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Old 11-03-2013, 07:52 PM   #11
jai_bhardwaj
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मजाक में ही सही आपने कई बार लोगों को यह कहते सुना होगा कि इसका गाना सुनकर तो मुर्दा भी अपनी कब्र छोड़कर बाहर आ जाए. वैसे यह बात बहुत बेसुरा और बुरा गाने वाले के लिए कही जाती है लेकिन क्या आप जानते हैं बुरा ही सही लेकिन अगर किसी व्यक्ति के कानों में उसका फेवरेट संगीत सुनाई पड़े तो वह किसी ना किसी तरह उस पर अपनी प्रतिक्रिया देता ही है. इतना ही नहीं अगर उस गाने से आपकी कुछ पुरानी या विशेष यादें जुड़ी हों तो वह और अधिक प्रभावी हो जाता है.

हो सकता है आप इसे मजाक समझें लेकिन हाल ही की एक घटना आपको इस बात पर विश्वास करने के लिए विवश कर देगी कि संगीत का काम केवल आपका मूड ठीक करना या आपको तनाव मुक्त रखना ही नहीं बल्कि वह कभी-कभार आपके अचेतन मन और बेजान शरीर में जान भर आपको दोबारा जीवन भी प्रदान करता है.

तानसेन जब गाते थे तो उनके सुर से दीप जल जाते थे लेकिन लंदन (London) में रहने वाली एक मां ने जब अपनी बेटी के लिए गाना गाया तो ब्रेन हैमरेज (Brain Hemorrhage) के बाद कोमा में चली गई उनकी बच्ची पूरी तरह ठीक हो गई.

लंदन में रहने वाली सात वर्षीय शैरलॉट नेवे ने जब अपनी मां के मुंह से वह गाना सुना जो वह दोनों अकसर गुनगुनाया करती थीं तो हफ्ते भर कोमा में रहने के बाद अचानक उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई और कुछ ही समय के अंदर उसके शरीर में भी हलचल शुरू हो गई.

उल्लेखनीय है कि लंकाशायर (लंदन) की रहने वाली शैरलॉट के मस्तिष्क को अत्याधिक क्षति पहुंचने के बाद वह कुछ भी देखने या बोल पाने में पूरी तरह असमर्थ हो गई थी. ब्रिटिश समाचार पत्र द सन में प्रकाशित इस रिपोर्ट के अनुसार शैरलॉट के मस्तिष्क में होने वाले रक्तस्त्राव को रोकने के लिए उसका दो बार ऑपरेशन किया गया परंतु ऑपरेशन के दौरान वह कोमा में चली गई. चिकित्सकों ने उसकी मां लीला से यहां तक कह दिया था कि अब उसकी बेटी के बचने की कोई उम्मीद नहीं है.

जब लीला अपनी बेटी से मिलने अस्पताल पहुंची तो रेडियो (Radio) पर वह गाना बज रहा था जो वह मां-बेटी अकसर गाया करती थीं. बस लीला भावुक हो गई और अपनी बेटी के लिए वह गाना गुनगुगाने लगी. जैसे ही लीला ने वह गाना शुरू किया तब एक ऐसा करिश्मा हुआ जिसकी उम्मीद किसी को भी नहीं थी. कमरे में मौजूद लोगों ने शैरलॉट के चेहरे पर मुस्कुराहट देखी और उसके हाथ भी हिलने लगे. काफी समय से बोलने और सुनने में असमर्थ शैरलॉट अब ठीक भी होने लगी है.

अपनी बेटी शैरलॉट की बिगड़ी हुई हालत के विषय में बताते हुए लीला कहती है कि जब वह अपनी दोनों बेटियों के साथ फिल्म देख रही थी तो उसी समय शैरलॉट को अचानक अटैक (Attack) पड़ गया और उसे तुरंत अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा. जिसके बाद वह कोमा में चली गई थी.
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कहते हैं बिजली एक बार गिरे तो वह दुर्घटना है, उसी स्थान पर जब वह दूसरी बार गिरे तो वह एक इत्तेफाक है लेकिन अगर समान स्थान पर तीसरी बार भी बिजली गिरे तो समझ लेना चाहिए कि यह किसी का श्राप है.


भारत का विश्वविख्यात धरोहर कोहिनूर हीरा, जिसे अंग्रेज भारत से दूर लंदन ले गए थे, भले ही दुनिया का सबसे अनमोल हीरा क्यों ना हो लेकिन उसके साथ भी एक ऐसा श्राप जुड़ा है जो मौत तो लाता ही है लेकिन पूरी तरह तबाह और बर्बाद करने के बाद.


कोहिनूर अर्थात कोह-इ-नूर, का अर्थ है रोशनी का पहाड़, लेकिन इस हीरे की रोशनी ने ना जाने कितने ही साम्राज्यों का पतन कर दिया. वर्तमान आंध्र-प्रदेश के गुंटूर जिले में स्थित एक खदान में से यह बेशकीमती हीरा खोजा गया था. ऐतिहासिक दस्तावेजों में सबसे पहले इस हीरे का उल्लेख बाबर के द्वारा “बाबर नामा” में किया गया था. बाबरनामा के अनुसार यह हीरा सबसे पहले सन 1294 में ग्वालियर के एक अनाम राजा के पास था. लेकिन उस समय इस हीरे का नाम कोहिनूर नहीं था. लेकिन लगभग 1306 ई. के बाद से ही इस हीरे को पहचान मिली.


कोहिनूर हीरा हर उस पुरुष राजा के लिए एक श्राप बना जिसने भी इसे धारण करने या अपने पास रखने की कोशिश भी की.


