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Old 11-12-2011, 05:24 PM   #31
aspundir
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Default Re: श्री कृष्ण-गीता (हिन्दी पद्द-रूप में)

अनूप जी, सुन्दर सूत्र के लिए शतशः नमन ।
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Old 11-12-2011, 05:24 PM   #32
anoop
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Default Re: श्री कृष्ण-गीता (हिन्दी पद्द-रूप में)

भगवान-
जो मन से जतन किया करता
अच्छे कर्मों को करने का
उसका श्रम होता नहीं विफ़ल
इक दिन उसमें आता है फ़ल
जो नर होते हैं पुण्यवान
जो नर होते हैं भाग्यवान
वह जन्म दूसरा लेता जब
जा उनके घर पैदा हो तब
फ़िर पूर्वजन्म का योगाभ्यास
आ जाता उसमें अनायास
वह योग साधना करता है
फ़िर पहले के पथ पर चलता है
इस योग साधना के कारण
उसके वश में हो जाए मन
ऐसे उसका अभ्यास उसे
ले आता मेरे पास उसे
वह हो जाता मेरे समान
उसमें मुझमें मत भेद जान
*** *** ***
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Old 11-12-2011, 05:25 PM   #33
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Default Re: श्री कृष्ण-गीता (हिन्दी पद्द-रूप में)

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अनूप जी, सुन्दर सूत्र के लिए शतशः नमन ।
धन्यवाद मित्र, उम्मीद है जल्द हीं पूरा टाईप करके पोस्ट कर पाऊँगा
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Old 11-12-2011, 05:27 PM   #34
anoop
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Default Re: श्री कृष्ण-गीता (हिन्दी पद्द-रूप में)

सातवाँ अध्याय
विश्वरूप - वर्णन

भगवान-
हे अर्जुन मुझको जान जरा
ले मुझको अब पहचान जरा
मैं अपना आप बताता हूँ
तुझको सब कुछ समझाता हूँ
पृथ्वी, पानी, आकाश, पवन
अपनापन, बुद्धि, पावक-मन
जो मेरा है जड़ रूप सखे
ये आठ भेग हैं उस ही के
जिसको कहते हैं जीव-प्राण
वह मेरा चेतन रूप जान
मेरे इस दोनों रूपों से
है बना हुआ सारा जग ये
मुझसे है कुछ भी नहीं अलग
मुझसे है बना हुआ सब जग
मैं ही जग का हूँ आदि-अंत
मैं ही दिक् हूँ, मैं ही दिगंत
मुझको रवि का उजियार समझ
तू वेदों में मुझे ओंकार समझ
मैं ही पानी में हूँ गीलापन
मैं ही पावक में जलन-तपन
मैं ही चातक की हूँ पुकार
मैं ही प्रेमी का मधुर-प्यार
मैं ही कलियों का मधुर हास
मैं ही हूँ, हर फ़ल के मिठास
मैंम्ही बल हूँ बलवानों का
मैं ही गुण हूँ गुणवानों का
मैं ही सब जीवों का तन-मन हूँ
मैं ही सब जीवों का जीवन हूँ
यह सब मेरी ही माया है
जग इसका भेद न कभी पाया है
मुझको वह ही नर जान सके
मुझको वही नर पहचान सके
जिनका मन किरणों सा उज्जवल
जिनका मन गंगा सा निर्मल
कुछ भय से मुक्ति पाने को
कुछ धन, यश, पुण्य कमाने को
हैं मेरा नाम लिया करते
हैं मुझको याद किया करते
वे मुझको कभी न पा सकते
वे मुझ तक कभी न आ सकते
मुझको बस वे ही पाते हैं
मुझ तक बस वे ही आते हैं
निष्काम मुझे जो भजते हैं
निष्काम मुझे जो जपते हैं
वे हो जाते मेरे समान
उनमें मुझमें मत भेद जान
*** *** ***


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Old 11-12-2011, 05:29 PM   #35
anoop
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Default Re: श्री कृष्ण-गीता (हिन्दी पद्द-रूप में)

