02-07-2014, 06:08 PM | #21 |
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Re: कुछ अधूरी कहानिया :.........
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02-07-2014, 06:21 PM | #22 |
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Re: कुछ अधूरी कहानिया :.........
काश इस तरह के हत्याकांड के लिए हमारें देश में अभी तक कोंई सज़ा होतीं ?........
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03-07-2014, 10:39 AM | #23 |
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Re: कुछ अधूरी कहानिया :.........
आज़ादी
साभार: सुरभि सलोनी आठ साढ़े आठ का समय है। मां चूल्हे बैठी पत्थर उबाल रही है। जिससे बच्चे फरेब खाकर सो जाएं। मेरी मां का नाम करुणा है मालूम नहीं मेरे नानाजी ने क्या सोचकर यह नाम रखाथा। मणिमाला मेरी छोटी बहन है। वह बापू के साथ बैठकर आजादी की कहानी सुन रही है। कैसे हमारे दादा-परदादा ने देश को आजाद कराया था। मेरे तीन छोटे भाई हैं। एक नाम शेखर है । उसकी उम्र 10 साल है ।दूसरा भाई अब्दुल है । वह सात साल का है ।तीसरे की उम्र दो साल है उसका नाम सुखदेव है। उसे हम प्यार से सुख पुकारते हैं। अरे यह तीनों आजादी के महारथी फरेब खाकर सो गए। मां ने देखा तो अश्रुओं की धार बह गयी। मां ने चूल्हे में पानी डालकर चूल्हा बुझा दिया। सब वहीं सो गए। सुबह आंख खुली तो देखा मणिमाला आंगन में गोबर का लेप लगा रही थी। तीन महारथी सो ही रहे थे। दद्दू पूजा कर रहे थे, वह सुभाषचंद्र बोस की ही पूजा करते हैं। मां कुएं से पानी भरने गई है। बापू मजदूरी करने जा रहे थे कि अचानक आवाज आई, “शिवा बाहर आ”। यह आवाज हमारे गांव के पुलिस चौकी के हवलदार गोवर्धन की थी। पहले हमारे मकान के पास ही रहता था। मकान क्या हमारी तरह कच्चा झोपड़ा ही था, लेकिन जब से हवलदार बना तो पैसे की जैसे वर्षा होने लगी है। एक बुलेट भी ले ली है, कहता है अगर शहर में होता तो आमदनी के स्रोत होते इन भूखे नंगे से क्या लूं। जो सरकार भेजती है उससे ही गुजारा करना पड़ता है। बापू और दद्दू बाहर गए और कहा, “जी हुजूर” । हवलदार – “हुजूर के बच्चे, आज थाने आ जाना, वरना साहब इतना मारेंगे कि सात पुश्तें याद रखेंगी। बेवकूफ कहीं का- गधे का बच्चा ..... अच्छा एक रुपया दे” । “नहीं है साहब”। >>>
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03-07-2014, 10:40 AM | #24 |
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Re: कुछ अधूरी कहानिया :.........
हवलदार- “भिखारी कहीं का, कभी पैसे भी होते हैं?” और फिर बड़बड़ाता हुआ चला गया।
बापू और दद्दू पुलिस चौकी गए । वहां से लौटे तो माथे से खून बह रहा था- मैंने पूछा क्या हुआ- तो बापू ने कहा कुछ नहीं, साहब ने कहा है कि आज टी.वी. वाले सवाल जवाब करने गांव आ रहे हैं- पूछें कि नेताजी आए थे तो कहना हां। और हमारे दुख दर्द पूछे। नेताजी बहुत अच्छे हैं, कुछ भी सवाल करें तो हां में ही कहना। गलती से भी ना न निकले। और नेताजी की तारीफ करना। दद्दू कहां हैं, उन्हें और 10-15 जनों को चोरी के इल्जाम में हवालात में बंद कर दिया। कहीं जोश में आकर उल्टा-सीधा न बोल दें। फिर दोपहर में टी.वी. वाले आए और आसपास के लोगों से सवाल करने लगे- कुछ देर बाद हमसे सवाल करने भी आए। हमारी मां से पूछा आपका नाम क्या है? मां ने कहा करुणा।क्या नेताजी यहां आए थे? जी हां साहब, वही हम गरीबों के सहारा हैं। नेताजी ने अपने भाषण में कहा था कि भारत के 64 साल आजादी के पूरे होने पर हमने बहुत विकास किया है, हर गांव में खाना पहुंच गया है। हमने गांव के लिए 50 करोड़ रुपए दिए हैं। तो क्या आपको दोनों समय भरपेट खाना मिलता है? जी हां साहब। यह सुनते ही मेरा छोटा भाई बोला आप हर दिन भर पेट खाना खाती हैं- हमें तो नहीं देती। मैंने भाई के मुंह पर हाथ रख दिया। बच्चा है हुजूर। अच्छा-अच्छा आपको पता है, अब आपको आजाद हुए 66 साल हो गए हैं। अब आप स्वतंत्र हैं। आपको किसी से खौफ खाने की जरूरत नहीं है। जी हैं साहब न जाने टीवी वालों ने क्या दिखा दिया कि रात में पुलिस चौकी से हवलदार आए और मां बापू को ले गए। सुबह होने पर मां की लाश कुएं में मिली और बापू की खेत में। टीवी वाले साहब ने ठीक कहा था अब हमें किसी से डरने की जरूरत नहीं है। हम आजाद हैं । शायद इसीलिए ही मेरे मां- बापू को 66 साल की आजादी पर हर दिन की कैद से आजाद कर दिया है। हम सब खुश हैं कि आजाद देश में गुलामों को भी आजाद कर दिया जाता है। **
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10-07-2014, 10:51 PM | #25 |
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12-07-2014, 05:40 PM | #26 |
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Re: कुछ अधूरी कहानिया :.........
बेहतरीन सूत्र.
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03-10-2014, 06:37 PM | #27 |
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03-10-2014, 06:44 PM | #28 |
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Re: कुछ अधूरी कहानिया :.........
अधूरी कहानिया :
लहु मे गर्क़ अधूरी कहानिया निकली, दहन से टूटी हुई सुर्ख चूड़िया निकली । खुदा का शुक्र के इस अह्दे बे लिबासी मे, ये कम नहीं के दरख्तो मे पत्तिया निकली। वो बच सकी न कभी बुल्हवस परिन्दो से, हिसारे आब से बाहर जो मछ्लिया निकली। मसल दिया था सरे शाम एक जुग्नु को, तमाम रात ख़यालों से बिजलिया निकली। वो एक चराग़ जला, और वो रौशनी फैली, वो राहज़नी के इरादे से आन्धिया निकली। मै जिस ज़मीन पा सदियो फिरा किया तनहा, उसी ज़मीन से कितनी ही बस्तिया निकली । जहा मुहाल था पानी का एक क़तरा भी, वहा से टूटी हुयी चन्द कश्तिया निकली। चुरा लिया था हवेली का एक छुपा मन्ज़र, इसी गुनाह पर आँखों से पुतलियाँ निकली। यही है क़स्रे मोहब्बत कि दास्ताँ ”काज़िम”, गिरी फ़सील तो इंसा कि हड्डिया निकली ।। "काज़िम जरवली" ______________________________________________
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05-10-2014, 11:11 PM | #29 | |
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