My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > Art & Literature > Hindi Literature
Home Rules Facebook Register FAQ Community

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 08-11-2012, 10:15 PM   #1
omkumar
Diligent Member
 
omkumar's Avatar
 
Join Date: Dec 2009
Posts: 869
Rep Power: 16
omkumar will become famous soon enoughomkumar will become famous soon enough
Default यशपाल की कहानी 'चित्र का शीर्षक'।

यशपाल की कहानी 'चित्र का शीर्षक'।
omkumar is offline   Reply With Quote
Old 08-11-2012, 10:15 PM   #2
omkumar
Diligent Member
 
omkumar's Avatar
 
Join Date: Dec 2009
Posts: 869
Rep Power: 16
omkumar will become famous soon enoughomkumar will become famous soon enough
Default Re: यशपाल की कहानी 'चित्र का शीर्षक'।

जयराज जाना-माना चित्रकार था। वह उस वर्ष अपने चित्रों को प्रकृति और जीवन के यथार्थ से सजीव बना सकने के लिए, अप्रैल के आरम्भ में ही रानीखेत जा बैठा था। उन महिनों पहाड़ों में वातावरण खूब साफ और आकाश नीला रहता है। रानीखेत से ' त्रिशूल' , 'पंचचोली' और 'चौखम्बा' की बरफानी चोटियाँ, नीले आकाश के नीचे माणिक्य के उज्ज्वल स्तूपों जैसीं जान पड़ती है। आकाश की गहरी नीलिमा से कल्पना होती कि गहरा नीला समुद्र उपर चढ़ कर छत की तरह स्थिर हो गया हो और उसका श्वेत फेन, समुद्र के गर्भ से मोतियों और मणियों को समेट कर ढेर का ढेर नीचे पहाड़ों पर आ गिरा हो।
omkumar is offline   Reply With Quote
Old 08-11-2012, 10:16 PM   #3
omkumar
Diligent Member
 
omkumar's Avatar
 
Join Date: Dec 2009
Posts: 869
Rep Power: 16
omkumar will become famous soon enoughomkumar will become famous soon enough
Default Re: यशपाल की कहानी 'चित्र का शीर्षक'।

जयराज ने इन दृष्यों के कुछ चित्र बनाये परन्तु मन न भरा। मनुष्य के संसर्ग से हीन यह चित्र बनाकर उसे ऐसा ही अनुभव हो रहा था जैसे निर्जन बियाबान में गाये राग का चित्र बना दिया हो। यह चित्र उसे मनुष्य की चाह और अनुभव के स्पन्दन से शून्य जान पड़ते थे। उसने कुछ चित्र, पहाड़ों पर पसलियों की तरह फैले हुए खेतों में श्रम करते पहाड़ी किसान स्त्री-पुरुषों के बनाए। उसे इन चित्रों से भी सन्तोष न हुआ। कला की इस असफलता से अपने हृदय में एक हाय-हाय का सा शोर अनुभव हो रहा था। वह अपने स्वप्न और चाह की बात प्रकट नहीं कर पा रहा था।
omkumar is offline   Reply With Quote
Old 08-11-2012, 10:16 PM   #4
omkumar
Diligent Member
 
omkumar's Avatar
 
Join Date: Dec 2009
Posts: 869
Rep Power: 16
omkumar will become famous soon enoughomkumar will become famous soon enough
Default Re: यशपाल की कहानी 'चित्र का शीर्षक'।

जयराज अपने मन की तड़प को प्रकट कर सकने के लिए व्याकुल था।

वह मुठ्ठी पर ठोड़ी टिकाये बरामदे में बैठा था। उसकी दृष्टि दूर-दूर तक फैली हरी घाटियों पर तैर रही थी। घाटियों के उतारों-चढ़ावों पर सुनहरी धूप खेल रही थी। गहराइयों में चाँदी की रेखा जैसी नदियाँ कुण्डलियाँ खोल रही थीं। दूध के फेन जैसी चोटियाँ खड़ी थीं। कोई लक्ष्य न पाकर उसकी दृष्टि अस्पष्ट विस्तार पर तैर रही थी। उस समय उसकी स्थिर आँखों के छिद्रों से सामने की चढ़ाई पर एक सुन्दर, सुघड़ युवती को देखने लगी जो केवल उसकी दृष्टि का लक्ष्य बन सकने के लिए ही, उस विस्तार में जहाँ-तहाँ, सभी जगह दिखाई दे रही थी।
omkumar is offline   Reply With Quote
Old 08-11-2012, 10:16 PM   #5
omkumar
Diligent Member
 
omkumar's Avatar
 
Join Date: Dec 2009
Posts: 869
Rep Power: 16
omkumar will become famous soon enoughomkumar will become famous soon enough
Default Re: यशपाल की कहानी 'चित्र का शीर्षक'।

