26-05-2012, 01:25 AM | #1 |
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डार्क सेंट की पाठशाला
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
26-05-2012, 01:28 AM | #2 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
शब्द कभी नहीं मिटते
आचार विचार और सोच यह हमारी आदतों में शुमार है। हम जो कुछ भी सोचते, करते और कहते हैं, उसका प्रतिबिंब हमारे मुख पर अंकित हो जाता है। यदि शब्दों की ही बात करें, तो हमारे मुख से जो शब्द निकलते हैं उसमें असीम सामर्थ्य होता है। ऐेसा सामर्थ्य जिसका मानव जीवन पर पूर्णतया प्रभाव पड़ता है। इसलिए कहा गया है कि धरती-आकाश भले ही मिट जाएं,किंतु उच्चारित शब्द कभी नहीं मिटते। सन 1916 के यूरोपियन युद्ध में इस शब्द शक्ति ने बड़ा कमाल कर दिखाया। फ्रांस के उच्चतम सैनिक अधिकारी जनरल पेंता ने अपने सैनिकों के दिलों में यह विश्वास भर दिया कि जर्मन सैनिक हमारी धरती पर पांव नहीं रख सकते । उनके शब्दों में ऐसी शक्ति, ऐसा सामर्थ्य था कि सैनिकों में अदम्य साहस जाग गया। उनमें उत्साह का ऐसा संचार हुआ कि वे जी जान से लड़ते हुए विजयी हुए। युद्ध में कार्यरत डॉक्टरों का कहना था कि घायल सैनिकों की तो बात ही क्या, जो सैनिक शहीद हो गए थे, उनके चेहरे पर भी विजय की झलक साफ दिखाई दे रही थी। वस्तुत हमारे मुंह से निकला शब्द सन्देशवाहक का काम करता है। यदि उससे प्रेम के शब्द निकलेंगे, तो प्रेम का संदेश देंगे और वैर-विरोध के शब्द निकलेंगे, तो वैर-विरोध का संदेश देंगे। मन में विचारे शब्दों की अपेक्षा मुंह से उच्चारित शब्दों का सामर्थ्य कई गुना अधिक होता है। किसी अच्छे वक्ता के मुंह से अच्छा भाषण सुनकर मनुष्य के चित्त पर जो प्रभाव पड़ता है, वह उसी प्रकार की किसी पुस्तक को पढ़कर नहीं पड़ता। पढ़े और सुने हुए शब्दों में काफी बड़ा अंतर होता है। लिखित शब्द भूले जा सकते हैं, मगर सुने हुए शब्दों को आसानी से भुलाया नहीं जा सकता । उन शब्दों के पीछे जो विचार शक्ति है, वह शक्ति संपन्न होनी चाहिए। आप सदा मन में यह विचार करें कि मैं यह कार्य कर सकता हूं। मैं इसे करके दिखाऊंगा। मैं इसे अवश्य करूंगा। इन शब्दों को केवल मन में ही न रखें, इसका बार-बार मुंह से उच्चारण भी करें। फिर देखें कि आप वह सब कर सकते हैं या नहीं। यही आपके लिए जीत की सबसे बड़ी सीढ़ी साबित हो जाएगी।
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26-05-2012, 01:32 AM | #3 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
समस्याओं का निपटारा करें
