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Old 09-02-2013, 09:45 AM   #11
anjaan
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anjaan is a glorious beacon of lightanjaan is a glorious beacon of lightanjaan is a glorious beacon of lightanjaan is a glorious beacon of lightanjaan is a glorious beacon of lightanjaan is a glorious beacon of light
Default Re: शहर में कर्फ्यू

टुकड़ी के सीनियर अफसरों ने थोड़ी देर तक खून की मौजूदा स्थिति और बहने वाली लकीरों की दिशा का मुआयना किया। बाकी सभी लोग अपने-अपने हथियारों को कसकर पकड़े चारों तरफ बारजों और छज्जों पर निगाह गड़ाए रहे। तेज होने वाली बारिश ने चारों तरफ धुँधलके की एक पर्त-सी जमा दी थी। उसके पास छज्जों पर कोई स्पष्ट आकृति देख पाना निहायत मुश्किल था, फिर भी प्रयास करने पर हर बरामदें में किसी खंभे या खिड़की की आड़ में कोई न कोई आकृति दिखाई पड़ ही जाती और बंदूकों पर भिंची हुई उंगलियाँ और सख्त हो जातीं। लेकिन थोड़ी देर लगातार देखने के बाद पता चलता कि हर बार की तरह इस बार भी उन्हें धोखा हुआ है और उंगलियाँ धीरे-धीरे स्वाभाविक हो जातीं।

खून की धार देखकर अफसरों ने एक गली का रास्ता पकड़ा। गली पार्क की हद से शुरू होती थी। रास्ते पर पड़ी लाल खून और कीचड़ सनी लकीर देखने से ऐसा लगता था कि किसी जख्मी आदमी को लोग घसीट कर ले गए थे। पूरे मोहल्ले के दरवाजे बंद थे। बारिश और सन्नाटे ने इसे मुश्किल बना दिया था कि इस बात का पता लगाया जाए कि घायल किस मकान में छुपाया गया है। सिर्फ जमीन पर फैली और पानी से काफी हद तक धुली-पुछी लकीर ही एकमात्र सहारा थी जिसके जरिए तलाश की कुछ उम्मीद की जा सकती थी।
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Old 09-02-2013, 09:45 AM   #12
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गलियाँ किसी विकट मायाजाल की तरह फैली थीं। एक गली खत्म होने के पहले कम से कम तीन हिस्सों में बँटती थी। आसमान में छाए बादलों और तेज बारिश ने दिन दोपहर को ढलती शाम का भ्रम पैदा कर दिया था। गलियों में हल्का-हल्का ऊमस भरा अँधेरा था। इस पूरे माहौल के बीच से खून की लकीर तलाशते हुए आगे बढ़ना और काल्पनिक दुश्मन से अपने को सुरक्षित रखना, दोनो काफी मुश्किल काम थे। आगे के दो-तीन अफसर जमीन पर निगाहें गड़ाए खून की लकीर तलाशने का प्रयास कर रहे थे और पीछे की टुकड़ी के लोग अपनी-अपनी पिस्तौलों और राइफलों का रुख छज्जों और बारजों की तरफ किए दुश्मन से हिफाजत का प्रयास कर रहे थे। बारिश के थपेड़े गली की ऊँची दीवारों के कारण एकदम सीधे मुँह पर तो नहीं लग रहे लेकिन तेज मूसलाधार बारिश ने लोगों को सर से पाँव तक सराबोर कर रखा था।

अचानक आगे चलने वाला एक अफसर ठिठककर खड़ा हो गया। दूसरे अफसर ने भी ध्यान से कुछ सुनने की कोशिश की और वह भी स्तब्ध एक जगह खड़ा होकर साफ-साफ सुनने की कोशिश करने लगा। बाकी टुकड़ी में से कुछ लोगों ने इन दोनो अफसरों का खिंचा हुआ चेहरा देखकर सूँघने की कोशिश की और फिर दीवालों की आड़ में खड़े होकर अंदाज लगाने लगे।

