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Old 21-02-2011, 10:26 AM   #21
khalid
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Default Re: इस्लाम से आपका परिचय

बहुत बढिया सुत्र बनाया आपने सिकन्दर
शुक्रिया
__________________
दोस्ती करना तो ऐसे करना
जैसे इबादत करना
वर्ना बेकार हैँ रिश्तोँ का तिजारत करना
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Old 21-02-2011, 11:19 AM   #22
masoom
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Default Re: इस्लाम से आपका परिचय

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Originally Posted by sikandar View Post
इस्लाम का जन्म

इस्लाम का अर्थइस्लाम अरबी शब्द है जिसकी धातु सिल्म है। सिल्म का अर्थ सुख, शांति, एवं समृद्धि है। कुरान के अनुसार जो सुख, संपदा और संकट में समान रहते हैं, क्रोध को पी जाते हैं और जिनमें क्षमा करने की ताकत हैं, जो उपकारी है, अल्लाह उन पर रहमत रखता है।शब्दकोश में दिए अर्थ के अनुसार इस्लाम का अर्थ है - अल्लाह के सामने सिर झुकाना, मुसलमानों का धर्म। इस्लाम को अरबी में हुक्म मानना, झुक जाना, आत्म समर्पण, त्याग, एक ईश्वर को मानने वाले और आज्ञा का पालन करने वाला कहा है। इस प्रकार संक्षिप्त में हम कह सकते हैं कि विनम्रता और पवित्र गं्रथ कुरान में आस्था ही इस्लाम की पहचान है। वास्तव में इस्लाम अरबी भाषा का शब्द है। जिसका अर्थ है 'शांति में प्रवेश करनाó होता है। अत: सच्चा मुस्लिम व्यक्ति वह है जो 'परमात्मा और मनुष्य के साथ पूर्ण शांति का संबंधó रखता हो। अत: इस्लाम शब्द का लाक्षणिक अर्थ होगा वह धर्म जिसके द्वारा मनुष्य भगवान की शरण लेता है तथा मनुष्यों के प्रति अङ्क्षहसा एवं प्रेम का बर्ताव करता है।

इस्लाम धर्म का उद्भव और विकासइस्लाम धर्म के प्रर्वतक हजरत मुहम्मद साहब थे। इनका जन्म अरब देश के मक्का शहर में सन् 570 ई. में हुआ था। जब हजरत मुहम्मद अरब में इस्लाम का प्रचार कर रहे थे उन दिनों भारत में हर्षवर्धन और पुलकेशी का राज्य था। इस्लाम धर्म के मूल ग्रंथ कुरान, सुन्नत और हदीस हैं। कुरान उस पुस्तक का नाम है जिसमें मुहम्मद के पास ईश्वर के द्वारा भेजे गए संदेश एकत्रित हैं। सुन्नत वह ग्रंथ (पुस्तक) है जिसमें मुहम्मद साहब के कर्मों का उल्लेख है और हदीस वह किताब है जिसमें उनके उपदेशों का संकलन(एकत्रित) हैं।

संस्थापक मुहम्मद साहबमुहम्मद साहब ने इस्लाम धर्म की स्थापना किसी योजना के तहत नहीं की बल्कि इस धर्म का उन्हें इलहाम (ध्यान समाधि की अवस्था में प्राप्त हुआ) हुआ था। कुरान में उन बातों का संकलन है जो मुहम्मद साहब के मुखों से उस समय निकले जब वे अल्लाह के संपर्क में थे। यह भी मान्यता है कि भगवान कुरान की आयतों को देवदूतों के माध्यम से मुहम्मद साहब के पास भेजते थे। इन्हीं आयतों के संकलन (इक_ा करना) से कुरान तैयार हुई है।मुहम्मद साहब का आध्यात्मिक जीवनजब से मुहम्मद साहब को धर्म का इलहाम हुआ तभी से लोग उन्हें पैगम्बर, नबी और रसूल कहने लगे। पैगम्बर कहते हैं पैगाम (संदेश) ले जाने वाले को। हजरत मुहम्मद के जरिए भगवान का संदेश पृथ्वी पर पहुंचा। इसलिए वे पैगम्बर कहे जाते हैं। नबी का अर्थ है किसी उपयोगी परम ज्ञान की घोषणा को। मुहम्मद साहब ने चूंकि ऐसी घोषणा की इसलिए वे नबी हुए। तब से नबी का अर्थ वह दूत भी गया जो परमेश्वर और समझदार प्राणी के बीच आता जाता है। मुहम्मद साहब रसूल हैं, क्योंकि परमात्मा और मनुष्यों के बीच उन्होंने धर्मदूत का काम किया।