जयराज ने एक अस्पष्ट-सा आश्वासन अनुभव किया। इस अनुभूति को पकड़ पाने के लिए उसने अपनी दृष्टि उस विस्तार से हटा, दोनों बाहों को सीने पर बाँध कर एक गहरा निश्वास लिया। उसे जान पड़ा जैसे अपार पारावार में बहता निराश व्यक्ति अपनी रक्षा के लिए आने वाले की पुकार सुन ले। उसने अपने मन में स्वीकार किया, यही तो वह चाहता है:, कल्पना से सौन्दर्य की सृष्टि कर सकने के लिए उसे स्वयं भी जीवन में सौन्दर्य का सन्तोष मिलना चाहिए; बिना फूलों के मधुमक्खी मधु कहाँ से लाए?

ऐसी ही मानासिक अवस्था में जयराज को एक पत्र मिला। यह पत्र इलाहाबाद से उसके मित्र एडवोकेट सोमनाथ ने लिखा था। सोमनाथ ने जयराज का परिचय उसकी कला के प्रति अनुराग और आदर के कारण प्राप्त किया था। कुछ अपनापन भी हो गया था। सोम ने अपने उत्कृष्ट कलाकार मित्र के बहुमूल्य समय का कुछ भाग लेने की घृष्टता के लिए क्षमा माँग कर अपनी पत्नी के बारे में लिखा था, ''इस वर्ष नीता का स्वास्थ्य कुछ शिथिल हैं, उसे दो मास पहाड़ में रखना चाहता हूँ। इलाहाबाद की कड़ी गर्मी में वह बहुत असुविधा अनुभव कर रही है। यदि तुम अपने पड़ोस में ही किसी सस्ते, छोटे परन्तु अच्छे मकान का प्रबन्ध कर सको तो उसे वहाँ पहुँचा दूँ। सम्भवत: तुमने अलग पूरा बँगला लिया होगा। यदि उस मकान में जगह हो और इससे तुम्हारे काम में विघ्न पड़ने की आशंका न हो तो हम एक-दो कमरे सबलेट कर लेंगे। हम अपने लिए अलग नौकर रख लेंगे'' आदि-आदि।
omkumar is offline   Reply With Quote
Old 08-11-2012, 10:16 PM   #6
omkumar
Diligent Member
 
omkumar's Avatar
 
Join Date: Dec 2009
Posts: 869
Rep Power: 16
omkumar will become famous soon enoughomkumar will become famous soon enough
Default Re: यशपाल की कहानी 'चित्र का शीर्षक'।

दो वर्ष पूर्व जयराज इलाहाबाद गया था। उस समय सोम ने उसके सम्मान में एक चाय-पार्टी दी थी। उस अवसर पर जयराज ने नीता को देखा था और नीता का विवाह हुए कुछ ही मास बीते थे। पार्टी में आये अनेक स्त्री-पुरूष के भीड़-भड़क्के में संक्षिप्त परिचय ही हो पाया था। जयराज ने स्मृति को ऊँगली से अपने मस्तिष्क को कुरेदा। उसे केवल इतना याद आया कि नीता दुबली-पतली, छरहरे बदन की गोरी, हँसमुख नवयुवती थी; आँखों में बुद्धि की चमक। जयराज ने पत्र को तिपाई पर एक ओर दबा दिया और फिर सामने घाटी के विस्तार पर निरूद्देश्य नजर किए सोचने लगा, क्या उत्तर दे?