जीवन में किसी भी प्रकार की समस्या के सामने आ जाने से अथवा किसी कारणवश कोई मनोवेग या भावना उत्पन्न होने पर तत्काल कुछ कह देना या कर देना दुर्बल मन मस्तिष्क का परिचायक होता है। इसी प्रकार कोई इच्छा आपके मन में जागृत हो रही है, तो उस इच्छा के उत्पन्न होने पर तत्काल उसको बिना जांचे पूरा करने में लग जाना भी एक तरह से अविकसित व्यक्तित्व का ही लक्षण होता है। पहले तो यह ठान लीजिए कि आपको अपने मन का स्वामी बनना है। इसलिए सबसे पहले अपनी समस्या, इच्छा या मनोवेग को अपने विवेक के तराजू पर पूरी संजीदगी के साथ तौलिए। उसके अच्छे और बुरे परिणामों पर भी भरपूर सोचिए। इसके बाद जो नतीजे सामने आते हैं, उन नतीजों के आधार पर कुछ कहिए या कीजिए। यदि आपको लगता है कि उस समय कुछ कहना या करना कतई उचित नहीं है, तो शांत रहिए और मौन धारण कर लीजिए और अपने काम में जुट जाइए। इससे निश्चित तौर पर आपकी इच्छा शक्ति और व्यक्तित्व का विकास होगा। कई बार यह देखा गया है कि लोग अपनी समस्याओं को या कठिनाइयों को एक बार में ही निपटा देना चाहते हैं। इसका कारण यह है कि वे समस्याओं या कठिनाइयों का समूह देख कर बेहद घबरा जाते हैं और उनके उत्साह पर पानी फिर जाता है। वे बेतरतीब तरीके से उन समस्याओं के समाधान में जुटने का प्रयास करने लगते हैं, जो कतई उचित नहीं है। समस्याओं या कठिनाइयों को निपटाने का सही ढंग यह है कि सबसे पहले उन सभी को कागज पर लिख डालिए। इसके बाद उस समस्या को उसके महत्व के क्रम से लगा लीजिए। यह देखिए कि वर्तमान में सबसे महत्वपूर्ण कौन सी समस्या है, जिसका आपको सबसे पहले निपटारा करना है। फिर उस समस्या को कई छोटे-छोटे भागों में बांटिए और उसके प्रारंभिक हल में जुट जाइए। इस प्रकार एक समय में एक ही समस्या को हल करने में अपना ध्यान लगाइए। इस विधि को अपनाने से आपका मनोबल और उत्साह बढ़ेगा। आप अपना काम और कुशलता से करने के कारण सरलता से सफलता प्राप्त कर सकेंगे।
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26-05-2012, 01:36 AM | #4 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
अहंकार का भूत
अहंकार या घमंड एक ऐसी बीमारी है, जो जिसके भी शरीर में प्रवेश कर जाती है, वह फिर कहीं का नहीं रहता। यह भी तय है कि ऐसे मनुष्य को अपने अहंकार के कारण एक न एक दिन पछताना भी पड़ता है। इसलिए मनुष्य कितना भी महान क्यों न हो जाए या कितना भी बड़ा पद क्यों न पा ले, उसे कभी भी अहंकार रूपी बीमारी को अपने पास नहीं फटकने देना चाहिए अन्यथा उस मनुष्य का बड़ा होना या बड़ा पद पा लेना कोई मायने नहीं रखता। एक बहुत रोचक कथा से इसे सरल रूप में समझें - एक राजा के दो बेटे थे। बड़ा भाई अहंकारी था, जबकि छोटा भाई मेहनती और परोपकारी। राजा की मौत के बाद बड़ा भाई गद्दी पर बैठा। उसके अत्याचारों से समूची प्रजा परेशान हो गई। उधर छोटा भाई चुपके-चुपके परेशान प्रजा की मदद करता रहता था। कुछ दिनों बाद चारों तरफ छोटे भाई की प्रशंसा होने लगी। जब बड़े भाई को इसका पता लगा, तो उसने छोटे भाई को बुलाकर कहा - "मैं इस राज्य का राजा हूं। मेरी अनुमति के बगैर तुम प्रजा के हित में कोई काम नहीं करोगे।" छोटा भाई बोला - "भैया, प्रजा की सेवा करना तो