुले की चोंच में तड़पती हुई मछली .
तभी उसके मस्तिष्क - पटल पर कोई विचार बिजली की तरह कौंध गया . उसने भरपूर ताकत से सेठ की कलाई में अपने दांत गड़ा दिये . सेठ की कलाई लहूलुहान हो गयी . पायल ने भी अपने मुंह में खून का स्वाद अनुभव किया . दर्द के कारण सेठ बिलबिला रहा था . उसकी पकड़ ढीली पड़ गयी . पायल ने मौके का पूरा फायदा उठाया . वह पाप की बाहों से छिटक कर दूर जा खड़ी हुई .
तभी निराशा के काले बादलों के बीच आशा रुपी बिजली चमकी . उसकी आँखों में अलमारी पर धरी फलों की टोकरी में रखा चाक़ू लपलपा उठा . उसने लपक कर चाकू उठा लिया .
" अब अगर एक भी कदम आगे बढ़ाया , तो मैं ये चाकू तेरे दिल में घुसेड़ दूँगी . " वह साहस बटोर कर बोली .
सेठ अब तक स्वयं को संतुलित कर चुका था . पायल के हाथ में फनफनाता चाकू देखकर पहले तो वह कुछ अचकचाया , मगर फिर हिम्मत जुटा , कृतिम मुस्कान बिखेरते हुए बोला -- " ज़ालिम ! जिस दिल में तुम उतर चुकी हो - - - चाहो तो उसमे चाक़ू भी उतार दो . मगर ज़रा अपना ख्याल करके वार करना - - - क्योंकि मेरे दिल में तुम भी छुपी बैठी हो . चोट खा जाओगी . "
इतना कहकर वह पायल की ओर बड़ी सावधानी पूर्वक बढ़ने लगा . सेठ को अपनी तरफ बढ़ता देखकर पायल ने अत्यधिक फुर्ती दिखाते हुए उसके रीति कालीन दिल पर वीर कालीन वार करना चाहा . मगर पुराना खिलंदड़ सेठ उससे भी ज्यादा फुर्तीला साबित हुआ . वह बिजली की सी तेजी से अपनी जगह छोड़कर बगल को हट गया और साथ ही साथ उसने एक हाथ में पायल की चाकू वाली कलाई थामकर मरोड़ दी और चाकू छीनकर अपनी जेब के हवाले करके दूसरा हाथ उसकी कमर में डालकर उसे अपनी तरफ घसीट लिया .
वह दांत किटकिटाकर बोला --" साली ! हम शिकारपुर में नहीं बसते , जो तेरा शिकार हो जायें . समझ ले ! अब अगर नखरे दिखाये , तो ऐसे करारे तीन हाथ मारूंगा कि छः का पहाड़ा पढ़ती नज़र आयेगी . सुन ! विश्वामित्र ने भी अकाल में कुत्ते का मांस स्वीकार किया था . तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम मेरे सामने आत्म समर्पण कर दो , वर्ना मारकर जंगल में फिंकवा दूंगा , जहां मुझसे भी खतरनाक जानवरों की भूख मिटाओगी . "
पायल ने धमकी दी -- " तुम्हारे चंगुल से निकलते ही मैं तुम्हारे खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट लिखवा दूँगी . तुम पकडे जाओगे . "
धमकी बेअसर साबित हुई .
सेठ लापरवाही भरे अंदाज़ में बोला -- " नहीं - - - नहीं . तुम मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती - - - क्योंकि मेरी जेब चुस्त और ताल्लुकात दुरुस्त हैं . वैसे भी कई लम्बी नाक वालों की नाक मेरे पास गिरवी रखी है . मेरे गिरफ्तार होते ही उनके बीच नाक - संकट उत्पन्न हो जायेगा और वो मुझे इस संकट से उबार लेंगे . और फिर - - - तुम्हें अपनी बदनामी का ख्याल भी तो - - - . "
सेठ अपनी ही शान में कसीदे पढ़ता जा रहा था , मगर पायल अनुभव कर रही थी कि सेठ की पकड़ कुछ ढीली पड़ती जा रही थी .
पायल ने बचाव का आखिरी उपाय करने का फैसला किया . उसने सेठ की दोनों जाँघों के बीच की नाज़ुक मगर ख़ुराफ़ात की जड़ पर भरपूर ताकत से एक लात जड़ दी . यह सोचकर कि न रहेगा बाँस , न बजेगी बाँसुरी .
सेठ दर्द से बिलबिला उठा . वह पायल को छोड़ , चोट खाए अंग को पकड़कर बैठ गया .
मौका अच्छा देखकर पायल दरवाजे की तरफ भागी . दरवाजे के पास पहुंचकर उसने चिटकनी गिराकर दरवाजा खोलना चाहा . मगर निष्ठुर दरवाजा न खुला . वह समझ गयी कि उसकी किस्मत के सारे दरवाजे अब बन्द हो चुके हैं . आखिरी उम्मीद भी दम तोड़ बैठी . वह मुड़कर सेठ की तरफ कातर दृष्टि से देखने लगी . बिल्कुल वैसे ही , जैसे कोई पस्त शिकार चारों तरफ से घिरकर बेबसी से क्रूर शिकारी को निहारता है .
उसे पूरी तरह बेबस देखकर सेठ विजयी कहकहा लगाने लगा -- " बिल्ली आखिरी एक दांव अपने लिए भी बचाकर रखती है मेरी जान . मेरे आदमियों ने दरवाज़ा बाहर से बन्द कर रखा है . वैसे भी हम अपने मंदिर में आने वाले किसी भी व्यक्ति को बिना चरणामृत लिये नहीं जाने देते . अब बोलो ! क्या इरादा है ? " उसका स्वर जीते हुए खिलाड़ी की तरह दृढ़ था .
पायल को महसूस हुआ , जैसे उसके दिमाग में सैकड़ों पंखे चल रहे हैं . उसका शरीर सूखे पत्ते की भाँति काँप गया , सर चकराने लगा , पिंडलियाँ थर्रा उठीं और दिल मुहर्रम के ढोल की तरह बजने लगा . वह जहाँ खड़ी थी , वहीँ ढह गयी .
सेठ ने आगे बढ़कर उसे अपनी बाहों में उठाकर पलंग पर पटक दिया . उसके सुन्न शरीर और पराजित मस्तिष्क में प्रतिरोध की शक्ति समाप्त हो चुकी थी .
और फिर !
इसके बाद पक्षाघात से पीड़ित सरीखी पायल ने महसूस किया , जैसे उसके ऊपर कोई भूखा चमगादड़ पँख बिखराकर लिपटा हुआ है , जो थोड़ी ही देर में अपनी नुकीली जीभ से उसका खून चूसकर अपनी भूख मिटा लेगा .
पायल की आँखों से बेबस सितारे टूट - टूट कर तकिया भिगोने लगे . वह गरीब - लाचार की आशाओं की तरह सिसकियाँ लेती रही , कराहती रही - - - शायद कुछ बोली भी , मगर आवाज़ जगह - जगह से दरक गई और उसके निर्बल बोल सेठ के ऊपर से इस तरह लुढ़कते रहे , जैसे किसी चिकने पत्थर से पानी फिसल रहा हो -- बेअसर . सचमुच वो पत्थर - दिल था . पिघल जाना जिसकी शान के खिलाफ था .
विवश पायल को अचानक ऐसा लगा , जैसे किसी विशाल अज़गर ने उसे डस लिया हो . दर्द से दरक कर उसकी तेज़ चीख निकल पड़ी . बावज़ूद इसके , वह अज़गर सदृश सेठ की गिरफ्त में फँसी अपने जिस्म की हड्डियाँ तुड़वाती रही . उसकी दयनीय दशा से बोझल पलंग लगातार कराहता रहा .
एक , दो , तीन , चार , पांच , छः - - - - - - और बारह .
दीवार घड़ी के घन्टे ने अपनी समस्त संचित ऊर्जा का उपयोग कर बारहवीं चोट मार कर , जब रात के बारह बजने का ऐलान किया , तो सेठ ने महसूस किया कि अचानक वह काफी हल्का हो गया है .
कुछ ही देर में सब कुछ शान्त हो गया था , जैसे किसी तेज़ आंधी ने लम्बी यात्रा के बाद चुप्पी साध ली हो . अब पायल के पास पड़ा सेठ आँधी से गिरे पेड़ की भाँति निश्चेष्ट पड़ा था और पायल का भीतर - बाहर उस झाड़ी की तरह हिल रहा था , जो तूफ़ान के थपेड़े झेल रही हो .
वो महसूस कर रही थी कि वो एक ऐसा मैदान है , जिस पर की सारी पगडंडियाँ तक मिट गयी हों . एक ऐसी डाल है , जिस पर के सारे फूल झर गये हों , सारे घोसले उजड़ गये हों और जिस पर मनहूस उल्लुओं ने बसेरा कर लिया हो . वह सेठ के लिये अब एक ऐसी किताब थी , जिसका पन्ना - पन्ना सेठ कई बार पढ़ चुका था .