बारिश और सन्नाटे से भीगे हुए माहौल की स्तब्धता को भंग करती हुई रोने की स्वर-लहरियाँ हल्के-हल्के तैरती हुई-सी उस समूह के कानों तक पहुँच रही थीं। आवाज ने उन्हें ज्यादा चैतन्य कर दिया और वे लोग आहिस्ता -आहिस्ता पाँव जमाकर उसी दिशा में बढ़ने लगे। थोड़ी ही देर बढ़ने पर आवाज कुछ साफ सुनाई देने लगी।
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Old 09-02-2013, 09:46 AM   #13
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यह रोने की एक अजीब तरह की आवाज थी। लगता है कि जैसे चार-पाँच औरतें रोने का प्रयास कर रही हों और कोई उनका गला दबाए हो। भिंचे गले से विलाप का एक अलग ही चरित्र होता है- भयावह और अंदर से तोड़ देने वाला। यह विलाप भी कुछ ऐसा ही था। जो स्वर छनकर बाहर पहुँच रहा था वह पत्थर दिल आदमी को भी हिला देने में समर्थ था।

आवाज का पीछा करते-करते पुलिस की टुकड़ी एक छोटे-से चौ*क तक पहुँच गई। चौक में तीन दिशाओं से गलियाँ फूटती थीं। चारो तरफ ऊँचे मकानों के बीच में यह चौक आम दिनों में बच्चों के लिए छोटे-से खेल के मैदान का काम करता था और दिन में इस वक्त गुलजार बना रहता था लेकिन आज वहाँ पूरी तरह से सन्नाटा था। पुलिस वालों के वहाँ पहुँचते-पहुँचते आवाज पूरी तरह से लुप्त हो गई। ऐसा लगता था कि पुलिस के वहाँ तक पहुँचने की आहट मातम वाले घर तक पहुँच गई थी और रोने वाली औरतों का मुँह बंद करा दिया गया था।

उस छोटे-से चौक के अंदर जितने मकान थे पुलिस वाले पोजीशन लेकर उनके बाहर खड़े हो गए। अफसर भी एक खंभे की आड़ लेकर अगले कदम के बारे में दबे स्वर में बात करने लगे। इतना निश्चित था कि वह मकान जिसके अंदर विलाप हो रहा था, यहीं करीब ही था क्योंकि उनके इस चौक पर पहुँचते ही आवाजें एकदम बंद हो गई थीं। उन्होंने खंबों की आड़ से ही चौक की जमीन पर खून की लकीर तलाशने की कोशिश की। खून का आभास मिलना यहाँ पर मुश्किल था क्यों कि इस क्षेत्र में पानी सिर्फ आसमान से ही नहीं बरस रहा था बल्कि लगभग सभी मकानों की छतों से नालियाँ सीधे चौक में खुलती थीं। छतों का इकट्ठा पानी नालियों से होकर चौक में मोटी धाराओं की शक्ल में गिर रहा था और उससे धरती पूरी तरह धुल-पुछ जा रही थी।
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Old 09-02-2013, 09:46 AM   #14
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अचानक एक सिपाही ने उत्तेजित लहजे में अपना हाथ हिलाना शुरू कर दिया। वह एक बड़े से हवेलीनुमा मकान की सीढ़ियों पर दरवाजे से सटकर खड़ा था। दरवाजे के ऊपर निकला बारजा उसे बारिश से बचाव प्रदान कर रहा था। दरवाजे की चौखट पर उसे लाल रंग का धब्बा दिख गया। इस धब्बे पर यद्यपि बारजे की वजह से सीधी बारिश नहीं पड़ रही थी फिर भी आड़ी-तिरछी बौछारों ने उसे काफी धुँधला दिया था। इसीलिए उसके ठीक बगल में खड़े सिपाही की भी निगाह उस पर देर से पड़ी। उसको हाथ हिलाता देखकर कुछ पुलिस अफसर और दरोगा तेजी से अपनी-अपनी आड़ में से निकले और झुकी हुई पोजीशन में लगभग दौड़ते हुए उस बारजे तक पहुँच गए।

वहाँ पहुँचकर कुछ ने झुककर चौखट का मुआयना किया जहाँ पहली बार खून का धब्बा दिखा था। इसके अलावा भी कई जगहों पर हल्के धुँधले लाल धब्बे दिखाई पड़ने लगे। इतना निश्चित हो गया कि इसी घर में कोई जख्मी हालत में लाया गया है।