मेरा धर्म है।" बड़े भाई ने राज्य का एक छोटा सा हिस्सा देकर उसे अलग कर दिया। छोटे भाई ने अपने हिस्से की जमीन में आम का बगीचा लगाया। उसकी देखभाल वह स्वयं करता था। जल्दी ही उसमें फल आने लगे। उस रास्ते से जो भी यात्री जाता, उसके फल पाकर प्रसन्न होता और छोटे भाई को दुआएं देता। बड़े भाई ने सोचा कि वह भी यदि ऐसा ही कोई बगीचा लगाए, तो फल खाकर लोग उसकी भी प्रशंसा करेंगे और छोटे भाई को भूल जाएंगे। यह सोचकर उसने भी राज्य के मुख्य मार्ग के किनारे एक बगीचा लगवाया और उसकी देखभाल के लिए दर्जनों मजदूरों की नियुक्ति की। पेड़ बड़े हो गए, मगर उनमें फल नहीं आए। बड़े भाई ने माली से पूछा - "इनमें फल क्यों नहीं आए?" माली को कोई जवाब नहीं सूझा। तभी एक संत उधर से गुजर रहे थे। उन्होंने कहा - "इनमें फल नहीं आएंगे, क्योंकि इन पर अहंकार के भूत की छाया पड़ी हुई है।" यह सुनकर बड़ा भाई शर्मिंदा हो गया।
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26-05-2012, 01:39 AM | #5 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
सभी मौसम अच्छे बशर्ते ...
एक गांव में एक सेठ रहते थे। वे काफी विचारवान थे और हर फैसला काफी सोच समझ कर किया करते थे। जब सेठ का बेटा जवान हुआ, तो सेठ ने निश्चय किया कि वह अपने पुत्र के लिए ऐसी समझदार वधू लाएंगे, जिसके पास हर समस्या का समाधान हो। वे अपने विवेक के साथ समझदार लड़की ढूंढने में जुट गए। सेठ जब भी किसी लड़की को देखने जाते, तो उससे प्रश्न करते कि सर्दी, गर्मी और बरसात में सबसे अच्छा मौसम कौन सा होता है? एक लड़की ने सेठ को उत्तर दिया - "गर्मी का मौसम सबसे अच्छा होता है। उसमें हम लोग पहाड़ पर घूमने जाया करते हैं। सुबह-सुबह टहलने में भी काफी सुख मिलता है।" दूसरी लड़की से मिले, तो उससे भी वही सवाल किया। उस लड़की ने कहा - "मुझे तो सर्दी का मौसम पसंद है। इस मौसम में तरह - तरह के पकवान बनते हैं। हम जो भी खाते हैं, सब आसानी से पच जाता है। इस मौसम में गर्म कपड़ों का अपना ही सुख है।" सेठ तीसरी लड़की से मिले और फिर वही सवाल दागा, तो उस लड़की ने कहा - "मुझे तो वर्षा ऋतु सबसे ज्यादा पसंद है। इस मौसम में पृथ्वी पर चारों ओर हरियाली होती है। खेतों-खलिहानों से मिट्टी की सोंधी-सोंधी खुशबू आती है। कभी-कभी तो उसमें इतनी महक होती है कि उसे खाने की इच्छा होती है। आसमान में इंद्रधनुष देखकर मन बेहद आनंदित हो जाता है। इसके अलावा बारिश में भीगने का अपना ही मजा है।" सेठ को तीनों लड़कियों की बातें अच्छी तो लगीं, पर वह उनके जवाब से संतुष्ट नहीं हुए। अपनी इच्छा के अनुसार जवाब न मिलने के कारण वह थोड़ा निराश भी हो गए और उन्होंने सोचा कि शायद वे अपने बेटे के लिए अपने विचारों वाली बहू नहीं ढूंढ पाएंगे। तभी अचानक एक दिन वे अपने एक रिश्तेदार के घर पहुंचे, जहां उनकी मुलाकात एक लड़की से हुई। उससे भी उन्होंने वही सवाल दोहराया। लड़की ने जवाब दिया - "अगर हमारा मन और शरीर स्वस्थ है, तो सभी मौसम अच्छे हैं। अगर हमारा तन-मन स्वस्थ नहीं है, तो हर मौसम बेकार है।" सेठ इस उत्तर से बेहद प्रभावित हुए। उन्होंने उस लड़की को बहू बना लिया।