काफी कुछ सोचते रहने के बाद , सब कुछ खो चुकी पायल अपना होश भी खो बैठी .



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( 1 5 )
होश में आने पर पायल को अपना पोर - पोर चूसा हुआ और टूटता अनुभव हुआ . उसने अपने अस्त - व्यस्त कपड़े ढीक किये और फिर घुटनों के बीच सिर डालकर मेले में खो गये किसी बेबस बच्चे की भाँति बैठी सुबकने लगी .
उसकी निस्तेज आँखों से आँसुओं की धार फूट पड़ी और होठ कांपने लगे . वह अनुभव कर रही थी कि आबाद जंगल वीरान हो चुके हैं . पंक्षी डालों पर से उड़ चुके है . झरने सूख गये हैं . बौर लगे पेड़ों को कीड़ा चाट चुका है . अब कुछ नहीं हो सकता -- कुछ भी नहीं .
पायल की ज़िन्दगी की काली रात का उदय हो चुका था . जबकि बाहर सूरज काफी पहले डूब चुका था और सेठ की अपवित्र कोठी के नज़दीक अँधेरे में खिले हुए फूलों की उदास सुगंधों के बीच पवित्र कैथोलिक चर्च का अन्धकार में डूबा ऊँचा मीनार जंग लगे आकाश को छूकर मानों कुछ शिकायत दर्ज करा रहा था .
पायल के बगल में करवट बदलकर निढाल पड़ा सेठ थकान से बोझल डरावने खर्राटे ले रहा था . वो उसे इस तरह डरी हुई नज़रों से देख रही थी , जैसे उसके बगल में कोई भूत लेटा हो . भूत - - - जो उसके भविष्य पर हमेशा सवार रहेगा .
बहुत देर तक विचारों में गुम रहने के बाद , अचानक वो जोर - जोर से सेठ के बदन को पीटने लगी .
पायल के नाज़ुक हाथों की चोट खाकर सेठ की नींद टूट गयी . वो उसके हाथों को झटककर हँसते हुए बोला -- " देखा ! मेरे हाथ कितने लम्बे हैं !! "
" - - - - - - - " पायल चुप रही .
वो कहता रहा -- " मैंने तुम्हारे कुछ फोटो वक्त - ज़रुरत के लिये चुपके से खिंचवा लिये हैं - - - और ये तो तुम समझ ही सकती हो कि आज की काली रात के फोटो कैसे रंगीन होंगे . अब तुम्हारी भलाई इसी में है कि जब भी तुम्हें बुलवा भेजूं - - - बिना चूँ - चपड़ के चली आया करना , वरना इन्हें छपवाकर शहर की दीवारों पर सजवा दूंगा -- तुम्हारी इज्ज़त में चार चाँद लगवाने की ख़ातिर . "
सुनकर सन्न हुई पायल पत्थर के बुत की तरह बैठी रही .
सेठ बोला -- " अब तुम जा सकती हो . "
वो पूर्ववत रही .
सेठ चीखा -- " सुना नहीं ! अब फूटती हो - - - या सारे सबक आज ही सिखाऊँ ? "
सुनकर सिहर उठी पायल उठकर दरवाजे के बाहर हो ली . चलते समय उसके मन को अपने कांपते पाँव मन - मन भर के महसूस हो रहे थे .



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Old 05-02-2012, 10:26 PM   #25
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( 1 6 )
आज पहली बार !
प्रोफ़ेसर साहब के पूरे घर में उदासी और बेचैनी पसरी पड़ी थी . क्योंकि पायल सुबह की गई , अभी तक वापस न आयी थी . सभी का उदास और बेचैन होना स्वाभाविक था - - - क्योकि पालतू जीव तक के खो जाने पर भी परिवार को दुःख होता है - - - जबकि पायल तो अब इस घर की सदस्य सी बन गयी थी और कुछ ही दिनों में बहू बनने वाली थी .
प्रोफ़ेसर साहब बेचैनी और बेबसी से इधर - उधर घूम रहे थे . गेसू हर आहट पर बार - बार दरवाज़े की तरफ देखती थी कि कहीं पायल तो नहीं . और शहर की कौन सी ऐसी जगह बची थी जहाँ चंचल ने पायल की चप्पा - चप्पा तलाश न की हो . वह उन दूर - दराज़ की गलियों तक की ख़ाक छान आया था , जहाँ इससे पहले वह कभी नहीं गया था . पायल के गुम हो जाने का गम उसे दीमक की तरह चाटे जा रहा था . उसका दिल किसी अमंगल के बोझ तले बैठा जा रहा था . उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे , क्या न करे . एक वाक्य में - - - एक गंभीर उदासी और बेचैनी का बादल पूरे घर के मन - आँगन में मूसलाधार बरस रहा था .
यहाँ तक कि प्रोफ़ेसर साहब की घरेलू नौकरानी रधिया भी एक कोने में बैठी आंसू बहा रही थी . पायल के लापता हो जाने का उसे भी बहुत अफ़सोस था - - - क्योंकि घरेलू नौकर - नौकरानी जब काफी पुराने हो जाते हैं , तो परिवार के सदस्य सरीखे बन जाते हैं . उस घर पर उनके कुछ अधिकार ठहरते हैं - - - और वो अधिकार ही ऐसा बंधन बन जाते हैं कि उसी परिवार में उनकी पूरी ज़िन्दगी बीत जाती है . वो परिवार के सुख में सुखी और दुःख में दुखी होते हैं . इसीलिए इस दुःख की बेला में रधिया का आंसू बहाना स्वाभाविक ही था .
घर में लगे विद्दयुत बल्ब वोल्टेज कम हो जाने के कारण बहुत धीमी , मातमी व बीमार रौशनी दे रहे थे - - - और उससे भी ज्यादा बीमार प्रोफ़ेसर - परिवार अपने को अनुभव कर रहा था .
गुलशन को भी गेसू ने खबर कर दी थी . वो भी आ गया था . उसे बताया गया था कि जब से पायल उसके व अपनी सहेली के घर अपनी शादी का निमंत्रण - पत्र देने निकली थी , नहीं लौटी थी .
आखिर इतनी देर तो लगेगी नहीं , इस काम में . और फिर - - - बिना बताये आज तक वो कभी कहीं रुकी भी नहीं थी .
दो बज गए थे रात के .
धीरे - धीरे दो बजे का समय तीन में बदल गया , जो एक युग से लम्बा बीता और दीवार घड़ी ने तीन आवाजें कीं .
घबराहट और बेचैनी के कारण गुलशन कमरे में इधर - उधर चक्कर काट रहा था और अपनी बायीं हथेली पर रह - रह कर दायाँ मुक्का दे मारता था . वह तय नहीं कर पा रहा था कि पायल किसी दुर्घटना का शिकार हो गयी या फिर - - - .
और तभी !
हाँ - - - ठीक उसी समय लुटी - पिटी सी काया लिये पायल ने सिर झुकाये हुए कमरे में प्रवेश किया . उसके प्रवेश के साथ ही सबकी समस्त इन्द्रियां आँख बन गयीं . उसके बाल बिखरे हुए थे , वस्त्र अस्त - व्यस्त और चेहरा निस्तेज था . कपड़ों पर सिलवटों से लिखी इबारत साफ़ पढ़ी जा सकती थी .
पायल की दशा देखकर सभी हक्के - बक्के रह गये और उनकी पथराई आँखों ने आंसुओं से उसकी अगवानी की .
पायल उन लोगों से नज़रें मिलाने में झिझक रही थी . उसका मन चाह रहा था कि वह किसी दीवार के छेद में चींटी बनकर घुस जाये . किसी को चेहरा न दिखाये . बड़ी विषम परिस्थिति थी उसकी , जिसमे दोष किसी का होता है और मुंह कोई और चुराता है .
पिटी हुई गोटियों सा मुंह लिये पायल को सामने देखकर सभी ने आधे चैन की सांस ली .
प्रोफ़ेसर साहब लपककर उसके नज़दीक पहुंचे और उसको अपनी बाहों में लेकर उसकी पीठ सहलाकर पूछने लगे -- " क्या बात है बेटी ? कैसे देर हुई ? "
" - - - - - - - . " वो चुप रही .
" बोलती क्यों नहीं पायल ! क्या हुआ ? "
एकाएक जैसे बाँध टूट गया . वह भरभरा कर रोते हुए बोली -- " सेठ ने मेरी इज्जत लूट ली . उसने मेरे फोटो भी खींचे . प्रोफ़ेसर साहब ! आदमी क्या हमेशा कुत्ता ही रहेगा और औरत बिस्तर ? "
सभी पर जैसे पहाड़ टूट पड़ा , ये बात सुनकर - -- - और कुछ देर के लिये प्रोफ़ेसर साहब को तो लगा जैसे उनके चेहरे परे ढेर सारी झुर्रियां उभर आयीं हों और वो अचानक बूढ़े हो गये हों .
