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Old 03-02-2011, 09:53 PM   #1
ABHAY
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Post क्या समय यात्रा सम्भब है !

इसके लिए समय को समझना बहुत जरुरी है जैसे :-

समय (time) एक भौतिक राशि है। जब समय बीतता है, तब घटनाएँ घटित होती हैं तथा चलबिंदु स्थानांतरित होते हैं। इसलिए दो लगातार घटनाओं के होने अथवा किसी गतिशील बिंदु के एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक जाने के अंतराल (प्रतीक्षानुभूति) को समय कहते हैं। समय नापने के यंत्र को घड़ी अथवा घटीयंत्र कहते हैं। इस प्रकार हम यह भी कह सकते हैं कि समय वह भौतिक तत्व है जिसे घटीयंत्र से नापा जाता है। सापेक्षवाद के अनुसार समय दिग्देश (स्पेस) के सापेक्ष है। अत: इस लेख में समयमापन पृथ्वी की सूर्य के सापेक्ष गति से उत्पन्न दिग्देश के सापेक्ष समय से लिया जाएगा। समय को नापने के लिए सुलभ घटीयंत्र पृथ्वी ही है, जो अपने अक्ष तथा कक्ष में घूमकर हमें समय का बोध कराती है; किंतु पृथ्वी की गति हमें दृश्य नहीं है। पृथ्वी की गति के सापेक्ष हमें सूर्य की दो प्रकार की गतियाँ दृश्य होती हैं, एक तो पूर्व से पश्चिम की तरफ पृथ्वी की परिक्रमा तथा दूसरी पूर्व बिंदु से उत्तर की ओर और उत्तर से दक्षिण की ओर जाकर, कक्षा का भ्रमण। अतएव व्यावहारिक दृष्टि से हम सूर्य से ही काल का ज्ञान प्राप्त करते हैं।
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Old 03-02-2011, 09:54 PM   #2
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Post Re: क्या समय यात्रा सम्भब है !

समय को कैसे मापे

समय मापन

अति प्राचीन काल में मनुष्य ने सूर्य की विभिन्न अवस्थाओं के आधार प्रात:, दोपहर, संध्या एवं रात्रि की कल्पना की। ये समय स्थूल रूप से प्रत्यक्ष हैं। तत्पश्चात् घटी पल की कल्पना की होगी। इसी प्रकार उसने सूर्य की कक्षागतियों से पक्षों, महीनों, ऋतुओं तथा वर्षों की कल्पना की होगी। समय को सूक्ष्म रूप से नापने के लिए पहले शंकुयंत्र तथा धूपघड़ियों का प्रयोग हुआ। रात्रि के समय का ज्ञान नक्षत्रों से किया जाता था। तत्पश्चात् पानी तथा बालू के घटीयंत्र बनाए गए। ये भारत में अति प्राचीन काल से प्रचलित थे। इनका वर्णन ज्योतिष की अति प्राचीन पुस्तकों में जैसे पंचसिद्धांतिका तथा सूर्यसिद्धांत में मिलता है। पानी का घटीयंत्र बनाने के लिए किसी पात्र में छोटा सा छेद कर दिया जाता था, जिससे पात्र एक घंटी में पानी में डूब जाता था। उसके बाहरी भाग पर पल अंकित कर दिए जाते थे। इसलिए पलों को पानीय पल भी कहते हैं। बालू का घटीयंत्र भी पानी के घटीयंत्र सरीखा था, जिसमें छिद्र से बालू के गिरने से समय ज्ञात होता था । किंतु ये सभी घटीयंत्र सूक्ष्म न थे तथा इनमें व्यावहारिक कठिनाइयाँ भी थीं। विज्ञान के प्रादुर्भाव के साथ लोलक घड़ियाँ तथा तत्पश्चात् नई घड़ियाँ, जिनका हम आज प्रयोग करते हैं, अविष्कृत हुई।

