26-07-2013, 10:33 PM | #1 |
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बच्चन परिवार और गांधी परिवार के तीन पीढिय़í
अमिताभ बच्चन को सबके सामने दो बार ही रोता हुआ देखा है। एक बेटी श्वेता की शादी में विदाई के समय और दूसरी बार टेलीविजन पर गांधी परिवार से उनके पारिवारिक संबंधों की बात को लेकर। आंखें आंसुओं से छलक उठी थीं और कैमरे के सामने शहंशाह ने अपनी भारी आवाज में कहा…’पंडित नेहरूजी और बाबूजी का नाता रिश्तों पुराना है। दो परिवारों के बीच तीन पीढिय़ों का रिश्ता है। अब अगर गांधी परिवार हमसे नाता तोड़ लेना चाहता है, तो हम कर भी क्या सकते हैं.. वे राजा हैं, हम प्रजा हैं।’ इस संवाद ‘वे राजा हैं, हम प्रजा हैं’… में सच्चाई के अलावा कटाक्ष, दुख, पीड़ा और शिकायत के भाव भी शामिल थे। इसके बाद यह संवाद पूरे देश में बहुत गूंजा था। राजा-प्रजा की बात की जाए तो बहुत गहराई में जाना पड़ जाएगा क्योंकि उसमें कई रहस्य छुपे होते हैं.. फिलहाल हम बच्चन और गांधी परिवार के तीन पीढिय़ों से चले आ रहे रिश्तों की बात कर रहे हैं….कब से और कहां से शुरू हुए देश के इन दो प्रसिद्ध परिवारों के बीच के संबंध…? |
26-07-2013, 10:34 PM | #2 |
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Re: बच्चन परिवार और गांधी परिवार के तीन पीढिय़&
सरोजिनी नायडू
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि नेहरू और बच्चन के परिवार को जोडऩे वाली कड़ी प्रसिद्ध कवियित्री सरोजिनी नायडू से शुरू होती है। सरोजिनी इतनी प्रतिभाशाली कवियित्री थीं कि उन्होंने 14 वर्ष की उम्र में ही अंग्रेजी कविताएं लिखना शुरू कर दी थीं। सरोजिनी नायडू के एक भाई ‘विरेंद्रनाथ चट्टोपाध्याय’ वीर सावरकर की एक गुप्त क्रांतिकारी संस्था के सदस्य थे और हिंसक कार्रवाई के आरोप में उन्हें फांसी की सजा हो गई थी। दूसरे भाई हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय और एक बहन प्रतिमा देवी को हम हिंदी फिल्मों में देख ही चुके हैं। हरिंद्रनाथ खुद एक अच्छे कवि थे। 1975 में आई हिंदी फिल्म ‘जूली’ का लोकप्रिय गीत … ‘माय हार्ट इज बीटिंग’… हरिंद्रनाथ ने ही लिखा था। पंडित नेहरूजी, सरोजिनी के मुंहबोले भाई थे और सरोजनी उन्हें राखी बांधा करती थीं। जब सरोजिनी की पहली बार कवि बच्चन से मुलाकात हुई, तब भी इसक केंद्र बिंदु कविताएं ही रहीं। यह 1933 का वर्ष था… बच्चनजी उस समय ‘मधुशाला काव्य संग्रह का सृजन कर रहे थे। पहली पत्नी श्यामा की मृत्यु को तीन वर्ष हो चुके थे और तेजी का कवि की जिंदगी में आगमन होने वाला था। सरोजिनी और बच्चन की पहली मुलाकात सन् 1933 में हुई थी। इसके बाद इनकी दूसरी मुलाकात 9 वर्षों बाद 1942 में हुई… यह फरवरी का महीना था… सरोजिनी इस समय इलाहाबाद आई हुई थीं। उनके स्वागत में अमरनाथ झा ने डिनर का आयोजन किया था। गहरी मित्रता के नाते अमरनाथ ने कवि बच्चन व तेजी बच्चन को भी यहां आमंत्रित किया था। सरोजिनी की कवि बच्चन से फिर मुलाकात हुई। इस समय कवि के साथ दूसरी पत्नी तेजी भी उपस्थित थीं। तेजी का सौंदर्य देखकर ही सरोजिनी, कवि बच्चन से कह उठीं…’काफी जख्म सहे हैं तुमने! लेकिन अब मलहम बहुत सुंदर मिल गया है’…। |
26-07-2013, 10:35 PM | #3 |
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Re: बच्चन परिवार और गांधी परिवार के तीन पीढिय़&
सरोजिनी और बच्चन परिवार की यह शाम एक यादगार लम्हा बनने वाली थी…जाते समय सरोजिनी ने कवि और तेजी से कहां…आज आप सभी ने मेरा इतना अच्छा स्वागत किया है। इसलिए अब मैं भी आप सबका स्वागत करना चाहती हूं। कल शाम को मैंने चाय-पार्टी रखी है, जिसमें आप सभी को पधारना है।