उन्होंनें पूछा -- " कौन सेठ ? "
" करोड़ी ! सेठ करोड़ीमल . " वह रोती रही .
गुलशन के जबड़े भिंच गये . उसका चेहरा उसकी परेशानी से उपजे किसी संकल्प की कहानी कह रहा था .
किसी ने पायल से अधिक कुछ न पूछा . वैसे अब पूछने को बचा भी क्या था !
पायल प्रोफ़ेसर साहब की बाहों में पड़ी रोती रही और वो केवल उसका सिर सहलाकर मौन सांत्वना देते रहे . उन्होंने उसे रोने से रोकने की कोई कोशिश न की . यह सोचकर - - - कि आंसू यदि बह जाये तो पानी , रह जाये तो जहर .
परिवार पर अचानक गिरी इस गाज से गेसू का दिमाग कुन्द हो गया - - - जबकि चंचल के मन - मस्तिष्क में विभिन्न विचारों के बवंडर उत्पात मचाने लगे .





[23]
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Old 05-02-2012, 10:28 PM   #26
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( 17 )


उस दिन की घटना ने पायल पर बहुत बुरा असर छोड़ा था - - - मगर प्रोफ़ेसर साहब , गुलशन और गेसू की तसल्ली उसे कुछ सामान्य बनने में मदद कर रही थी - - - किन्तु चंचल के तार कुछ बेसुरे से लग रहे थे . तारों का ढीलापन उसे साफ़ महसूस हो रहा था . उसका व्यवहार उसे कुछ बदला - बदला सा लग रहा था . वह उससे कतराने लगा था . भरसक नज़रें चुराने लगा था .
आजकल वह घर में ही पड़ी रहती थी .
एक दिन अनुकूल एकांत मिलने पर उसने चंचल से पूछ ही लिया -- " क्या बात है चंचल ? देखती हूँ - - - आजकल मेरे प्रति तुम्हारा व्यवहार कुछ बदल सा गया है . उपेक्षा बढ़ती ही जा रही है . तुम वो न रहे , जो थे . "
" नहीं ! ऐसी तो कोई बात नहीं ." वह टालने लगा .
" चंचल ! पायल गंभीर होकर बोली -- " औरत अपने प्रति आने वाले प्यार और आकर्षण में भले ही एक बार को भूल कर जाये , लेकिन अपने प्रति होने वाली बेरुखी और उपेक्षा को पहचानने में कभी भी भूल नहीं कर सकती . बोलो ! बताओ - -- - आखिर बात क्या है ? "
" क्या बताऊँ ! कुछ बात हो - - - तब न बोलूँ !! "
" बात तो कुछ है जरूर ! तभी तो , शादी की तारीख सिर पर खड़ी है और तुम चुप मारकर बैठे हो . मुझे तो दाल में कुछ काला नज़र आ रहा है . क्या शादी का इरादा छोड़ दिया है ? '
" यूँ ही समझ लो . " वह पत्थर बन गया .
चंचल ने जो कहा - - - वो पायल के लिये खौलते पानी से कुछ कम न था . छाले - फफोले से पड़ गये उसके दिल पर . चंचल के प्रति उसकी मोतीचूर सी श्रृद्धा जैसे आकाश से अचानक गिरकर चकनाचूर हो गयी . दाल में कुछ काला नहीं - - - बल्कि पूरी दाल ही काली जानकर पायल का दिल किसी बड़ी बाज़ी हारे हुए जुआरी की तरह बैठ गया . उसकी बुद्धि को काठ मार गया . वह चंचल की ओर ऐसी निगाहों से देखने लगी , जिसमे कब्र मुंह फाड़कर दिखायी दे रही थी .
वह आश्चर्य भरी बाणी में बोली -- " क्या कहते हो तुम ! होश में तो हो !! क्या उसी बात को लेकर - - - ? "
" हाँ ! ठीक समझी तुम . "
" पर मेरे सतरंगी सपनों का क्या होगा चंचल ? मेरी रंगीन कल्पनाओं पर क्या गुजरेगी ? मैं तो अपनी बदरंग जिंदगी जी रही थी . वो तुम्ही तो थे , जिसने मेरे जीवन को तितलियों से रंग - ढंग दिये . सपनों , उम्मीदों , आशाओं को पंख पहनाकर उड़ना सिखाया . और अब - - - . " वह मरी आवाज़ में बोली -- " मैंने कभी सोचा भी न था कि अचानक यूँ इतना बड़ा तूफ़ान आएगा , जिसकी काली धूल में घिरकर हमारी दिशायें बदल जायेंगी . हमारे रिश्ते चिटक जायेंगे . और वो कहानी - - - जिसे हम प्यार कि चटक स्याही से लिखा करते थे , अधूरी रह जायेगी . बोलो , चंचल बोलो - - - जवाब दो - - - मेरा कुसूर क्या है - - - मुझे सजा क्यों ? " वह सिसकने लगी .
" - - - - - - " चंचल पत्थर का बुत बना रहा .
वह चंचल का कन्धा हिलाते हुए बोली -- " चंचल ! मेरे अपने चंचल देखो - - - मुझ पर पर रहम करो . मुझ बेसहारा पर तरस खाओ . जीने का उपदेश सुनकर मौत की खांईं में मत ढकेलो . मुझे अपना लो , वर्ना मैं लुट जाऊंगी - - - कहीं की न रहूंगी . आखिर उस घटना में मेरा क्या दोष ? मैंने सहयोग तो नहीं किया था उसमे ! फिर मुझे दण्ड किस बात का ? "
" कुछ भी हो - - - इस तरह , तन की पवित्रता नष्ट होने के बाद लड़की को बीबी बनाने की हिम्मत मुझमे नहीं . पायल मैं समाज भीरू एक साधारण आदमी हूँ . हो सके तो मुझे भूल जाओ . मैं भी कोशिश करूंगा , तुम्हें भूलने की . "
आँख झुकाये , बड़ी कोशिश से इतना कहकर अनमना सा चंचल ज्यों ही कमरे से बाहर निकला , उसका पाँव दरवाजे के किनारे रखे सजावटी गमले से टकरा गया . गमला विश्वास के पात्र की तरह तड़ाक से टूटकर बिखर गया और पायल घूमता माथा पकड़कर बैठने को मजबूर हो गयी .
एक बार फिर , सदा की भांति , आदमी के गुनाह की सजा बेगुनाह औरत को सुनायी गयी थी .

[24]
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( 1 8 )

गमला गिरने की आवाज़ सुनकर , उसी के सहारे रधिया कमरे में लपकी . एक बार तो उसे कमरा विधवा की मांग की तरह सूना नज़र आया - - - मगर फिर हर कोना नज़रों से खंगालने पर कमरे के एक कोने में पायल अचेत नज़र आयी . चेहरे पर पानी के छीटे मारने व गाल थपथपाने के बाद काफी प्रयास से वह उसे होश में ला पायी . होश आते ही पायल उसकी गोद में मुँह डालकर बच्चों की तरह मानो ममता तलाशते हुए रोने लगी . काफी कुछ पहले से ही जान रही रधिया द्वारा कारण पूछने पर पायल ने अपने बोझल मन की गठरी खोल दी .
