15-04-2016, 11:35 PM | #1 |
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हम तो
ज़ख्मों को सहला कर हंस दिए हम तो
अपनी नादानियों को सोच मुस्कुरा दिए हम तो नासूरे ज़ख्म को सहलाया नहीं जाता ये भूल गए हम तो हर बार भूल जाते हैं कर बैठते हैं खता हम तो रखते हैं अपनेपन की ख्वाहिशे गैरों से क्यूँ हम तो जिस ज़माने में अपने भी गैर बने फिरते हैं तो परायों से फिर भी अपनेपन की उम्मीदें आखिर क्यूँ हमको पग पग ठोकरे मिलती गईं फिर भी एक आश लिए दरबदर इस ज़माने में भटकते रहे हम तो .. काश होती दुनिया में सिर्फ खुशियां ही खुशियाँ तो यूँ अश्को के दरिया में न डूबा करते हम तो |
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