इस हीरे के श्राप को इसी बात से समझा जाता है कि जब यह हीरा अस्तित्व में आया तो इसके साथ इसके श्रापित होने की भी बात सामने आई कि: “इस हीरे को पहनने वाला दुनिया का शासक बन जाएगा, लेकिन इसके साथ ही दुर्भाग्य भी उसके साथ जुड़ जाएगा, केवल ईश्वर और महिलाएं ही किसी भी तरह के दंड से मुक्त होकर इसे पहन सकती हैं.”


कई साम्राज्यों ने इस हीरे को अपने पास रखा लेकिन जिसने भी रखा वह कभी भी खुशहाल नहीं रह पाया. इतिहास से जुड़े दस्तावेजों के अनुसार 1200-1300 ई. तक इस हीरे को गुलाम साम्राज्य, खिलजी साम्राज्य और लोदी साम्राज्य के पुरुष शासकों ने अपने पास रखा और अपने श्राप की वजह से यह सारे साम्राज्य अल्पकालीन रहे और इनका अंत जंग और हिंसा के साथ हुआ. लेकिन जैसे ही यह हीरा 1326 ई. में काकतीय वंश के पास गया तो 1083 ई. से शासन कर रहा यह साम्राज्य अचानक 1323 ई. में बुरी तरह गिर गया. काकतीय राजा की हर युद्ध में हार होने लगी, वह अपने विरोधियों से हर क्षेत्र में मात खाने लगे और एक दिन उनके हाथ से शासन चला गया.


काकतीय साम्राज्य के पतन के पश्चात यह हीरा 1325 से 1351 ई. तक मोहम्मद बिन तुगलक के पास रहा और 16वीं शताब्दी के मध्य तक यह विभिन्न मुगल सल्तनत के पास रहा और सभी का अंत इतना बुरा हुआ जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी.


शाहजहां ने इस कोहिनूर हीरे को अपने मयूर सिंहासन में जड़वाया लेकिन उनका आलीशान और बहुचर्चित शासन उनके बेटे औरंगजेब के हाथ चला गया. उनकी पसंदीदा पत्नी मुमताज का इंतकाल हो गया और उनके बेटे ने उन्हें उनके अपने महल में ही नजरबंद कर दिया.


1605 में एक फ्रांसीसी यात्री, जो हीरों जवाहरातों का पारखी था, भारत आया और उसने कोहिनूर हीरे को दुनिया के सबसे बड़े और बेशकीमती हीरे का दर्जा दिया. 1739 में फारसी शासक नादिर शाह भारत आया और उसने मुगल सल्तनत पर आक्रमण कर दिया. इस तरह मुगल सल्तनत का पतन हो गया और सत्ता फारसी शासक नादिर शाह के हाथ चली गई. 1747 में नादिर शाह का भी कत्ल हो गया और कोहिनूर उसके उत्तराधिकारियों के हाथ में गया. लेकिन कोहिनूर के श्राप ने उन्हें भी नहीं बक्शा. सभी को सत्ताविहीन कर उन्हीं के अपने ही समुदाय पर एक बोझ बनाकर छोड़ दिया गया.


फिर यह हीरा पंजाब के राजा रणजीत सिंह के पास गया और कुछ ही समय राज करने के बाद रणजीत सिंह की मृत्यु हो गई और उनके बाद उनके उत्तराधिकारी गद्दी हासिल करने में कामयाब नहीं रहे. आखिरकार ब्रिटिश राजघराने को इस हीरे के श्रापित होने जैसी बात समझ में आ गई और उन्होंने यह निर्णय किया कि इसे कोई पुरुष नहीं बल्कि महिला पहनेगी. इसीलिए 1936 में इस हीरे को किंग जॉर्ज षष्टम की पत्नी क्वीन एलिजाबेथ के क्राउन में जड़वा दिया गया और तब से लेकर अब तक यह हीरा ब्रिटिश राजघराने की महिलाओं के ही सिर की शोभा बढ़ा रहा है.
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Old 11-03-2013, 07:59 PM   #13
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बिखरे हुए बाल, बेढंगे कपड़े और दुनियादारी की परवाह ना करते हुए मनचाहे तरीके से बर्ताव करना. अपने नाजुक से शरीर पर भारी-भारी पत्थर रखकर खुद को यातनाएं देना और साथ ही अपने शरीर को मजबूत कड़ियों से बांधकर रखना. तेज आवाज में अपने आप से ही कुछ कहना और बिना वजह खुद को ही डांटना !!!

उपरोक्त पंक्तियां पढ़कर आपको कुछ अजीब सा अहसास तो जरूर हुआ होगा. लेकिन आप शायद यह समझ नहीं पा रहे होंगे कि आखिर कोई व्यक्ति ऐसा क्यों करेगा, कोई क्यों खुद को इतनी परेशानियों में डालेगा?

अगर आप अभी तक यह सोचते हैं कि गलतियां इंसान से होती हैं, तो आपको यह भी जान लेना चाहिए कि कुछ गलतियां ऐसी भी होती हैं जो केवल मरने के बाद ही की जाती है और वो गलतियां है शरीर छोड़ने के बाद भी इंसानी दुनिया में प्रवेश करने की गलती और इसी गलती का जब दंड मिलता है तो हालात ऐसे ही होते हैं जो ऊपर वर्णित हैं.



जब-जब कोई प्रेत इंसानों की दुनिया में प्रवेश करने की गलती करता है उसे दौसा (राजस्थान) स्थित प्रेतराज के दरबार में हाजिर होने का हुक्म दिया जाता है. महंदीपुर बालाजी के नाम से विख्यात इस मंदिर में प्रतिदिन हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है जो अपनी-अपनी परेशानियों का समाधान ढूंढ़ने के लिए बालाजी के दरबार में आते हैं.