रधिया ने उसकी पीठ सहलाते हुए दिलासा दी -- " भगवान का शुक्र मनाओ बेटी - - - चंचल ने तुम्हें शादी से पहले छोड़ा है . यह सोचकर सब्र करो कि यदि शादी के बाद ये नौबत आती - - - तब तो तुम कहीं की न रहती . देखना ! अभी तो तुम्हारे सामने ज़िन्दगी के और भी रास्ते खुलेंगे . "
" किन्तु मेरी ज़िन्दगी तो चंचल के इन्कार के साथ ख़त्म हो गयी है . "
" नहीं बेटी ! ऐसा मत कहो . जब तक ज़िन्दा हो - - - ज़िन्दगी ख़त्म नहीं होती . बस - - - हादसों से ठिठक कर कुछ देर थोड़ा ठहरती भर है . गुज़रते वक्त के साथ - - - हादसों के धूमिल पड़ते ही ज़िन्दगी कुछ नये सबक सीख कर फिर से रफ़्तार पकड़ लेती है . "
" मगर मुझे लगता है - - - मैं चंचल के बिना जी न पाऊंगी . "
" हर जान से प्यारे के सदा के लिये बिछड़ने पर पहले - पहल ऐसा ही जान पड़ता है - - - जैसे जान ही चली जायेगी - - - पर बाद में धीरे - धीरे स s s s ब ठीक हो जाता है . पहले सी , वो बात भले ही न रहे ---मगर ज़िन्दगी तो रहती ही है . वैसे भी - - - तुम्हें हो न हो - - - मुझे तो यकीन है कि कुछ ही दिनों में सब ठीक हो जायेगा . जहां तक मैंने समझा है - - - चंचल कुल मिलाकर अच्छा लड़का है . बस - - - ज़माने की छीटा - कशी से थोड़ा सहम गया है . तुम धैर्य पूर्वक प्रतीक्षा करो . देखोगी , कि घुटने पेट की ही तरफ आकर मुड़ते हैं . मेरा मन कहता है - - - बीतता समय निश्चित ही उसे साहस और सद्बुद्धि देगा . और एक बार को यदि ऐसा न भी हुआ , तो भी तुम उसे काफी कुछ भूल तो जाओगी ही . उसके बगैर जीने की आदत पड़ते - पड़ते पड़ ही जायेगी . एक दिन तुम खुद देखोगी कि साधारण सा दिखने वाला इन्सान असाधारण दुखों से भी कैसे पार पा लेता है . "
" इतने बड़े दुःख को सहने के लिये मन भर का मन चाहिये . कहाँ से लाऊँ ! मेरी ज़िन्दगी तो जैसे तूफानों से घिर गयी है . कुछ उपाय नहीं सूझता . "
" जब ज़िन्दगी के सफ़र में कोई तूफ़ान आया हो तो सबसे अच्छा उपाय ये रहता है कि चुपचाप जमकर खड़ी हो जाओ और सही समय की प्रतीक्षा करो . जब तूफ़ान गुज़र जाय तो फिर से अपनी राहें तलाशो . हाँ ! एक उपाय और भी है , दुखों से उबरने का . जब अपने दुःख असह्य हो जाएँ तो अपने से अधिक दुखी लोगों की ज़िन्दगी में झांको . इससे तुम्हें अपने दुःख अपेक्षाकृत हल्के लगने लगेंगे और उन्हें कतरा - कतरा ज़िन्दगी के लिये दुखों से जूझता देखकर तुम्हें जीने की नयी प्रेरणा मिलेगी . और सुनो - - -अगर तुम्हें कभी भी मुझ गरीब के सहारे कि आवश्यकता अनुभव हो तो बिना संकोच मेरे घर चली आना . ये एक दुखी औरत का दूसरी दुखियारी से वादा है कि अगर तुम चाहोगी तो मैं तुम्हारी जवानी की छतरी बन जाऊँगी . शायद इस उम्मीद में कि कभी तुम मेरे बुढ़ापे की लकड़ी बनोगी . "
रधिया की सांत्वना और प्रस्ताव विशेष से कृतज्ञ हुई पायल उसकी ममत्व से लबालब आँखों में झांककर ये महसूस कर रही थी कि आर्थिक रूप से गरीब होने का अर्थ ये कतई नहीं कि व्यक्ति विचारों और भावनाओं से भी गरीब हो .




[25]
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Old 05-02-2012, 10:31 PM   #28
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( 1 9 )

मुस्कराहट - - - पायल के होठों पर अधिक दिन न टिक सकी . चंचल के प्रतिकूल व्यवहार और परिस्थितियों की आंच ने उसकी मुस्कान को पिघलाकर आँखों की राह बह जाने पर मजबूर कर दिया था . वह उड़ती हुई पतंग की तरह सतरंगी अभिलाषा लिये ऊँचे आकाश में मंडरा रही थी , किन्तु बीच में ही डोर टूट जाने के कारण उसे लड़खड़ाकर ज़मीन पर गिर जाना पड़ा था . चंचल उसकी अँधेरी ज़िन्दगी में कुछ समय के लिये जुगनू की तरह चमक कर चला गया था . किन्तु जुगनुओं के चमकने से अँधेरे तो ख़त्म नहीं होते . अब फिर उसका जीवन उस पालकी की तरह था , जो दुल्हन बिना सूनी हो . वह अपने को ऐसी डाल अनुभव कर रही थी , जिसकी रौनक को पतझड़ की नज़र लग गयी हो . पायल ने कभी सोचा भी न था कि चंचल के वियोग का थैला ज़िन्दगी के कंधे पर लटकाकर अब अकेले ही उम्र काटनी होगी . उसे क्या पता था कि धूप - छाँव सी पल छिन बदलती हरज़ाई ज़िन्दगी में एक दिन वो चंचल को ख़्वाबों की तरह खो बैठेगी . अगर वो जानती होती कि आशिक की बेवफाई दर्द की कहानी और आंसुओं का समन्दर होती है , तो वह कभी भी इश्क का गुनगुनापन कलेजे में बसाकर आग पैदा न करती . ऐसी आग ! जो अब उसके भविष्य को जलाने पर तुली है .
ज्यों - ज्यों दिन अपने चौबीस - चौबीस घंटों की बरात लेकर गुज़रते जा रहे थे , त्यों - त्यों पायल व चंचल में फासला बढ़ता ही जरह था . गुज़रते वक्त के साथ पायल की भरी - पूरी बरगद सी देह बाँस बनती जा रही थी . दिनों दिन उसकी हालत भूकंप झेल चुकी पुरानी इमारत की तरह ढहने लगी .
ये संभावना लगभग दम तोड़ रही थी कि चंचल अपना फैसला बदलेगा . उसे लगने लगा था कि अब तो चंचल की यादों को वक्त के ताबूत में बन्द करके ही जीना होगा . उसकी जंग खायी हुई आशा एक मोमबत्ती की तरह गल रही थी , घुट - सिसक रही थी . ऐसा लगता था - - - ससुराल से लांक्षित तिरस्कृता , किसी बेबस की बेटी सी उसकी आशा को क्षय रोग हो गया हो और वह तिल - तिल कर घटती जा रही है - - - और एक दिन अचानक उसका ह्रदय - स्पंदन रुक जाएगा .
वह अपने आशान्वित जीवन को दुखद मोड़ देने का ज़िम्मेदार सेठ करोड़ीमल को मानती थी , जिसने उसकी शहद सी ज़िन्दगी एक ही झटके में नीम कर दी थी . कभी - कभी तो वह उस नर पिशाच का खून तक कर देने की बात सोचती थी . परन्तु वास्तव में वह एक निरीह अबला ही तो थी , जो सोच तो बहुत कुछ सकती थी , पर कर कुछ भी नहीं सकती थी .
वह भली - भाँति जानती थी कि यदि सचमुच ही चंचल ने उससे शादी नहीं की तो वह इस घर में चन्द दिनों की ही मेहमान है . उसे नया ढौर खोजना ही होगा . क्या रधिया की शरण ! लेकिन खुद दूसरों के सहारे पलने वाली कमजोर औरत चाहकर भी उसे किस विधि - बूते पालेगी !! कहीं ऐसा न हो कि उसे सहारा देने के प्रयास में चंचल की नज़र से गिरकर वह खुद बेसहारा - बेकार बन जाये . तब - - - कौन सा होगा नया ठिकाना !
उसकी दिमागी उथल - पुथल में अनेकों अपरिपक्व विचार बारम्बार करवटें ले रहे थे . कभी उसे लगता कि वह आत्महत्या कर ले , तो कभी सोचती कि समाज से बदला ले , जिसने उसे बर्बाद किया है . कहीं का नहीं छोड़ा . तब क्या करे ! कहाँ जाये !!
कोठे पर ?
हाँ ! कोठा ही ठीक रहेगा . सेठ ने भी तो उस अभागी रात यही कहा था कि वो मुझे तबले की थाप और सारंगी की झंकार के बीच पहुँचने को मजबूर कर देगा .
हाँ ! वेश्या बनना ही ठीक है , बदला लेने के लिये . और चारा ही क्या है दूसरा . और फिर - - - एक उसी के फिसल जाने से क्या ! शरीर का व्यापार तो आजकल फैशन की तरह फ़ैल रहा है . जब आबरू संभाले न संभली तो और दूसरा रास्ता भी क्या ! उसे वेश्या बनना ही पड़ेगा - - - क्योंकि उसे अब कोई नहीं अपनायेगा . हाँ ! वो समाज से बदला लेकर रहेगी .
वो ऐसी म्यान बनेगी , जिसमे एक नहीं - - - सैकड़ों तलवारें रहती हैं -- कभी कोई , कभी कोई . वेश्या ! जिसके यहाँ न नाज़ , न नखरा , न चालाकी , न हठ , न जिद - - - . जो गहरी विशाल झील सी उदार व आवेगहीन होती है . जिसके किनारे चाहे लेटो , पियो या उतरकर दस - बीस गोते लगा लो . और शांत झील तेज़ नदी की तरह उठाकर पटकती नहीं . सहज भाव से सब कुछ सह - स्वीकार लेती है .