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26-05-2012, 02:59 AM | #6 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
फूलों के बीज का थैला
मनुष्य को हमेशा यही सोचना चाहिए कि वह अपने लिए तो सब कुछ करता ही है, लेकिन समाज और देश के लिए भी उसका जो कर्तव्य है उसे भी वह भलीभांति कैसे निभाए। अक्सर हम यही सोचते हैं कि हमारे अकेले के करने से क्या दुनिया बदल जाएगी। लेकिन ऐेसा नहीं है। हम अपने स्तर पर जो भी प्रयास कर सकते हैं जरूर करें। हो सकता है उसका लाभ सीधे तौर पर हमें कभी भी न मिले, लेकिन आने वाली पीढ़ी उसका लाभ जरूर उठा सकती है। तय मानिए जिस दिन से आप ऐसा सोचने लगेंगे, आपको एक सुखद शांति मिलेगी कि आपके कामों का लाभ किसी और को मिल रहा है। प्रसिद्ध रूसी विचारक मैडम लावत्स्की अपनी हर यात्रा में एक थैला रखती थीं, जिसमें कई तरह के फूलों के बीज होते थे। वह जगह-जगह उन बीजों को जमीन पर बिखेरती रहती थीं। लोगों को उनकी यह आदत बड़ी बेतुकी लगती थी। लोग समझ नहीं पाते थे कि इस तरह बीज बिखेरते रहने से क्या होगा। उन्हें आश्चर्य होता था कि मैडम लावत्स्की जैसी समझदार महिला सब कुछ जानते हुए भी ऐसा क्यों कर रही हैं। पर लोगों को उनसे इस बारे में पूछने का साहस ही नहीं होता था, लेकिन एक दिन एक व्यक्ति ने पूछ ही लिया। मैडम, अगर बुरा न मानें, तो कृपया बताएं कि आप इस तरह क्यों फूलों के बीज बिखराती रहती हैं? मैडम ने सहज होकर कहा- वह इसलिए कि बीज सही जगह अंकुरित हो जाएं और जगह-जगह फूल खिलें। उस व्यक्ति ने इस पर फिर सवाल किया-आपकी बात तो सही है पर क्या आप यह दोबारा देखने जाएंगी कि बीज अंकुरित हुए या नहीं। फूल खिले कि नहीं। इस पर मैडम ने कहा-इससे क्या फर्क पड़ता है कि मैं उन रास्तों पर दोबारा जाऊं या नहीं। मैं अपने लिए फूल नहीं खिलाना चाह रही। मैं तो बस, बीज डाल रही हूं, ताकि चारों तरफ फूल खिलें और धरती का शृंगार हो जाए। धरती सुंदर हो जाए। फिर जो इन फूलों को देखेगा, उनकी आंखों से भी मैं ही देखूंगी। फूल हों या अच्छे विचार, उन्हें फैलाने के काम में हर किसी को योगदान करना चाहिए। अगर प्रयासों में ईमानदारी है, तो सफलता मिलेगी ही।
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26-05-2012, 03:04 AM | #7 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
खुद करें अपनी मार्केटिंग
