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Old 20-10-2011, 10:52 PM   #11
abhisays
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पीटर की मृत्यु के ४० साल बाद कैथरीन को गद्दी मिली जो जर्मन मूल की थी । उसने पीटर के पोते से शादी की थी । उसने रूसी साम्राज्य तथा इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा । कैथरीन के समय के सेनाध्यक्ष अलेक्ज़ेंडर सुवोरोव ने एक भी युद्ध न हारने का कीर्तिमान बनाया और १७९९ में इटली में नेपोलियन की फ्रेंच सेना के साथ हुए मुकाबिले के बाद वापस आने में कामयाबी दिखाई । पर नेपोलियन १८१२ में रूस पर आक्रमण करने दुबारा आया । इस समय अत्यधिक ठंड की वजह से फ्रासिसी सेना को बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और अंततः नेपोलियन की हार हुई । इस युद्ध ने लियो तोलस्तोय कए विश्व-प्रसिद्ध उपन्यास को जन्म दिया जिसका नाम था - युद्ध और शांति ।
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Old 20-10-2011, 10:53 PM   #12
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औद्योगीकरण और साम्यवाद

जब निकोलस द्वितीय सत्ता में आया (१८९४) तबतक रूस का औद्योगीकरण एक नए सामाजिक वर्ग को जन्म दे चुका था - मजदूर संघ । उद्योगों के मजदूरों के संघ संगठित होने लगे थे । १९०३ में रूसी जनतांत्रिक श्रमिक दल के दो टुकड़े हुए - बोल्शेविक (शाब्दिक अर्थ - बहुमती) और मेन्शेविक (अल्पमती) । ये क्रांति चाहते थे । १९०४-५ में देश की पूर्वी सेना को जापान के हाथों करारी हार का मुँह देखना पड़ा था । १९०५ में सेंट पीटर्सबर्ग़ में आयोजित एक शातिपूर्ण प्रदर्शन रैली पर सेना ने गोली बरसाई जिसमें सैकड़ों मारे गए और कई घायल हो गए । ऐसी घटनाओं से जनता में प्रशासन के ख़िलाफ़ रोष और भी बढ़ा । इन्ही कारणों से प्रेरित होकर १९०५ में एक क्रांति हुई जिसको उस समय दबा दिया गया । आंदोलन तो दब गया लेकिन ज़ार निकोलस द्वितीय को कई सुधार करने पड़े, इनमें सबसे महत्वपूर्ण था - रूसी संसद ड्यूमा का गठन । रूसी भाषा में डोमा का अर्थ घर या सदन होता है ।
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Old 20-10-2011, 10:53 PM   #13
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प्रथम विश्वयुद्ध

