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Old 11-06-2011, 07:14 PM   #31
MANISH KUMAR
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MANISH KUMAR is a name known to allMANISH KUMAR is a name known to allMANISH KUMAR is a name known to allMANISH KUMAR is a name known to allMANISH KUMAR is a name known to allMANISH KUMAR is a name known to all
Default Re: बाबा राम देव का सत्त ग्रहण आनदोलन

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Originally Posted by bhuwan View Post
भाई इन शब्दों का क्या मतलब है? कुछ खुलकर समझाएं.
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Originally Posted by pankaj bedrdi View Post
केन्द्र मै महिला के हाथ मै है
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Originally Posted by manish kumar View Post
केंद्र में she***e बैठे हैं.
पुलिस वालों को जबरदस्ती ऑर्डर देकर ये करवाया और पुलिस वालों को दबाव में आकर बेमन से ये सब करना पड़ा.
भाई साहब ये अंग्रेजी शब्द है हिंदी में आप इसे नपुंसक कह सकते ही. हालाँकि इसका असली मतलब आप समझ गए होंगे. ज्यादा विवादित नहीं बनाना चाहता इसलिए असली शब्द का इस्तेमाल नहीं किया.
__________________


क्योंकि हर एक फ्रेंड जरूरी होता है.
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Old 11-06-2011, 10:54 PM   #32
The ROYAL "JAAT''
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The ROYAL "JAAT'' is a splendid one to beholdThe ROYAL "JAAT'' is a splendid one to beholdThe ROYAL "JAAT'' is a splendid one to beholdThe ROYAL "JAAT'' is a splendid one to beholdThe ROYAL "JAAT'' is a splendid one to beholdThe ROYAL "JAAT'' is a splendid one to beholdThe ROYAL "JAAT'' is a splendid one to behold
Default Re: बाबा राम देव का सत्त ग्रहण आनदोलन

सही कहा इस सरकार में सब वही तो है अगर कोई सही मायनो में नेता होता तो कारनामे नही होते हर तरफ बस हर कोई अपना मतलब निकलने की फ़िराक में रहते है आम आदमी का क्या वो तो हर इलेक्सन पर बड़े बड़े वादों के पीछे दोड़ती हुई आ ही जाती है और हमारे पास नही तो उनके पास दोनों तरफ बस है तो वही लोग ना दोनों पाटों के बिच पीसना तो हमे ही हैं. भाई एक बात कहूँ मुझे तो अन्ना,बाबा ये नेता इनमे कोई फर्क नही है अपना मतलब निकलते ही सब भूल जाते है की जनता ने आपको इस ऊंचाई पर किस लिए बिठाया है
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'' हम हम हैं तो क्या हम हैं '' तुम तुम हो तो क्या तुम हो '
आपका दोस्त पंकज










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Old 12-06-2011, 10:07 AM   #33
dipu
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Default Re: बाबा राम देव का सत्त ग्रहण आनदोलन

नेता और बाबा में कुछ तो फर्क होता होगा
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Old 12-06-2011, 11:37 AM   #34
dipu
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Default Re: बाबा राम देव का सत्त ग्रहण आनदोलन

बाबा रामदेव ने आज अपना नौ दिन से चल रहा अनशन तोड़ दिया है। आज उन्हें मनाने के लिए श्री श्री रविशंकर और मुरारी बापू अस्पताल गए। वहां उन्होंने बाबा से बात की, जिसके बाद से अनशन तोड़ने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने श्री श्री के हाथ से जूस पीकर अनशन तोड़ा। आचार्य बालकृष्ण ने भी अपना आंदोलन तोड़ दिया है। लेकिन रविशंकर ने बताया कि बाबा की विदेशी बैंकों में जमा काला धन वापस लाने के लिए आंदोलन जारी रहेगा। लेकिन बाबा अभी एक-दो दिन और अस्पताल में रहेंगे।

आंदोलन खत्म करने के बाद आचार्य बालकृष्ण ने अपने समर्थकों से भी अपील की कि वे अनशन खत्म कर दें।

बाबा के अनशन खत्म करने के वक्त जनता पार्टी के नेता सुब्रमण्यम स्वामी भी मौजूद थे। बाद में उन्होंने पत्रकारों से कहा कि वे काला धन और भ्रष्टाचार विरोधी अभियान में पूरी तरह बाबा रामदेव के साथ हैं।