जैसा पहले बता दिया गया है, समय का ज्ञान सूर्य की दृश्य स्थितियों से किया जाता है। सामान्यत: सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन तथा सूर्यास्त से पुन: सूर्योदय तक रात्रि होती हैं, किंतु तिथिगणना के लिए दिन रात मिलकर दिन कहलाते हैं। किसी स्थान पर सूर्य द्वारा याम्योत्तर वृत्त के अधोबिंदु की एक परिक्रमा को एक दृश्य दिन कहते हैं, तथा सूर्य की किसी स्थिर नक्षत्र के सापेक्ष एक परिक्रमा को नाक्षत्र दिन कहते हैं। यह नक्षत्र रूढ़ि के अनुसार माप का आदि बिंदु (first point of Aries i. e. g), अर्थात् क्रांतिवृत्त तथा विषुवत् वृत्त का वसंत संपात बिंदु लिया जाता है। यद्यपि नाक्षत्र दिन स्थिर है, तथापि यह हमारे व्यवहार के लिए उपयोगी नहीं है, क्योंकि यह दृश्य दिन से 3 मिनट 53 सेकंड कम है। दृश्य दिन का मान सदा एक सा नहीं रहता। अत: किसी घड़ी से दृश्य सूर्य के समय का बताया जाना कठिन है। इसके दो कारण हैं : एक तो सूर्य की स्पष्ट गति सदा एक सी नहीं रहती, दूसरे स्पष्ट सूर्य क्रांतिवृत्त में चलता दिखाई देता है। हमें समयसूचक यंत्र बनाने के लिए ऐसे सूर्य की आवश्यकता होती है, जो मध्यम गति से सदा विषुवत्वृत्त में चले। ऐसे सूर्य को ज्योतिषी लोग ज्योतिष-माध्य-सूर्य (mean Astronomical Sun) अथवा केवल माध्य सूर्य कहते हैं। विषुवत्वृत्त के मध्यम सूर्य तथा क्रांतिवृत्त के मध्यम सूर्य के अंतर को भास्कराचार्य ने उदयांतर तथा क्रांतिवृत्तीय मध्यम सूर्य तथा स्पष्ट सूर्य के अंतर को भुजांतर कहा है। यदि ज्योतिष-माध्य सूर्य में उदयांतर तथा भुजांतर संस्कार कर दें, तो वह दृश्य सूर्य हो जाएगा। आधुनिक शब्दावली में उदयांतर तथा भुजांतर के एक साथ संस्कार को समय समीकरण (Equation of time) कहते हैं। यह हमारी घड़ियों के समय (माध्य-सूर्य-समय) तथा दृश्य सूर्य के समय के अंतर के तुल्य होता है। समय समीकार का प्रति दिन का मात्र गणित द्वारा निकाला जा सकता है। आजकल प्रकाशित होनेवाले नाविक पंचांग (nautical almanac) में, इसका प्रतिदिन का मान दिया रहता है। इस प्रकार हम अपनी घड़ियों से जब चाहें दृश्य सूर्य का समय ज्ञात कर सकते हैं। इसका ज्योतिष में बहुत उपयोग होता है। विलोमत: हम सूर्य के ऊर्ध्व याम्योत्तर बिंदु के लंघन का वेध करके, उसमें समय समीकार को जोड़ या घटाकर, वास्तविक माध्य-सूर्य का समय ज्ञात करके अपनी घड़ियों के समय को ठीक कर सकते हैं।