कहते हैं यहां आने वाला हर व्यक्ति जो पारलौकिक शक्तियों की चपेट में है, वह प्रेतराज के दरबार में हाजिरी लगाकर खुद को आजाद करवा सकता है. वे लोग जो पिशाचों के इंसानी दुनिया में कदम रखने जैसी बातों पर विश्वास करते हैं, उनका मानना है कि जिन लोगों को ऊपरी ताकतें परेशान करती हैं उन सभी ताकतों का हिसाब-किताब बालाजी के इस मंदिर में होता है.

आप सोच रहे होंगे कि बालाजी के मंदिर में भूतों की अदालत लगने का क्या अर्थ है. तो हम आपको बता दें कि जिस प्रकार सामान्य कचहरियों में इंसानों को अपना पक्ष रखने और अपराध करने के कारण कहने का मौका दिया जाता है उसी तरह इस मंदिर में भी भूत-प्रेतों से संबंधित व्यक्ति को परेशान करने और उनका पीछा ना छोड़ने के कारण पूछे जाते हैं. यहां तक कि पिशाचों से उनकी अंतिम इच्छा पूछने का भी प्रावधान है.

महंदीपुर बालाजी का यह मंदिर जयपुर से लगभग 99 किलोमीटर दूर है. उल्लेखनीय है कि यह धाम बालाजी के तीन रूपों श्री बालाजी महाराज, श्री प्रेतराज सरकार और श्री भैरव देव के लिए प्रसिद्ध है., यह तीनों मूर्तियां स्वयंभू हैं जो अपने आप ही अवतरित हुई हैं.

महंदीपुर बालाजी से जुड़ी कथा

कहते हैं आज से लगभग एक हजार वर्ष पहले अरावली पर्वत की एक घाटी में तीन दिव्य छवियों के दर्शन हुए और उसके अगले ही दिन एक प्रमुख स्थानीय मंदिर के 11वें महंत श्री गणेश पुरी जी महाराज के पूर्वजों को श्री बालाजी ने सपने में आकर तीन रूपों में दर्शन देकर एक चमत्कारी मंदिर को बनवाने की ओर संकेत दिया. जैसे ही महंत जी ने अपनी आंखें खोली वैसे ही उन्हें एक देव वाणी सुनाई दी और बालाजी ने एक दिव्य स्थान के बारे में स्वयं उन्हें बताया, जहां वे तीनों मूर्तियां विराजमान थीं. महंत जी आदेश पाकर उस स्थान पर पहुंचे और तभी से सेवा पूजा शुरू कर दी.

उल्लेखनीय है कि मंदिर बनने से पहले यह स्थान घना जंगल हुआ करता था यहां कई जंगली जानवर भी रहते थे.


महंदीपुर बालाजी के मंदिर की विशेषता

बालाजी महाराज हर संकट दूर करते हैं. वे लोग जो बुरी आत्माओं और काले जादू की चपेट में आकर शारीरिक या मानसिक रूप से परेशान रहने लगते हैं, उन्हें यहां आकर राहत मिलती है. लेकिन अगर आप यह सोचते हैं कि यहां सिर्फ वे लोग ही आते हैं जो शारीरिक और मानसिक रूप से परेशान हैं तो आपको यह भी जान लेना चाहिए कि भगवान बालाजी केवल ऊपरी संकटों से ही मुक्ति नहीं दिलवाते बल्कि खुशहाली और वैभव भी देते हैं. जानने वाली बात है कि बालाजी की मूर्ति की दाईं ओर से एक जल धारा प्रवाहित हो रही है जो कभी सूखती नहीं है.
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भविष्य में क्या होने वाला है, वह अच्छा होगा या बुरा, हमें क्या लाभ मिलेगा, यह कुछ ऐसे प्रश्न हैं जो प्राय: सभी मनुष्य के जहन में बार-बार उठते तो हैं लेकिन इनका सटीक उत्तर ढूंढ़ पाना किसी के भी बस की बात नहीं है. आने वाले कल में क्या छिपा है यह जान पान भले ही मुश्किल है लेकिन इसके विषय में मानव की जिज्ञासा में कोई कमी नहीं आई है.

सापेक्षता का सिद्धांत बना है आधार
विज्ञान के अत्याधिक तरक्की करने के बाद आज भी वैज्ञानिक आने वाले समय में छिपी सच्चाई को समझ पाने में सफलता हासिल नहीं कर पाए हैं. पिछले कई वर्षों से भविष्य यात्रा यानी फ्यूचर विजन के क्षेत्र में रिसर्च कर रहे वैज्ञानिक आज भी किसी ठोस परिणाम तक नहीं पहुंच पाए हैं. हालांकि वैज्ञानिकों द्वारा किए गए प्रयासों और उनकी उपलब्धियों को नकारा नहीं जा सकता क्योंकि भविष्य में जो छिपा है उसे समझ पाना वाकई महुत मुश्किल है. दुनियाभर के वैज्ञानिकों द्वारा किए जा रहे इस शोध कार्य का आधार है सर्वोच्च प्रतिष्ठित वैज्ञानिक आंइस्टाइन के सापेक्षता का सिद्धांत.