उनके अनशन का आज नौवां दिन था। डॉक्टरों ने आज बाबा के हैल्थ बुलेटिन में कहा कि उनके शरीर में प्रोटीन की कमी आ गई है और अब उनका ठोस आहार लेना निहायत जरूरी है। उन्होंने कहा कि डॉक्टर उन्हें जबरन नहीं खिला सकते, लेकिन इस बारे में विस्तार से एक रिपोर्ट प्रशासन को भेज दी गई है।

डॉक्टरों ने आज उनके स्वास्थ्य बुलेटिन में कहा था कि उनका ब्लड प्रेशर १०९/७१ है। यह अभी भी अस्थिर है और डॉक्टर इसे नियंत्रित करने के प्रयास में लगे हुए हैं। उन्होंने कहा कि बाबा के खून में विटामिन की सख्त कमी है। उन्हें सलाइन के साथ, प्रोटीन, विटामिन और मिनरल्स दिए जा रहे हैं।

इसके पहले आज सुबह पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने भी बाबा रामदेव से अनशन खत्म करने की अपील की थी। पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और हरियाणा के नेता ओम प्रकाश चौटाला भी बाबा से मिले और उनसे अनशन खत्म करने की अपील की।
बाबा को शुक्रवार को देहरादून के अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
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Old 12-06-2011, 02:42 PM   #35
Kumar Anil
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Default Re: बाबा राम देव का सत्त ग्रहण आनदोलन