हम हमने समय नापने के लिए आधुनिक घड़ियाँ बताईं, तब यह पाया गया कि सर्दी तथा गर्मी के कारण घड़ियों के धातुनिर्मित पुर्जों के सिकुड़ने तथा फैलने के कारण ये घड़ियाँ ठीक समय नहीं देतीं। अब हमारे सामने यह समस्या थी कि हम अपनी यांत्रिक घड़ियों की सूक्ष्म अशुद्धियों को कैसे जानें? यद्यपि सूर्य के ऊर्ध्व याम्योत्तर लंघन की विधि से हम अपनी घड़ियों की अशुद्धि जान सकते थे, तथापि सूर्य के ऊर्ध्व याम्योत्तर लंघन का वेध स्वयं कुछ विलष्ट हैं तथा सूर्य के बिंब के विशाल होने के कारण उसमें वेधकर्ता की व्यक्तिगत त्रुटि (personal error) की अधिक संभावना है। दूसरी कठिनाई यह थी कि हमारी माध्य-सूर्य-घड़ी के समय का आकाशीय पिंडों की स्थिति से कोई प्रत्यक्ष संबंध न था। इसी कमी की पूर्ति के लिए नक्षत्र घड़ी (siderial clock) का निर्माण किया गया, जो नक्षत्र समय बताती थी। इसके 24 घंटे पृथ्वी की अपने अक्ष की एक परिक्रमा के, अथवा वसंतपात बिंदु के ऊर्ध्व याम्योत्तर बिंदु की एक परिक्रमा के, समय के तुल्य होते हैं। 21 मार्च के लगभग, बसंतपात बिंदु हमारे दृश्य-सूर्य के साथ ऊर्ध्व याम्योत्तर लंघन करता है। उस समय नाक्षत्र घड़ी का समय शून्य घंटा, शून्य मिनिट, शून्य सेकंड होता है। हमारी घड़ियों में उस समय 12 बजते हैं। दूसरे दिन दोपहर को नाक्षत्र घड़ी का समय 4 मिनट होगा। अन्य किसी भी निचित दिन माध्य-सूर्य के समय को हम अनुपात से नाक्षत्र सम में, या नाक्षत्र समय को माध्य सूर्य के समय में, परिवर्तित कर सकते हैं। नाविक पंचांगों में इस प्रकार के समयपरिवर्तन की सारणियाँ दी रहती हैं। इस प्रकार यदि हमें किसी प्रकार शुद्ध समय देनेवाली नाक्षत्र घड़ी मिल जाए, ते हमें अपनी माध्य घड़ी के समय को शुद्ध रख सकते हैं। यद्यपि नाक्षत्र घड़ी भी यांत्रिक होती है तथा उसमें भी यांत्रिक त्रुटि हो जाती है, तथापि इसे प्रतिदिन शुद्ध किया जा सकता है, क्योंकि इसका आकाशीय पिंडों की स्थिति से प्रत्यक्ष संबंध है। वह इस प्रकार है : कोई ग्रह व तारा ऊर्ध्व याम्योत्तर बिंदु से पचिम की ओर खगोलीय ध्रुव पर जो कोण बनाता है, उसे कालकोण कहते हैं। इस प्रकार नक्षत्र सम बसंतपात का कालकोण है। किसी तारा वा ग्रह का विषुवांश बसंतपात से उसकी विषुवत्वृत्तीय दूरी (अर्थात् ग्रह या तारे या ध्रुव से जानेवाला बृहद्वृत्त जहाँ विषुवद्वृत्त को काटे, वहाँ से वसंतपात तक की दूरी, होती है। चूँकि कालकोण विषुवद्वृत्त के चाप द्वारा ही जाना जाता है, इसलिए जब ग्रह या तारा ऊर्ध्व याम्योत्तर बिंदु पर होगा, उस समय उसका विषुवांश नाक्षत्र समय के तुल्य होगा।
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Old 03-02-2011, 09:56 PM   #3
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नक्षत्र घड़ी को ठीक करने की विधि

नक्षत्र घड़ी की अशुद्धि को जानने के लिए याम्योत्तर यंत्र (transit instrument) द्वारा सूर्य अथवा तारों का वेध करके, क्रोनोमीटर नामक यंत्र की सहायता से, उनके याम्योत्तर लंघन का नक्षत्र समय जान लिया जाता है।

नाक्षत्र घड़ी से मिलाकर, याम्योत्तर यंत्र के दूरदर्शी में ग्रह या तारे के बेध के नक्षत्र समय को क्रोनोमीटर का स्विच दबाकर जान लिया जाता है। इस समय से यांत्रिक अशुद्धियों को निकाल देने पर जो समय प्राप्त होता है, वही ग्रह या तारे के याम्योत्तर के ऊर्ध्व बिंदु के लंघन का समय होता है। यदि नाक्षत्र पड़ी ठीक है, तो यह ग्रह या तारे के विषुवांश के तुल्य होगा और अंतर घड़ी की अशुद्धि है। इस प्रकार नक्षत्र घड़ी को शुद्ध रखकर उससे माध्य सूर्य घड़ियों को शुद्ध किया जाता है। याम्योत्तर यंत्र द्वारा वेध करने में व्यक्तिगत अशुद्धि की अधिक संभावना है। इसलिए तारों के याम्योत्तर लंघन के नक्षत्र समय को कैमरा लगे खमध्य दूरदर्शकों (zenith tubes) से भी जाना जाता है।