हाँ ! अब मुझे भी शहर की उन वासनामय गलियों में बसना पड़ेगा , जहाँ हुस्न की बदशक्ल और दर्दनाक गाथाएँ गूँजा करती हैं . हुस्न ! जिसकी जवानी को समय के जालिम थपेड़े बहकने और बिकने पर मजबूर कर देते हैं .
अब मुझे भी कोठे की साँच की आँच में शेष उम्र स्वाहा करनी पड़ेगी . कोठा ! जहाँ मसली हुई कलियाँ झुर्री पड़े गालों पर खुशबूदार खड़िया की पर्त पोतकर पीतल पर सोने का मुलम्मा चढ़ाती हैं . और फिर - - - फिर मर्द धोखा खा जाता है . कोठा ! जहां रूप का हाट सजता है - - - यौवन की बिक्री होती है . जहाँ मर्द - - - जो किसी का बेटा था , किसी का भाई था - - - औरत - - - जो किसी की माँ थी , किसी की बहन थी - - - दोनों अपने - अपने रिश्तों को भूल जाते हैं . उन्हें याद रहती हैं तो सिर्फ वासनामय गर्म साँसें .
अब मैं उन दहकती हुई गलियों में बसूँगी , जहां मेरे हमदम , मेरे यार , मेरी मरी हुई आरजूओं से बेखबर मजनूँ , मेरी कमसिन उम्र पर नज़र डालेंगे . लिपस्टिक से पुते मेरे मधुमय होठों को निहारेंगे और फिर अप्सरा से मेरे रूप की चकाचौंध में उनका ईमान डगमगा जाएगा . वो मेरे हुस्न की आँच में पसीज कर मुझे अपनी विकल बाहों में लेने के लिये बेकरार हो जायेंगे .
मैं महकते कृतिम सौन्दर्य प्रसाधनों से युक्त ऐसी दहकती नारी बनूंगी , जो समूचे समाज में आग लगा देगी . मैं समाज का ऐसा कोढ़ हूँ , जिसे समाज ने ही कोढ़ी बना दिया है - - - लेकिन मैं पूरे समाज को ही कोढ़ी बना डालूंगी . जिस समाज ने मुझे बर्बाद किया है , मैं उसे भरसक नेस्त नाबूद करके ही दम लूँगी .
अगर मैंने ऐसा न किया , तो राह चलते आवारा कामी कुत्ते मुझे जबरन नोच डालेंगे . हर मनचला मुझे लावारिस कटी पतंग जानकार ललचाई नज़रों से लूटने दौड़ेगा . कोई सहारा देने न पहुंचेगा . फिर जो काम हार हालत में होना ही है , तो क्यों बेबसी में किया जाय ! क्यों न स्वेच्छा से करें !!
पायल न जाने क्या - क्या ऊट पटाँग सोच रही थी - - - रात से ही . और सोचने - सोचने में ही रात के पत्ते झड़ चुके थे और सुबह की कोपलें निकल आयी थीं .
भावी जीवन के प्रति उसके दिमाग में कई विचार आ - जा रहे थे . अचानक उन्हीं लगभग एक समान बदरंग विचारों के बुलबुलों की बजबजाती भीड़ में एक अलग रंग का बुलबुला भी उभरा और वही चमचमाता बुलबुला उसके पिछले विचारों पर पश्चाताप का कारण और आगे के लिये उम्मीद की किरन बन गया . जिसने उसे जीवन का द्वार एक बार फिर से खटखटाने की हिम्मत प्रदान की .
धड़कते दिल में उम्मीद का एक छोटा सा दीपक जलाकर वह गुलशन के घर की तरफ चल दी . समय और परिस्थितियाँ व्यक्ति से क्या कुछ नहीं करवा डालते .


[26]
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Old 05-02-2012, 10:33 PM   #29
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( 2 0 )

आज का पुरुषार्थ कल का भाग्य रचता है .
इसी धुन में गुलशन अपने घर में बैठा बड़े मनोयोग से कोई प्रतियोगिता - पुस्तक पढ़ रहा था . तभी उसने देखा कि पायल ने कमरे में प्रवेश किया है . देखा कि पायल का मुख मण्डल बासी गुलाब की तरह मुरझाया हुआ है . वह उसके सामने खड़ी होकर गाय की सी बड़ी- बड़ी निरीह आँखों से उसकी तरफ निहारने लगी . उसकी असहनीय पीड़ा उसके चेहरे से झमाझम बरस रही थी .
पायल की परेशानी को पढ़कर गुलशन ने पूछा -- " क्या बात है ? काफी परेशान दिख रही हो . सब ढीक तो है ? "
पायल एकदम से बुक्का फाड़कर रोते हुए बोली -- " चंचल मुकर गया है . वो शादी से फिर गया है . मैं बर्बाद हो गयी . मेरा हरा - भरा गुलशन वीरान हो गया गुलशन . "
वह उस बच्चे की भाँति गुलशन से लिपट गयी , जिसे मानो अपना खोया हुआ अभिभावक मिल गया हो .
'' क्या कहती हो तुम ? " आश्चर्य से गुलशन की आँखें फ़ैल गयीं .
अभी तक उसे यह बात नहीं मालूम थी . पता भी कैसे होती ! पायल ने बताई ही नहीं थी .
पायल उसकी छाती पर सिर रखे रोती जा रही थी . उसके आंसू लगातार बहते जा रहे थे - - - और नारी के आंसुओं में जमाने को बहाने की शक्ति होती है . उसकी आह में पत्थर को भी मोम बना देने का गुण होता है . फिर गुलशन तो एक इन्सान और उसका चाहने वाला था . वह अपने को रोक नहीं पाया .
वह बोला -- " मत लुटाओ ये मोती . इन आंसुओं को रोक लो , वर्ना मेरा दिल इन आंसुओं में डूब जाएगा . "
मगर पायल के आंसू थे कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे . उसने अपनी गीली आँखें गुलशन की हथेलियों पर टिका दीं - - - और गुलशन अनुभव कर रहा था कि पायल के नर्म - गर्म आंसू उसकी हथेली में सोखकर नसों के जरिये उसके ह्रदय में पहुँच रहे हैं - - - और जब ह्रदय आंसुओं से लबालब भर गया , तो वो आंसू गुलशन की आँखों के रस्ते बाहर रिसने लगे .
पायल बोली -- " अब मेरा क्या होगा गुलशन ! जिसे अपना समझी थी वो चंचल भी बीच राह में छोड़कर बेगाना बन गया . दुर्भाग्य मेरे साथ कदमताल कर रहा है . मुझे नहीं मालूम था - - - मेरी बड़े जतन से लिखी कहानी इस तरह पन्ना - पन्ना बिखर जायेगी . न जाने ईश्वर भी मुझसे किस जनम - करम का बदला ले रहा है .
गुलशन ने ढाढस बंधाते हुए कहा -- " अच्छे लोगों पर शुरुवाती तकलीफें आती हैं - - - यही भगवान का कुछ अजीब सा अन्याय है . फिर भी - - - यकीन रखो ! मैं तुम्हें गम के सागर में डूबने के लिए मजबूर नहीं होने दूंगा . ईश्वर ने चाहा तो कुछ दिनों में सब कुछ ठीक हो जायेगा . एक दिन नयी रौशनी आयेगी और दुर्भाग्य के अँधेरे छंट जायेंगे . विश्वास रखो पायल ! अँधेरा अमर नहीं है . उसे हर रोज़ उगकर सूरज ये बताता है कि वो उसके रहते लोगों के जीवन पर कालिख नहीं पोत सकता . वक्त ऐसा ही सूरज है पायल . "
मगर अब मैं क्या करूँ ! किस भरोसे और उम्मीद पर जियूं ? " पायल ने उसके सीने पर सिर रखे - रखे सुबकते हुए कहा .
गुलशन उसके सिर पर हाथ सहला रहा था . इस वक्त उसे अपने आप पर किसी ऐसे जहाज का गुमान हो रहा था , जिसके सीने में समुद्र की किसी छिपी हुई चट्टान से टक्कर खाकर गहरा छेद हो गया हो और जो अपने डेक पर डूबने वाले बच्चों , बूढ़ों और औरतों की दर्दनाक चीखों और दम तोड़ती प्रार्थनाओं के बावजूद गहरे पानी में डूबता चला जा रहा हो - - - उन्हें किनारे पर नहीं लगा पा रहा हो .