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नेता और बाबा में कुछ तो फर्क होता होगा
फर्क तो होता ही है और वो हम सब भली भाँति जानते हैँ । अपनी लोकप्रियता को कैश करने के लिये जब बाबा राजनीति का दामन थामने लगते हैँ तो नेता और बाबा मेँ क्या फर्क है । इस पूरे मुद्दे पर दृष्टिपात करेँ तो सिवाए महत्वाकांक्षा के कुछ और नहीँ दिखेगा । बाबा करीबन डेढ़ साल से भ्रष्टाचार मिटाओ की अलख जगा रहे थे । पर अहं ब्रहमास्मि के मद मेँ चीजोँ का केन्द्रीयकरण करना चाह रहे थे । सत्ता केन्द्रीयकृत नहीँ विकेन्द्रीयकृत होनी चाहिये अन्यथा निरंकुशता तानाशाह बनाने लगेगी । राजनीति मेँ वन मैन शो हमेशा घातक होता है । शायद केजरीवाल , किरण बेदी जैसे लब्ध प्रतिष्ठित लोगोँ को ये मंजूर न था और उन्होँने टीम भावना के तहत अन्ना हजारे को झाड़ पोँछकर लोकपाल विधेयक के रूप मेँ लड़ाई आरंभ कर दी । बाबा जी जैसे अधीर राजनीतिज्ञ ने उनके मंच पर अन्यमनस्क उपस्थिति दर्ज कराते हुये सरकार से अपनी आवभगत करा खुद को पुष्ट किया और अलग थलग पड़ जाने या मुद्दा छिन जाने पर तुष्ट होने की कोशिश तो की परन्तु हजारे मुहिम फीँकी कर डाली , नतीजतन मुद्दोँ पर एकत्र भीड़ दोफाड़ हो गयी । दो मंच हो गये , ताकत कमजोर हो गयी । अन्ना हजारे फ्लॉप शो बन कर रह गये । विजयी मुद्रा मेँ बाबा का सरकार से हाथ मिलाकर रामलीला मैदान मेँ अवतरण हुआ । योग के लिये शरणागत जनता का राजनीतिक इस्तेमाल और कुटिल सरकार के मार्फत लीक हो गये पत्र से बौखलाये सेनापति रामदेव का जनता को असहाय अकेला छोड़ महिला वेश का स्वांग धर भागने की तैयारी मेँ आखिर जनता को क्या हासिल हुआ ? उसकी नियति तो वही रही , ठगे जाने की । राजबाला पर पड़ी लाठियोँ पर क्या अकेले सरकार जिम्मेदार है ? क्या अपनी महत्वाकांक्षाओँ के लिये उसे इस्तेमाल कर रहे सेनापति रामदेव पर प्रश्नचिन्ह नहीँ लगना चाहिये ? बाबा मेँ क्रान्ति की तासीर तो है मगर मदांध मेँ हड़बड़ाने और डंडोँ से खौफजदा होने का स्वभाव उन्हेँ पीछे ढकेल गया और नेपथ्य मेँ रह गया खिसियाया हुआ पिपहरी नाद । जनता का आर्तनाद न जाने कहाँ गुम हो गया । शायद यही उसकी नियति है , कल भी और आज भी ......
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दूसरोँ को ख़ुशी देकर अपने लिये ख़ुशी खरीद लो ।
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Old 12-06-2011, 09:48 PM   #36
Bhuwan
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कुछ लोगों का कहना है कि बाबा रामदेव की नजर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है?
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Old 12-06-2011, 10:07 PM   #37
Kumar Anil
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कुछ लोगों का कहना है कि बाबा रामदेव की नजर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है?
दिल्ली बहुत दूर है ।
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Old 13-06-2011, 06:41 PM   #38
amit_tiwari
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फर्क तो होता ही है और वो हम सब भली भाँति जानते हैँ । अपनी लोकप्रियता को कैश करने के लिये जब बाबा राजनीति का दामन थामने लगते हैँ तो नेता और बाबा मेँ क्या फर्क है । इस पूरे मुद्दे पर दृष्टिपात करेँ तो सिवाए महत्वाकांक्षा के कुछ और नहीँ दिखेगा । बाबा करीबन डेढ़ साल से भ्रष्टाचार मिटाओ की अलख जगा रहे थे । पर अहं ब्रहमास्मि के मद मेँ चीजोँ का केन्द्रीयकरण करना चाह रहे थे । सत्ता केन्द्रीयकृत नहीँ विकेन्द्रीयकृत होनी चाहिये अन्यथा निरंकुशता तानाशाह बनाने लगेगी । राजनीति मेँ वन मैन शो हमेशा घातक होता है । शायद केजरीवाल , किरण बेदी जैसे लब्ध प्रतिष्ठित लोगोँ को ये मंजूर न था और उन्होँने टीम भावना के तहत अन्ना हजारे को झाड़ पोँछकर लोकपाल विधेयक के रूप मेँ लड़ाई आरंभ कर दी । बाबा जी जैसे अधीर राजनीतिज्ञ ने उनके मंच पर अन्यमनस्क उपस्थिति दर्ज कराते हुये सरकार से अपनी आवभगत करा खुद को पुष्ट किया और अलग थलग पड़ जाने या मुद्दा छिन जाने पर तुष्ट होने की कोशिश तो की परन्तु हजारे मुहिम फीँकी कर डाली , नतीजतन मुद्दोँ पर एकत्र भीड़ दोफाड़ हो गयी । दो मंच हो गये , ताकत कमजोर हो गयी । अन्ना हजारे फ्लॉप शो बन कर रह गये । विजयी मुद्रा मेँ बाबा का सरकार से हाथ मिलाकर रामलीला मैदान मेँ अवतरण हुआ । योग के लिये शरणागत जनता का राजनीतिक इस्तेमाल और कुटिल