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Old 15-03-2013, 08:47 PM   #21
jai_bhardwaj
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मरने के बाद दफनाने या दाह संस्कार करना तो सुना था लेकिन क्या आप जानते हैं जिस तरह मिस्र में मृत शरीर को सहेज कर रखे जाने की प्रथा थी वैसी ही एक प्रथा इंडोनेशिया में भी मशहूर है. फर्क है तो बस इतना कि इस प्रथा को मानने वाले लोग कब्रों को खोदकर अपने पूर्वजों की कब्रों को बाहर निकालते हैं और फिर उन्हें अच्छे और महंगे कपड़े पहनाकर तैयार करते हैं.



सुनने में भले ही आपको यह प्रथा बेहद अजीब लगे लेकिन यह बात बिल्कुल सच है कि इंडोनेशिया के दक्षिणी सुलेवासी प्रांत में स्थित तोराजा जिले में एक बेहद हैरान कर देने वाली प्रथा चलन में हैं जिसका नाम है मा-नेने. इस प्रथा के अंतर्गत लोग अपने पूर्वजों की कब्रों को खोदते हैं और उन्हें नए कपड़े पहनाकर तैयार करते हैं. इतना ही नहीं वे अपने परिजन के शव की साफ-सफाई भी करते हैं.


इस प्रथा को हर तीन वर्ष के अंतराल में मनाया जाता है. जिसमें लोग अपने पूर्वजों के सड़ चुके शवों को बाहर निकालते हैं, उन्हें तैयार करते हैं और फिर उस शव को पूरे गांव में घुमाते हैं और फिर दोबारा उन्हें सही ढंग से लपेट कर ताबूत में लिटा देते हैं.

अब आप निश्चित तौर पर इस प्रथा के पीछे क्या कारण हो सकता है इस बारे में सोच रहे होंगे. तो हम आपको बता दे कि तोराजा जिले के लोग इस प्रथा को इसीलिए मनाते हैं ताकि उन्हें अपने पूर्वजों के साथ होने का अहसास हो सके.

इस लेख में हम आपको ना सिर्फ मा-नेने नाम की इस अनोखी प्रथा के बारे में बता रहे हैं बल्कि कुछ ऐसी तस्वीरें भी दिखा रहे हैं जो आपकी हैरानी और जिज्ञासा को और अधिक बढ़ा देंगे:




इस तस्वीर में इंडोनेशिया के तोराजा जिले के लोग मा-नेने नाम की इस प्रथा को मनाने के बाद अपने पूर्वज के शरीर को गांव में घुमा रहे हैं.



यह प्रथा हर तीन साल के अंतराल के बाद मनाई जाती हैं यब तक जाहिर है शव की हालत खराब हो चुकी होती है.


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Old 15-03-2013, 08:50 PM   #22
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कहते हैं अमावस की रात, जब अंधेरा अपने चरम पर होता है, भूत-प्रेत और आत्माएं अपने-अपने गुप्त ठिकानों को छोड़कर इंसानों की दुनिया में प्रवेश कर जाती हैं. इस रात उनकी सारी शक्तियां एकत्र होकर और मजबूत हो जाती हैं और उन्हें हराना बहुत मुश्किल हो जाता है.

दूसरी कहानी भी अमावस की उसी खौफनाक अंधेरी रात से जुड़ी हुई है. यह कहानी कोलागढ़ नामक एक गांव की है. कोलागढ़ में लोग बहुत कम रहते थे जिसका कारण था वहां का भयानक और बहुत ही घना जंगल. लोगों का तो यह भी कहना था कि वहां कुछ दुष्ट आत्माएं वास करती हैं.
मेरी नानी की बड़ी बहन का परिवार उस गांव में रहता है. एक पारिवारिक कार्यक्रम के दौरान मुझे भी वहां जाना पड़ा. पहले वहां जाने का मेरा कोई मन नहीं था क्योंकि मैंने सुना था वहां मनोरंजन के कोई साधन नहीं थे तो मुझे वहां जाना बहुत बोरिंग लग रहा था. लेकिन मैं नहीं जानता था कि कोलागढ़ ही मेरे जीवन का सबसे बड़ा और रोमांचक अनुभव बन जाएगा.