योगियों ने खोजा था एक बड़ा रहस्य
उल्लेखनीय है कि जिस रहस्य को वैज्ञानिक आज तक सुलझा नहीं पाए हैं उसका खुलासा भारतीय योगियों ने कई वर्ष पहले ही कर दिया था. आज से हजारों वर्ष पूर्व भारतीय योगियों ने जिस अष्टांग योग की स्थापना की थी अगर कोई व्यक्ति उस मार्ग पर गंभीरता से चलता है तो वह समाधि की सर्वोच्च अवस्था में पहुंचकर भविष्य में होने वाली सभी घटनाओं से गहराई के साथ साक्षात्कार कर सकता है. अपने शरीर को सूक्ष्म बनाकर वह भूतकाल और भविष्य की यात्रा कर सकता है.

हालांकि ज्योतिष विद्या के जानकार ग्रह-नक्षत्रों को देखकर, उनकी दिशा और दशा के आधार पर आने वाले समय में व्यक्ति के साथ घटने वाली घटनाओं का अनुमान लगा सकते हैं लेकिन यह मात्र अनुमान है जो सही भी हो सकता है और गलत भी लेकिन ज्ञान के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचने के बाद योगी अपने भविष्य से जुड़ी सभी बातों को बारीकी के साथ देख और समझ सकता है. वह आमने-सामने होकर अपने साथ घटी या घटने वाले हादसों का साक्षी बन सकता है. इतना ही नहीं, वह किसी भी समय यह जान सकता है कि उसकी मृत्यु कब और कैसे होगी. वर्षों पहले ही वह अपने साथ होने वाली घटनाओं को जानने के बाद होनी को टालने का प्रयत्न कर सकता है.

उपरोक्त चर्चा के बाद यह कहना गलत नहीं होगा कि वे व्यक्ति जो अपने भविष्य को जानने की जिज्ञासा रखते हैं उनके लिए योग एक बेहतर माध्यम साबित हो सकता है.
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एक रात की बात है मैंने और मेरे कुछ दोस्तों ने मिलकर दो दिन के लिए किसी हिल स्टेशन पर जाने का मन बनाया. फाइनल ईयर के इक्जाम समाप्त होने के बाद हम सभी अपने-अपने घर जाने के लिए तैयार थे लेकिन इसी बीच हमने सोचा क्यों ना कुछ दिन सिर्फ दोस्तों के साथ बिताए जाएं, क्योंकि बाद में कौन मिलता है कौन नहीं किसी को पता नहीं है.

हम सभी ने मेरी एक दोस्त के गांव जाने का निश्चय किया. उसका गांव मनाली से लद्दाख जाने वाले रास्ते के बीच में था. हम लोग एक दिन भी बेवजह गंवाना नहीं चाहते थे इसीलिए रात को ही उसके गांव की ओर निकल पड़े. हमने एक मिनी बस बुक करवाई और ड्राइवर को जल्दी से जल्दी हमारी मंजिल तक पहुंचाने के लिए कहा.

रात के करीबन आठ बजे हम सब अपनी मंजिल की ओर निकल पड़े. बहुत देर तक हम सब गाते-बजाते और पुराने दिनों को याद करते थे. आधी रात तक तो यह सब चलता रहा लेकिन फिर सबको नींद आ गई. मेरे सभी दोस्त और मैं अपनी-अपनी सीट पर सो चुके थे कि अचानक अजीब सी एक आवाज से मेरी नींद टूट गई.

मेरी आंखें जैसे ही खुलीं मैंने देखा हमारा ड्राइवर ड्राइविंग सीट पर नहीं बल्कि उसके बगल वाली सीट पर बैठा था. मेरी नजर अचानक ही ड्राइविंग सीट पर गई और मैं यह देखकर हैरान हो गई कि ड्राइविंग सीट खाली थी लेकिन गाड़ी चल रही थी वो भी बिना किसी परेशानी के.

पहले तो लगा मैं जोर से चिल्लाऊं लेकिन फिर मुझे वो अजीब सी आवाज दोबारा सुनाई दी. इस बार वो मेरे पीछे से आ रही थी. मैं बस में सबसे आखिर में बैठी थी इसीलिए पीछे क्या है यह देखने की मेरी हिम्मत बिल्कुल नहीं हुई और ना ही मैंने इस बारे में ड्राइवर से ही कुछ पूछा. मुझे लगा शायद मैं नींद में हूं और यह सब मेरा वहम है…..

सुबह निकलते ही वह हमारे ड्राइवर ने हमें मेरी फ्रेंड के घर पहुंचा दिया. जब हम उसके घर पहुंचे तो उसकी मां ने पहले से ही हमारे लिए नाश्ते का इंतजाम कर रखा था. ड्राइवर भी पूरी रात हमारे साथ था इसीलिए आंटी ने उसे भी चाय के लिए बुला लिया. हम सात लोग थे लेकिन जब चाय और नाश्ता लाने की बात आई तो आंटी आठ लोगों के हिसाब से खाना लाईं.

आठ कप चाय देखकर हमने आंटी को बोला कि आंटी हम सिर्फ सात हैं. लेकिन आंटी कहतीं मुझे बूढ़ा समझकर तुम मेरा मजाक बना रहे हो ना! मुझे दिख रहा है तुम लोग आठ हो.

हमने कहा नहीं आंटी हम छ: फ्रेंड्स और एक ड्राइवर भैया हैं. लेकिन आंटी नहीं मानीं और कहने लगीं जब तुम लोग गाड़ी से उतरे तो आठ थे. तुम्हारा एक दोस्त मुझे रसोई में कहकर गया है कि उसे बहुत भूख लगी है जल्दी-जल्दी नाश्ता लाऊं.

हम सब एक दूसरे से पूछने लगे कि किचन में कौन गया था. लेकिन मेरा कोई भी मेल फ्रेंड आंटी के पास नहीं गया था.