सरकार के मार्फत लीक हो गये पत्र से बौखलाये सेनापति रामदेव का जनता को असहाय अकेला छोड़ महिला वेश का स्वांग धर भागने की तैयारी मेँ आखिर जनता को क्या हासिल हुआ ? उसकी नियति तो वही रही , ठगे जाने की । राजबाला पर पड़ी लाठियोँ पर क्या अकेले सरकार जिम्मेदार है ? क्या अपनी महत्वाकांक्षाओँ के लिये उसे इस्तेमाल कर रहे सेनापति रामदेव पर प्रश्नचिन्ह नहीँ लगना चाहिये ? बाबा मेँ क्रान्ति की तासीर तो है मगर मदांध मेँ हड़बड़ाने और डंडोँ से खौफजदा होने का स्वभाव उन्हेँ पीछे ढकेल गया और नेपथ्य मेँ रह गया खिसियाया हुआ पिपहरी नाद । जनता का आर्तनाद न जाने कहाँ गुम हो गया । शायद यही उसकी नियति है , कल भी और आज भी ......
सत्य वचन भाई और mai इसमें जोड़ना चाहूँगा की जिस जनता को यही नहीं पता की उसके अधिकार क्या हैं, क्या उसके कर्त्तव्य हैं उसे सिर्फ ठगा ही जाना चाहिए |||
अगर साठ साल बाद भी सरकार सही नहीं चुनी गयी तो इसके जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ वोट डालने और ना डालने वाले हैं |
किसी भी चुनाव में कोई सही मुद्दा होता ही नहीं है, कोई अपने सामने का नाला सही कराएगा, किसी को हैंडपंप लगवाने हैं | जब परीक्षा ही घटिया है तो उत्तीर्ण होने वाले भी घटिया ही होंगे !!!
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Old 13-06-2011, 10:58 PM   #39
Ranveer
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Originally Posted by kumar anil View Post
फर्क तो होता ही है और वो हम सब भली भाँति जानते हैँ । अपनी लोकप्रियता को कैश करने के लिये जब बाबा राजनीति का दामन थामने लगते हैँ तो नेता और बाबा मेँ क्या फर्क है । इस पूरे मुद्दे पर दृष्टिपात करेँ तो सिवाए महत्वाकांक्षा के कुछ और नहीँ दिखेगा । बाबा करीबन डेढ़ साल से भ्रष्टाचार मिटाओ की अलख जगा रहे थे । पर अहं ब्रहमास्मि के मद मेँ चीजोँ का केन्द्रीयकरण करना चाह रहे थे । सत्ता केन्द्रीयकृत नहीँ विकेन्द्रीयकृत होनी चाहिये अन्यथा निरंकुशता तानाशाह बनाने लगेगी । राजनीति मेँ वन मैन शो हमेशा घातक होता है । शायद केजरीवाल , किरण बेदी जैसे लब्ध प्रतिष्ठित लोगोँ को ये मंजूर न था और उन्होँने टीम भावना के तहत अन्ना हजारे को झाड़ पोँछकर लोकपाल विधेयक के रूप मेँ लड़ाई आरंभ कर दी । बाबा जी जैसे अधीर राजनीतिज्ञ ने उनके मंच पर अन्यमनस्क उपस्थिति दर्ज कराते हुये सरकार से अपनी आवभगत करा खुद को पुष्ट किया और अलग थलग पड़ जाने या मुद्दा छिन जाने पर तुष्ट होने की कोशिश तो की परन्तु हजारे मुहिम फीँकी कर डाली , नतीजतन मुद्दोँ पर एकत्र भीड़ दोफाड़ हो गयी । दो मंच हो गये , ताकत कमजोर हो गयी । अन्ना हजारे फ्लॉप शो बन कर रह गये । विजयी मुद्रा मेँ बाबा का सरकार से हाथ मिलाकर रामलीला मैदान मेँ अवतरण हुआ । योग के लिये शरणागत जनता का राजनीतिक इस्तेमाल और कुटिल सरकार के मार्फत लीक हो गये पत्र से बौखलाये सेनापति रामदेव का जनता को असहाय अकेला छोड़ महिला वेश का स्वांग धर भागने की तैयारी मेँ आखिर जनता को क्या हासिल हुआ ? उसकी नियति तो वही रही , ठगे जाने की । राजबाला पर पड़ी लाठियोँ पर क्या अकेले सरकार जिम्मेदार है ? क्या अपनी महत्वाकांक्षाओँ के लिये उसे इस्तेमाल कर रहे सेनापति रामदेव पर प्रश्नचिन्ह नहीँ लगना चाहिये ? बाबा मेँ क्रान्ति की तासीर तो है मगर मदांध मेँ हड़बड़ाने और डंडोँ से खौफजदा होने का स्वभाव उन्हेँ पीछे ढकेल गया और नेपथ्य मेँ रह गया खिसियाया हुआ पिपहरी नाद । जनता का आर्तनाद न जाने कहाँ गुम हो गया । शायद यही उसकी नियति है , कल भी और आज भी ......
सही कहा आपने !!
मुझे कई बार शंका हुई है की बाबा रामदेव के आन्दोलन को सत्याग्रह कहा जाए अथवा नहीं ...अंत में जवाब में न ही आया |
वो सत्याग्रह नहीं कहा जा सकता जिसमे नेतृत्व करने वाले को सर छुपाना पड़े | एक सत्याग्रही को हमेशा शुद्ध और निडर होना चाहिए |
क्या बाबा रामदेव कोरपोरेट बाबा नहीं जिन के निर्देशन में समाज सेवा के नाम पर ४५ कम्पनियां (अप्रत्यक्ष )चलतीं हैं ?
सवाल ये है कि आखिर एक योगी को ब्रॉडकास्ट, फूड और कपड़े की कंपनी खोलने की क्या जरूरत पड़ गई। ऐसी पैंतालीस कंपनियों को खोलने का मकसद क्या है? कहीं ऐसा तो नहीं कि टैक्स चोरी के मकसद से इन कंपनियों को खोला गया है? कहीं इन कंपनियों की आड़ में काले धन को ठिकाने लगाने का काम तो नहीं किया जा रहा?
क्या उन्होंने खुद योग के नाम पर एक बड़ा व्यापारिक साम्राज्य नहीं खड़ा किया ?