एक अफसर ने दरवाजा धीरे से खटखटाया। अंदर पूरी तरह सन्नाटा था। उसने थोड़ी तेजी से दरवाजा खटखटाया, अंदर से कोई आवाज नहीं आई। वह पीछे हट गया और उसने दरोगा को इशारा किया। दरोगा ने आगे बढ़कर दरवाजा लगभग पीटना शुरू कर दिया। कोई उत्तर न पाकर उसने दरवाजे को तीन-चार लातें लगाईं। लात लगने से दरवाजा बुरी तरह हिल गया। पुराना दरवाजा था, टूटने की स्थिति में आ गया। शायद इसी का असर था कि अंदर से कुछ आवाज-सी आई। लगा कोई दरवाजे की तरफ आ रहा है। सीढ़ियों पर खड़े लोग दोनों तरफ किनारे सिमट कर खड़े हो गए। दो-एक लोगों ने अपनी रिवाल्वर निकालकर हाथ में ले ली।
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Old 09-02-2013, 09:46 AM   #15
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दरवाजे के पास पहुँचकर कदमों की आहट थम गई। साफ था कि कोई दरवाजे के पीछे खड़ा होकर दरवाजा खोलने - न खोलने के पशोपेश में पड़ा था। फिर अंदर से चटखनी गिरने की आवाज आई और एक मातमी खामोशी के साथ धीरे-धीरे दरवाजा खुल गया।
सामने एक निर्विकार सपाट बूढ़ा चेहरा था जिसे देखकर यह अंदाज लगा पाना बहुत मुश्किल था कि मकान में क्या कुछ घटित हुआ होगा।
“सबके सब बहरे हो गए थे क्या...? हम लोग इतनी देर से बरसात में खड़े भींग रहे हैं और दरवाजा पीट रहे हैं।”
बोलने वाले के शब्दों के आक्रोश ने बूढ़े को पूरी तरह अविचलित रखा। उसकी चुप्पी बहुत आक्रामक थी। दरवाजा खुलने से कुछ बौछारें उसकी पेशानी और चेहरे पर पड़ी और उसकी सफेद दाढ़ी में आकर उलझ गईं।
“अंदर कोई जख्मी छिपा है क्या ?”
“जी नहीं..... कोई नहीं है।” उसका स्वर इतना संयत था कि यह जानते हुए भी कि वह झूठ बोल रहा है कि किसी ने उसे डपटने की कोशिश नहीं की।
“बड़े मियाँ, हम जख्मी के भले के लिए कह रहे हैं। तुम उसको हमारे हवाले कर दो। हम उसे अस्पताल तक अपनी गाड़ी में पहुँचा देंगे। दवा-दारू वक्त से हो गई तो बच सकता है। नहीं तो अब पता नहीं कितने दिनों तक कर्फ्यू लगा रहे और हो सकता है इलाज न होने से हालत और खराब हो जाए।”
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Old 09-02-2013, 09:47 AM   #16
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“आप मालिक हैं हुजूर, पर पूरा घर खुला है, देख सकते हैं। अंदर कोई नहीं है।”
उसने घर की तरफ इशारा किया लेकिन खुद दरवाजे पर से नहीं हटा। वह पूरा दरवाजा छेके खड़ा था। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें। बूढ़े के चेहरे की भावहीनता ने बूँदाबाँदी के साथ मिलकर पूरे माहौल को इस कदर रहस्यमय बना दिया था कि सब कुछ एक तिलिस्म-सा लग रहा था।
सबको किंकर्तव्यविमूढ़ देखकर बूढ़े ने धीरे-धीरे दरवाजा बंद करना शुरू कर दिया। उसके हरकत में आते ही यह तिलिस्म अचानक टूट गया और एक अफसर ने झपटकर अपना बेंत दोनों दरवाजों के बीच फँसा दिया। किसी ने उत्तेजना में जोर से दरवाजे को धक्का दे दिया और बूढ़ा लड़खड़ाता हुआ पीछे हट गया।