आप सभी का मतलब…यहां पर इलाहाबाद के जाने-माने लेखक, कवि और प्राध्यापक जैसी कई बुद्धिजीवी हस्तियां मौजूद थीं। सरोजिनी ने सभी को आमंत्रित किया। लेकिन कवि और तेजी को उल्होंने अलग से ही आमंत्रित किया और कहा कि ‘बच्चनजी आप दोनों को भी जरूर आना है’। उपस्थित सभी लोगों ने आश्चर्य से पूछा…सरोजिनीजी! लेकिन हमें कल आना कहां है, क्योंकि आप तो किसी अतिथि गृह में ठहरी होंगी। सरोजिनी ने जवाब दिया…’मैं अपने भाई जवाहर के घर रुकी हुई हूँ .. आनंदभवन में।’ दूसरे दिन सभी लोग ‘आनंदभवन में पहुंच गए। यहां सरोजिनी के साथ पंडित जवाहर लाल नेहरू और कु. इंदिरा गांधी भी उपस्थित थीं। सरोजिनी ने कवि बच्चन का नेहरू और इंदिरा से परिचय कुछ इस अंदाज में करवाया…’ये हैं मशहूर कवि बच्चन और ये (तेजी) हैं इनकी कविता…।’ नेहरूजी ने कवि बच्चन का पूरी आत्मीयता के साथ स्वागत किया तो इधर इंदिराजी ने भी तेजी का हाथ पकड़ कर उन्हें अपने बगल में बिठा लिया। कुछ ही देर में इंदिराजी की तेजी से दोस्ती हो गई। मतलब कुछ पल पहले जो अजनबी थी वह चंद पलों में ही अब सहेलियां बन गईं। ठीक वैसा ही नेहरूजी और कवि के साथ हुआ, उन चंद पलों में इनके बीच ऐसी दोस्ती हुई कि इस रिश्ते को इन्होंने ताउम्र निभाया। |
26-07-2013, 10:36 PM | #4 |
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Re: बच्चन परिवार और गांधी परिवार के तीन पीढिय़&
जब तेजी ने इंदिरा गांधी को सलाह दी…’जो दिल कहे वही करें’
तेजी और इंदिराजी के बीच काफी देर तक बातें होती रहीं। लेकिन तेजी महसूस कर रही थीं कि इंदिराजी के चेहरे पर तनाव और आंखों में कोई चिंता भी है। तेजी ने कारण पूछा… इंदिरा पहली ही मुलाकात में नई-नई सहेली बनी तेजी पर इतना भरोसा कर गईं कि अपने दिल की वह बात बोल गईं जो शायद उन्होंने किसी से न कही होगी…’मैं किसी से प्रेम करती हूं, लेकिन वह पारसी है। घर में सब कहते हैं कि हमारा रुढि़वादी समाज धार्मिक रूप से अलग इस रिश्ते को कभी स्वीकार नहीं करेगा। मुझे समझ में नहीं आ रहा कि क्या करूं?’ तेजी ने पल भर में ही इसका जवाब दे दिया और कहा…’जो तुम्हारा दिल कहता है, वही करो।’ एक महीने पहले ही मुझे भी इसी तरह की समस्या का सामना करना पड़ा था। क्योंकि मैं ‘सिक्ख’ थी और बच्चनजी ‘कायस्थ’। इलाहाबाद में भी विरोध के स्वर उठे थे और मेरे मायके में भी। लेकिन फिर भी मैंने अपने दिल की सुनी और बच्चनजी से शादी कर ली और आज मैं बहुत खुश भी हूं। यह बात थी फरवरी 1942 की। इंदिराजी ने तेजी की बात सुनकर निर्णय भी ले लिया और दूसरे ही महीने (मार्च, 1942) में फिरोज गांधी से शादी कर ली। इस विवाह में देश-विदेश से आए हुए चुनिंदा मेहमानों के साथ बच्चन दंपत्ति भी उपस्थित थे। इसी बीच सरोजिनी ने कहा…प्रियदर्शिनी (इंदिरा गांधी) जब एक नया जीवन शुरू करने जा रही हैं तो इस अवसर पर मैं कवि बच्चनजी और तेजी से निवेदन करती हूं कि वे यहां एक कविता प्रस्तुत करें। सरोजिनीजी की यह बात सुनते ही चारों ओर खामोशी छा गई और बच्चन दंपत्ति ने अपने प्रिय कवि मित्र सुमित्रानंदन पंत की इस कविता का गान शुरू किया…. ‘वर्ष नव, हर्ष नव, जीवन उत्कर्ष नव, नव उमंग, जीवन का नव प्रसंग…’ |
26-07-2013, 10:37 PM | #5 |
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Re: बच्चन परिवार और गांधी परिवार के तीन पीढिय़&
कितनी अजीब बात है कि इसी कविता से कवि का भी एक नया जीवन शुरू हुआ था और इसी कविता से अब इंदिरा गांधी का भी नया जीवन शुरू होने जा रहा था….