इतने में ड्राइवर भैया आ गए जब उन्हें इस बात का पता चला तो वो हंसने लगे और कहा कि बहनजी यह बच्चे बहुत मजाकिया हैं. रात को इनके एक दोस्त ने काफी समय तक गाड़ी चलाई. यह तो सब सो गए थे लेकिन उसने कहा कि उसे नींद नहीं आ रही इसीलिए वह मेरे पास आकर बैठ गया. फिर उसने मुझे ड्राइव करने के लिए पूछा तो मैंने पहले तो मना किया लेकिन बाद में उसकी जिद के कारण उसे बस चलाने के लिए दे दी. लेकिन अब वो तुम्हारे साथ नजर नहीं आ रहा है.

आंटी भी यही कहने लगीं कि वह नजर नहीं आ रहा है, मेरे सभी दोस्त सोचने लगे कि शायद ड्राइवर ने रात को नशा किया होगा इसीलिए ऐसा बोल रहे हैं और आंटी तो वैसे भी काफी बूढ़ी हैं. लेकिन मुझे पता था कि ड्राइवर भैया सही बोल रहे हैं. रात को कोई तो था हमारे अलावा उस गाड़ी में….
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भारत एक अद्भुत और अलौकिक चमत्कारों का देश है जहां अनेक धर्मों और देवी-देवताओं में आस्था रखने वाले लोग रहते हैं. अनेक धर्म और मान्यताओं वाले लोगों के रहने के कारण भारत में बहुत से ऐसे स्थान भी हैं जहां लोगों का विश्वास स्थिर हो जाता है. हमीरपुर स्थित झोखर गांव एक बेहद अनूठा स्थान है जहां ना कोई मंदिर है और ना ही किसी प्रकार की मूर्ति पूजा फिर भी पारलौकिक और दैवीय शक्तियों पर विश्वास करने वाले लोगों की आस्था इस ग्राम से जुड़ी हुई है.

इस गांव में एक बड़ा सा नीम का पेड़ है जिसके नीचे एक बड़ा सा दैवीय टीला विद्यमान है. लोगों का मानना है कि इस टीले में अद्भुत शक्ति है. स्थानीय लोगों का कहना है कि इस टीले की मिट्टी लगाने से बड़े से बड़ा गठिया का रोगी भी कुछ ही समय में ठीक हो सकता है. वैसे तो बुंदेलखंड की सूखी धरती पर देवी-देवताओं से जुड़े अनेक स्थान हैं लेकिन जिसे वास्तविक रूप में चमत्कारी माना जा रहा है वो यह नीम के नीचे विराजमान टीला है.

बुंदेलझंड की धरती पर जितने भी दैवीय स्थान हैं उनका संबंध रोगों से है. लोगों का मानना है कि यहां आने से विभिन्न गम्भीर बीमारियां ठीक होती हैं. झलोखर गांव के भुवनेश्वरी देवी के टीले पर किसी भी तरह का प्रसाद नहीं चढ़ाया जाता, लेकिन रविवार के दिन यहां भक्तों की भीड़ लगी रहती है. अधिकांश रोगी गठिया रोग के इलाज के लिए आते हैं. मान्यताओं के अनुसार नीम के पेड़ के नीचे जो टीला है उसकी मिट्टी को अपने शरीर पर लगाने मात्र से गठिया बीमारी जड़ से दूर हो जाती है.

मिट्टी लगाने वाला पुजारी बर्तन बनाने वाले कुम्हारों की बिरादरी से नियुक्त किया जाता है. टीले के वर्तमान पुजारी कालीदीन प्रजापति का कहना है कि गठिया रोग से पीड़ित हजारों भक्त दूर-दराज के इलाकों और बड़े-बड़े शहरों से यहां आते हैं.

स्थानीय लोगों के अनुसार वर्षों पहले गांव के प्रेमदास प्रजापति को देवी मां ने स्वप्न में कहा था कि उनका स्थान मिट्टी का ही यानि कच्चा रहेगा, ताकि गठिया रोग से पीड़ित लोग अपने बदन में इसे लगा कर रोगमुक्त हो सकें.

सन् 1875 के गजेटियर में कर्नल टाड ने लिखा है कि इस दैवीय स्थान के पास के तालाब की मिट्टी में गंधक और पारा मौजूद है जो गठिया रोग को ठीक करने में सहायक होता है.

स्थानीय लोगों ने इस स्थान को दैवीय शक्ति से जोड़कर देखा है वहीं बांदा स्थित राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज एवं चिकित्सालय के प्राचार्य डॉ. एस.एन. सिंह का कहना है कि इस मिट्टी में औषधीय तत्व हैं और नीम में तमाम असाध्य बीमारियों को ठीक करने की क्षमता होती है, यही वजह है कि इस स्थान की मिट्टी लगाने से गठिया रोगियों को फायदा होता है. इसका किसी पारलौकिक शक्ति से कोई लेना-देना नहीं है. स्थानीय कॉलेज के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष का कहना है संस्कृत भाषा के हिंदी रूपांतरित ग्रंथ मां भुवनेश्वरी महात्म्य के अनुसार यह स्थान उत्तर वैदिककालीन है और जिस तालाब के पास की मिट्टी को गठिया रोग के लिए उपयोगी माना जाता है वह पहले सूरज कुंड नाम से विख्यात था. लोगों की गहरी आस्था है कि यहां लगातार पांच रविवार तक आकर टीले की मिट्टी लगाने से गठिया बीमारी जड़ से खत्म हो जाती है.
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सच ही लिखा है जिसने भी लिखा है कि कब्र में भी सुकून नहीं मिलता है यदि आपको एक बार दफन करने के बाद फिर निकाला जाए और फिर दफन किया जाए. अब एक ऐसी कहानी जिसे सुनने के बाद आपको यह लगेगा कि एक बार दफन करने के बाद फिर बाहर निकाल कर दफन करने की क्या जरूरत थी.

