15-05-2013, 03:54 PM | #11 |
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Re: इंडियन सिनेमा के सौ साल
तमिल शिवाजी गणेशन फिल्म 'पराशक्ति' (1952) सन् 1952 में रिलीज हुई फिल्म 'पराशक्ति' में शिवाजी गणेशन ने बांग्लादेश के आदमी का रोल निभाया था जो भारत में अपने होमटाउन में अपनी बहन की शादी में शामिल होने आता है और धोखे का शिकार हो जाता है। इस फिल्म में इनकी जबरदस्त परफॉर्मेंस ने सभी का दिल जीत लिया था।
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15-05-2013, 04:03 PM | #12 |
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Re: इंडियन सिनेमा के सौ साल
मोहनलाल फिल्म 'भारतम' (1991) 1991 में आई फिल्म 'भारतम' में अभिनेता मोहनलाल ने एक टैलेंटेट सिंगर का किरदार निभाया था। ये किरदार अपने बड़े भाई से से बहुत प्यार करता है। उनका बड़ा भाई उनका गुरु भी होता है और बहुत बड़ा शराबी भी होता है। ये फिल्म मोहनलाल की प्रतिभा का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।
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15-05-2013, 04:04 PM | #13 |
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Re: इंडियन सिनेमा के सौ साल
मलयालम ममूट्टी फिल्म 'मथीलुकल' (1989) सन् 1989 में ग्यारह फिल्में ऐसी बनीं थीं जिनमें ममूट्टी लीड रोल में थे। सन् 1986 में 36 फिल्मों में उन्होंने लीड रोल किया था। खास बात ये थी कि किसी भी फिल्म में या किसी भी रोल में कोई कमी नहीं आई और उन्होंने बेहतरीन अभिनय किया था। फिल्म 'मथीलुकल' में ममूट्टी एक कैदी होते हैं जिन्हें महिला सहकैदी से प्यार हो जाता है जो दीवार के दूसरी तरफ बंद होती है। अदूर गोपालकृष्णन द्वारा डायरेक्ट की गई ये फिल्म 1965 में आए ऑटोबायोग्राफिकल नॉवेल पर आधारित थी। ये नॉवेल मुहम्मद बशीर ने लिखा था।
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15-05-2013, 04:09 PM | #14 |
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Re: इंडियन सिनेमा के सौ साल
कन्नड़ फिल्म डा. राजकुमार फिल्म 'बंगारधा मनुष्य' सभी कन्नड़वासियों द्वारा भगवान माने जाने वाले डा. राजकुमार (1954-2005) ने इस फिल्म में एक विधवा के भाई का रोल निभाया था। उनके भाई ने परिवार को छोड़ दिया होता है और राजकुमार अपने परिवार को फिर से संगठित करने का प्रयास करते हैं। वो अपनी बहन के बेटे को उच्च शिक्षा के लिए शहर भेजते हैं और खुद बहन और घर की देखभाल करते हैं। जब सब कुछ ठीक हो जाता है और राजकुमार का खुद का परिवार हो जाता है तो उनकी पत्नी मर जाती है और उनका एक भांजा परिवार के प्रति उनकी जिम्मेदारी पर सवाल खड़ा कर देता है। इसके बाद राजकुमार बिना किसी परवाह के सब कुछ छोड़ देते हैं। एक कन्नड़ फिल्म पोर्टल 'चित्रलोका.कॉम' के संस्थापक के.एम. वीरेश कहते हैं कि 'राजकुमार अकेले ऐसे एक्टर हैं जिन्होंने सभी तरह के कॉमेडी, सेंटीमेंटल, ऐतिहासिक, माइथोलॉजी वाले रोल किए हैं।' राजकुमार के पूरे फिल्मी कैरियर में ये फिल्म उनके लिए मील का पत्थर साबित हुई थी।
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15-05-2013, 04:11 PM | #15 |
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Re: इंडियन सिनेमा के सौ साल
तेलुगू फिल्म जे.वी. सोमायाजुलू फिल्म 'शंकराभरनम' (1980) जे.वी. 50 साल की उम्र में एक आईएएस ऑफीसर थे। उस समय उन्होंने कर्नाटकी संगीतकार का रोल किया था और उन्हें एक वेश्या की बेटी का सपोर्ट करने के लिए समाज द्वारा गलत ठहराया जाता है। ये फिल्म एक सरप्राइज हिट थी। जे.वी ने बहुत ही गरिमा और दिलचस्पी के साथ ये किरदार निभाया था।