फिर भी उसने दिलासा दिया -- " दिल छोटा न करो पायल ! जीवन में ऐसे अवसर भी आते हैं , जब हम बिना किसी उद्देश्य के जीते हैं और बिना मौत मर भी जाते हैं . "
" मगर देखती हूँ - - - मैं जी न पाऊंगी . दुनिया मुझे जीने न देगी . क्योंकि मुझपर दाग लग चुका है . गुलशन ! आँचल के दाग तो साबुन से धुल जाते हैं , मगर तन के दाग - - - . मेरे माथे पर दाग लग गया है . मेरा मन सुलग रहा है . मेरे भीतर की लड़की टूट चुकी है - - - और इसी आधार पर मेरा सहारा चंचल भी मुझसे दामन छुड़ा रहा है . "
" पायल ! जहाज़ जब डूबने को होता है , तो सबसे पहले चूहे उसका साथ छोड़ते हैं . लेकिन अब तुम मुझे अपने जहाज़ का कप्तान समझो . मेरे रहते तुम्हारा जीवन रुपी जहाज़ डूबने नहीं पायेगा . मैं तुम्हें डूबने नहीं दूंगा . मैंने तुम्हें एक फूल की तरह चाहा था . विश्वास रखो - - - मैं ये फूल मुरझाने नहीं दूंगा .
समय अलज़बरा के प्रश्न की तरह गंभीर था और कमरे में मद्धिम सी रौशनी बिखेरता हुआ बल्ब टिमटिमा रहा था -- उम्मीद के सितारे की तरह .
असुरक्षा की भावना व्यक्ति को स्वार्थी बना देती है .
असुरक्षा की भावना से ग्रस्त पायल के स्वार्थ ने डरते - सकुचाते कहा -- " गुलशन ! एक बात पूछूं ? "
" पूछो . "
" क्या तुम अब भी मुझे उतना ही चाहते हो ? "
" उससे भी अधिक . "
" तुम मुझसे शादी करना चाहते थे न ! "
" हाँ . "
" क्या अब भी तुम मुझसे शादी कर सकते हो ? मैं तैयार हूँ गुलशन . हाँ , मैं तैयार हूँ . " पायल जल्दी से बोली -- " बताओ - - - जवाब दो ! "
उसका यह अप्रत्याशित प्रश्न सुनकर गुलशन के आश्चर्य चकित कानों ने उसके मन - मस्तिष्क को असमंजस में डाल दिया .वह तत्काल अनिर्णय की स्थिति में पहुँच गया . उसे समझ नहीं आ रहा था कि किस्मत किस रूप में उसका दरवाज़ा बार -बार खटका रही है .
उलझन की इस घडी में अंततः उसने अपनी आदत के अनुसार एक सिगरेट अपने होठों से लगाकर सुलगा ली और विचारमग्न होकर उसके गंदले धुंएँ के बीच कोई साफ़ रास्ता तलाशने लगा .
इस समय पायल को एक - एक पल वैसे ही एक - एक युग जितना लम्बा प्रतीत हो रहा था , जैसे कि न्यायाधीश द्वारा फैसला सुनाने से ठीक पूर्व किसी आरोपी को प्रतीत होता है .
उसके मौन से उतावली होकर पायल कह उठी -- " बोलो गुलशन ! बोलो . चुप क्यों हो ? कुछ बोलते क्यों नहीं ? "
गुलशन धीमे से बोला -- " मुझे सोचने दो पायल . ज़िन्दगी के बड़े फैसले जल्दबाजी में नहीं करने चाहिये . "
पायल बेमन से चुप हो गयी .
थोड़ी देर बाद जब उसकी पूरी सिगरेट गुल बन गयी तो उसने फिर पूछा -- " कुछ सोचा ? "
" हाँ - - - सोच लिया . "
" क्या ? " उसका पूरा शरीर कान बन गया .
गुलशन ने अपना निर्णय दागा -- " यही - - - कि अब मैं तुमसे शादी नहीं करूंगा . "
उसका जवाब सुनकर पायल का दिल धक् से रह गया - - - जैसे पहाड़ से गिर पड़ी हो . उसे लगा - - - जैसे वो कोई जूठी पत्तल हो , जिसमें अब और कोई भला आदमी खाना पसन्द न करेगा . क्योंकि लड़की चाहे सोने की ही क्यों न बनी हो , इज्जत खोयी लड़की को कोई भी पुरुष पत्नी - रूप में बर्दाश्त नहीं कर पाता . फिर भी उसने बस पूछने के लिये चीखकर पूछा -- " मगर क्यों ? "
" क्योंकि ऐसा नहीं कि अब तुम्हें मुझसे प्यार हो गया है , जो तुम मुझसे शादी करना चाहती हो . वास्तव में प्यार तो तुम अभी भी चंचल से ही करती हो - - - किन्तु उसके मुकर जाने और अपने असहाय होने के कारण विवशता में मुझसे शादी करना चाहती हो . क्योंकि स्त्री प्रायः असहाय अकेली नहीं रह सकती . पायल ! ये तुम्हारी असुरक्षा की भावना से उपजी विवशता कह रही है कि तुम मुझसे शादी करना चाहती हो . और यही सब सोचकर मैं बड़ी विनम्रता पूर्वक मना कर रहा हूँ . "
पायल ने आरोप जड़ा -- " इसका मतलब - -- - तुम भी वही निकले , जो चंचल है . मात्र इन्कार कि तर्ज़ अलग है . अब समझी - - - मर्द होते ही ऐसे हैं . लेकिन गुलशन ! कान खोलकर गाँठ बाँध लो - - - अगर तुमने भी साथ न दिया - - - तो मैं मर जाऊंगी - - - आत्महत्या कर लूंगी . "
वो दरवाजे की तरफ लपकी . गुलशन ने उसे झट से पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया - - - मगर पायल चिल्लाती रही -- " मुझे छोड़ दो . मर जाने दो . जब संवार नहीं सकते , तो बिगड़ने से रोकने का भी तुम्हें कोई अधिकार नहीं . छोड़ो - - - मैं कहती हूँ छोड़ो मुझे - - - जाने दो . "
उसने पूरी ताकत लगाकर अपने को छुड़ाने का प्रयास किया . वह लगभग विक्षिप्त सी हो गयी थी . उस पर दौरा सा पड़ा था .
और ऐसे दौरे को दूर करने का सबसे सुगम उपाय है झटका . गुलशन ने एक झन्नाटेदार झापड़ पायल के नर्म गाल पर मारा . थप्पड़ पड़ते ही एकाएक शान्त होकर वह मूर्खों की तरह गुलशन की तरफ ताकने लगी और फिर उससे लिपट कर बुक्का फाड़कर रोने लगी .
गुलशन उसकी पीठ पर हाथ फेरकर समझाने लगा -- " पायल ! बेहूदा बातें किसी भी बहस या आवेश से सही नहीं ठहराई जा सकतीं . व्यक्ति जीने के लिये पैदा होता है और उसके हाथ में सिर्फ जिन्दा रहना है . अपने को पैदा करना या ख़त्म करना उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है . ये ईश्वर की मर्जी का खेल है . इसमें नाहक हस्तक्षेप नहीं करना . न चाहते हुए भी ज़िन्दगी को कभी - कभी ऐसे दौर से गुजरना पड़ता है जब सब्र करने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं होता . ईश्वर धीरज रखने वालों की लाज रखता है . इसलिए थोड़ा धीरज से काम लो . "
इतना कहने के बाद गुलशन खुद ब खुद बुदबुदाया -- " समझ में नहीं आता - - - भाग्य और व्यक्ति क्या मजाक करते हैं आपस में . कुछ लोग भागकर ज़िन्दगी के पास पहुंचना - - - और कुछ दूर चले जाना चाहते हैं . "
पायल बोली -- " मेरा विवेक नष्ट हो गया है गुलशन . मेरी तो समझ में नहीं आता कि क्या करूँ , क्या न करूँ . आशा की कोई किरन नहीं दिखती . पता नहीं - - - मेरा क्या होगा . उफ़ - - - परिस्थितियाँ इन्सान को कितना असुरक्षित और विवश बना देती हैं . "
" निराशा बहुत बड़ा पाप है पायल . उसे मन में घर मत बनाने दो . ज़रा दुनिया पर नज़र दौड़ा कर तो देखो - - - बड़े - बड़े दुखों के बावजूद भी हर व्यक्ति जीने की छोटी सी चाह लिये कैसे हाथ - पाँव मार रहा है . और फिर - - - अब तुम घबराओ मत . मैं जो हूँ . मैं अपने ईमान और स्वाभिमान कि तरह तुम्हारी रक्षा करूंगा . अब तुम तक आने वाली हर मुसीबत को मुझसे होकर गुज़ारना होगा . "
" मगर उनका क्या होगा ? वो तो मेरी ज़िन्दगी की नासूर बनकर रहेंगी . "
" क्या ? "
" वो तस्वीरें . मेरे फोटो - - - जो सेठ के पास हैं . जिनके सहारे वो मुझे आजीवन कठपुतली की तरह नचाना चाहता है . "
उसकी इस बात के साथ ही गुलशन के मस्तिष्क - पटल पर कुछ असहनीय अश्लील दृश्य तेजी से कौंध गए . उसने फट से अपनी आँखें भींच लीं . मगर आँखें बंद करने से विचारों का चित्रण तो रुकता नहीं .