एक ऐसा स्रमाट जिसके बारे में कहा जाता है कि उसकी मौत तो रहस्यपूर्ण नहीं थी पर उसका दफन होना रहस्यपूर्ण था. सम्राट या बादशाह बनना वैसे तो किस्मत वालों को नसीब होता है लेकिन भारतीय इतिहास में एक ऐसा भी बादशाह हुआ जिसे बेहद बदनसीब शासक कहा जाता है. उसके बारे में तो यहां तक मान्यता है कि वह ‘जिंदगी भर लुढ़कता रहा और एक दिन लुढ़कते हुए ही उसकी मौत हो गई’.

जिन्दगी भर हार का सिलसिला यही खत्म नहीं हुआ था जिन्दगी ने तो हराया ही साथ ही मौत के बाद उसे कब्र में भी सुकून नहीं मिला और यहां से भी उसे बाहर निकाला गया. मुग़ल शासक हुमायूं को अपने पिता से जो विरासत मिली वह जल्दी ही उसे गंवा बैठा और लम्बे समय तक इधर-उधर की ख़ाक छानता रहा. बेहद कड़े मुकाबले के बाद उसे दोबारा अपना साम्राज्य मिला. लेकिन एक दिन अचानक सीढ़ियों पर पैर फिसलने की वजह से उसकी मौत हो गई.

जिस इमारत में उसकी मौत हुई उसे परवर्ती शासक शेरशाह सूरी द्वारा 19 जनवरी , 1556 को बनवाया गया था. इस इमारत को हुमायूं ने ग्रंथालय में तब्दील कर दिया था. मौत के बाद हुमायूं को यहीं दफना दिया गया.

प्यार करने की सजा: दफन होने के बाद भी निकाला
हैरानी की बात है कि प्यार इस हद को भी कभी-कभी पार कर देता है कि मरने के बाद भी दफन हुए व्यक्ति को कब्र से निकाला जाता है और फिर दफन कर दिया जाता है. इतिहासकारों का कहना है कि हुमायूं की विधवा हमीदा बानू बेगम उसे बेहद प्यार करती थी. हमीदा की तमन्ना थी कि उसके पति को एक आलीशान मकबरा मुहैया हो इसलिए उसने दिल्ली में एक बेहद खूबसूरत मकबरे का निर्माण करवाया भी और फिर बाद में 1565 में हुमायूं को उसकी पुरानी कब्रगाह से निकाला गया और पुनः इस नई जगह पर दफ़न किया गया. आज इसी मकबरे को हुमायूं का मकबरा कहते हैं..

अपनी अनूठी पुरातात्विक खूबसूरती की वजह से विश्व विरासत स्थल में शामिल हो चुका यह स्थल भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम (1857 की क्रांति) से भी जुड़ा हुआ है. अंग्रेजों ने अंतिम मुग़ल बादशाह बहादुर शाह जफर को यहीं से गिरफ्तार किया था.

आखिरकार अजीब क्यों है ?
हुमायूं के इस मकबरे की भव्यता से मशहूर मुग़ल शासक शाहजहां भी बेहद प्रभावित हुआ था. कहते हैं दुनिया के अजूबों में शामिल ताजमहल की प्रेरणा उसे इस महल को देखने के बाद ही मिली थी.

यह पूरा परिसर लगभग 30 एकड़ में फैला हुआ है. इसके बीचो-बीच हुमायूं का मकबरा है जो एक ऊंचे प्लेटफार्म पर बना है. यह इमारत मुगलकालीन स्थापत्य का अद्भुत नमूना है. भारत में पहली बार बड़े पैमाने पर संगमरमर और बलुआ पत्थरों का इस्तेमाल इसी इमारत में किया गया.

एक रहस्य जो आज तक अनसुलझा है……..
हुमायूं के मकबरे से जुड़ा एक रहस्य भी है जो आज तक अनसुलझा है. मकबरे के ठीक पीछे अफ़सरवाला का मकबरा है. यह मकबरा किसका है और इसमें किसे दफ़न किया गया है यह अभी भी एक राज ही है.

मुग़ल बादशाह हुमायूं के इसी मकबरे के पास एक सराय यानि रुकने का स्थल है जिसे अरब सराय कहा जाता है. कहते हैं इसी सराय में इस खूबसूरत मकबरे का निर्माण करने वाले शिल्पकार रहते थे जिन्हें फारस से बुलाया गया था.
सच ही है कि सम्राटों के इतने राज होते हैं जो आज तक अनसुलझे ही हैं. बहुत से सम्राट ऐसे हैं जिनकी मौत भी एक राज ही है.
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जब भी आपसे कोई यह बोलता होगा कि आत्माएं आती हैं तो शायद आपको विश्वास नहीं होता होगा और सोचते होंगे कि सब फालतू की बातें होती हैं जो बस डराने के लिए की जाती हैं. पर अब आपको यह जानकर हैरानी होगी कि सच में आत्माएं आती हैं और वो भी एक तय की गई तारीख पर आती हैं.

एक रात अंधेरे में एक व्यक्ति अचानक कुछ बोलने लगा. लोग समझ नहीं पा रहे थे कि इस व्यक्ति को अचानक क्या हो गया पर फिर सब को यही लगने लगा कि शायद उसके अन्दर आत्मा आ गई है. धीरे-धीरे ऐसा होने लगा कि उस व्यक्ति को भी विश्वास हो गया कि उसके अन्दर आत्मा आती है वो भी सिर्फ 22 तारीख को…..पर क्यों?

