03-12-2012, 01:56 PM | #1 |
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मेरी रचनाये- दीपक खत्री 'रौनक'
इरादों मे दम ही नहीं कुछ तकदीर ही ऐसी है.... तुझे चाहने की शिद्दत टूटती ही नहीं 'रौनक'...... ना जाने वफादार हूँ मै या तुझमे कशिश ही ऐसी है..... दीपक खत्री 'रौनक' |
03-12-2012, 03:44 PM | #2 |
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Re: मेरी रचनाये- दीपक खत्री 'रौनक'
'वेदना'
जीना कुलषित काज हुआ, व्यथा सिसकती छाती में... नयन कटोरे खाली से, छिन गया निवाला थाली से... लटकी हरपलतलवार नई, नहीं है लौ दिया बाती में... जुड़ा हर हाथ अपने पेट से, ना मोह दिखा भूखी जाति से... जीना कुलषित काज हुआ, व्यथा सिसकती छाती में... गया ओज बस प्राण बचे, ना मिले मिट्टी अब माटी में... हर चेहरा अन्जान हुआ, कुद मची पतन की घाटी में... है ह्रदय वेदना बढ़ी हुई, ना रुके लहू अब छाती में... जीना कुलषित काज हुआ, व्यथा सिसकती छाती में... दीपकखत्री 'रौनक' |
03-12-2012, 03:50 PM | #3 |
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Re: मेरी रचनाये- दीपक खत्री 'रौनक'
मन उजला है मेरा मगर काले सायों की हिफाजत में हूँ
अन्धेरे से डर है मुझे मगर अमावस के आगोश में हूँ आइना बना मै खड़ा रहा हर कोई देख सँवरता रहा बेगानों से डर है मुझे मगर अन्जानों की भीड़ में हूँ...... दीपक खत्री 'रौनक' |
03-12-2012, 03:58 PM | #4 |
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Re: मेरी रचनाये- दीपक खत्री 'रौनक'
था उसकी आजमाइश मे आबाद......
हरएक नए बदलाव के बाद .... अपना वजूद अपना ना रहा...... उसकी एक मुस्कान के बाद..... वो मिलता ही मेरी रूह से था.... मै लुटता ही गया उस शह के बाद....... वो बदलता रहा चेहरा अपना.... हर हसीन मुलाकात के बाद ..... ना आया रंग वफा की मेहंदी मे.... मै पुछता वजह हर दीदार के बाद..... खोती रही मोहब्बत अपनी चमक 'रौनक'.... हर बिखरते हुए अरमान के बाद...... दीपक खत्री 'रौनक' |
03-12-2012, 04:01 PM | #5 |
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Re: मेरी रचनाये- दीपक खत्री 'रौनक'
मोहब्बत का माकुल फर्ज इस तरह अदा किया हमने कि.......
उसकी हर ख्वाहीश को अंजाम दिया जिसका ईशारा भी ना था........ उसकी गली में ही रिहाइश कर ली हमनें 'रौनक'........ कि उसका मेरे इंतेजार में तड़पना हमें गवारा ना था....... दीपक खत्री 'रौनक' |
03-12-2012, 04:04 PM | #6 |
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Re: मेरी रचनाये- दीपक खत्री 'रौनक'
ना ख़ुशी का अहसास है.......
ना लबों पर प्यास है........... महक रही है फिर भी हसरते दिल मे 'रौनक'............ है इंतज़ार उस पल का जो बेहद खास है........ दीपक खत्री 'रौनक' |
03-12-2012, 04:08 PM | #7 |
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Re: मेरी रचनाये- दीपक खत्री 'रौनक'
गुल मिले गुलिस्तान मिले.....
राह मे हर चेहरे पर जाने पहचाने से निशान मिले...... हम तुम मिले कारवां बढा 'रौनक' ...... मंजिले तो थी मगर उजड़े दरो के निशान मिले........... दीपक खत्री 'रौनक' |
03-12-2012, 04:10 PM | #8 |
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Re: मेरी रचनाये- दीपक खत्री 'रौनक'
मासूमियत का मेरी मखौल बनाया क्यों तूने.......
यूँ छोड़ना ही था तो अपना बनाया क्यों तूने....... जलते लम्हों को खौफ नहीं होता आग का 'रौनक'..... इश्क-ए-नसीम को नफरत का शोला बनाया क्यों तूने..... दीपक खत्री 'रौनक' |
03-12-2012, 04:13 PM | #9 |
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Re: मेरी रचनाये- दीपक खत्री 'रौनक'
करवटे बदलती रात को भी इश्क जरुर होगा,
उम्मीदों भरा दिन भी जाहीर जरुर होगा हर पल जीने का दस्तूर समझाने वाले, मुफलिसी मे जीने को तू भी मजबूर होगा बहकते रहे मयखाने सुरूर मे रात भर, मेरी बदहवासी का उलूम भी उसे जरुर होगा परखते है वो दर्द को जख्म कुरेद कर, अहसास-ए-एज़ा तो उसे भी जरुर होगा लिपटे से चीथड़े गुनाह मे गुमनाम खड़े है, किताब-ए-जीस्त मे तो ये नाम शुमार होगा कायनात देगी गवाही तेरे सितमों की 'रौनक', मंजर भी सजा का वो यादगार होगा दीपक खत्री 'रौनक' |
03-12-2012, 04:19 PM | #10 |
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Re: मेरी रचनाये- दीपक खत्री 'रौनक'
कामयाबी से देखूं तो बहुत आसान है जिंदगी
मगर सुलझाते सुलझाते उलझने युग बदल गए कायम है हर शह बेशर्मी से अपने मकाम पर लम्हे दर लम्हे दर्द के साये मे गुज़र गए चढ़ते ही दिन सितारे परेशानियों से थे दो चार मगर शाम होते होते सारे मंज़र गुज़र गए कहना था उन्हें बहुत कुछ अरमान से मगर उनकी जाने की जल्दबाजी में लम्हे गुज़र गए जाने दो जाती है गर जिंदगी 'दीवाने-ए-खास' से इसे सँवारने की कोशिश मे कई दिलावर गुज़र गए पनाह तुझे देने की दिल मे आरज़ू है अरसे से 'रौनक' हम निकले तेरी तलाश में वापस न घर गए दीपक खत्री 'रौनक' |
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