दरअसल यह वही कविता थी जो कवि बच्चन ने तेजी से पहली मुलाकात के समय गाई थी और अब यही कविता इस मंगल अवसर पर गाई जा रही थी। एक अफवाह थी कि अमिताभ, इंदिराजी की सलाह से फिल्म लाइन में गए… ‘इस ड्रेस में तुम बहुत सुंदर लग रही हो’… यह वाक्य एक सुंदर युवती द्वारा दूसरी सुंदर युवती के लिए बोले जा रहे थे, लेकिन सुनने वाली महिला इस बात को सच नहीं मान रही थी। दूसरी महिला का इस बात को न मानना कुछ सच भी है…’अक्सर हम ऐसा इसलिए नहीं मान पाते क्योंकि हम अपनी सुंदरता को नहीं देख सकते।’ यह सुंदर प्रशंसा करने वाली युवती कोई और नहीं, बल्कि स्वयं इंदिराजी थीं.. और वे यह बात जिसके लिए बोल रही थीं.. वे थीं ‘तेजी बच्चन।’ दरअसल यह अवसर था…इलाहाबाद में एक लेडीज ब्रिगेड की रचना की गई थी और तेजी के नेतृत्व में एक परेड का आयोजन किया गया था। परेड आनंदभवन के लॉन में थी। सलामी लेने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पधारे थे। तेजी सफेद कुर्ती और चूड़ीदार सलवार में थीं और उन्होंने गांधीजी की टोपी तो ऐसी तिरछी अदा में पहन रखी थी कि उनके सौंदर्य में चार चांद लग गए थे। खूबसूरत इंदिराजी के मुंह से अपनी तारीफ सुनकर तेजी शरमा गईं। इन सभी बातों की आपको शायद जानकारी नहीं होगी। मैं जब जामनगर के मेडिकल कॉलेज में पढ़ा करता था तब मेरे दिमाग को कई प्रश्र परेशान किए रहते थे। मेरे डॉक्टर बनने की प्रक्रिया और अमिताभ के सुपर स्टार बनने की प्रक्रिया लगभग समांतर ही चलती थी। अमिताभ बच्चनके लिए एक अफवाह यह थी कि इंदिरा गांधी की सलाह पर ही उन्होंने फिल्म लाइन चुनी। |
26-07-2013, 10:38 PM | #6 |
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Re: बच्चन परिवार और गांधी परिवार के तीन पीढिय़&
‘आनंद’ का ‘बाबू मोशाय’ अब पुराना हो चुका था। ‘जंजीर’ का पुलिस इंस्पेक्टर ‘यंग्री यंगमैन’ बनकर प्रजा के दिल में अपना आसन जमा चुका था। इसी समय ये अफवाह थी कि यह स्टार प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सलाह पर ही फिल्मी जगत में दाखिल हुआ है। ख्वाजा अहमद अब्बास ने इंदिरा गाधी की चिट्ठी के अनुसार कहा था… लंबूजी को ‘सात हिंदुस्तानी’ फिल्म में काम दिलवाया गया था। लेकिन मेरे कम अनुभवी दिमाग में यह सवाल उठता है.. भारत के सर्वोच्च स्थान पर बैठा कोई व्यक्ति इस युवक के लिए चिट्ठी क्यों लिखेगा?