प्रथम विश्वयुद्ध की शुरुआत यूरोप में १९१४ में हुई । सेंट पूटर्सबर्ग़ का नाम बदलकर पेत्रोग्राद कर दिया गया । कारण ये था कि पुराना नाम जर्मन लगता था जबकि पेत्रोग्राद पूर्णरूपेण रूसी था - इससे देशभक्ति लाने का अंदेशा था । लेकिन सैन्य विफलताओं तथा खाद्य साधनों की कमी की वजह से मजदूरों तथा सैनिकों में असंतोष फैल गया । फरवरी १९१७ में पेत्रोग्राद में विद्रोह हुए जिसके फलस्वरूप ज़ार निकोलस द्वितीय का अपहरण कर लिया गया । इस घटना के साथ ही रूस में पिछले ३०० सालों से चले आ रहे साम्राज्य का अन्त हुआ और साम्यवाद की नींव रख दी गई । हाँलांकि साम्यवादियों को सत्ताधिकार तुरंत नहीं मिला । रूस युद्ध से अलग हो चुका था । इधर निकोलस के परिवार को कैद कर रखा गया और १६-१७ जुलाई १९१८ की रात को उनकी हत्या कर दी गई ।
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Old 20-10-2011, 10:54 PM   #14
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लगातार निराश हो चुकी रूसी जनता द्वारा बोल्शेविकों को समर्थन मिलने लगा था और इस समर्थन में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही थी । अपने नेता व्लादिमीर लेनिन के नेतृत्व में बोल्शेविकों में २५ अक्टूबर को सत्ता पर अधिकार कर लिया । इस घटना का विश्व इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है । यह विश्व में पहली बार किसी साम्यवादी शासन की स्थापना का क्षण था । इस घटना को अक्टूबर क्रांति के नाम से जाना जाता था । रूस में इस समय तक जूलियन कैलेंडर का इस्तेमाल होता था जो पुराना था और उसमें सूर्य की परिक्रमा करने में पृथ्वी के द्वारा लगाए गए दिनों का अंशात्मक हिसाब नहीं था । यूरोप के कई देश (जैसे इंग्लैंड) पहले से ही ग्रेगोरियन कैलेंडर - जो आजकल प्रयुक्त होता है - का प्रयोग शुरु कर चुके थे । इस कैलेंडर में इस दोष का निवारण था: अब तक की गई इन ग़लतियो के एवज में वर्तमान तिथि में १३ दिन और जोड़ देना । इसको अपनाने के बाद २५ अक्टूबर (क्रांति का दिन) ७ नवंबर को आने लगा । हाँलांकि इस घटना को अक्टूबर क्रांति कहते हैं पर इसे ७ नवंबर को मनाया जाता है ।
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Old 20-10-2011, 10:54 PM   #15
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रूस के युद्ध से अलग होने के कुछ ही दिनों बाद भयंकर अशांति का माहौल फैल गया । बोल्शेविकों को पेत्रोग्राद तथा मॉस्को में तो बहुत समर्थन मिला पर संपूर्ण देश के परिदृश्य में वे राजनैतिक रूप से बहुत अछूते थे । एक विद्वेषपूर्ण आतरिक युद्ध सी स्थिति पैदा हो गई । बोल्शेविकों द्वारा स्थापित लाल सेना तथा रूस की राजनैतिक तथा सैनिक संस्थाओं द्वारा गठित श्वेत सेना में संघर्ष छिड़ गया । इसके अलावे हरी सेना तथा काली सेना नाम के भी संगठन बने जो इन दोनों के ख़िलाफ़ थे । १९२२ में अंततः लाल सेना की विजय हुई । दिसंबर १९१७ में बोल्शेविकों ने अपनी राजनैतिक शक्ति बनाने के लिए एक नई पुलिस का गठन किया था ।
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Old 20-10-2011, 10:55 PM   #16
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लेनिन

लेनिन का जन्म २२ अप्रैल १८७० को सिम्बर्स्क में हुआ था । अपनी राजनैतिक गतिविधियों के कारण उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया । हाँलांकि उन्होंने एक बाहरी विद्यार्थी के रूप विधि की डिग्री हासिल की । उसके बाद वे सेंट पूटर्सबर्ग़ चले गए और वहाँ पर क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होते रहे । उन्होंने कई उपनामों का इस्तेमान किया जिसमें अंततः १९०१ में वे लेनिन का प्रयोग करने पर स्थिर हो गए । उन्हें साइबेरिया में निर्वासन भुगतना पड़ा । १९०७ के बाद इनको रूस में रहना असुरक्षित लगने लगा और इस कारण वे पश्चिमी यूरोप चले गए । स्विट्ज़रलैंड में बसे लेनिन को जर्मन मदद इस आशा के साथ मिली कि वो रूसी सैन्य प्रयासों को कमज़ोर करने में मदद करेंगे । इस घटना की वजह से उन्हें अक्सर एक जर्मन जासूस की नज़र से भी देखा गया । १९१८ में उनपर दो आत्मघाती हमले हुए । १९२४ में उनकी मृत्यु हो गई । इसके तीन दिन बाद ही पेत्रोग्राद का नाम बदल कर लेनिन ग्राद कर दिया गया । प्रेत्रोग्राद को पहले (और अब ) सेंट पीटर्सबर्ग़ कहते थे ।
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Old 20-10-2011, 10:56 PM   #17
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स्तालिन

