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Old 03-01-2013, 02:28 PM   #11
GForce
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पूर्णता की तलाश में

-जय जीऊत



एक मनोवांछित पड़ाव की तलाश में
मैं चिर यायावर बना भटक रहा हूं
एक अरसा पहले जहां बसेरा किया था
आज उसी मुकाम पर पुनःआ ठहरा हूं
इस अन्तराला के कायापलट से हैरान हूं
कल जहां ऊंघ रही बस्ती का सूनापन था
आज वहां एक आबाद शहर की चहल-पहल है
कल जहां पगडंडियों का संकरापन था
आज वहां राजमार्गों की गहमा-गहमी है
कल जहां पनघटों की ठेलमठेल थी
आज वहां नलों की सुभिताएं हैं
कल जहां बैलगाड़ियों की धुकधुकी थी
आज वहां यातायात की सुविधाएं हैं
कल जहां झोंपड़ियों की सादगी थी
आक वहां हवेलियों की ठाठ-ठसक है
कल जहां दीपकों का धुंधलापन था
आज वहां बिजलियों की चकाचौंध है
परन्तु
इस सुख-समृद्धि के बीच
झुर्रियों से बोझिल यह माथा कैसा ?
इन सिद्धियों के बीच हिंसा-प्रतिहिंसा से सहम यह चेहरा कैसा ?
इस खुशहाली के बीच
हृदय में रेंगता यह संशय कैसा ?
इस भीड़-भाड़ के बीच
आंखों में वीरानियों का यह आलम कैसा ?
इन हंसी-कहकहों के बीच
तपते आंसुओं से सराबोर यह कपोल कैसा ?
इन उपलब्धियों के बीच
बेचारगी ओढ़े यह मानव कैसा ?
चौंधिया देने वाली प्रगति करने वाले मेरे भाइयो
तुम्हारी इन अभूतपूर्व तरक्कियों से मैं आक्रांत हूं
तरक्कियों की इस अन्धी-सरपट दौड़ में
मानव जहां अपनी अस्थायी विजय पर किलक रहा है
वहां क्षत-विक्षत मानवता के आर्तनाद से
धरती का चप्पा-चप्पा संत्रस्त है ।
मेरे बन्धुओ !
अतीत के ढहते इन मलबों तले
जीवन-मूल्यों की जो लाशें कराह रही हैं
उससे मेरी भटकन में व्यवधान पड़ रहा है ।
इसे तुम मेरी गुस्ताखी समझो
या मेरे स्वभाव की निर्भीकता
कि सच्चाई बयान किये बिना
मेरी विकलता को राहत नहीं पहुंचने वाली ।
दरअसल तुम्हारी ये आधी-अधूरी तरक्कियां
मुझे रास आतीं नहीं
इसीलिए पूर्णता की तलाश मे
चिर यायावर बना भटक रहा हूं
भटके जा रहा हूं मैं
जाने और कब तक !
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Old 03-01-2013, 05:30 PM   #12
Dark Saint Alaick
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Default Re: मॉरीशस से हिन्दी कविताएं

अति श्रेष्ठ कविताएं हैं, मित्र जीफ़ोर्स। ... और भी अच्छा इसलिए लगता है कि ये सभी भारतवंशियों की मूल हिन्दी रचनाएं हैं। आभार आपका।
__________________
दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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Old 13-01-2013, 09:46 PM   #13
rajnish manga
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Originally Posted by GForce View Post

पूर्वजों को प्रणाम

-जनार्दन कालीचरण



मेरे देश की बंजर धरती को
मधुवन-सा उपवन बनाने वाले
उन शर्त-बन्द पूर्वजों को
मेरा सौ बार प्रणाम ।।

पीठ पर कोड़ों की मार सह-सह कर
रक्त से अपने इस मिट्टी को सींच कर
पत्थर से निर्दय गोरों की जेबें भरकर
जिन पूर्वजों ने हमें दिया है सम्मान
उनको मेरा सौ बार प्रणाम ।।

थे वे दुख के पर्वत वहन करने वाले
खून के घूंट चुप पी जाने वाले
हर प्रलोभन को ठोकर मार कर
जिन पूर्वजों को स्वधर्म का था अभिमान
उनको मेरा सौ बार प्रणाम ।।

जब शायद भाग्य न था साथ उनके
तप्त आंसू की धार पी-पी कर
रामायण की तलवार हाथ लिये
जिन पूर्वजों ने छेड़ा था स्वतंत्रता का संग्राम
उनको मेरा सौ बार प्रणाम ।।


जनार्दन कालीचरण जी के साथ हम भी उनके पूर्वजों को प्रणाम करते हैं जो कभी बंधुआ मजदूर के रूप में मॉरिशस तथा सागर पार अन्यत्र अनजान देशों में रोटी की तलाश में गए और वहीँ के हो कर रह गए. कविता उनके द्वारा सहे गए ज़ुल्मो-सितम की दास्ताँ सुनाती है, उनके त्याग और श्रम के बारे में बताती है जिसने बंजर धरती को हरा भरा कर दिया और उनके संघर्षों की ओर ध्यान आकृष्ट करती है जिसकी वजह से मॉरिशस आज स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में हमारे सामने है. उन सभी जाने अनजाने लोगों को हम श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं. कवि ने एक ऐतिहासिक सत्य का सुन्दर चित्रण किया है.
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Old 09-02-2013, 03:44 PM   #14
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Default Re: मॉरीशस से हिन्दी कविताएं

उद्धारक

-ठाकुरदत्त पाण्डेय


भाषा को लेकर भारत में
अक्सर यह प्रश्न सामने आता
यदि गोस्वामी तुलसीदास
न होते तो हिन्दी का भला क्या होता ?