उसने आँखों में छलक आये आंसुओं को पोछ कर कहा -- " समस्या के ऊँट को अब मुझे ही किसी करवट बैठाना होगा . फिलहाल मैं चाहता हूँ कि मैं एक बार स्वयं चंचल को समझाने का प्रयास करूँ . तुम एक काम करो . जाकर चंचल तक मेरा ये विनम्र अनुरोध पहुँचाओ कि मैं अपने निवास पर एकान्त में उससे कुछ वार्ता का इच्छुक हूँ . उससे कुछ बात करने के पश्चात ही आगे कुछ करना ठीक होगा . "
" मैं कोशिश करती हूँ . " कहकर पायल कमरे के बाहर हो गयी .

[27]
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( 2 1 )

अगले ही दिन !
चंचल जब गुलशन के घर पहुंचा तो औपचारिक बात चीत के पश्चात , सब कुछ जानते - समझते हुए भी उसने पूछा -- " कहो गुलशन ! मुझे क्यों याद किया ? "
गुलशन बोला -- " चंचल ! सुना है - - - तुमने पायल से शादी के इरादे को दफ़ना दिया है !! "
उसकी इस बात से चंचल का मन खिन्न हो गया . वह बोला -- " ठीक ही सुना है तुमने . "
" मगर क्यों ? "
" क्योंकि उसकी एक रात एक बदमाश के ऊपर न्योछावर हो चुकी है . "
" इससे क्या होता है ? "
" बहुत कुछ होता है इससे . "
" मगर क्या ? "
" बनो मत . ये तुम खुद और खूब समझते हो . जरूरी नहीं कि हर बात अपने नंगे स्वरूप में ही प्रस्तुत की जाय . "
" यार ! मैं तो कहूँगा - - - मिट्टी डालो उस घटना पर . कुत्ता कपास के खेत से होकर गुज़र गया , तो कौन सी चादर बनवाकर ले गया ! "
" मगर पाख़ाना तो कर गया . "
" छि ! तुम - - - और ऐसी बातें . चंचल ! उसे अपना लो . उसे अपना लो चंचल . "
" नहीं - - - अब ये मुझसे संभव नहीं . "
" मगर क्यों ? "
" क्योंकि समाज कहता है कि स्त्री मिट्टी की हाँडी होती है , जो एक बार पाखाने में पहुँच जाय , तो रसोई के काबिल नहीं बचती . "
" तो इसका मतलब ये है कि - - - . "
" कि तुम पायल के वकील की हैसियत से बोल रहे हो . " चंचल ने उसकी बात काटकर रूखे स्वर में कहा .
गुलशन ने उसकी बात का बुरा न मानने का प्रदर्शन करते हुए कहा -- " नहीं चंचल - - - नहीं . मैं तो एक निर्दोष के सन्तोष की भीख मांग रहा हूँ . चंचल ! मेरी मानो , तो पायल को सहारा दो . अभी भी वक्त है - - - वरना चिटकते रिश्ते टूट जायेंगे . "
" गुलशन ! सामाजिक नियमों के घेरे में सामान्य आदमी के अपने कुछ सिद्धांत होते हैं - - - और सिद्धांतों की कुछ अपेक्षायें होती हैं . तुम क्या सोचते हो कि मैं रिश्ते टूटने के भय से अपने सिद्धांत व सामाजिक मान्यतायें तोड़ने का दुस्साहस करूँ ? "
" हुँह - - - जरा मैं भी तो सुनूँ ! क्या हैं तुम्हारे सिद्धांत ? "
" ये की घर की बहू बनाने के लिये लड़की चाहिए , औरत नहीं . और वैसे भी - - - आम आदमी सब कुछ सहन कर सकता है लेकिन ये बिल्कुल नहीं कि उसकी पत्नी का भूत या वर्तमान में किसी अन्य के साथ शारीरिक सम्बन्ध रहे . "
" वाह - - - क्या ख़ूब है तुम्हारे सिद्धांत . ज़रा सोचो - - - अगर तुम्हारी शादी किसी दूसरी कथित लड़की से भी हो जाये , तो क्या तुम डंके की चोट पर कह सकते हो कि तुम्हारी पत्नी सर्व प्रथम तुम्हारे ही शारीरिक संपर्क में आयी है ? और फिर - - - ज़रा पायल कि सच्चाई पर भी तो दृष्टि दौड़ाओ , जिसने घर लौट कर सारी वास्तविकता जस की तस बता दी . वो उस घटना पर आंशिक आवरण भी तो डाल सकती थी . उसे अपने अनुकूल तोड़ - मरोड़ कर भी तो प्रस्तुत कर सकती थी . जिससे उसे तुम्हें खोने का खतरा भी न रहता . "
" गुलशन ! बात तो तुम्हारी सच है , किन्तु अब मैं जान - बूझ कर मक्खी तो नहीं निगल सकता ! ! भला नीम की निम्बोली सा कड़ुवा यथार्थ कैसे पचा पाऊंगा मैं !!! "
" मैं फिर कहता हूँ चंचल ! केवल मूर्ख और मृतक ही अपने सिद्धांतों को कभी नहीं बदलते . जबकि तुम तो एक पढ़े - लिखे आदमी हो . तुम्हें तो विवेक से काम लेना चाहिये . "
" हुँह - - - विवेक ! क्या होता है विवेक ? "
" यही - - - कि परिस्थिति विशेष के अनुरूप दिल की कही की जाय . "
" तो - - - वही तो कर रहा हूँ मैं . मेरा दिल - दिमाग यही करने को कह रहा है . "
" उफ़ चंचल ! " गुलशन बोला -- " क्या तुम उसे स्वयं से दूर करके उसकी याद को दिल से भुला सकोगे ? "
चंचल ने कृतिम निष्ठुरता से उत्तर दिया -- " हाँ ! प्रयास करूंगा . भूलते - भूलते भूल ही जाऊंगा . '
" ओह - - - तो इसका मतलब , तुम्हारा दिल , दिल न हुआ , सराय हो गया , जहां लोग आते , ठहरते और जाते रहते हैं - - - और सराय किसी को याद नहीं रखती . " गुलशन झिड़कते हुए बोला -- " चंचल ! आज तुम्हारे इस रूप को देखकर और तुम्हारे सिद्धांतों के जिद्दीपने को जानकार मुझे ये कटु अनुभव हो रहा है कि लोग बहुत स्वार्थी होते जा रहे हैं और दुनियां में कल उन लोगों की समाधियाँ तक नहीं बनेंगी , जो मरने से पूर्व कफ़न से लेकर फूलों तक का प्रबंध खुद नहीं कर जायेंगे . "
चंचल चुप रहा .