वह रात भी अमावस की थी. हम गांव की ओर जा ही रहे थे कि अचानक रास्ते में वह घना और अंधेरा जंगल पड़ा. शहर के लोगों के लिए वह एक टूरिस्ट स्पॉट हो सकता था लेकिन गांव वाले उसे आत्माओं का बसेरा मानते थे.

मुझे यह सब बहुत दकियानूसी लगा लेकिन रात होते-होते मैंने जो भी देखा वह वाकई दिल दहला देने वाला था. मैं और मेरा परिवार गाड़ी में बैठकर वो जंगल क्रॉस कर रहे थे. दिन पूरी तरह ढल चुका था और रात के करीब 11 बजने को आए थे.

वह जंगल बहुत बड़ा था इसीलिए उसे पार करने में काफी समय लग रहा था. जहां-जहां गाड़ी की लाइट पड़ती बस वहीं कुछ नजर आता था. अचानक हमने देखा कि गाड़ी के सामने एक तेज रोशनी चमकने लगी. हमें लगा कि शायद बिजली गिरी है लेकिन मौसम एकदम साफ था.आगे चले तो पीछे किसी ने हमें आवाज लगाई कि गाड़ी रोक ले. लेकिन ड्राइवर के बहुत जोर देने पर हमने गाड़ी रुकवाने का प्लान कैंसल कर दिया.

हमने देखा कि एक महिला पेड के किनारे खड़ी थी, जैसे किसी के आने के इंतजार में हो. हमने उसे देखकर अनदेखा कर दिया लेकिन उसने हमें नजरअंदाज नहीं किया. अचानक ऐसा लगा जैसे हमारी गाड़ी में हमारे अलावा भी कोई बैठा है. मां और मैं पीछे थे लेकिन पहले जिस आराम से बैठे थे अचानक वह सब गायब हो गया था. गाड़ी में अजीब सी बदबू थी. मुझे डर लगने लगा लेकिन ड्राइवर ने कहा डरने की बात नहीं है, यह कुछ दूर जाकर उतर जाएगी. हम डर गए कि कौन और कहां उतर जाएगी?

हम सब ऐसे बैठे रहे जैसे शरीर में जान ही न हो. 20-25 मिनट तक सब बहुत भयानक रहा लेकिन अचानक सब ठीक हो गया और ऐसा लगा वातावरण में जो शोक था उसके स्थान पर जीवंतता वापस आ गई हो. ड्राइवर ने कहा यहां कुछ आत्माएं ऐसी हैं जो यात्रियों को बुरी आत्मा से बचाने के लिए उनके साथ-साथ चलती हैं और एक सुरक्षित स्थान पर लाकर उन्हें छोड़ देती हैं. हम डरे रहे, सहमे रहे और बस घर जल्दी से जल्दी पहुंचने की दुआ करते रहे.
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Old 15-03-2013, 08:53 PM   #23
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भूत-प्रेतों और आत्माओं जैसी पारलौकिक ताकतों की थीम पर बनी फिल्में और धारावाहिक देखना अकसर लोगों को पसंद होता है. अंधेरे कमरे या फिर सिनेमा हॉल में बैठकर डरावनी फिल्म देखना एक अच्छा टाइम-पास हो सकता है लेकिन कभी आपने यह सोचा है कि आपका टाइम-पास का यह तरीका कितना खतरनाक साबित हो सकता है.

अभी कुछ दिन पहले दुनिया भर में अपनी शॉर्ट फिल्मों और डॉक्यूमेंट्री के लिए मशहूर सनडांस फेस्टिवल का आयोजन किया गया. इस फेस्टिवल में कई फिल्में दिखाई गईं. लेकिन वीएचएसनाम की एक फिल्म को देखर दर्शकों के होश उड़ गए. यह फिल्म सुपरनैचुरल या पारलौकिक शक्तियों पर आधारित थी. जिसमें कुछ दोस्त एक खास वीडियो फिल्म को देख कर भूत प्रेतों के चक्कर में पड़ जाते हैं. फिल्म के दृश्य इतने ज्यादा भयानक थे कि दर्शकों में मौजूद एक कपल की हालत इतनी ज्यादा खराब हो गई कि कुछ ही समय में उनके लिए एंबुलेंस बुलानी पड़ी.



आपको यह जानकर हैरानी होगी कि फिल्म के दौरान एक हॉल में मौजूद एक दर्शक इतना अधिक डर गया कि उसे उठकर बाहर भागना पड़ा. इससे पहले कि वह बाहर पहुंच पाता वह बीच में ही बेहोश होकर गिर गया. उसके बेहोश होने के कुछ देर बाद उसकी गर्लफ्रेंड की तबियत भी खराब हो गई.