लेनिन की मृत्यु के बाद जोसेफ स्तालिन को सत्ता संघर्ष में विजय मिली । उसने दुनिया भर में साम्यवाद और तानाशाही का नया आयाम पेश किया । स्तालिन ने अपने सभी प्रतिद्वंदियों को या तो मरवा दिया या निर्वासित कर दिया । स्तालिन का जन्म आज के जॉर्जिया में १८७९ में हुआ था जो उसके जन्म के समय रूसी साम्राज्य का हिस्सा था । वो अपनी किशोरावस्था से कविताएँ लिखता था पर इस रूप में उसे अधिक सफलता नहीं मिली ।

सत्ता में आने तुरंत बाद उसने रूस को एक बिल्कुल नए प्रशासनिक स्वरूप में ले गया । उसने पंचवर्षीय योजनाओं की नींव डाली जो पहले से मौजूद आर्थिक योजना की जगह पर लाई गई थी । किसानों से उनकी जमीन लेकर उन्हें एक सम्मिलित खेत बनाया तथा उनमें काम करने वाले श्रमिकों को श्रम के अनुसार वेतन मिलता । इसी प्रकार उद्योगों में भी उत्पादन बढ़ाने की व्यवस्था की गई । जल्द ही रूस एक उपभोक्ता सामग्री बनाने वाले देश से एक भारी मशीनों को बनाने वाले देश के रूप में उभरा । कला और साहित्य को सरकार द्वारा नियंत्रित किया गया । धर्म पर भी लगाम लगाई गई और इसके तहत चर्चों को या तो बन्द किया गया या तोड़ा गया या उनका इस्तेमाल अन्य कार्यों में किया जाने लगा । १९३० के दशक में रूसी लोगों के जीवन में अनुशासन अभूतपूर्व रूप से लागू किया गया । निस्संदेह यह सभी लोगों द्वारा पसन्द नहीं किया गया । उद्योगों में अधिक मिहनत करने वाले मजदूरों को पुरस्कार और प्रोत्साहन मिले जिससे कि उत्पादन क्षमता में बढोतरी हुई । उसी समय स्ताखानोवित नामक पद बहुत लोकप्रिय हुआ । यह अलेक्सेई स्ताखनोव नामक एक मजदूर द्वारा छः घंटे से कम समय में १०२ टन कोयले के खनन का रिकार्ड बनाने के लिए प्रसिद्ध हुआ । इस व्यक्ति को उस साल के टाइम पत्रिका पर भी जगह मिली । इन प्रोत्साहनों के द्वारा मजदूरों में अधिक उत्पादन की होड़ लगी । जल्द ही रूस एक औद्योगिक देश के रूप में जाना जाने लगा । १९३४ के आसपास का रूसी जीवन वहाँ की संस्कृति पर एक अमिट छाप छोड़कर गया । सरकार द्वारा आशावाद, आधिक्य, साम्यवादी भावना, देशभक्ति जैसी भावनाओं को बढ़ावा दिया गया ।
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द्वितीय विश्वयुद्ध

जिसे दुनिया द्वितीय विश्वयुद्ध के नाम से जानती है उसे रूस में महान देशभक्ति युद्ध के नाम से जाना जाता है । रूस इस युद्ध के लिए पहले से तैयार नहीं था । 1939 में जर्मनी के साथ हुए सौहार्द्र समझौते के बाद 1941 में हिटलर द्वारा आक्रमण करने से रूस को झटका सा लगा । जल्द ही जर्मन सेना ने रूस के पश्चिमी प्रदेशों पर कब्जा कर लिया और लेनिनग्राद को घेर लिया गया । इसके बाद शुरु होता है एक अप्रत्याशित प्रतिरोध और संघर्ष का क्रम जिसने इतिहास में अपना नाम दर्ज करवाया । लगभग 900 दिनों तक घिरे रहने, सैन्य और शस्त्रास्तों की कमी के बावजूद रूसी सेना ने जर्मनी की यूरोपजेता सेना के सामने समर्पण नहीं किया । कठिन सर्दी और भूख में भी रूसियों का मनोबल कायम रहा और अंततः कम से कम 6 लाख 70 हज़ार लोगों की मौत के बावजूद रूसी लोग जर्मन सेना का प्रतिरोध करते रहे । इससे रूसी सेना की अजेयता और दृढ़ता को नमूना पेश हुआ ।