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15-05-2013, 04:11 PM | #16 |
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Re: इंडियन सिनेमा के सौ साल
रेखा फिल्म 'उमराव जान' (1981) इस फिल्म ने सन् 1840 के दौरान का लखनऊ वाले समय को वापस ला दिया था और उमराव जान के कैरेक्टर में रेखा पूरी तरह बेजोड़ थीं। एक सुप्रीम पोज में एक्टिंग करते हुए रेखा ने इस कैरेक्टर को ऐसा निभाया था जो अविस्मरणीय और दिल को छू जाने वाला है। अगर भविष्य में कभी इस रोल को किसी और के द्वारा इससे बेहतर किया गया तो ये चमत्कार ही कहलाएगा
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15-05-2013, 04:12 PM | #17 |
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Re: इंडियन सिनेमा के सौ साल
स्मिता पाटिल फिल्म 'मिर्च मसाला' (1987) स्मिता अपने जमाने की बेहतरीन अदाकाराओं में से एक हैं। उनकी फिल्मों में की गईं कई बेहतरीन परफॉर्मेंस आज भी उनके इंडियन सिनेमा की लेजर परफॉर्मेंस हैं। फिल्म 'मिर्च मसाला' में उनके अभिनय की एक-एक गहराई निखर कर दिखाई दी थी। छोटे-छोटे दृश्यों से लेकर फुल ब्लास्ट एक्टिंग तक सब कुछ बेहतरीन था। अगर उनके पूरे कैरियर में इस किरदार को उनका बेस्ट किरदार कहा जाए तो कोई बड़ी बात नहीं है।
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15-05-2013, 04:13 PM | #18 |
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Re: इंडियन सिनेमा के सौ साल
नूतन फिल्म 'बंदिनी' (1963) बिमल रॉय की क्लासिक फिल्म 'बंदिनी' में नूतन द्वारा लीड फीमेल वाली भूमिका भारतीय सिनेमा में अब तक की सबसे बेहतरीन परफॉर्मेंस है। फिल्म में नूतन एक ऐसे किरदार में होती हैं जो अपने आशिक की पत्नी की हत्या कर देती हैं। नूतन का किरदार बिना किसी नाटकीयता का सहारा लिए होता है। जिस दृश्य में वे हत्या करती हैं, उसमें उनके चेहरे का हर भाव अभिनय कर रहा होता है।
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15-05-2013, 04:14 PM | #19 |
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Re: इंडियन सिनेमा के सौ साल
नसीरूद्दीन शाह फिल्म 'स्पर्श' (1980) इस फिल्म में एक कॉम्प्लेक्स रिलेशनशिप को दिखाया गया है जो एक आंखों से कमजोर स्कूल के प्रिंसिपल (नसीरूद्दीन शाह) और एक उसी स्कूल की एक अध्यापिका (शाबाना आजमी) के बीत होता है। अपने किरदार को शबाना ने भी बखूबी निभाया था लेकिन नसीरूद्दीन शाह की परफॉर्मेंस सबसे अलग और उम्दा थी। उन्होंने अपने किरदार में क्रोध, अकेलेपन और टाइमिंग का बहुत ही अच्छा मिश्रण किया था।
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15-05-2013, 04:15 PM | #20 |
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Re: इंडियन सिनेमा के सौ साल
दिलीप कुमार फिल्म 'देवदास' (1955) नशे में धुत्त, हारा हुआ और एक कायर। कौन इस करह के एक किरदार को देखना चाहेगा? और वाकई में ये सिर्फ दिलीप कुमार के बस की बात थी कि उन्होंने फिल्म में ऐसी एक्टिंग की थी कि हर कोई उनका साथी बनने को तैयार दिख रहा था। दिलीप कुमार द्वारा निभाया गया देवदास का किरदार एक ट्रेजडी के समंदर में सबसे गहरा छोर था। केवल भावनाओं का एक एक्सपर्ट ही ऐसे किरदार को दिखाने के लिए दर्शक को पर्दे तक खींच सकता है जो कि दिलीप कुमार ने बखूबी किया था।
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