31-03-2011, 05:11 PM | #1 |
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हिँदी के उद्गार
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31-03-2011, 05:48 PM | #2 |
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Re: हिँदी के उद्गार
कुमार भाई
एक बेहतरीन मुद्दा उठाया है आपने हिँदी के नाम पर अश्लीलता का नंगा नाच करना पारिवारिक सेक्स सम्बंधो को बढ़ावा देने वाला एक उदहारण तो अपना एक पड़ोसी फोरम मौजूद है |
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Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..." click me
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31-03-2011, 06:42 PM | #3 |
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Re: हिँदी के उद्गार
अच्छा सूत्र बनाया है हम असल जिन्दगी मै जो हो बही फोरम पर है एक अच्छी पहचान के साथ लेकिन कुछ लोगो ने फोरमो मे गलत भाबनाओ को प्रेरण दे रहे है
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Gaurav kumar Gaurav |
01-04-2011, 08:14 AM | #4 |
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Re: हिँदी के उद्गार
तथाकथित प्रबुद्ध वर्ग न जाने क्यूँ अलगाव और वैशिष्टय की चाह मेँ हिँदी को , अपनी राष्ट्रभाषा को अपमानित करने मेँ कोई कोर कसर नहीँ छोड़ते हैँ । हिँदी की माटी पर , राष्ट्र के संसाधनोँ से पले बढ़े उसके सपूत खुद को श्रेष्ठ सिद्ध करने के फेर मेँ हिँदी और हिँदीभाषी के कमतर होने का संदेश प्रसारित करते रहते हैँ । आज़ादी से पूर्व ही विदेश ग्रन्थि से ग्रसित लोगोँ का एक वर्ग विकसित हो रहा था जो आज़ादी के कई दशकोँ बाद गुणात्मक बढ़ोत्तरी कर चँहु ओर इतरा रहा है । इस वर्ग विशेष को अपनोँ से संवाद करने के लिये भी विदेशी भाषा का दामन थामना पड़ता है । क्या अपनोँ से श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिये ? भाषा का सेतु जोड़ने का कार्य करता है अथवा तोड़ने का ? भाषा एक सेतु ही तो है जो आपके विचारोँ , मनोभावोँ को अभिव्यक्ति का मार्ग देती है । मजे की बात यह है कि पूर्व मेँ यह वर्ग हिँदी मेँ सोचता था और विदेशी भाषा मेँ बोलता था परन्तु आज उसका चिँतन भी आयातित भाषा के अधीन है ।
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01-04-2011, 01:18 PM | #5 |
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Re: हिँदी के उद्गार
शायद यही मौजूदा वक्त की जरूरत है
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01-04-2011, 01:21 PM | #6 |
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Re: हिँदी के उद्गार
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Gaurav kumar Gaurav |
02-04-2011, 08:31 AM | #7 |
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Re: हिँदी के उद्गार
कुमार भाई सूत्र को आगे बढाये ..