लोग आपको तब तक आदर नहीं देंगे, जब तक आप स्वयं को आदर नहीं देंगे। लोग आपकी कीमत तब तक नहीं समझेंगे, जब तक आप अपनी कीमत नहीं समझेंगे। लोग आपकी प्रतिभा को तब तक नहीं पहचानेंगे, जब तक आप अपनी प्रतिभा नहीं पहचानेंगे। मीडिया के वर्तमान युग में मार्केटिंग सफलता में अहम भूमिका निभाने लगी है। आप स्वयं को और अपनी प्रतिभा को किस तरह से पेश करते हैं, यह आज के दौर में बेहद महत्वपूर्ण हो गया है। कुछ लोग कहते हैं कि यदि आपके अंदर योग्यता और प्रतिभा है, तो वह एक दिन अवश्य ही पहचानी जाएगी। यह एक श्रेष्ठ विचार है, परन्तु वर्तमान युग में हर किसी की प्रतिभा अपने आप पहचान ली जाए, यह संभव भी नहीं है। लाखों लोग प्रतिभावान हैं, परन्तु चंद लोग ही शिखर पर जगह बना पाते हैं। आपकी प्रतिभा और आपके गुण आपके भीतर ही दबे रह जाते हैं, यदि आप उन्हें पेश नहीं करते हैं, उन्हें प्रदर्शित नहीं करते हैं। हमें कई ऐसे लोग मिलते हैं, जो चमत्कारिक तेजी से शीर्ष पर पहुंच जाते हैं और अपने समकक्ष लोगों को काफी पीछे छोड़ देते हैं। ऐसे लोग अपने विशिष्ट गुणों के साथ जीत का कॉमनसेंस भी इस्तेमाल करते हैं अर्थात सफलता के लिए जीनियस होने से कहीं ज्यादा है, कॉमनसेंस का होना। यदि आप एक सफल गायक बनना चाहते हैं, तो आपको अपने शानदार बायोडाटा, प्रशंसा पत्र, विशिष्ट फोटोग्राफ और अपने गीतों का आडियो सीडी या कैसेट विभिन्न कंपनियों और निर्देशकों को भेजना होगा। आपको अपनी मार्केटिंग खुद करनी होगी। अपने गुणों को सर्वश्रेष्ठ रूप से प्रस्तुत करना होगा। यदि आप सोच रहे हैं कि बिना मार्केटिंग किए घर बैठे ही एक न एक दिन आपकी प्रतिभा को कोई पहचान लेगा, तो आप गलत सोच रहे हैं। जमाना मार्केटिंग का है और इसमें आपको पारंगत होना ही होगा, तभी आप अपनी प्रतिभा के दम पर वह मुकाम हासिल कर पाएंगे, जिसके सपने आपने देखे या देख रहे हैं। आज से ही यह उपक्रम शुरू कर दें कि आपको अपने दम पर ही कामयाब होना है और आपको अपनी मार्केटिंग खुद ही करनी है। तय मानें, आप जरूर जीत जाएंगे।
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27-05-2012, 11:06 PM | #8 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
तनाव को छुपाएं नहीं
अक्सर लोग तनाव के कारणों को अपने भीतर ही छुपा लेते हैं। वे यह नहीं चाहते कि दूसरे भी उनकी वजह से बिना कारण ही तनावग्रस्त हो जाएं। वे अक्सर यह भी नहीं चाहते कि दूसरे उनको कमजोर समझें या दूसरों को उनकी अंदरूनी बातों का पता चल जाए। ऐसे लोगों को धीरे-धीरे अपने ही तनाव से घुटन सी होने लगती है, क्योंकि उन्हें तनाव को बाहर निकालने का रास्ता नहीं मिलता। ऐसे में तनाव अंदर ही अंदर बढ़ता चला जाता है। इसका नतीजा यह होता है कि वे या तो आत्मघाती कदम उठा लेते हैं या कोई भी गलत निर्णय कर बैठते हैं। ज्यादा बेहतर यही होगा कि आप अपनी पत्नी से, परिवार के सदस्यों से या करीबी मित्रों से समस्या बांट लें। तय मानिए, जैसे ही आप बात करना शुरू करते हैं, तनाव घटने लगता है। फिर जैसे-जैसे तनाव कम होता है, आपके दिमाग में समाधान आने लगते हैं। दरअसल तनाव सोचने की सकारात्मक प्रक्रिया पर ही विराम