दरवाजे के फौरन बाद एक छोटा-सा कमरा था। इस कमरे के बाद आँगन था जिसके चारों तरफ बरामदा था। बरामदे में लगे हुए चारो तरफ पाँच-छः कमरे थे जिनके दरवाजे आँगन की तरफ खुलते थे। बरामदे में सात-आठ औरतों, दो-तीन जवान मर्दों और तीन-चार बच्चों का एक मातमी दस्ता था जो एक चारपाई को घेर कर खड़ा था। नंगी चारपाई पर जख्मी पड़ा था। खून चारपाई की रस्सियों को भिगोता हुआ जमीन पर फैल गया था। हालाँकि खून से चारपाई पर लेटे आदमी का पूरा जिस्म नहाया-सा था फिर भी गौर से देखने पर साफ दिखाई दे रहा था कि उसके बाएँ कंधे से लगभग एक बित्ताख नीचे छाती पर चिपका हुआ कमीज का हिस्सा लाल और गाढ़े खून से सना था। गोली वहीं लगी थी।
अपनी अभ्यस्त आँखे चारपाई पर लेटी आकृति पर दौड़ाने के बाद एक दरोगा ने अपने बगल खड़े अफसर के कान में फुसफुसाते हुए कहा - “मर गया है हुजूर।”
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Old 09-02-2013, 09:47 AM   #17
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अफसर ने घबराकर चारों ओर देखा। किसी ने सुना नहीं था। चारपाई के इर्द-गिर्द खड़ी औरतें और मर्द अभी तक यही समझ रहे थे कि चारपाई पर लेटा आदमी सिर्फ जख्मी पड़ा है और मरा नहीं है। खास तौर से औरतें यही सोच रही थीं। या हो सकता है उनमें से कुछ लोगों को एहसास हो चुका हो कि जख्मी मर गया है किंतु वे इस बात को मानना नहीं चाहते थे।
औरतों ने फिर से विलाप करना शुरू कर दिया। ज्यादातर औरतें पर्दा करने के लिए अपने माथे पर कपड़ा डाले हुए थीं। वे भिंचे कंठ से धीरे-धीरे अस्फुट शब्दों से रो रही थीं। उनके शरीर हौले-हौले हिल रहे थे और उनके रुदन और शरीर के कंपन में एक अजीब सी लय थी और यह लय तभी टूटती थी जब उनमें से कोई एक अचानक दूसरी से तेज आवाज में रोने लगती या किसी एक का शरीर दूसरी औरतों से तेज काँपने लगता।
अफसरों ने आपस में आँखों ही आँखों में मंत्रणा की और उनमें से एक ने अपने मातहत को हुक्म दिया-
“मजरूब को सँभालकर चारपाई समेत उठा लो। कालविन में कोई न कोई डॉक्टर जरूर मिल जाएगा।”
पुलिस के चार-पाँच लोगों ने फुर्ती से चारपाई चारो तरफ से पकड़कर हाथों पर उठा ली। चारपाई के चारों तरफ अभी भी औरत-मर्द खड़े चुपचाप देख रहे थे। सिर्फ औरतों के विलाप में बाधा पड़ी।
“आप लोग भी मदद कीजिए। जितनी जल्दी अस्पताल पहुँचेंगे उतना ही अच्छा होगा।”
खड़े औरतों-मर्दों में कुछ हलचल हुई। दो-तीन मर्दों ने चारपाई को हाथ लगाया। चारपाई थामे लोग धीरे-धीरे दालान से बाहरी दरवाजे की तरफ बढ़ने लगे।
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Old 09-02-2013, 09:47 AM   #18
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एक औरत को अचानक कुछ याद आया। वह दौड़कर एक मोटी चादर ले आई और उसने लेटे हुए आदमी को चादर ओढ़ा दी। बाहर बारिश तेज थी। शुरू में जिस बूढ़े ने दरवाजा खोला था उसने बरामदे में एक खूँटी पर टँगा छाता उतार लिया और चारपाई पर लेटे आदमी के मुँह पर आधा छाता खोला और बंद कर दिया। वह आश्वस्त हो गया कि बाहर बारिश में यह छाता काम करेगा।