आठवाँ अध्याय

भजन-प्रताप
भगवान-
नर अंत समय जिसको ध्याये
वह नर वैसी ही गति पाए
जो धन की चिन्ता में मरता
वह सर्पयोनि में है पड़ता
जो करता है बल का गुमान
वह लेता सिंह का जन्म जान
जो करता विषयों का विचार
वह शूकर का ले जन्म धार
जो नर सोचे घर-द्वार-खेत
वह मर कर बनता भूत-प्रेत
जो नर करता संतान-ध्यान
वह मर कर लेता जन्म-श्वान
जो मांस-सुरा का ध्यान करे
वह गिद्ध-चील का जन्म धरे
इस तरह करे जो, जो विचार
नर लेता वह ही जन्म धार
यों नर जन्मे हैं बार-बार
हो सकता भव से नहीं पार
पर जो नर मुझको ध्याता है
वह जन्म नहीं फ़िर पाता है
जीवन भर जिसे ध्याता नर
है याद जिसे कर पाता नर
याद उसी की अंत में आए
वह नाम उसी का ले पाए
तू मुझे याद करता प्रतिपल
निर्भय हो कर रण करता चल
तब मरते क्षण भी हे अर्जुन
तू मुझको हीं याद करेगा सुन
तू जन्म नहीं फ़िर पाएगा
मुझ में ही लय हो जाएगा
*** *** ***
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Old 11-12-2011, 05:30 PM   #36
anoop
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Default Re: श्री कृष्ण-गीता (हिन्दी पद्द-रूप में)

नौवाँ अध्याय

निजस्वरूप-वर्णन
भगवान-
अब कहता हूँ, जो गुढ़ ज्ञान
तू उसे समझ, तू उसे जान
तू उसे जान यदि जाएगा
दुख छुटेगा, सुख पाएगा
उस सब विद्याओं से ऊपर
यह उत्तम और बड़ा हितकर
यह गंगा-सा पावन-निर्मल
यह देता है मंगलमय फ़ल
जिस नर को इसका नहीं ज्ञान
जो इसकी महिमा से अजान
वह जन्म-मृत्यु में रहे पड़ा
वह मुझको कभी न सकता पा
मेरा स्वरूप जग बीच व्यापत
जग को उसका आधार प्राप्त
वायुमय जैसे आसमान
तू जगमय वैसे मुझे जान
मुझसे जग का रचना-संहार
होता रहता है बार-बार
अपने स्वभाव के हो अधीन
जग की रचना में रहूँ लीन
पर कर्म के बंधन में न पड़ूँ
मैं काम-रहित हो कर्म करूँ
जब-जब आता मैं तन धरकर
जो होते हैं अज्ञानी नर
वे मुझको जान नहीं सकते
मुझको पहचान नहीं सकते
पर जिनके मन में दीप्त ज्ञान
हर रूप में वे लें मुझे पहचान
वे मेरे गीत सदा गाएँ
वे भव-सागर से तर जाएँ
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Old 11-12-2011, 05:31 PM   #37
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Default Re: श्री कृष्ण-गीता (हिन्दी पद्द-रूप में)

निष्काम उपासना
भगवान-
जो मेरे सच्चे भक्त, पार्थ
जो मेरे पक्के भक्त, पार्थ
नित मेरा नाम लिया करते
मेरा गुणगान किया करते
मुझको ध्याने में लगे रहते
मुझको पाने में लगे रहते
वे मेरे प्यारे भक्त सदा
रहते मुझमें अनुरक्त सदा
कुछ सेवा के पथ को अपना
कुछ मन में ज्ञान का दीप जला
मुझको पाने का जतन करें
मुझ तक आने का जतन करें
क्योंकि यज्ञ, पावक, घृत मैं हूँ
सत, असत, मृत्यु, अमृत मैं हूँ
जग का धारणकर्ता मैं ही
जग का पालनकर्ता मैं ही
मैं हीं कर्मों का फ़ल दाता
मैं पिता, पितामह, और माता
शुभ और अशुभ लखता मैं ही
जग का कर्ता-धर्ता मैं ही
पर जो नर इच्छाएँ सँजों
पूजे यज्ञों द्वारा मुझको
वह सदा स्वर्ग पाता, अर्जुन
सुख सकल वहाँ के भोगे सुन
पर पुण्य-रहित होकर वह नर
फ़िर आ जाता है धरती पर
इस भांति जगत में बार-बार
उसका आना हो लगातार
जो नर तज फ़ल की इच्छा को
मुझको भजता है मेरा हो
वह जन्म मुक्त हो जाता है
फ़िर जन्म नहीं वह पाता है
जो मन में ले फ़ल की इच्छा
है अन्य देवता को भजता
ऐसा करने वाला भी जन
मेरा ही करता है पूजन
पर उसका यह पूजन, अर्जुन
विधि के अनुसार नहीं है सुन
मैं सारे जगत का परम पिता
इस सच का उसको नहीं पता
इसलिए पार्थ जो ऐसा जन
भोगा करता है जनम-मरण
पूजते अमर जो, पाएँ अमर
पूजते पितर जो, पाएँ पितर
जो मेरी महिमा गाते हैं
वे नर मुझको ही पाते हैं
जो भक्ति-भाव हृदय में भर
फ़ल की इच्छा का ध्यान न कर
मुझको नित भोग लगाता है
फ़ल, फ़ूल और पत्र चढ़ाता है
यह प्रेमपूर्ण उसका अर्पण
स्वीकार सदा करता तत्क्षण
तू जो भी कर्म करे, अर्जुन
तू जो भी धर्म करे, अर्जुन
सब अर्पण करता जा मुझको
फ़ल की इच्छा में लीन न हो
तू कर्म-मुक्त हो जाएगा
तू परम शान्ति, सुख पाएगा
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Old 11-12-2011, 05:32 PM   #38
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Default Re: श्री कृष्ण-गीता (हिन्दी पद्द-रूप में)