लगा देता है। जब आप दूसरों से अपनी समस्या के लेकर चर्चा करते हैं, तो उनकी सलाह से कभी-कभी आपको एकदम नए हल मिल जाते हैं। समाधान ढूंढने की मानसिकता आपके अंदर ही पैदा हो जाती है। ऐसे कई तथ्य हैं, जो अनजाने में आपने नजरअंदाज कर दिए थे, इससे वे आपके सामने आ जाते हैं। इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। किसी मरीज को शरीर के किसी हिस्से में इंफेक्शन हो जाने से वहां मवाद बन जाता है। असहनीय दर्द होना शुरू हो जाता है। सूजन आ जाती है। धीरे-धीरे वह सूजन बढ़ती चली जाती है। साथ ही दर्द भी बढ़ने लगता है। ऐसे में दवा भी किसी प्रकार का असर नहीं करती। डॉक्टर उस सूजन में छोटा चीरा लगाते हैं। जैसे ही दबाव को निकलने की जगह मिलती है, तेजी से मवाद और इंफेक्शन उस जगह से बाहर आने लगता है। मरीज को चमत्कारिक आराम मिलने लगता है। इसके साथ ही दवाएं भी असर करने लगती हैं। कहने का सार यही है कि दबाव एवं तनाव को बाहर निकलने का रास्ता दे दीजिए। अपनी समस्या को बांटिए। अपने अंदर कभी भी दबा कर मत रखिए। तय मानिए, आप खुद को काफी हल्का महसूस करेंगे।
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27-05-2012, 11:10 PM | #9 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
न्याय का सम्मान
जो सच है, उसके विपरीत कभी न झुकना ही सच्ची इंसानियत कहलाती है। मनुष्य का पेशा कोई भी हो, जहां तक संभव हो, उसके साथ न्याय जरूर करना चाहिए, क्योंकि पेशे के साथ न्याय करके ही मनुष्य न केवल समाज में ऊंचा उठ सकता है, बल्कि उस पेशे से जुड़े अन्य लोगों के लिए भी वह एक नायाब उदाहरण बन सकता है। जो कर्तव्य है, उसका बगैर किसी के दबाव में आए सही ढंग से पालन करने पर मनुष्य को समाज में ख्याति ही मिलती है, यह तय है। माधव राव मराठा राज्य के पेशवा थे और राम शास्त्री प्रधान न्यायाधीश। न्यायाधीश की नियुक्ति पेशवा करते थे, लेकिन राम शास्त्री के कामकाज में वह कभी हस्तक्षेप नहीं करते थे। एक बार मराठा राज्य के वफादार और पेशवा के करीबी सरदार बिसाजी पंत लेले ने अंग्रेजों का जहाज लूट लिया। फिरंगियों ने इसकी शिकायत राम शास्त्री से की। उन्होंने लेले को न्यायालय के सामने हाजिर होने का आदेश दिया, लेकिन लेले हाजिर नहीं हुए। तब शास्त्री ने आदेश दिया कि उन्हें गिरफ्तार कर हाजिर किया जाए। इससे पूरे राज्य में हड़कंप मच गया। कई सरदारों ने राम शास्त्री की शिकायत माधव राव से की। माधव राव ने राम शास्त्री को बुलवाया और पूछा - आपने लेले को इतना कठोर दंड क्यों दिया? शास्त्री ने कहा - श्रीमंत, अदालत के सामने सब बराबर होते हैं। लेले ने जो अपराध किया है, उसी का दंड उन्हें दिया गया है। माधव राव ने पूछा - क्या यह मराठा राज्य के हित में होगा कि फिरंगियों की शिकायत पर हम अपने ही सरदार को दंडित करें? शास्त्री ने कहा - आपको लेले को क्षमा करने का अधिकार है, लेकिन