इस्लाम का मूल मंत्र'ला इलाह इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलल्लाहó यह इस्लाम का मूल है। जिसका अर्थ है-''अल्लाह के सिवा और कोई पूज्यनीय नहीं है तथा मुहम्मद उसके रसूल है।óó ऐसी मान्यता हैं, कि केवल अल्लाह को मनाने से कोई आदमी पक्का मुसलमान नहीं हो जाता, उसे यह भी मानना पड़ता है कि मुहम्मद अल्लाह के नबी, रसूल और पैगम्बर हैं
सिकन्दर जी मुझे कुछ तथ्यों पर आपत्ति है उन्हें मेने हाई लाईट कर दिया है |बस आपसे एक अनुरोध है कि इस्लाम के विषय में कोई भी बात "मेरे विचार से" या शायद" से आरम्भ करके लिखने से बचिए ,पहले ही इस्लाम के विषय में विश्वभर में इतनी भ्रांतियां फेली हुयी है इसलिए प्रत्येक बात पूरे आत्मविश्वास के साथ एवं पक्के सबूत के साथ लिखे तो अच्छा होगा |
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Old 21-02-2011, 11:25 AM   #23
Bholu
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Default Re: इस्लाम से आपका परिचय

सिकन्दर साहब बहुत बढिया सूत्र बनाया है मै आपको पाक इस्लाम धर्म के बारे मे बताने के लिये त्ह दिल से शुक्रिया करता हूँ
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Old 21-02-2011, 11:32 AM   #24
masoom
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Default Re: इस्लाम से आपका परिचय

एक बात तो मैं यहाँ यह स्पष्ट करना चाहूँगा कि अधिकांश नॉन मुस्लिम्स एवं कुछ मुस्लिम्स भी इस गलत फहमी में मुब्तिला हैं कि इस्लाम का आरम्भ १५०० वर्ष पूर्व हजरत मुहम्मद स०अ०व० द्वारा किया गया जबकि सत्य यह है कि कुरान के अनुसार इस्लाम का आरम्भ स्रष्टि की रचना के साथ ही हो गया था सबसे पहले नबी हजरत आदम अ०स० को पृथ्वी पर भेजा गया और उसके बाद एक लाख चोबीस हज़ार नबियों को दुनिया में इस्लाम फेलाने के लिए भेजा गया |कुरान में बहुत से नबियों का ज़िक्र है जैसे कि हजरत युसूफ अ०स० ,हजरत इब्राहीम अ०स०.हजरत ईसा अ०स० (जिन्हें ईसाई लोग जीसस के नाम से जानते है)|विज्ञानं के अनुसार भी मानव का मानसिक स्तर आरम्भ में उतना विकसित नहीं था जितना कि आज है इसलिए इस्लाम के नियम उसकी सुविधानुसार परिवर्तित किये जाते रहे परन्तु एक समय ऐसा आया कि अल्लाह ताला को लगा कि अब मानव उस मानसिक स्तर पर है जब यह कुरान को समझ सकता है तब कुरान को मुहम्मद साहब स०अ०व० पर नाजिल किया गया (यह इस प्रश्न का भी उत्तर है कि लोग कहते हैं कि यदि इस्लाम सबसे पहला धर्म हे तो कुरान बाद में क्यूँ आया) और हजरत मुहम्मद स०अ०व० को अंतिम नबी के रूप में भेजने का उद्देश्य यह भी रहा कि इस्लाम अब मुकम्मल (सम्पूर्ण)हो गया है अर्थात अब कयामत तक इसमें कोई परिवर्तन नही किया जायेगा |
इस बात का एक और सबूत यह भी है कि खाना काबा जिसके चरों और आप हज यात्रा के समय चक्कर लगते हैं वो हजरत मुहम्मद स०अ०व० द्वारा नही बनाया गया बल्कि उसकी तामीर (कन्स्ट्रक्शन) हजरत इब्राहीम अ०स० द्वारा अपने बेटे हजरत इस्माइल अ०स० के साथ मिलकर की गयी |हजरत इस्माइल अ०स० भी बाद में नबी बनाये गए |
अभी कुछ सबूत और दूंगा इस बात के कि इस्लाम १५०० वर्ष पुराना नही बल्कि पृथ्वी की रचना होने के समय से है |