हैती के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांसवा डूवलियर ने अपने चौदह साल के शासनकाल में तमाम मौकों पर अपनी महिमा का मंडन किया. वो घोर अंधविश्वासी थे और उनका मानना था कि हर महीने की 22 तारीख को उनमें आत्माओं की ताकत आ जाती है.


इसलिए वो हर महीने की 22 तारीख को ही अपने आवास से बाहर निकलते थे. उनका दावा था कि 22 नवंबर, 1963 को उन्हीं की आत्माओं की शक्तियों की वजह से अमरीका के राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी की हत्या हुई थी. छह बार उनकी हत्या के लिए प्रयास किये गए थे लेकिन वो हर बार बच निकले थे. वर्ष 1971 में लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया.

ऐसी अजीबो गरीब बातों के सिलसिले यहीं खत्म नहीं होते हैं. क्या आप कभी ऐसे लोगों से मिले हैं जो ‘आपसे एकदम से यह कहें कि हमें तुम्हारा जिगर खाना है’.
सत्तर के दशक में युगांडा के शासक रहे इदी अमीन ने अपने जीवन को भरपूर जिया. खुद को उन्होंने बार-बार सम्मानित किया और पदकों का अम्बार लगा लिया. उन्होंने खुद को फील्ड मार्शल, विक्टोरिया क्रॉस और मिलिट्री क्रॉस से भी सम्मानित किया. उन्हें अपने आप से इतने ज्यादा मोह था कि वो खुद को क्वीन एलिजाबेथ द्वितीय के समकक्ष या उनसे बड़ा दिखाना चाहते थे.

उनका कहना था कि राष्ट्रमंडल का प्रमुख उन्हें होना चाहिए न कि महारानी को. इस तरह की भी खबरें आती रहीं कि वो अपने राजनीतिक विरोधियों के कटे सर अपने फ्रिज में रखा करते थे. हालांकि ये कभी साबित नहीं हुआ. एक बार उन्होंने रात के भोजन की टेबल पर अपने सलाहकार से कहा था कि मैं तुम्हारा जिगर खाना चाहता हूं, मैं तुम्हारे बच्चों को भी खाना चाहता हूं. वाकई कई बार ये हैरान कर देने वाली बातें बहुत कुछ सोचने पर विवश कर देती हैं.
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बहुत से लोग ऐसे हैं जो यह मानते हैं कि आत्माएं नहीं होती, उनका कोई वजूद नहीं होता. लेकिन उन लोगों को शायद यह नहीं पता की वैज्ञानिकों ने भी इस बात की पुष्टि की है कि आत्माएं सच में होती हैं. मेरा भी मानना कुछ ऐसा ही है कि आत्माएं होती है, इंसानी दुनियां के अंदर उनकी भी एक अलग दुनियां होती हैं. अगर कोई भी मनुष्य उनकी दुनियां में दखल देता है तो वह इसे बिल्कुल सहन नहीं कर सकते. अगर कोई गलती से उनकी दुनियां में कदम रखता भी है तो उसे पछताने के अलावा और कुछ हासिल नहीं होता.

यह कहानी मेरी नहीं मेरे एक परिचित की है लेकिन फिर भी इसे मनगढ़त मानने की गलती मत करना.

एक बार मेरे अंकल अपने कुछ दोस्तों के साथ अपनी गाड़ी से पटना से रांची जा रहे थे. रात का करीब एक बजा होगा, उनकी गाड़ी में खूब गाना बजाना हो रहा था. सब लोग बहुत मस्ती कर रहे थे कि अचानक अंकल ने गाड़ी रोक दी. गाड़ी रुकने से उनके सारे दोस्त उन पर चिल्लाने लगे कि गाड़ी क्यों रोक दी? तब अंकल ने बाहर की तरफ इशारा किया और कहा की वो देखो बाहर एक लड़की अकेली खड़ी है. उनके सारे दोस्त आंखे फाड़ – फाड़ कर ऐसे देखे जा रहे थे मानों आज तक कभी इतनी सुंदर लड़की नहीं देखी हो.

अचानक अंकल की आवाज ने दोस्तों के ध्यान को तोड़ा. अंकल ने कहा कि इतनी रात को ये लड़की यहां क्या कर रही है, रुको मैं पूछ कर आता हूं. तब उनके एक दोस्त ने कहा कि नहीं यार मत जा, इतनी सुनसान जगह पर ये लड़की अकेली यहां है. मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा हैं. पहले तो अंकल कुछ गंभीर हुए, फिर अचानक हंसते हुए कहने लगे कि तुम को क्या लगता है, ये कोई भूत हैं? उसने कहा हो सकता हैं. इस पर अंकल उस को डाटने लगे की इतने पढ़े लिखे होने के बावजूद भी तुम ये सब बातें करते हो.

फिर गाड़ी से उतर कर उसके पास गए और पूछा कि कोई परेशानी है क्या? लेकिन वो कुछ नहीं बोली और बस चुपचाप चलती जा रही थी. जब अंकल ने दो-चार बार पूछा तब उसने कहा कि मेरे परिवार वाले मुझे यहां सुनसान सड़क पर छोड़ कर चले गए हैं. ये बात अंकल को थोड़ी अजीब लगी लेकिन उन्होंने उनसे कुछ पूछा नहीं फिर लड़की ने नेन उनसे कहा कि क्या आप मुझे मेरे घर तक छोड़ देगें? अंकल ने कहा कि क्यों नहीं. फिर वो लड़की उनकी गाड़ी में आ कर बैठ गई. उसके बैठते ही पूरी गाड़ी में एक अजीब सी खुशबू फैल गई जिससे सब मंत्र-मुग्घ हो गए .