इसी बीच जर्मन दिसम्बर 1941 में मॉस्को पहुँच गए । राजधानी को बचाने के लिए युवाओं की भर्ती होने लगी । अपने सेनापतियों के सलाह के खिलाफ स्तालिन ने भारी जर्मन सैन्य जमावड़े के अंदेशे के रहते हुए भी नवंबर 7 को बोल्शेविक क्रांति की 25वीं वर्षगाँठ की परेड मॉस्को में निकलवाई । इसकी घोषणा आखिरी समय तक नहीं की गई थी और सौभाग्यवश उस दिन कोई बमबारी नहीं हुई । इससे रूसी नौजवानों में एक मनोबल का संचार हुआ । सैनिक वहीं से मोर्चे के लिए रवाना हुए ।
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स्तालिनग्राद की घेराबंदी

वोल्गा नदी के दक्षिण में बसा शहर स्तालिनग्राद औद्योगिक क्रांति की देन था । हाँलांकि इसका नाम बदलकर अब वोल्गोग्राद कर दिया गया है पर उस समय इसका नाम जोसेफ़ स्तालिन के नाम पर था और इस कारण इस शहर पर कब्जा करने का मतलब स्तालिन को हराना था । इसी ख़ब्त के साथ हिटलर ने अपनी सेना को स्तालिनग्राद के कब्जे के लिए भेजा । जून १९४२ में वोल्गा नदी के पश्चिमी तट पर जर्मन सेना आ पहुँची । शहर पर बमों की वर्षा सी होने लगी । जर्मन युद्धक विमानों ने वोल्गा नदी पार कर आ रहे रूसी सैनिकों पर भी गोली बारी की । सैन्य साधनों की कमी से जूझ रहे रूसी सैनिकों ने दो बड़े करनामे कर दिखाए ।

पहला कारनामा था - पावलोव भवन । जर्मन सेना से चारों ओर से घिर चुके एक घर में क़ैद चंद सैनिकों ने दो महीनों तक अपना अड्डा डाले रखा और जर्मन सेना पर जवाबी कार्रवाई करते रहे । बाद में रूसी प्रतिरोधी सेना की टुकड़ियों ने इस भवन को जर्मनों से बचा लिया और इस तरह याकूव पावलोव के नेतृत्व में भीषण घेराबंदी और आक्रमण सहकर इस टुकड़ी ने रूसी सेना के सामने एक प्रेरणाप्रदायक संघर्ष किया । दूसरी घटना थी स्नाइपर वसिली जाइत्सेव की निशानेबाजी । छुपकर मारने वाली इस कला में जर्मन सेना ने भी अपने श्रेष्टतम स्नाइपर का इस्तेमाल किया । जवाब में मध्य रूस से आए इस नौजवान ने कोई २०० जर्मन सैनिक अकेले मार दिए । जल्द ही रूसी प्रेस ने इस घटना का प्रचार भी किया जिससे रूसी सेना का मनोबल बना रहा । लगभग २०० दिनों की घेराबंदी के बाद रूसी सेना की विजय हुई । इस युद्ध में दोनों ओर से लगभग १५ लाख लोग मारे गए थे । गलियों में सैनिको के शवों के ढेर लग गए थे । स्तालिनग्राद में रूसियों की विजय विश्वयुद्ध के लिए भी अहम साबित हुई । जर्मनों की हार होने लगी । रूसी सेना जर्मनों के धकेलते-धकेलते १९४५ में बर्लिन तक आ पहुँची और मई १९४५ में जर्मनी की हार हुई । स्तालिन द्वारा दिए गए आँकड़ों में रूस में कुल ७० लाख लोग मारे गए थे । बाद के अनुमानों के अनुसार रूस में युद्ध के दौरान कुल २.६ करोड़ लोग मारे गए । रूस में युद्ध का अंत ९ मई १९४५ को माना जाता है जब जर्मन सेना ने समर्पण कर दिया । इस दिन को आज भी विजय दिवस के रूप में मॉस्को के रेड स्क्वायर में मनाया जाता है ।
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शीतयुद्ध