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02-04-2011, 08:56 AM | #8 |
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Re: हिँदी के उद्गार
मेरी अपनी मान्यता है कि हिँदी के विकास मेँ बॉलीवुड का बहुत योगदान है । हिँदी को कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैलाने मेँ इसकी भूमिका प्रशंसनीय है । इस मामले मेँ सरकार और उसका तन्त्र कच्छप गति से ही गतिशील रहा और हमारे स्वनामधन्य लेखक , प्रबुद्ध बौद्धिक वर्ग भाषा के लिये चिन्तन करते हुये गोष्ठी व कार्यशालाओँ मेँ शिरक़त कर अपने कर्तव्योँ की इतिश्री कर लेते थे । सरकारोँ द्वारा सितम्बर माह मेँ आयोजित हिँदी सप्ताह मेँ निमन्त्रण पर प्रतिभाग कर ख़ुश हो लेते थे । भाषा के विकास , प्रसार के लिये इससे अधिक किसी के पास कोई ठोस योजना न थी । लेकिन बम्बईया फिल्मोँ के आकर्षण ने हिँदी का समां बाँध कर रख दिया । सही मायनोँ मेँ हिँदी को राष्ट्रभाषा के रूप मेँ मान्यता मिल गयी । क्षेत्रीय भाषाओँ के साथ इसकी स्वीकार्यता भी सुदूर प्रदेशोँ मेँ हो गयी । सह अस्तित्व की भावना के वशीभूत हिँदी और उसकी छोटी क्षेत्रीय बहनोँ ने बॉलीवुड की दिखायी राह पर सद्भाव , सन्मार्ग , सौहार्द और अखण्ड राष्ट्र के विकास पर चलना प्रारम्भ कर दिया । बॉलीवुड के हमारे नायक फिल्मोँ मेँ देशप्रेम के संवादोँ के माध्यम से जब एक ज़ोश , ज़ुनून हमारे सीने मेँ उतारते हैँ , हमेँ ऊर्जा से लबरेज़ करते हैँ , हमेँ उन्माद मेँ डुबो जाते हैँ तब हम उनमेँ वीर सावरकर , भगतसिंह , आज़ाद को देखने लगते हैँ । हमारा चरित्र बदल जाता है परन्तु वे वही रहते हैँ क्योँकि प्रेस मेँ बात करते समय उसी विदेश ग्रन्थि के शिक़ार होकर आयातित भाषा मेँ निर्लज्जता से संवाद करते हैँ । निर्लज्जता इसलिये कि इसी भाषा , इन्हीँ भाषा प्रेमियोँ के बदौलत वे अकूत धन सम्पदा के स्वामी हैँ , शानोशौक़त के मालिक हैँ परन्तु अलगाव और वैशिष्टय की चाह मेँ भाषा का दोहन करने से भी नहीँ चूकते और कर डालते हैँ भाषा का बलात्कार ।
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02-04-2011, 09:16 AM | #9 |
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Re: हिँदी के उद्गार
भारत को मुख्यता हिंदी भाषी माना गया है। हिंदी भाषा का उद्गम केन्द्र संस्कृत भाषा है। लेकिन समय के साथ संस्कृत भाषा का लगभग लोप होता जा रहा है। यही हाल हिंदी भाषा का भी हो सकता है, अगर इसके लिये कोई सार्थक प्रयास नहीं किए गए तो। भारतीय संविधान के तहत सभी सरकारी और गैर सरकारी दफ्तरों में हिंदी में कार्य करना अनिवार्य माना गया है। लेकिन शायद ही कहीं हिंदी भाषा का प्रयोग दफ्तर के कायों में होता हो। हर क्षेत्र में अंग्रेजी भाषा का बोलबाला है। किसी को अंग्रेजी भाषा का ज्ञान नहीं तो उसको नौकरी मिलना मुश्किल होता है। जबकि यह गलत कृत्य है सरासर भारतीय संविधान की अवहेलना है। सच पूछिए तो भारतीय संस्कृति की यह धरोहर संकट में है और इसके विकास के नाम पर अब केवल पाखंड हो रहा है। जिस हिंदी ने भारतीय हिंदी सिनेमा को अपनी भाषा शैली और संवादों से समृद्धशाली बनाया है उसकी ताकत को ऐसे नज़रअंदाज किया जा रहा है जैसे कि वह उपयोगी नही है बल्कि परित्यक्ता है।
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02-04-2011, 09:35 AM | #10 |
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Re: हिँदी के उद्गार
सर्वथा उपयुक्त कथन। हमारा यही दृष्टिकोण हमेँ हीनतर होने का बोध कराता रहता है । हम अपने ही देश मेँ आयातित भाषा के सम्मुख नतमस्तक हैँ । ज्ञान और बुद्धि की पर्याय भाषा हो गयी है जबकि भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम है इससे इतर कुछ और नहीँ । चन्द लोगोँ द्वारा महिमण्डित करने से आज अपने ही देश के राजपथ पर आयातित भाषा मुस्कुराते हुये सम्मानित हो रही है जबकि हिँदी पगडंडियोँ पर बैठी चिँतामग्न है ।
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