चारपाई लोग इस तरह उठाए हुए थे कि वह उनकी कमर तक ही उठी थी। दरवाजे पर आकर लोग रूक गए। चारपाई ज्यों की त्यों दरवाजे से नहीं निकल सकती थी। बाहर निकालने के लिए उसे टेढ़ा करना जरूरी था। पाँव की तरफ के लोगों ने दहलीज के बाहर निकलकर चारपाई पकड़ी। चौड़ाई में भी एक तरफ के लोग हट गए। केवल तीन तरफ के लोगों ने एक ओर चारपाई टेढ़ी कर उसे बाहर निकालना शुरू कर दिया। चारपाई बार-बार फँसी जा रही थी। बहुत धैर्य और सावधानी की जरूरत थी। चारपाई धीरे-धीरे आधी से ज्यादा झुक गई और उस पर लेटा व्यक्ति ढलान की तरफ लुढकने-सा लगा। दो-तीन लोगों ने झपटकर उसे सँभाला। पूरी हरकत को पीछे से नियंत्रित करने वाले अफसर ने झुँझलाकर उतावली दिखाने वाले को डाँटा-
“संभाल के निकालो। अभी लाश गिर जाती।”
‘लाश’ शब्द ने माहौल को पूरी तरह से मथ डाला। औरतें सहम कर ठिठक गईं। बूढ़े ने एक लंबी सिसकारी मारी और अपने हाथ के छाते पर पूरा वजन डाल कर खड़ा हो गया। अचानक वह इतना बूढ़ा हो गया था कि उसे छाते का सहारा लेने की जरूरत पड़ने लगी।
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Old 09-02-2013, 09:48 AM   #19
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औरतों ने पहली बार मिट्टी का मातम शुरू किया। उनकी दबी आवाज पूरी बुलंदी से उठने-गिरने लगी। कुछ ने अपनी छाती जोर-जोर से पीटनी शुरू कर दी। भ्रम का एक झीना-सा पर्दा, जिसे उन्होंने अपने चारो तरफ बुन रखा था, एकदम से तार-तार हो गया। जिस समय जख्मी वहाँ लाया गया होगा उस समय जरूर उसके जिस्म में हरकत रही होगी। धीरे-धीरे जिस्म मुर्दा हो गया होगा। पर वे इसे मानने को तैयार नहीं थीं। पहली बार ‘लाश’ शब्द के उच्चारण ने उनका परिचय इस वास्तविकता से कराया था।
उन औरतों में से दो-तीन झपटीं और बाँहें फैलाए मुर्दे के ऊपर गिर पड़ीं। तब तक चारपाई बाहर निकल गई थी। उसका आधा हिस्सा बारजे के नीचे था और आधा बारिश के नीचे। जो लोग पाँव के पास चारपाई पकड़े थे वे पूरी तरह से बारिश की मार में थे। औरतों के पछाड़ खाकर चारपाई पर गिरने के कारण चारपाई जमीन पर गिर पड़ी। बाकी औरतें भी चारपाई के चारो तरफ बैठ गईं। ऊपर बारिश थी, नीचे औरतों का मातमी दस्ता था और इन सबसे सराबोर होती हुई असहाय मर्दों की खामोश और उदास भीड़ थी।
मर्दों में से कुछ लोग आगे बढ़े। उन्होंने औरतों को हौले-हौले चारपाई से अलग करना शुरू किया। कुछ औरतें हटाई जाने पर छटक-छटक कर फिर से लाश पर जा पड़तीं। मर्दों ने हल्की सख्ती से उन्हें ढकेलकर अलग किया।
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पुलिस वालों और घर के मर्दों में से कुछ ने फिर से चारपाई उठा ली। इस बार उन्होंने चारपाई अपने कंधों पर ला*दी। तेज चाल से वे गली के बाहर की तरफ भागे। मु*श्किल से दस कदम पर गली बाईं तरफ मुड़ती थी। पहले चारपाई औरतों की दृष्टि से ओझल हुई। फिर उसके पीछे चलने वाला काफिला भी धीरे-धीरे गायब हो गया। सिर्फ विलाप करने वाली औरतों की आवाजें उनका पीछा करती रहीं। धीरे-धीरे वे आवाजों की हद के बाहर चले गए। अगर बीच में ऊँचे-ऊँचे मकानों की दीवार न होती और वे देख सकते होते तो देखते कि औरतें घर के अंदर चली गई हैं और एक बूढ़ा आदमी बारिश की हल्की बौछारों के बीच छाते की टेक लगाए दरवाजे के बीच में खड़ा है। उसे दरवाजा बंद करना था लेकिन वह पता नही भूल गया था या शायद उसे ऐसा लग रहा था कि अब दरवाजा बंद करने का अर्थ नही रह गया है, इसलिए वह चुपचाप बेचैन खामोशी के साथ खड़ा था।
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