रूस युद्ध में मे भारी क्षति सहन कर चुकने के बावजूद एक शक्ति के रूप में उभरा । राजनैतिक और वैज्ञानिक कारणों से रूस तथा अमेरिका में श्रेषठता साबित करने की प्रतिस्पर्ध लग गई । युद्ध के आखिरी क्षणों में रूसियों के जर्मन रॉकेट वैज्ञानिक फॉन-ब्राउन के रॉकेट डिजाइन हासिल हुए जबकि खुद फ़ॉन-ब्राउन अमेरिका चले गए । दोनों देशों में रॉकेट विज्ञान के क्षेत्र में नए अनुसंधान और विकास किए । १९४९ में नैटो की स्थापना हुई । स्तालिन की मृत्यु १९५३ में हो गई । तीस साल के शासन के बाद रूस एकदम नई स्थिति में आ गया था । इसके बाद निकिता ख्रुश्चेव ने सत्ता सम्हाली और उन्होंने वि-स्टालीकरण की बात की । ख्रुश्चेव ने एक और कदम उठाया - रूसी सुरक्षा परिषद का गठन जिसे संक्षेप में केजीबी («КГБ»)कहते हैं । १९६१ में यूरी गगरिन अंतरिक्ष जाने वाले पहले व्यक्ति बने पर १९६९ में नील आर्मस्ट्रॉंग के चाँद पर सबसे पहले कदम रखने के साथ ही अमेरिका ने रूसियों को इस दौड़ में पीछे छोड़ दिया ।

निकिता ख्रुश्चेव ने स्तालिन की उपलब्द्धियों के चर्चा में रहने के बावजूद अपनी जगह बनाई । उसके शासनकाल में खाद्य संकट गहरा गया । इसका उपाय उसने सर्वत्र मक्के की खेती लगाकर करने की पहल की जो अधिक कारगर नहीं हुई । ख्रुश्चेव के शासनकाल को शीतयुद्ध का चरम कहा जा सकता है । अंतरिक्ष होड़, १९६० में जमीन के उपर उड़ रहे अमेरिकी विमान को नष्ट करना, १९६१ में बर्लिन की दीवार का खड़ा होना, १९६२ में क्यूबा का मिसाइल संकट इत्यादि जैसी तनावपूर्ण और संघर्षाहूत घटनाएँ उसके शासनकाल में ही हुईं । १९६४ में उनको लिओनिड ब्रेझ्नेव के हाथों हार का सामना करना पड़ा ।

ब्रेझ्नेव के शासन काल को एक स्थिरता का काल कहा जाता है क्योंकि अर्थव्यवस्था में पिछले तीन दशकों से जो तेजी आई थी वो वापस निम्नस्तर पर चली गई । १९७२ में अमेरिका से संबंध सुधारों के प्रयास तो हुए पर १९७९ में अफग़ानिस्तान पर रूस की चढ़ाई के साथ ही इन संबंधों में भी दरार आ गई । १९८४ में मॉस्को में ओलंपिक खेलों का आयोजन हुआ जो सफल रहा । १९८२ में ब्रेझ्नेव का निधन हो गया । इसके बाद मिखाइल गोर्बाचोव को सत्ता मिली । गोर्बाचोव के शासनकाल में कई सुधार हुए ।
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