Last edited by masoom; 21-02-2011 at 11:48 AM.
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Old 21-02-2011, 11:38 AM   #25
madhavi
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Default Re: इस्लाम से आपका परिचय

" सुन्नत वह ग्रंथ (पुस्तक) है जिसमें मुहम्मद साहब "
हंसी आती है पढ़ कर ! शायद कोई गैर मुस्लिम भी जानता होगा कि सुन्नत क्या होती है
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Old 21-02-2011, 11:39 AM   #26
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Default Re: इस्लाम से आपका परिचय

कुरान का नाजिल होना -अल्लाह ताला ने अपना संदेश हमेशा फरिश्तों के माध्यम से भेजा और एक फरिश्ते का नाम है "हजरत जिब्राईल अ०स०"(ईसाई लोग इन्हें गेब्रियल के नाम से जानते हैं) |हज़त जिब्राईल अ०स० ही हजरत आदम से लेकर हजरत मुहम्मद स०अ०व० तक अल्लाह का संदेश नबियों तक लाते रहे हैं |
कुरान भी समय समय पर हजरत जिब्राईल अ०स० के द्वारा अल्लाह के आदेश पर हजरत मुहम्मद स०अ०व० तक पंहुचाया जाता था |अर्थात हजरत जिब्रईल अ०स० स्वयम मुहम्मद स०अ०व० को कुरान का पाठ पढाया करते थे जिसमे उनको कुल मिलाकर २७ वर्षों का समय लगा | उसके बाद यह आप स०अ०व० को जुबानी याद हो जाता था और आप दुसरे सहाबियों को यह सुनाया करते थे और ये सहाबी भी इसे याद करके अन्य लोगों तक पहुचाते थे |
सहाबी -जिस व्यक्ति ने इस्लाम स्वीकार करने के बाद अर्थात मुस्लिम होने के बाद अपनी आँखों से हजरत मुहम्मद स०अ०व० को देखा हो उसे सहाबी कहते हैं |

Last edited by masoom; 21-02-2011 at 11:49 AM.
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Old 21-02-2011, 11:47 AM   #27
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Default Re: इस्लाम से आपका परिचय

सुन्नत-किसी ग्रन्थ का नाम नही है बल्कि उन सभी कार्यों को सुन्नत कहा जाता है जिसको आप स०अ०व० ने स्वयम किया और अपने उम्मतीयों को करने का आदेश दिया |जैसे कि सीधे हाथ से पानी पीना ,बैठ कर पानी पीना ,अच्छी सवारी रखना ,खाना खाने के बाद मीठा खाना ,दाढ़ी रखना (कुछ लोग दाढ़ी रखने को फर्ज समझते हैं जबकि यह सुन्नत है),
सुन्नत और फर्ज में अंतर-जिस कार्य को हुज़ूर स०अ०व० ने स्वयम किया और हमे करने को कहा उसे सुन्नत कहते हैं परन्तु जिस कार्य को करने का आदेश मुहम्मद साहब स०अ०व० ने यह कहकर दिया कि यह अल्लाह का आदेश है उसे फर्ज कहते हैं |जैसे कि नमाज़ पढ़ना,रोज़ा रखना .........
अभी आपकी पहली पोस्ट ही पढ़ी है दोस्त आगे की पोस्ट पढकर और भी करेक्शन करने होंगे |
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Old 21-02-2011, 05:21 PM   #28
masoom
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Originally Posted by sikandar View Post
इस्लाम धर्म की मान्यताएं एवं परंपराएं

कुरान ही इस्लाम धर्म का प्रमुख ग्रंथ है। कुरान में मुसलमानों के लिए कुछ नियम एवं तौर-तरीके बताए गए हैं। जिनका पालन करना सभी मुसलमानों के लिए अनिवार्य बताया गया है। कुरान हर मुसलमान के लिए पांच धार्मिक कार्य निर्धारित करता है।