एक दुसरा पक्ष ये है की काले धन के मामले में सरकार का रवैया इतना ढुलमुल क्यूँ है ?

सवाल ये भी है की किस देश की जनता को ये पता होता है की उसके देश से मिलने वाले अधिकार और कर्तव्य कितने हैं ? विकसित देशों में भी ये सब चीज़ें बहुत कम मायने रखती हैं सिवाय आर्थिक हित के |

हमारा देश एक संक्रमण काल से गुजर रहा है | ऐसी स्थिति में आम आदमी में इस प्रकार का विरोध और संघर्ष होना विचारों की परिपक्वता को दिखाता है | आज आवाजे उठ रहीं हैं कल इन पर कार्यवाही भी होगी | ये तो विकास के चरण हैं इसमें जो आगे आता है हम उनका समर्थन या विरोध कर देतें हैं | हम में से बहुत लोग भ्रष्टाचार के मामले में बाबा का साथ देना चाहेंगे पर व्यक्तिगत तौर पर उनका विरोध भी करेंगें |
अब सवाल है की हमें क्या करना है तो इतना तो स्पष्ट है की भ्रष्टाचार के मामले में एक जुट होकर कुछ तो बदलाव कर सकतें हैं |
आगे यदि ये साबित हो जाए की खुद रामदेव भी इस मामले में दोषी हैं तो उनका बहिष्कार भी किया जा सकता है |
फिलहाल तो हमें ये करना चाहिए की कोई यदि चाँद दिखा रहा है तो हम चाँद को देखें न की उंगली !!
__________________
ये दिल तो किसी और ही देश का परिंदा है दोस्तों ...सीने में रहता है , मगर बस में नहीं ...
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Old 13-06-2011, 11:07 PM   #40
jai_bhardwaj
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Default Re: बाबा राम देव का सत्त ग्रहण आनदोलन

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Originally Posted by kumar anil View Post
फर्क तो होता ही है और वो हम सब भली भाँति जानते हैँ । अपनी लोकप्रियता को कैश करने के लिये जब बाबा राजनीति का दामन थामने लगते हैँ तो नेता और बाबा मेँ क्या फर्क है । ------------ बाबा मेँ क्रान्ति की तासीर तो है मगर मदांध मेँ हड़बड़ाने और डंडोँ से खौफजदा होने का स्वभाव उन्हेँ पीछे ढकेल गया और नेपथ्य मेँ रह गया खिसियाया हुआ पिपहरी नाद । जनता का आर्तनाद न जाने कहाँ गुम हो गया । शायद यही उसकी नियति है , कल भी और आज भी ......
इस विषय में मेरे विचारों के एक एक शब्द इस वक्तव्य में सम्मिलित हैं / धन्यवाद अनिल भाई /
यदि अब भी स्वामी जी अपने खोल में नहीं लौटे तो निश्चित ही भविष्य में उन्हें पराभव और अपमान का सामना करना पड़ सकता है /
उनका यह दंभ कि 'लाखों की संख्या में उन्हें योग गुरु मानने वाले लोग उनकी महत्वाकांक्षा को फलीभूत करेंगे' गंगा में बह गया है /बाबा के लगातार बदलते वक्तव्य उनकी राजनैतिक अकुशलता और वैचारिक दोष को प्रकट करते हैं /बाबा एक अच्छे योग गुरु हैं / उन्हें योग सिखाते रहना और दवाएं बेचते रहना चाहिए /
निकट भविष्य में उनपर आने वाली जांचों में कुछ चौकाने वाले तथ्य उजागर हो सकते हैं / हमें सच की प्रतीक्षा है /
धन्यवाद /
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
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