जयराज की निरूद्देश्य दृष्टि तो घाटी के विस्तार पर तैर रही थी परन्तु कल्पना में अनुभव कर रहा था कि उसके समीप ही दूसरी आराम कुर्सी पर नीता बैठी है। वह भी दूर घाटी में कुछ देख रही है या किसी पुस्तक के पन्नों या अखबार में दृष्टि गड़ाये है। समीप बैठी युवती नारी की कल्पना जयराज को दूध के फेन के समान श्वेत, स्फटिक के समान उज्ज्वल पहाड़ की बरफानी चोटी से कहीं अधिक स्पन्दन उत्पन्न करने वाली जान पड़ी। युवती के केशों और शरीर से आती अस्पष्ट-सी सुवास, वायु के झोकों के साथ घाटियों से आती बत्ती और शिरीष के फूलों की भीनी गन्ध से अधिक सन्तोष दे रही थी। वह अपनी कल्पना में देखने लगा, नीता उसकी आँखों के सामने घाटी की एक पहाड़ी पर चढ़ती जा रही है। कड़े पत्थरों और कंकड़ों के ऊपर नीता की गुलाबी एड़ियाँ, सैन्डल में सँभली हुई हैं। वह चढ़ाई में साड़ी को हाथ से सँभाले हैं। उसकी पिंडलियाँ केले के भीतर के डंठल के रंग की हैं, चढ़ाई के श्रम के कारण नीता की साँस चढ़ गई है और प्रत्येक साँस के साथ उसका सीना उठ आने के कारण, कमल की प्रस्फुटनोन्मुख कली की तरह अपने आवरण को फाड़ देना चाहता है। कल्पना करने लगा, वह कैनवैस के सामने खड़ा चित्र बना रहा है।
omkumar is offline   Reply With Quote
Old 08-11-2012, 10:17 PM   #7
omkumar
Diligent Member
 
omkumar's Avatar
 
Join Date: Dec 2009
Posts: 869
Rep Power: 16
omkumar will become famous soon enoughomkumar will become famous soon enough
Default Re: यशपाल की कहानी 'चित्र का शीर्षक'।

नीता एक कमरे से निकली है। आहट ले उसके कान में विघ्न न डालने क लिए पंजों के बल उसके पीछे से होती हुई दूसरे कमरे में चली जा रही है। नीता किसी काम से नौकर को पुकार रही है। उस आवाज से उसके हृदय का साँय-साँय करता सूनापन सन्तोष से बस गया है।

जयराज तुरन्त कागज और कलम ले उत्तर लिखने बैठा परन्तु ठिठक कर सोचने लगा, वह क्या चाहता है? मित्र की पत्नी नीता से वह क्या चाहेगा? तटस्थता से तर्क कर उसने उत्तर दिया, कुछ भी नहीं। जैसे सूर्य के प्रकाश में हम सूर्य की किरणों को पकड़ लेने की आवश्यकता नहीं समझते, उन किरणों से स्वयं ही हमारी आवश्यकता पूरी हो जाती है; वैसे ही वह अपने जीवन में अनुभव होने वाले सुनसान अँधेरे में नारी की उपस्थिति का प्रकाश चाहता है।

जयराज ने संक्षिप्त-सा उत्तर लिखा, 'भीड़-भाड़ से बचने के लिए अलग पूरा ही बंगला लिया है। बहुत-सी जगह खाली पड़ी है। सबलेट-का कोई सवाल नहीं। पुराना नोकर पास है। यदि नीताजी उस पर देख-रेख रखेंगी तो मेरा ही लाभ होगा। जब सुविधा हो आकर उन्हें छोड़ जाओ। पहुँचने के समय की सूचना देना। मोटर स्टैन्ड पर मिल जाऊँगा।'
omkumar is offline   Reply With Quote
Old 08-11-2012, 10:17 PM   #8
omkumar
Diligent Member
 
omkumar's Avatar
 
Join Date: Dec 2009
Posts: 869
Rep Power: 16
omkumar will become famous soon enoughomkumar will become famous soon enough
Default Re: यशपाल की कहानी 'चित्र का शीर्षक'।

