04-12-2012, 08:58 PM | #1 |
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मेरी रचनाये- दीपक खत्री 'रौनक'
लरजते लबों की सादगी, हो रहा हुश्न बेमिसाल संभाले खुद को कोई तो कैसे संभाले 'रौनक' आँखों की मयकशी भी है खूब ,अदाए है कमाल दीपकखत्री 'रौनक' |
04-12-2012, 09:00 PM | #2 |
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Re: मेरी रचनाये- दीपक खत्री 'रौनक'
अहम
=== अहम है कहाँ नहीं चाहे फिर वो हो तेरा या मेरा हो है सर्वत्र ये किन्तु नहीं है स्वीकार किसी को मगर है प्रेरित हरेक क्रिया जन मन की इसी से नहीं छुटता ये किसी तरीके किसी युक्ति से क्यों मै और तू नहीं हो सकते मुक्त है दर्द और ह्रास का कारक ये मिटता क्यों नहीं तेरे और मेरे मन से ये अहम् दीपक खत्री 'रौनक' |
04-12-2012, 09:01 PM | #3 |
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Re: मेरी रचनाये- दीपक खत्री 'रौनक'
मेरी हार को मुक्कमल बना दे जरा
अपने हाथों से सेहरा सजा दे जरा शायद कुछ शुकून पाए मेरे जख्म 'रौनक' अपने हाथ से मलहम लगादे जरा दीपक खत्री 'रौनक' |
04-12-2012, 09:07 PM | #4 |
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Re: मेरी रचनाये- दीपक खत्री 'रौनक'
कलम का गुनाह कागज़ ने दिखा दिया
तेरी यादों ने 'रौनक' को पीना सिखा दिया नहीं निभानी थी तो लगाई ही क्यों लगन खैर जीस्त ने तेरे बिन भी जीना सिखा दिया दीपकखत्री 'रौनक' |
04-12-2012, 09:11 PM | #5 |
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Re: मेरी रचनाये- दीपक खत्री 'रौनक'
कल्पना की उड़ान को, नये पंख लग गए
लड़ने को नयी जंग एक, नये शंख बज गए हो रही है हर तरफ बात जीत जयकार की कस कमर को हो तैयार, सब वीर सज गए भय मुक्त है मन, शोर्य चमकता है भाल पर लिए मन मे उमंग- तरंग हम भी डट गए चमक रही है तलवार, कही उड़ रहा है रक्त लिए हौसला दिलों मे, हम तो हुंकार भर गए माधुर्य चला गया, मचल रहा क्रोध मुख पर लहराई जो कटार धड़ से कई सर उतर गए आसमां रो उठा मंज़र धरा का देखकर 'रौनक' देख सम्मुख काल को, दुश्मन दिल दहल गए दीपक खत्री 'रौनक' |
05-12-2012, 08:58 PM | #6 |
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Re: मेरी रचनाये- दीपक खत्री 'रौनक'
अवस्था
===== अवस्था ये एक अंतहीन दीर्घ नोचती खसोटती सी कभी दुलारती मुस्काती सी बस लगातार चलने वाली बिना रुके बिना थमे यूँही चली जा रही है मौन है हर व्यथा सम्मुख इसके है छुपा हर उल्लास बस गुजरता सा बीतता सा हरेक पल गा रहा करहा रहा कि तू कब बीतेगी ऐ अवस्था दीपक खत्री 'रौनक' Last edited by deepuji1983; 05-12-2012 at 09:02 PM. |
05-12-2012, 08:59 PM | #7 |
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Re: मेरी रचनाये- दीपक खत्री 'रौनक'
मै अब हादसों से गुज़र गया हूँ
गुज़र के उनसे खूब संवर गया हूँ आ गया है मुझमे भी हुनर 'रौनक' मै जीने का दस्तूर समझ गया हूँ दीपक खत्री 'रौनक' |
05-12-2012, 09:00 PM | #8 |
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Re: मेरी रचनाये- दीपक खत्री 'रौनक'
बदल रहे है हालात मेरे पांवो की आहट से
डरते है जीस्त के राजदार हल्की सुगबुगाहट से कह देना ना खा बैठे ठोकर बैचैनी मे वो 'रौनक' आते है बदलाव मजबूत इरादों की जगमगाहट से दीपक खत्री 'रौनक' |
05-12-2012, 09:01 PM | #9 |
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Re: मेरी रचनाये- दीपक खत्री 'रौनक'
वो खेलते है खेल नए, मखौटे बदल बदल कर
हो रही है गुस्ताखियाँ , मौके बदल बदल कर बड़ा लाजवाब है ये हुनर रंग बदलने का 'रौनक' वो चल रहे चाल नई , मोहरे बदल बदल कर......... दीपक खत्री 'रौनक' |
07-12-2012, 09:14 PM | #10 | |
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Re: मेरी रचनाये- दीपक खत्री 'रौनक'
Quote:
दीपक खत्री जी, आपकी शायरी कबीले तारीफ़ है और मैं उम्मीद करता हूँ कि यह क्रम निरंतर बना रहेगा. शुभकामनाएं. एक शे’र पेश कर रहा हूँ: चाँदनी और उनके रूख-ए -रौशन का ख़याल रोशनी ज़ियादा हो तो नींद भी कम आती है. |
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