इस प्रकार यद्यपि माध्य समय की घड़ियों को ठीक रखा जाता है, तथापि उनमें दैनिक संशोधन करना एक समस्या थी। इसलिए आजकल घड़ियों के सेकंड सूचक उपकरण क्वार्ट्ज के क्रिस्टलों (quartz crystals) से बनाए जाते हैं। क्वार्ट्ज के क्रिस्टलों पर उष्णता का प्रभाव बहुत कम पड़ता है। अतएव ये घड़ियाँ बहुत शुद्ध समय देती हैं। इनमें सेकंड के हजारवें भाग तक की अशुद्धि जानी जा सकती है। साथ इस घड़ी को उस तरह की दूसरे स्टेशनों पर रखी घड़ियों के समय संकेतक, पिप्, को सुनकर, मिलाया जा सकता है तथा इससे समय संकेतक (time signals) पिप् भेजे भी जा सकते हैं। इस प्रकार की एक घड़ी काशी की प्रस्तावित, राजकीय संस्कृत कालज वेधशाला के लिए सन् 1953 में मँगवाई गई थी, जो अब राजकीय वेधशाला नैनीताल में है। इस प्रकार की घड़ियों से देश की मुख्य घड़ियों को ठीक करके, रेडियो के समय सकेंतक "पिप्" से सब माध्य सूर्यं घड़ियाँ ठीक रखी जाती हैं।

आजकल प्रत्येक देश में मध्यरात्रि के समय को शून्य मानकर, वहीं से दिन का प्रारंभ मानते हैं। दिन रात के 24 घंटों को दो 12 घंटों में, (1) रात के बारह बजे से 12 घंटों तक पूर्वाह्नकाल तक तथा (2) दिन के 12 बजे से रात्रि के 12 बजे तक अपराह्नकाल में, बाँट दिया जाता है। हमारी घड़ियाँ यहीं समय बतलाती हैं। इन 24 घंटों को नागरिक दिन कहते हैं। दिन में 24 घंटे, 1 घंटे में 60 मिनिट तथा एक मिनट में 60 सेकंड होते हैं। विज्ञान की अंग्रेजी मापन प्रणाली फुट सेकंड में तथा अंतरराष्ट्रीय प्रणाली सेंटीमीटर ग्राम सेकंड में सेकंड ही समय की इकाई है।
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Old 03-02-2011, 09:58 PM   #4
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मानक समय (Standard Time)

समय का संबंध किसी निश्चित स्थान के याम्योत्तरवृत्त से रहता है। अत: वह उस स्थान का स्थानीय समय होगा। किसी बड़े देश में एक जैसा समय रखने के लिए, देश के बीचोबीच स्थित किसी स्थान के याम्योत्तर वृत्त का मानक याम्योत्तर वृत्त (standard meridian) मान लिया जाता है। इसके सापेक्ष माध्य-सूर्य का समय उस देश का मानक समय कहलाता है।

विश्व-समय-मापन

विश्व का समय नापने के लिए ग्रिनिच के याम्योत्तर वृत्त को मानक याम्योत्तर मान लेते हैं। इसके पूर्व में स्थित देशों का समय ग्रिनिच से, उनके देशांतर के प्रति 15 डिग्री पर एक घंटे के हिसाब से, आगे होगा तथा पश्चिम में पीछे। इस प्रकार भारत का मापक याम्योत्तर ग्रिनिच के याम्योत्तरवृत्त से पूर्व देशांतर 82 है। अत: भारत का माध्य समय ग्रिनिच के माध्य समय से 5 घंटे 30 मिनिट अधिक है। इसी प्रकार क्षेत्रीय समय भी मान लिए गए हैं। ग्रिनिच के 180 डिग्री देशांतर की रेखा तिथिरेखा है। इसके आरपार समय में 1 दिन का अंतर मान लिया जाता है। तिथिरेखा सुविधा के लिए सीधी न मानकर टेढ़ी मेढ़ी मानी गई है।