गुलशन ने पुनः पूछा -- " तुम्हारे सिद्धांत ही तुम्हारी और पायल की शादी में टांग मार रहे हैं , या और भी कोई बात है ? "
" हाँ - - - और भी बात है - - - जो सर्वाधिक प्रमुख है . उससे शादी के बाद जिसका मुझे सामना करना पड़ सकता है . जिसके सम्मुख अन्य समस्त बातें गौड़ हैं . जिसका इशारा मैं इससे पूर्व भी तुम्हें दे चुका हूँ . "
" वो क्या ? ज़रा खुलकर कहो . "
" समाज का डर . " चंचल बोला -- " कल जब शहर भर को ये बात मालूम होगी कि पायल एक बदमाश कि बिछावन बन चुकी है , तो क्या कहेंगे लोग ! लोग मुझे हेय दृष्टि से देखेंगे . ताने मार - मार कर मेरा जीना हराम कर देंगे . "
" चंचल ! कीड़े - मकोड़ों की भिनभिनाहट के भय से कोई अपने घर में शमा जलाना तो बन्द नहीं कर देता - - - और वैसे भी , समाज को क्या पता है इस बात का !! "
" पता चल तो सकता है . सेठ द्वारा लोगों के जान सकने की संभावना तो है . संभावनाओं को नकारा तो नहीं जा सकता . हमें दूर तक सोच कर समझदारी से चलना चाहिए . "
" वाह ! किस खूबसूरती से तुमने अपनी बुजदिली को समझदारी का नाम दे दिया . चंचल ! समाज के डर से कमजोर न बनो , वर्ना शैतान के हौसले बुलन्द और उम्र लम्बी होती जायेगी , जबकि पायल जैसे इंसान घुटते - पिसते और मरते चले जायेंगे . "
पायल की त्रासदी का दुष्प्रभाव झेल रहा चंचल गुलशन की बार - बार की नसीहतों से चिढ़कर झुंझलाया -- " गुलशन दुनिया में उपदेश का धंधा करने वालों की कमी नहीं , पर ज़िन्दगी की सच्चाइयों से जिसे जूझना पड़ता है - - - वही जानता है . उससे शादी कर लेने पर दुनिया दबी जुबान यही कहेगी कि मेरी पत्नी मुझसे पहले किसी अन्य द्वारा भी भोगी जा चुकी है . और फिर - - - अगर तुम्हें उससे इतनी हमदर्दी है और समाज की परवाह नहीं , तो सूखे उपदेश क्यों देते हो ? शादी क्यों नहीं कर लेते उससे ? "
" उफ़ - - - काश तुम मेरी मजबूरी समझ सकते . " उसने पुनः समझाना चाहा -- " हिम्मत से काम लो चंचल . सफलता तुम्हारे चरण चूमेगी . छोटे से दिखने वाले व्यक्ति को लोग दूरबीन लगाकर देखेंगे . तुम तो पढ़े - लिखे समझदार हो . समाज के फेर में मत पड़ो . अपनी आत्मा की आवाज़ पर ध्यान दो . मुक्त मस्तिष्क से किये गए अपने स्वतन्त्र फैसले पर अमल करो . "
" लेकिन मुझे समाज में रहना है - - - और समाज सामाजिक कार्यों में एकाकी फैसलों को नहीं मानता . "
" श्रेष्ठ जीवन पद्धति के लिए हम स्वयं ही तो मिल - बैठ कर सामाजिक नियम रचते हैं और वक्त के जल से उनकी जड़ों को सींचकर मज़बूत करते हैं . तब अवरोध उत्पन्न करने की दशा में क्या हम स्वयं ही व्यक्तिगत रूप से उन्हें तोड़ नहीं सकते ? "
" मगर तब समाज से हमारा बैर हो जायेगा . वो हम पर ताना मारेगा . हमारा जीना हराम कर देगा . जबकि मुझे समाज के भीतर ही शान्ति से रहना है . "
" बैर हो जायेगा तो हो जाने दो . चंचल ! समाज से लड़ो . कुछ शुरुवाती कठिनाइयाँ तो अवश्य आएँगी . पर याद रखो - - - कठिन रास्ते प्रायः खूबसूरत मंजिल तक पहुंचाते हैं . समाज एक न एक दिन अपने आप थक - हार कर चुप हो जायेगा . तुम सुख - चैन से जी सकोगे . "
" और उस दिन के इंतज़ार में - - - मैं अपनी ज़िन्दगी का सुनहरा हिस्सा ताने खाते - खाते बर्बाद कर दूं ? न - - - न ! मुझ साधारण आदमी में इतनी हिम्मत नहीं . मुझसे न होगा ये . "
" आदमी जब कोई पाप कर गुज़रता है - - - या करने लगता है , तो नाना प्रकार के तर्कों से उसे सही ठहराने की कोशिश करता है . तुम भी यही कर रहे हो चंचल ."
बहस द्रोपदी के चीर की तरह खिचती ही जा रही थी .
गुलशन ने फिर समझाया -- " चंचल ! कीचड़ में अपना सोना गिर गया हो , तो उसे उठाने के लिए झुकना तो पड़ता ही है - - - और इस प्रयास में गन्दगी के कुछ छींटे भी पड़ सकते हैं , लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि हम छीटें पड़ने के डर से अपने सोने को कीचड़ में ही पड़ा रहने दें . अभी भी वक्त है कि तुम पायल - - - . "
" गुलशन ! तुम बेकार ही खली से तेल निकालने का प्रयास कर रहे हो . " चंचल उसकी बात काट कर बोला .
गुलशन ने अफ़सोस जाहिर किया -- " समझ में नहीं आता --- तुम्हारी बुद्धि को किसकी नज़र लग गयी है ! "
" कुछ भी कहो , मगर सुन लो , तुम अगर आँखें खोल कर देखने से लाचार हो , तो मैं अपनी आँखें बन्द नहीं रख सकता - - - समझे . गुलशन ! ज़िन्दगी छोटी होती है - - - और उसे भोगने की उम्र उससे भी छोटी . क्या जरूरत है कि हम इस छोटी सी अनमोल ज़िन्दगी में जान - बूझ कर मुसीबतों को न्योता दें . हमें ज़िन्दगी के सफ़र में पहले से ही सोच समझ कर साफ़ और सुरक्षित रास्ते चुनने चाहियें . सुनो ! पायल समाज की नज़र में खोटा सिक्का है - - - और खोटा सिक्का जेब का वज़न तो बढ़ाता ही है , साथ ही दुनिया के बाज़ार में चलता भी नहीं . तब मैं क्यूंकर उसको साथ लेकर चलूँ ! "
गुलशन ने बात की दिशा बदलकर पूछा - " पर क्या तुम उसके बगैर ठीक से जी लोगे ? "
" हाँ . कुछ ही दिनों में सब कुछ सामान्य हो जाना चाहिये . जैसे - तैसे जी ही लूँगा . जीना तो पड़ता ही है . "
" किन्तु याद रखो चंचल ! सिर्फ जिंदा रहना ही ज़िन्दगी नहीं कहलाती . अगर ऐसा होता , तो मैला खाकर सुअर और कीड़े - मकोड़े भी ज़िन्दा रहते हैं . महत्त्व इस बात का नहीं कि हम जिये और कितना जिये - - - महत्त्व इस बात का है कि हम कैसे जिये . इसलिये कुछ ऐसा करो कि मरकर भी ज़िन्दा रहो , ऐसा नहीं कि जीते जी मर जाओ . "
चंचल को गुलशन के ये शब्द ऐसे लग रहे थे , जैसे उसे धक्का दे - दे कर घर से बाहर निकाल रहे हों .
वह चिढ़कर बोला -- " सुनो ! मखमल में लपेटकर मारने से पत्थरों की चोट कम नहीं हो जाती . गुलशन ! तुम हद से आगे बढ़ रहे हो . "
" तुम मजबूर जो कर रहे हो . " गुलशन कहता रहा -- " सुन लो ! कुछ ही दिनों में तुम अनुभव करोगे कि पायल को न अपनाकर तुम अपनी ही नज़रों से गिर रहे हो . और चंचल ! आदमी ठोकर खाकर तो संभल सकता है , किसी की नज़रों से उठकर भी गिर सकता है , मगर अपनी ही नज़रों से गिरा हुआ व्यक्ति कभी नहीं उठ पाता . वह तिल - तिल कर जलता है . ऐसा व्यक्ति जब आईने के सम्मुख जाता है तो उसकी लज्जा मुंह चिढ़ाती है उसे . मौत भी उसे सहारा नहीं देती - - - दूर भागती है . "
" गुलशन ! कम से कम मेरे दामन में इतने सारे दोष , इतने आरोप तो मत भरो . बहुत कह लिया , अब बस भी करो . मैं तुम जैसे किताबी आदमी से फालतू बहस नहीं करना चाहता . मगर सौ बात की सीधी एक बात सुन लो - - - मैं पायल को चाहता तो हूँ - - - पर उसके प्यार में दीवाना होकर इतना अव्यवहारिक भी नहीं हुआ कि आगा - पीछा कुछ न सोचूँ . सच तो ये है कि उस गिरी को उठाने के फेर में खुद को इतना गिराने का बूता मुझमे नहीं , कि मैं उम्र भर उसका भड़ुआ बनकर जियूं . ज़रा दिमाग से काम लो और सोचो कि यदि उससे शादी के बाद बदमाश सेठ पायल के अश्लील फोटो के बल पर ब्लैक - मेल करके उसे अपने घर जब - तब बुला भेजेगा तो मेरी क्या मनोदशा होगी . क्या तुम मुझसे उम्मीद करते हो कि मैं अपनी पत्नी का भड़ुआ बनकर उसे सेठ के घर बार - बार जीवन भर भेजा करूंगा ! और अगर यदि मैंने ऐसा न किया तो निश्चित ही वो कमीना उन गंदी तस्वीरों को सार्वजनिक करके समाज में पायल के साथ - साथ मुझे भी मुंह दिखाने लायक न छोड़ेगा . तुम तो केवल पायल के पक्ष में तर्क दिए जा रहे हो . मैं तुम्हारा दुश्मन तो नहीं ! ज़रा मेरी बेबसी का भी तो कुछ ख़याल करो . सिक्के के इस पहलू पर भी तो विचार करो . "
अपने अकाट्य तर्कों से गुलशन को निरुत्तर करके चंचल कमरे के बाहर निकल गया और गुलशन धीरे से बुदबुदाया -- " घबराओ नहीं पायल ! मेरे रहते तुम बेसहारा नहीं होने पाओगी . क्योंकि मैंने तुम्हें प्यार किया है . सच्चा प्यार . "

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