प्रेमी जोड़े के बेहोश होने के बाद आयोजकों ने तुरंत एंबुलेंस बुलाकर उन्हें अस्पताल पहुंचाया. हॉल का मैनेजर, जो उस समय बेहोश हुए लड़के के पास ही बैठा था, का कहना है कि फिल्म के शुरू होने के कुछ देर बाद ही उसका चेहरा पीला पड़ने लगा था.

लेकिन इस घटना से यह तो प्रमाणित हो जाता है कि डरावनी फिल्में देखना रोमांचक तो हो सकता है लेकिन अगर आप बड़े चाव के साथ अपने दोस्तों या साथी के साथ हॉरर फिल्म देखने का प्लान बनाते हैं तो शायद आप यह अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि डरावनी फिल्म देखना कितना खतरनाक सिद्ध हो सकता है.
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Old 29-03-2013, 07:18 PM   #24
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यह कहानी है राजस्थान के भिलवाड़ा के पास एक गांव में रहने वाली लता की है. जिसके बारे में कहा जाता है कि उसके ऊपर किसी प्रेत आत्मा का साया है. अभी वह 18 की हुई है लेकिन उसकी गोद में तीन बच्चे हैं. ग्रामीण इलाकों में विवाह जल्दी हो जाता है सो लता को भी 10 साल की उम्र में ही ससुराल भेज दिया गया.

ससुराल में उसे कितना प्यार मिला यह तो हम नहीं बता सकते लेकिन गांव वाले उसे दूर रहते हैं. वह कहते हैं लता जो भी कहती है वह सच हो जाता है. किसी काली शक्ति ने उसे अपनी चपेट में लिया हुआ है. लता के पड़ोस में रहने वाले लोग उससे डरते हैं. उससे बात तक नहीं करते, नाजाने लता के मुंह से क्या निकल जाए जो उनके लिए खतरनाक सिद्ध हो.

लता के मायके के पड़ोस में रहने वाली राजो का कहना है कि जब लता छोटी थी तो एक बार वो और लता बाहर खेल रहे थे. खेलते-खेलते लता को एक कुत्ते ने काट लिया अचानक लता के मुंह से उस कुत्ते के लिए बददुआ निकली. उसने कहा इस कुत्ते को मौत आ जाए और जब सुबह उठकर जब देखा तो गली के बाहर लोग इकट्ठा थे क्योंकि वह कुत्ता मरा पड़ा था और गांवभर में बदबू फैली हुई थी.

इतना ही नहीं एक बार लता का हाथ जल गया तो वह बहुत शोर मचाने लगी लेकिन उसकी बड़ी बहन ने कहा यह तो छोटा सा घाव है इतना क्यों चिल्ला रही है, इसपर लता ने उसके शरीर को जल जाने जैसी बात कही. तो उसी शाम रात उनके घर में आग लग गई और जली सिर्फ उसकी बहन, जलने के कारण उसकी मृत्यु हो गई.


यह एक नहीं बल्कि ऐसे कई घटनाएं गांववालों और लता के परिवार वालों ने सही हैं.
लता का पति ड्राइवर है वह गांव में कम ही रहता है. गांव के लोगों का मानना है कि उसके शरीर में किसी दुष्ट आत्मा ने कब्जा कर लिया है. भान्क्या माता के मन्दिर में हर रोज सुबह लता को लेकर जाया जाता है क्योंकि लोगों का मानना है कि उसका शरीर इसी मंदिर में उस पारलौकिक शक्ति से आजाद हो पाएगा.


लता की सहायता करने वाला वहां कोई नहीं है. अब उसकी काली जुबान से उसी पर धावा बोल दिया है. वह अपने पति के लिए कुछ नहीं बोल सकती और ना ही अपने परिवार से कोई बात करती है. उसे नहीं पता कब कुछ ऐसा उसके मुंह से निकल जाए जो उसके परिवार के लिए घातक सिद्ध हो. वह हर रात रोती है, दिनभर तड़पती है. अगर यह श्राप है तो उसी पर क्यों, आखिर क्या गलती थी उसकी.
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Old 29-03-2013, 07:19 PM   #25
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बिना उसे बताए उसकी फांसी का दिन मुकर्रर कर दिया गया. जब उसे उस मौत के तख्ते की ओर ले जा रहे थे तब उसके चेहरे पर डर और जीने की इच्छा दिखाई दे रही थी लेकिन उसकी नियति को कुछ और ही मंजूर था और वही हुआ जो होना था या कहे जो होना चाहिए था. उसे सजा मिली वो भी मौत की और अब उसकी आत्मा अपनी मौत का बदला लेने के लिए भटक रही है.