वे कृत्य हैं :-

१. कलमा पढऩा- कलमा पढऩे का मतलब यह है कि हर मुसलमान को इस आयत को पढऩा चाहिए। अल्लाह एक है और मुहम्मद उसके रसूल है। 'ला इलाह इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलल्लाहó इस्लाम का ऐकेश्वरवाद (तोहीद) इसी मंत्र पर आधारित है।

२. नमाज पढऩा- हर मुसलमान के लिए यह नियम है कि वह प्रतिदिन दिन में पांच बार नमाज पढ़े। इसे सलात भी कहा जाता है।

३. रोजा रखना- अर्थात् रमजान के पूरे महीनेभर केवल सूर्यास्त के बाद भोजन करना। वर्षभर में रमजान महीना इसलिए चुना गया कि इसी महीने में पहले-पहल कुरान उतारा था।

४. जकात- इस्लाम धर्म में जकात का बड़ा महत्व है। अरबी भाषा में जकात का अर्थ है- पाक होना, बढऩा, विकसित होना। अपनी वार्षिक आय का चालीसवां हिस्सा (ढाई प्रतिशत) दान में देना।

५. हज- अर्थात् तीर्थों में जाना। इस्लाम धर्म में पहले ये तीर्थ केवल मक्का और मदीने में थे। अब संतों फकीरों की समाधियों को भी मुस्लिम तीर्थ मानते हैं।
मक्का के अतिरिक्त किसी भी दुसरे स्थान पर जाने से हज नहीं हो सकता यहाँ तक कि मदीना जाने से भी हज नही होता |हज केवल और केवल मक्का में ही हो सकता है |
सिकन्दर भाई किसी भी पीर के मजार पर जाने का कोई ज़िक्र कुरान में नही है वास्तव में ये सब बिदअत है |बिदअत उसे कहते हैं जो कुरान में नही है या अल्लाह या उसके पैगम्बर ने नही बताया बल्कि हम लोगों ने अपनी और से उसका प्रचलन शुरू कर दिया और यह बहुत बड़ा गुनाह है बल्कि हराम है |और इन मजारों पर जाने की तुलना कम से कम हज से नहीं करनी चाहिए दोस्त |
इस्लाम के पांच रुक्न सिकन्दर भाई ने बिलकुल ठीक से बताए है लेकिन इनमे से पांचवां रुक्न प्रत्येक मुसलमान पर फर्ज नही है और वो है हज |हज फर्ज होने के लिए मर्द पर पांच और महिलाओं पर ६ विशेष शर्तें है ,यदि आप इनमे से एक भी कंडीशन को पूरा नहीं करते तो आप पर हज करना फर्ज नहीं है |ये शर्तें निम्न हैं |
१-मुसलमान होना |
२-बालिग (वयस्क) होना |
३-आकिल (अक्ल वाला अर्थात पागल न होना) होना |
४-शारीरिक एवं आर्थिक रूप से सक्षम होना |
५-आज़ाद होना (पहले समय में लोग गुलाम भी होते थे इसलिए गुलामों पर आजाद होने से पहले हज फर्ज नही है) |
६-मेहरम (जिससे विवाह करना हराम हो) का साथ में होना ,जैसे कि बेटा,पति ,भाई,पिता इत्यादि |(यह नियम केवल महिलाओं पर लागू है)
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Old 21-02-2011, 06:12 PM   #29
madhavi
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Default Re: इस्लाम से आपका परिचय

६-मेहरम (जिससे विवाह करना हराम हो) का साथ में होना ,जैसे कि बेटा,पति ,भाई,पिता इत्यादि |(यह नियम केवल महिलाओं पर लागू है)
इस पर और रोशनी डालें मासूम जी !
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Old 21-02-2011, 06:16 PM   #30
madhavi
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Default Re: इस्लाम से आपका परिचय

जहाँ तक मेरी मालूमात हैं _ कोई भी ऐसा व्यक्ति जिसके ऊपर घरेलू जिम्मेदारियाँ हो यानि जैसे बेटी की शादी ना हुई हो तो वह भी हज पर नहीं जा सकता !
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