भक्ति-महिमा
भगवान-
मैं सारे जग का परम पिता
सब जग है मेरे लिए बच्चों सा
इसलिए समान मुझे सारे
इसलिए सब हैं मुझे प्यारे
कोई भी मेरे लिए गैर नहीं
है मुझे किसी से वैर नहीं
जो प्रेम से मेरा करे ध्यान
मैं उसी का हो जाऊँ जान
चाहो हो कोई पापी जन
यदि मुझे करे प्रेम से स्मरण
वह हो पापी से पुण्यवान
तू उसे संत के तुल्य जान
हो वैश्य, शुद्र या कोई जन
आ जाए अगर मेरी शरण
तत्काल उसे अपना लेता मैं
अपना उसे बना लेता मैं
फ़िर उसमें प्रकटा परम ज्ञान
हर लेता, भय-भ्रम, मोह-मान
तू सखे शरण में मेरी आ
मैं तुझमें दूँगा ज्ञान जगा
तू तज देगा तन का विचार
जो क्षणभंगुर, जो है असार
तू मोह-पाश से छूटेगा
रण में रत हो यश लूटेगा
*** *** ***
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Old 11-12-2011, 05:34 PM   #39
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Default Re: श्री कृष्ण-गीता (हिन्दी पद्द-रूप में)

दसवाँ अध्याय

शक्ति-बखान
भगवान-
तू पर्थ भक्त मेरा जैसा
है और नहीं कोई वैसा
मैं कहता हूँ हित में तेरे
सुन मन से परम वचन मेरे
है पार्थ किसी को नहीं ज्ञात
मुझ परमेश्वर की जन्म-जात
मैं हूँ अनादि, मैं हूँ अनन्त
मेरी शक्ति का है नहीं अंत
अर्जुन, मैं हीं हूँ विश्वराज
मैं करता जग के सब काज
ये सूर्य, चन्द्र, जल, आग, हवा
सब चलते मेरी आज्ञा पा
मेरी आज्ञा बिन क्या बिसात
हिल पाए जो लघु एक पात
जिसको मेरी शक्ति का भास
उसमें न पाप कर सके वास
मुझको अर्पित कर निज तन-मन
मुझको अर्पित कर निज जीवन
जो मेरी महिमा गाता है
जो मुझमें ध्यान लगाता है
उसके मन में मैं ज्ञान जगा
उसका देता अज्ञान मिटा
अज्ञान छूट जिसका जाता
अर्जुन वह नर मुझको पाता
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Old 11-12-2011, 05:34 PM   #40
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Default Re: श्री कृष्ण-गीता (हिन्दी पद्द-रूप में)

महिमा-बखान
अर्जुन-
हे परम ब्रह्म! हे परम रूप
हे परम विष्णु! हे शिव स्वरूप
कहते सब ऋषिगण, देव, संत
हैं आप अनादि और अनन्त
हैं आप सनातन, नित्य, अजर
हैं आप अजन्मे और अमर
हैं आप सर्वशक्तिमान-निधान
कण-कण में रहते विद्यमान
हे प्रभो! आपका बल अपार
सुर-असुर नहीं पा सके पार
अपनी अनन्त महिमा-बखान
इस बार करें कर कृपादान
जिससे मन का अभिमान मिटे
जिससे संशय-अज्ञान मिटे
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