“एशिया की सबसे बड़ी जेल तिहाड़, जिसमें संसद हमले के दोषी कश्मीरी जेहादी अफजल गुरू को फांसी के तख्ते पर लटका दिया गया, लेकिन अब वह मरने के बाद वापिस आ गया है.” यह हम नहीं बल्कि अफजल के साथ रहे तिहाड़ जेल के अन्य कैदी कह रहे हैं जिन्हें आजकल अपने आसपास अफजल के होने का एहसास होता है.

अब इसे उन कैदियों के भीतर छिपा डर कह लें, अंधविश्वास या फिर वाकई भटकती आत्मा का कहर लेकिन जेल की चारदीवारी के पीछे कुछ तो है जो लोगों को चैन की सांस नहीं लेने दे रहा. जब-जब वह उस कोठरी को देखते हैं जिसमें अफजल को बंदी बनाकर रखा गया था तो उन्हें वहां उसके होने का एहसास अभी भी होता है.


तिहाड़ से जुड़े लोगों का कहना है कि कैदी वैसे तो एक-दूसरे को तसल्ली देते रहते हैं लेकिन अंदर ही अंदर उन पर भी अफजल की रूह की दहशत घर किए हुए है. उन्हें डर लगता है कि कहीं अफजल अपनी मौत का बदला उनसे ना ले ले.


तिहाड़ के कैदी रात के समय अगर अपने कोठरी से बाहर आते हैं तो उन्हें अफजल के साये की आहट महसूस होती है. एक ऐसी रूह जो मरने के बाद भी उनका पीछा नहीं छोड़ रही है.


उल्लेखनीय बात तो यह है कि तिहाड़ के कैदियों ने जेल प्रशासन को भी यह बात बताई है कि उन्हें अफजल की भटकती रूह से डर लगता है लेकिन जैसा कि आप और हम सभी जानते हैं कि जब तक साक्ष्य ना मिले तब तक इन बातों पर यकीन नहीं किया जा सकता इसीलिए जेल प्रशासन ऐसी किसी भी बात पर यकीन नहीं कर रहा है.

बैरक नंबर 3 जिसमें अफजल को एक लंबी अवधि के लिए बंद कर रखा गया था, उस बैरक के कैदी पूरी रात बस भगवान का नाम लेते-लेते ही गुजारते हैं. उन्हें डर लगता है कि कहीं अफजल उनके सामने ना आ जाए.


कैदियों का डर यह बात सोच-सोच के और ज्यादा बढ़ जाता है कि उन्हें या अफजल दोनों को ही 8 फरवरी की रात तक यह नहीं पता था कि अगली सुबह संसद पर हमले के अपराध में अफजल को फांसी के फंदे पर लटका दिया जाएगा. ऐसे में कहीं मरने के बाद अफजल की आत्मा असमय मृत्यु मिलने के कारण तिहाड़ कैंपस में भटक रही हो तो निश्चित है इससे कैदियों को घबराहट होगी.

सूत्रों का तो यह भी कहना कि तिहाड़ कैदी आजकल एक-दूसरे से किसी और चीज पर बात नहीं करते बल्कि वह सिर्फ और सिर्फ अफजल की मौत और उसकी भटकती रूह से जुड़े अपने अनुभव ही साझा करते हैं. पहले तो लोग इसे वहम और बेवजह की बात करार देते थे अब हालत यह है कि उन्हें भी अफजल के होने का एहसास होता है और कभी कभार उसकी आवाज तक सुनाई देती है. पहले तो यह डर था लेकिन धीरे-धीरे अब यह दहशत का रूप ले चुका है.


हालांकि जेल प्रशासन की मानें तो अफजल गुरू को पूरी रीति-रिवाज के साथ दफन किया गया था इसीलिए यह मुमकिन ही नहीं है कि अफजल की आत्मा भटक रही हो.
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