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06-01-2013, 07:53 PM | #1 |
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मेरी पसंद : गीत गजल कविता
वो फ़िराक और वो विसाल कहाँ ,
वो शब् -ओ -रोज़ -ओ -माह -ओ -साल कहाँ . थी वो एक शक्स के तसव्वुर सी , अब वो रानाई -इ -ख़याल कहाँ . इतना आसान नहीं लहू रोना , दिल में ताक़त , जिगर में हाल कहाँ . फ़िक्र -इ -दुनिया में सर खपत हूँ , मैं कहाँ और ये बवाल कहाँ . वो शब् -ओ -रोज़ -ओ -माह -ओ -साल कहाँ .
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !! दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !! Last edited by bindujain; 06-01-2013 at 08:00 PM. |
06-01-2013, 08:00 PM | #2 |
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Re: मेरी पसंद : गीत गजल कविता
किसी रंजिश को हवा दो , की मैं जिंदा हूँ अभी ,
मुझको एहसास दिल दो , की मैं जिंदा हूँ अभी . ज़हर पीने की तो आदत थी ज़माने वालों , अब कोई और दवा दो , की मैं जिंदा हूँ अभी . मेरे रुकने से मेरी सांसें भी रुक जायेंगी , फासले और बढ़ा दो , की मैं जिंदा हूँ अभी . चलती राहों में यूँ ही आँख लगी है फ़क़ीर , भीड़ लोगों की हटा दो , की मैं जिंदा हूँ अभी
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06-01-2013, 08:16 PM | #3 |
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Re: मेरी पसंद : गीत गजल कविता
कभी यूँ भी तो हो
कभी यूँ भी तो हो दरिया का साहिल हो पूरे चाँद की रात हो और तुम आओ कभी यूँ भी तो हो परियों की महफ़िल हो कोई तुम्हारी बात हो और तुम आओ कभी यूँ भी तो हो ये नर्म मुलायम ठंडी हवायें जब घर से तुम्हारे गुज़रें तुम्हारी ख़ुश्बू चुरायें मेरे घर ले आयें कभी यूँ भी तो हो सूनी हर मंज़िल हो कोई न मेरे साथ हो और तुम आओ कभी यूँ भी तो हो ये बादल ऐसा टूट के बरसे मेरे दिल की तरह मिलने को तुम्हारा दिल भी तरसे तुम निकलो घर से कभी यूँ भी तो हो तनहाई हो दिल हो बूँदें हो बरसात हो और तुम आओ
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06-01-2013, 08:22 PM | #4 |
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Re: मेरी पसंद : गीत गजल कविता
परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहता
परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहता किसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता बडे लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना जहां दरिया समन्दर में मिले, दरिया नहीं रहता हजारों शेर मेरे सो गये कागज की कब्रों में अजब मां हूं कोई बच्चा मेरा ज़िन्दा नहीं रहता तुम्हारा शहर तो बिल्कुल नये अन्दाज वाला है हमारे शहर में भी अब कोई हमसा नहीं रहता मोहब्बत एक खुशबू है, हमेशा साथ रहती है कोई इन्सान तन्हाई में भी कभी तन्हा नहीं रहता कोई बादल हरे मौसम का फ़िर ऐलान करता है ख़िज़ा के बाग में जब एक भी पत्ता नहीं रहता .
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06-01-2013, 08:26 PM | #5 |
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Re: मेरी पसंद : गीत गजल कविता
ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे
ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे,कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे ख़तावार समझेगी दुनिया तुझे,अब इतनी भी ज़्यादा सफ़ाई न दे हँसो आज इतना कि इस शोर में,सदा सिसकियों की सुनाई न दे अभी तो बदन में लहू है बहुत,कलम छीन ले रोशनाई न दे मुझे अपनी चादर से यूँ ढाँप लो,ज़मीं आसमाँ कुछ दिखाई न दे ग़ुलामी को बरकत समझने लगें,असीरों को ऐसी रिहाई न दे मुझे ऐसी जन्नत नहीं चाहिए ,जहाँ से मदीना दिखाई न दे मैं अश्कों से नाम-ए-मुहम्मद लिखूँ,क़लम छीन ले रोशनाई न दे ख़ुदा ऐसे इरफ़ान का नाम है,रहे सामने और दिखाई न दे
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07-01-2013, 02:55 AM | #6 |
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Re: मेरी पसंद : गीत गजल कविता
किस को क़ातिल मैं कहूं किस को मसीहा समझूं
सब यहां दोस्त ही बैठे हैं किसे क्या समझूं वो भी क्या दिन थे की हर वहम यकीं होता था अब हक़ीक़त नज़र आए तो उसे क्या समझूं दिल जो टूटा तो कई हाथ दुआ को उठे ऐसे माहौल में अब किस को पराया समझूं ज़ुल्म ये है कि है यक्ता तेरी बेगानारवी लुत्फ़ ये है कि मैं अब तक तुझे अपना समझूं अहमद नदीम क़ासमी
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09-01-2013, 07:36 PM | #7 |
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Re: मेरी पसंद : गीत गजल कविता
दामन छुडा के आप को जाना ही था अगर
नज़रें उठा के प्यार से देखा था क्यों मुझे !!
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
09-01-2013, 08:05 PM | #8 |
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Re: मेरी पसंद : गीत गजल कविता
पंख लगाकर मेरे ख़्वाबों को , ले जाओ कहीं दूर
नालायक रात में आते हैं और सोने भी नहीं देते
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09-01-2013, 08:06 PM | #9 |
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Re: मेरी पसंद : गीत गजल कविता
ख्वाहिशों को जेब में रख कर ही निकलिए खर्चा बहुत होता है मंजिलों को पाने में !!
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09-01-2013, 08:06 PM | #10 |
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Re: मेरी पसंद : गीत गजल कविता
तस्वीर में ख़याल होना तो लाजमी सा है मगर एक तस्वीर है, जो ख्यालों में बनी है
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