बीच रास्ते में अचानक उस लड़की ने कहा की बस मुझे यहीं उतार दीजिए मेरा घर आ गया है. पर अंकल को कोई घर नहीं दिख रहा था. जब तक वो कुछ पूछते तब तक तो वो जा चुकी थी. फिर अंकल ने भी गाड़ी स्टार्ट की और वहां से चले गए. घर पहुंच कर सब अपने अपने जीवन में व्यस्त हो गए, लेकिन अंकल उसका चेहरा नहीं भुला पा रहे थे. उन्हें उस लड़की के प्रति प्रेम का अहसास होने लगा था. धीरे-धीरे वक्त बितता गया फिर अचानक एक दिन अंकल उस लड़की को अपने घर के पास देखकर चौंक गए. उसे अपनी तरफ आता देख वो समझ गए कि वो उनसे ही मिलने आ रही है. पता नहीं क्यों उसको देखते ही उनकी सोचने समझने की शक्ति चली जाती थी और वह बस उसे देखते ही रहते थे. उससे मिलने का सिलसिला बहुत दिन तक चलता रहा.

फिर एक दिन जब वो सुबह-सुबह पेपर पढ़ रहे थे तब अचानक उनकी नजर उस पेज पर पड़ी जिस पर उस लड़की की फोटो छपी थी. जिससे वो लगातार कई दिनों से मिल रहे थे. लेकिन जब उस फोटो के नीचे लिखे लाइनों को उन्होंने पढ़ा तो वो चौंक गए. उसमें उसके मृत्यु दिवस पर उसे श्रद्धांजली दी गई थी. उस दिन के बाद से आज तक वो फिर उनसे नहीं मिली. इस बात को एक लंबा समय गुजर गया है लेकिन अंकल आज भी यह नहीं समझ पा रहे कि क्या वह एक आत्मा से प्यार करने लगे थे?
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कहते हैं अगर किसी की कोई अंतिम इच्छा अधूरी रह जाए या फिर अपने जीवन में वह उस चीज को हासिल ना कर पाए तो शरीर त्यागने के पश्चात उस व्यक्ति की आत्मा अपने सपने पूरी करने के लिए भटकती रहती है. शायद मध्यप्रदेश के खरगोन जिले में स्थित गायबैड़ा ग्राम में भी कोई भटकती रूह अपना असर दिखा रही है तभी तो बिना किसी कारण के गांव के पांच लोग काल का ग्रास बन गए.

गांव वाले खुद नहीं समझ पा रहे हैं कि आखिर इन सभी मौतों के पीछे का कारण क्या है. अपने डर को समाप्त करने के लिए गांव वाले एक तांत्रिक के पास पहुंच गए. उस तांत्रिक ने गांव वालों को बताया कि इस गांव में एक रूह की काला साया है और इसी भूत ने गांव के पांच लोगों को अपना शिकार बनाया है.

अब जब उस तांत्रिक ने गांव में भूत-प्रेत के होने की बात पुख्ता कर दी थी तो गांववालों का डरना और भयभीत होना लाजमी था. गांववालों के कहने पर तांत्रिक ने भूत भगाने की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी. इस प्रक्रिया के तहत गांव के बाहर के लोगों को यह स्पष्ट निर्देशित किया गया कि वे गांव छोड़कर बाहर चले जाएं और गांव में सिर्फ मूल निवासी ही रहें और पूरी श्रद्धा के साथ भूत भगाने के लिए होने वाले यज्ञ और हवन में हिस्सा लें. साथ ही जितनी भी पूजा अर्चना गांव में की जाए उसमें सभी गांव वाले अपनी हिस्सेदारी निभाएं तभी इस गांव को प्रेत की रूह से मुक्ति दिलवाई जा सकती है.

यहां तक तो ठीक था लेकिन क्या आप जानते हैं कि गांव की तरह आने वाली सड़कों तक पर यह चेतावनी दी गई है कि इस गांव में किसी बाहरी व्यक्ति का प्रवेश पूरी तरह वर्जित है. गांव की सड़कों पर बड़े-बड़े अक्षरों में यह लिखा गया है कि इस गांव में प्रेत का साया है इसीलिए यहां आने की गलती ना करें.

पूजा पाठ और हवन होने के बाद अंतिम विधि के अनुसार गांव की ओर आने वाले हर रास्ते पर दूध गिराकर बुरी आत्माओं का गांव में प्रवेश रोका गया. भूत भगाने का दावा करने वाला तांत्रिक का कहना है कि अब यह गांव भूत-प्रेत या किसी भी प्रकार की शैतानी ताकतों से मुक्त है. गांव में हुई पांच अकाल मौतों के अलावा भी स्थानीय लोगों का कहना था कि उन्होंने किसी साये को गांव की सीमा में विचरण करते देखा है. रात के समय में किसी के चीखने-चिल्लाने की आवाज भी आती हैं. इतना ही नहीं गांव के कुछ लोग ऐसे भी हैं जो यह कहते हैं कि उन्होंने अपने आसपास किसी ताकत के होने का आभास किया है.


लेकिन असल बात क्या है वह किसी को अभी तक नहीं पता चल पाया है. वैसे तो हम इस बात से भी इंकार नहीं कर सकते कि जानकारी के अभाव के कारण लोग कुछ भूत-प्रेत जैसी बातों पर विश्वास कर लेते हैं. लेकिन सच क्या है यह तो आप या हम कभी शायद जान भी नहीं पाएंगे
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