वर्ष तथा कैलेंडर

पृथ्वी की गति के कारण जब सूर्य वसंतपात की एक परिक्रमा कर लेता है, तब उसे एक आर्तव वर्ष कहते हैं। यह 365.24219879 दिन का होता है। यदि हम वसंतपात पर स्थित किसी स्थिर बिंदु अथवा तारे से इस परिक्रमा को नापें, तो यह नाक्षत्र वर्ष होगा। यह आर्तव वर्ष से कुछ बड़ा है। ऋतुओं से ताल मेल रखने के लिए संसार में आर्तव वर्ष प्रचलित है। संसार में आजकल ग्रेग्रेरियनी कैलेंडर प्रचलित है, जिसे पोप ग्रेगोरी त्रयोदश ने 1582 ई. में संशोधित किया था। इसमें फरवरी को छोड़कर सभी महीनों के दिन स्थिर हैं। साधारण वर्ष 365 दिन का होता है। लीप वर्ष (फरवरी 29 दिन) 366 दिन का होता है, जो ईस्वी सन् की शताब्दी के आरंभ से प्रत्येक चौथे वर्ष में पड़ता है। 400 से पूरे कट जानेवाले ईस्वी शताब्दी के वर्षों को छोड़कर, शेष शताब्दी वर्ष लीप वर्ष नहीं होते। ऐतिहासिक घटनाओं तथा ज्योतिष संबंधी गणनाओं के लिए जूलियन दिन संख्याएँ (Julian day numbers) प्रचलित हैं, जो 1 जनवरी, 4713 ई. पू. के मध्याह्न से प्रारंभ होते हैं।
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Old 03-02-2011, 10:01 PM   #5
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कुछ और सिद्धांत
इसका प्रतिपादन सन १९०५ में आइंस्टीन ने अपने एक शोधपत्र ऑन द एलेक्ट्रोडाइनेमिक्स ऑफ् मूविंग बॉडीज में की थी। विशिष्ट सापेक्षता दो परिकल्पनाओं (पॉस्चुलेट्स) पर आधारित है जो शास्त्रीय यांत्रिकी (क्लासिकल मेकैनिक्स) के संकल्पनाओं के विरुद्ध (उलटे) हैं:

१) भौतिकी के नियम एक दूसरे के सापेक्ष एकसमान (यूनिफार्म) गति कर रहे सभी निरिक्षकों के लिये समान होते हैं। (गैलिलियो का सापेक्षिकता का सिद्धान्त)

२) निर्वात में प्रकाश का वेग सभी निरिक्षकों के लिये समान होता है चाहे उन सबकी सापेक्ष गति कुछ भी हो , चाहे प्रकाश के स्रोत

की गति कुछ भी हो ।

इस सिद्धान्त से निकलने वाले परिणाम आश्चर्यजनक हैं; इनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

* किसी स्थिर घडी की अपेक्षा एक गतिशील घडी धीमी चलती है। (टाइम डिलेशन्) (Time dilation)

* किसी निरीक्षक के सापेक्ष किसी दिशा में गतिशील वस्तुओं की लम्बाई उस दिशा में घट जाती है। ( Length contraction )

* दो घटनायें जिन्हें कोई निरीक्षक 'क' एक साथ ( simultaneous ) घटित होता हुआ देखता है , किसी दूसरे निरीक्षक 'ख' को वे एक साथ घटित होती हुई नहीं दिखेंगी यदि दूसरा निरीक्षक पहले के सापेक्ष गतिशील है। ( Relativity of simultaneity )

* द्रव्य और उर्जा तुल्य हैं; एक को दूसरे के रूप में बदला जा सकता है। इस परिवर्तन में E = mc2 का सम्बन्ध लागू होता है।

शास्त्रीय यांत्रिकी में प्रयुक्त गैलिलियो का रूपान्तरण (Galilean transformations) प्रयुक्त होता है जबकि विशिष्ट सापेक्षता में लारेंज रूपानतरण (Lorentz transformations) ।
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Old 04-02-2011, 07:48 AM   #6
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kidhar se copy kiye ho bhai! ye mat kehna ki itna sab kuch khud padhe likhe ho! agar khud ke dimaag ki upaj hai, to sirf ye smiley hai, jawab me dene ke liye!
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kidhar se copy kiye ho bhai! Ye mat kehna ki itna sab kuch khud padhe likhe ho! Agar khud ke dimaag ki upaj hai, to sirf ye smiley hai, jawab me dene ke liye!

कुछ अपने दिमाग की उपज है और कुछ कॉपी किया है क्योकि बिना इधर उधर भटके और बिना किसी का डाटा चुरा के कुछ भी करना सम्भब नहीं !
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कुछ अपने दिमाग की उपज है और कुछ कॉपी किया है क्योकि बिना इधर उधर भटके और बिना किसी का डाटा चुरा के कुछ भी करना सम्भब नहीं !
जो भी हैँ मस्त हैँ अभय ....?
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दोस्ती करना तो ऐसे करना
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लेकिन बहुत अच्छा जनकारी
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