अपनी आँखों के सामने और इतने समीप एक तरुण सुन्दरी के होने की आशा में जयराज का मन उत्साह से भर गया। नीता की अस्पष्ट-सी याद को जयराज ने कलाकार के सौन्दर्य के आदेशों की कल्पनाओं से पूरा कर लिया। वह उसे अपने बरामदे में, सामने की घाटी पर, सड़क पर अपने साथ चलती दिखाई देने लगी। जयराज ने उसे भिन्न-भिन्न रंगों की साड़ियों में, सलवार-कमीज के जोडों की पंजाबी पोशाक में, मारवाड़ी अँगिया-लहंगे में फूलों से भरी लताओं के कुंज में, चीड़ के पेड़ के तले और देवदारों की शाखाओं की छाया में सब जगह देख लिया। वह नीता के सशरीर सामने आ जाने की उत्कट प्रतीक्षा में व्याकुल होने लगा; वैसे ही जैसे अँधेरे में परेशान व्यक्ति सूर्य के प्रकाश की प्रतीक्षा करता है।

लौटती डाक से सोम का उत्तर आया, ''तारीख को नीता के लिए गाड़ी में एक जगह रिजर्व हो गई है। उस दिन हाईकोर्ट में मेरी हाजिरी बहुत आवश्यक है। यहाँ गर्मी अधिक है और बढ़ती ही जा रही है। मैं नीता को और कष्ट नहीं देना चाहता। काठगोदान तक उसके लिए गाड़ी में जगह सुरक्षित है। उसे बस की भीड़ में न फँस कर टैक्सी पर जाने के लिए कह दिया है। तुम उसे मोटर स्टैण्ड पर मिल जाना। तुम हम लोगों के लिए जहाँ सब कुछ कर रहे हो, इतना और सही। हम दोनों कृतज्ञ होंगे।''
omkumar is offline   Reply With Quote
Old 08-11-2012, 10:17 PM   #9
omkumar
Diligent Member
 
omkumar's Avatar
 
Join Date: Dec 2009
Posts: 869
Rep Power: 16
omkumar will become famous soon enoughomkumar will become famous soon enough
Default Re: यशपाल की कहानी 'चित्र का शीर्षक'।

जयराज मित्र की सुशिक्षित और सुसंस्कृत पत्नी को परेशानी से बचाने के लिए मोटर स्टैण्ड पर पहुँच कर उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहा था। काठगोदाम से आनेवाली मोटरें पहाड़ी के पीछे से जिस मोड़ से सहसा प्रकट होती थीं, उसी ओर जयराज की आँख निरन्तर लगी हुई थी। एक टैक्सी दिखाई दी। जयराज आगे बढ़ गया। गाड़ी रुकी। पिछली सीट पर एक महिला अपने शरीर का बोझ सँभाल न सकने के कारण कुछ पसरी हुई-सी दिखाई दी। चेहरे पर रोग की थकावट का पीलापन और थकावट से फैली हुई निस्तेज आँखों के चारों ओर झाइयों के घेरे थे। जयराज ठिठका। महिला की आँखों में पहचान का भाव और नमस्कार में उसके हाथ उठते देख जयराज को स्वीकार करना पड़ा, ''मैं जयराज हूँ।''
महिला ने मुस्कराने का यत्न किया, ''मैं नीता हूँ।''
omkumar is offline   Reply With Quote
Old 08-11-2012, 10:18 PM   #10
omkumar
Diligent Member
 
omkumar's Avatar
 
Join Date: Dec 2009
Posts: 869
Rep Power: 16
omkumar will become famous soon enoughomkumar will become famous soon enough
Default Re: यशपाल की कहानी 'चित्र का शीर्षक'।

महिला की वह मुस्कान ऐसी थी जैसे पीड़ा को दबा कर कर्तव्य पूरा किया गया हो। महिला के साधारणत: दुबले हाथ-पाँवों पर लगभग एक शरीर का बोझ पेट पर बँध जाने के कारण उसे मोटर से उतरने में भी कष्ट हो रहा था। बिखरे जाते अपने शरीर को सँभालने में उसे ही असुविधा हो रही थी जैसे सफर में बिस्तर के बन्द टूट जाने पर उसे सँभलना कठिन हो जाता है। महिला लँगड़ाती हुई कुछ ही कदम चल पायी कि जयराज ने एक डाँडी (डोली) को पुकार उसे चार आदमियों के कंधों पर लदवा दिया।

सौजन्य के नाते उसे डाँडी के साथ चलना चाहिए था परन्तु उस शिथिल और विरूप आकृति के समीप रहने में जयराज को उबकाई और ग्लानि अनुभव हो रही थी।
omkumar is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks


Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 02:06 PM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.