उसी तरह मॉरिशस में भी
ऐसा ही प्रश्न पूछा जा सकता
यदि प्रोफेसर विष्णुदयाल
न होते तो हिन्दी का भला क्या होता ?

पण्डित जी ने भली भाँति यह
पाया समझा और अनुभव भी किया
अपनी भाषा का उद्धार
निश्चय ही जाति का उद्धार होता

अपनी भाषा के बल बूते
हिम्मत से जेल का दरवाज़ा खोला
स्वंय जेल की हवा खा कर
प्यार से जाति को मेवा खिलाया !

देश के कोने-कोने में जा कर
धर्म संस्कृति का झंडा लहराया
वेद उपनिषद और गीता
की शंख-ध्वनि से सभी को जगाया

ऐसे वीर ऐसे साहसी
ऐसे कर्मयोगी, त्यागी, वैरागी
बारम्बार जन्म नहीं लेते
विस्मृति के गर्भ में वे जाते नहीं !

अपने देशवासियों को
एकता सुख समृद्धि की वाणी दे कर
पूरे देश के इतिहास को
बदल कर ये शान्तिदूत अमर हो गए
वे शान्तिदूत अमर हो गए !
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Old 09-02-2013, 03:51 PM   #15
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ईमानदारी

-दयानंद चेंगी


दिन गये ईमानदारी करते
जिन्दगी बीती दुख उठाते
बचपन, जवानी और बुढ़ापा
एक लंबी उमर
मगर बेईमानों के परिवेश में
बेचारी जिन्दगी
ईमानदारी का रोना रोते-रोते
खो गयी
मिट गयी।

सुबह के तारे की तरह ऐसे वक्त भी आये
कि हमने ईमानदारी को झटक दिया
बिक जाना चाहा बेईमान के हाथों मगर

कोई उत्स
कोई अतीत
कोई सच्चाई
बार-बार हमें सावधान करते रहे
कि जिन्दगी सस्ती नहीं होती
हम मान गये इन बातों को
और ऐसे ही फक्कड़पन में
ईमानदारी का गीत गाते रहे
बचपन, जवानी और बुढ़ापा
एक लंबी उमर
कब खत्म हो गयी पता न चला
खैर
सुबह के तारे को डूबना ही तो होता है
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Old 09-02-2013, 03:54 PM   #16
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मीरा का इतिहास

-दानीश्वर श्याम

एक मौसी है
संसार की वह मौसी है
वह अपने को, अपने जन्म को
हमेशा कोसा करती है
हे भगवान, तुमने यह क्या किया
क्यों ऐसा किया प्रभु !
यही कारण है
कि मौसी ने लड़की के जनमते ही
वेश्या कह डाला था
कहा था -
तुम पतुरिया है बेटी,
कन्या कहाँ,
तु तो वेश्या है
कहाँ होता वह जो तू सोचती है
कहाँ होता है वह जो तू चाहती है
कहाँ होता वह जो तू करना चाहती है
मीरा को देख
मीरा के प्रेम को किसने देखा ?
उसके प्रेम के आँसू, पीड़ा को
किसने समझने का यत्न किया ?
माँ-बाप ने,
समाज ने
मीरा को क्या से क्या बना डाला
पति कुम्हार बन उसको
मिट्टी बना डाला
वह अपना सखा प्रेम को लेकर
अपनी सखी पीड़ा को लेकर
संसार से पलायन कर गयी
मीरा के प्रेम का नीलाम हुआ कि नहीं ?
प्रणय प्यार को सौत बनाकर
क्रिड़ा कि हाथ बेच डाला
कैसी विवशता है बेटी।
इधर पति का परिवार,
बाल बच्चे
उधर संसद समाज,
जन समुदाय
अपने प्रेम को किसने देखा ?
कुम्हार ने मिट्टी को रौंद कर
कई नमूने, कई बरतन बना डाले
किन्तु प्रेम के महासागर का
मंथन किसने किया बेटी ?
और प्राणप्रिय मणि किसके हाथ लगा ?
पति कुम्हार बन जीवन भर
तुम को रौंदता रहा
और तू
प्रेमी कृष्ण को पूजती रही
पर भगवान सभी को नहीं मिलते बेटी !
अहिल्या प्रभु-स्पर्श से तर गयी
शबरी के फल राम ने खाये
पर
राम ही ने सीता को चबा डाला
मेनका विश्वामित्र पर सवार होने आयी थी
पर रौंदी वही गयी बेटी !
शकुन्तला को पैदा कर क्या चमत्कार किया
दुष्यन्त विश्वामित्र का बाण
जिसने शकुन्तला को
जीर्ण-शिर्ण कर
भरत का निर्माण किया
और कुम्हार बन भरत अमर हो गया
बेटी ! तू पातुर की पतुरिया ही रह गयी
तेरे प्रेम को
किसने देखा बेटी ?
युग-युग से
मंदोदरी रावण को ताक रही है
शूर्पणखा राम को,
लक्ष्मण को
रत्नावली तुलसी की जांघ पकड़ रो रही है
कुंती अपने कर्ण को जकड़ी रही
द्रोपदी पंच-पात्रों को निहार रही है
यशोधरा गौतम को गुहार रही है
वासवदत्ता क्या बुद्ध को भूल पायी ?
राधा को दोषी कौन कहेगा
जो
आज कृष्ण के साथ पूजित है
उससे बड़ी बड़भागिन आज
संसार में कौन है बेटी
मीरा के प्रेम को देखो लोगो
उसकी पीड़ा को मत देखो
उसकी विवशता को मत देखो
तुम को भी भगवान मिल सकते हैं !
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