इसी तरह ‘कुली’ की शूटिंग के दौरान जब पुनित इस्सर के मुक्के से घायल अमिताभ मरणासन्न स्थिति में पहुंच गए थे। तब ऑल इंडिया रेडियो में दिन पर उनके स्वास्थ्य को लेकर समाचार प्रसारित किए गए थे। इसमें एक बात कई बार कानों में सुनाई दी थी…’आज देश की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने मुंबई पहुंचकर बिच कैंडी हॉस्पिटल में अमिताभ से मुलाकात की।’ तब भी मेरे दिमाग में यही सवाल कौंधता था कि ‘इस व्यक्ति के साथ इंदिराजी का अपने सगे बेटे की तरह इतना आत्मीय लगाव क्यों है?’ लेकिन यह पूरी तरह सच था, क्योंकि इंदिराजी के दिल में अमिताभ के लिए अपने सगे बेटों जैसा ही प्रेम था। इंदिरा की हत्या के बाद पूरे देशवासियों के साथ मैंने भी अमिताभ को सफेद वस्त्रों और देह पर साल लपेटे इंदिराजी के मृतदेह के पास गमगीन चेहरे के साथ खड़ा हुआ देखा था। तब भी मेरे दिमाग में यही सवाल था कि इतनी बड़ी फिल्म इंडस्ट्रीज में यह अधिकार सिर्फ अमिताभ को ही क्यों है? दिलीप कुमार या दूसरे कई दिग्गज अभिनेताओं को क्यों नहीं? इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि बच्चन और गांधी परिवार के बीच किस तरह के आत्मीय संबंध रहे होंगे…? इसके बाद इंदिराजी के बेटे राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने और वे जब भी मध्यप्रदेश या राजस्थान के अभ्यारण्यों या ऐतिहासिक स्थलों की सैर पर जाते, तब अखबारों के समाचारों में यह जरूर लिखा होता कि… प्रधानमंत्री के साथ हिंदी सिनेमा के सुपरस्टार अमिताभ बच्चन भी सपरिवार आए हुए हैं। |
26-07-2013, 10:39 PM | #7 |
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Re: बच्चन परिवार और गांधी परिवार के तीन पीढिय़&
फिर एक सवाल उठता… ‘यह सब अमिताभ की मार्केटिंग स्ट्रेटजी तो नहीं?’ सुपर स्टार के रूप में अपनी पहचान बनाए रखने के लिए देश के सर्वोच्च परिवार के साथ उनकी निकटता है, कहीं यही बात साबित करने के लिए तो वे यह सब नहीं करते?
राजीव गांधी की उंगली पकड़कर ही अमिताभ इलाहाबाद के सांसद बने, देश की लोकसभा में विराजे, बोफोर्स कांड में बिना उलझे बाहर निकल गए… यह सब देख-सुन मेरे मन में फिर यही सवाल उठता कि ‘राजीव गांधी और अमिताभ के बीच इतनी प्रगाढ़ मैत्री कब हुई होगी?’ अब अमिताभ का एक डायलाग, ‘अबे, मिला ले हाथ,दोस्त! सिकंदर ने अपनी जिंदगी में बहुत कम लोगों से हाथ मिलाया है!’ सन् 1976 में इस सुपर स्टार की फिल्म ‘मुकद्दर का सिकंदर’ देखी… इसमें एक मारपीट के दृश्य के बाद अमिताभ बच्चन, विनोद खन्ना से हाथ मिलाने के लिए हाथ आगे करते हैं, लेकिन विनोद खन्ना एक पल के लिए सोच में पड़ जाते हैं। तबअमिताभ बच्चनअपनी जगमशहूर खुमारी के साथ कहते हैं… ‘अबे, मिला ले हाथ, दोस्त! सिकंदर ने अपनी जिंदगी में बहुत कम लोगों से हाथ मिलाया है!’ तब भी मेरे दिमाग में यही सवाल उठा था… यह संवाद सिकंदर बोल रहा था या अमिताभ? इतने वर्षों बाद इन तमाम सवालों के जवाब मिल गए हैं। इस संवाद का जन्म वास्तव में तब हो गया था जब अमिताभ ने अपनी चौथी वर्षगांठ पर 2 वर्षीय राजीव गांधी के सामने अपना दांया हाथ लंबा किया था। यह दोस्ती… जय और वीरू की दोस्ती थी, धरम और वीर की जोड़ी थी। ‘लेकिन यह बात दशकों पुरानी है।’ काल चक्र दूसरी दिशा में घूम गया है। ….अब तो ‘वे राजा और हम प्रजा हैं….’! (आभार: शरद ठाकर) |
27-07-2013, 03:26 PM | #8 |
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Re: बच्चन परिवार और गांधी परिवार के तीन पीढिय&
very useful information. thanks a lot for this.
thanks Last edited by dipu; 27-07-2013 at 06:36 PM. |
27-07-2013, 09:14 PM | #9 |
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Re: बच्चन परिवार और गांधी परिवार के तीन पीढिय़&
सच कहूँ बन्धु तो मन नहीं भरा मेरा इतनी सी चर्चा से। कृपया कुछ और भी खोज कर लाइए इस विषय में। आपने प्यासे को बस थोड़ी सी बरफ चटा थी ... प्यास तो अब और भी मुखर हो चुकी है। एतद्सम्बन्धित कुछ अन्य विरली सामग्री की आकांक्षा, अपेक्षा एवं प्रतीक्षा है। आभार।
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
27-07-2013, 11:36 PM | #10 |
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Re: बच्चन परिवार और गांधी परिवार के तीन पीढिय़&
धन्यवाद, जय जी. कोशिश रहेगी कि इस विषय में कुछ और सामग्री संकलित हो पाए.
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