उस समय न्याय की कुर्सी पर राम शास्त्री नहीं, कोई दूसरा बैठा होगा। माधव राव ने कहा - शास्त्री आप ऐसा न कहें। आप के रहते ही तो मराठा राज्य पूरी तरह सुरक्षित है। शास्त्री बोले - ठीक है कि लेले को फिरंगियों की शिकायत पर दंडित किया गया है, लेकिन राज्य में यदि न्याय के प्रति विश्वास नहीं रहेगा और न्यायालय की अवमानना होगी, तो शासन व्यवस्था को चरमराते देर नहीं लगेगी। माधव राव इस जवाब को सुन निरुत्तर हो गए।
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29-05-2012, 11:00 PM | #10 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
खुशनुमा और सकारात्मक बनें
अगर आप रोज सुबह सकारात्मक मूड में ऑफिस जाते हैं, तो आपकी छवि ऐसे व्यक्ति की बन जाएगी, जिस पर तनाव, मुश्किलों और समस्याओं का असर उस तरह नहीं होता, जिस तरह एक बतख की पीठ पर पानी का। इससे आपकी छवि ऐसे व्यक्ति के रूप में बन जाएगी, जो हमेशा नियंत्रण में रहता है और शांत, आरामदेह, आत्मविश्वास से परिपूर्ण और बहुत परिपक्व है। यह सब किसी एक गाने की धुन से भी हो सकता है, जिसकी सीटी बजाते हुए आप अपनी डेस्क तक पहुंचते हैं। हर समय खुशनुमा रहें। बाहर बारिश हो रही है, काले बादल छाए हुए हैं और जाड़े की दोपहर बहुत उदासी भरी है। बिजनेस मंदा है, ब्याज दरें एक बार फिर ऊपर चढ़ गई हैं, बॉस खराब मूड में है अथवा हर कर्मचारी मुंह लटकाए बैठा है। इसके बावजूद आप अपनी मुस्कान को मिटने न दें। ठीक है, यह बुरा दिन है; लेकिन यह गुजर जाएगा और सूरज आसमान में दोबारा लौट आएगा। आपकी स्थिति चाहे जो हो, चीजें हमेशा बेहतर होंगी। खुशनुमा और सकारात्मक नजरिया कायम रखना एक कला है। पहले तो आपको इस पर यकीन करने की जरूरत नहीं है - बस, इसे कर दें। नाटक करें। अभिनय करें, लेकिन करें। कुछ समय बाद आप पाएंगे कि आप नाटक नहीं कर रहे, आप तो वाकई खुशनुमा महसूस कर रहे हैं। यह एक चाल है। आप किसी दूसरे से नहीं खुद से चाल चल रहे हैं। मुस्कुराने से आपके हार्मोन प्रवाहित होते हैं। ये हार्मोन आपको बेहतर महसूस करवाएंगे। जब आप बेहतर महसूस करेंगे, तो आप ज्यादा मुस्कुराएंगे। इससे और हार्मोन पैदा होंगे। इसके लिए सिर्फ पहले कुछ दिन मुस्कुराने का नाटक करना पड़ेगा। इसके बाद तो ऐसा चक्र शुरू हो जाएगा कि आपको हर वक्त बेहतर महसूस होने लगेगा। जब आपको खुशनुमा और सकारात्मक व्यक्ति के रूप में देखा जाने लगेगा, तो लोग आपके साथ ज्यादा वक्त गुजारना चाहेंगे। खुशनुमा व्यक्ति जैसा शक्तिशाली चुंबक दूसरा नहीं होता। खुशनुमा बनने और सकारात्मक बनने में गुजारा गया हर पल आपकी जिंदगी में एक पल जोड़ देता है। बेहतर ही चुनें। अब चुनाव सिर्फ आपके हाथ में है।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु Last edited by Dark Saint Alaick; 29-05-2012 at 11:06 PM. |
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