17-09-2011, 01:10 PM | #61 |
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Re: प्रणय रस
कोई मौसम तुम सा आए
धरती का ये जीवन दुष्कर देख देख प्रियतम वो अम्बर झर झर नीर बहाए कोई मौसम तुम सा आए उठे गंध वह भीना भीना जैसे ओढ़े आंचल झीना धरा प्रणय रस सिक्त अघाये कोई मौसम तुम सा आए आए चुपके से कुछ अक्सर जैसे शरद उंगलियों में भर नटखट सखी गुदगुदा जाए कोई मौसम तुम सा आए या जैसे रक्तिम पलाश वन अमलतास के स्वर्णिम तरुवर धरती का आंचल रंग जाए कोई मौसम तुम सा आए
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Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..." click me
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25-09-2011, 07:33 PM | #62 |
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Re: प्रणय रस
ढलक रही है तन के घट से, संगिनी जब जीवन हाला,
पत्र गरल का ले जब अंतिम साकी है आनेवाला, हाथ स्पर्श भूले प्याले का, स्वाद सुरा जीव्हा भूले कानो में तुम कहती रहना, मधु का प्याला मधुशाला। |
25-09-2011, 07:35 PM | #63 |
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Re: प्रणय रस
मेरे अधरों पर हो अंतिम वस्तु न तुलसीदल प्याला
मेरी जीव्हा पर हो अंतिम वस्तु न गंगाजल हाला, मेरे शव के पीछे चलने वालों याद इसे रखना राम नाम है सत्य न कहना, कहना सच्ची मधुशाला। |
25-09-2011, 07:36 PM | #64 |
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Re: प्रणय रस
और चिता पर जाये उंढेला पत्र न घ्रित का, पर प्याला
कंठ बंधे अंगूर लता में मध्य न जल हो, पर हाला, प्राण प्रिये यदि श्राध करो तुम मेरा तो ऐसे करना पीने वालों को बुलवा कर खुलवा देना मधुशाला। |
25-09-2011, 07:37 PM | #65 |
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Re: प्रणय रस
नाम अगर कोई पूछे तो, कहना बस पीनेवाला
काम ढालना, और ढालना सबको मदिरा का प्याला, जाति प्रिये, पूछे यदि कोई कह देना दीवानों की धर्म बताना प्यालों की ले माला जपना मधुशाला। |
25-09-2011, 07:38 PM | #66 |
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Re: प्रणय रस
ज्ञात हुआ यम आने को है ले अपनी काली हाला,
पंडित अपनी पोथी भूला, साधू भूल गया माला, और पुजारी भूला पूजा, ज्ञान सभी ज्ञानी भूला, किन्तु न भूला मरकर के भी पीनेवाला मधुशाला। |
25-09-2011, 07:39 PM | #67 |
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Re: प्रणय रस
यम ले चलता है मुझको तो, चलने दे लेकर हाला,
चलने दे साकी को मेरे साथ लिए कर में प्याला, स्वर्ग, नरक या जहाँ कहीं भी तेरा जी हो लेकर चल, ठौर सभी हैं एक तरह के साथ रहे यदि मधुशाला। |
25-09-2011, 07:40 PM | #68 |
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Re: प्रणय रस
पाप अगर पीना, समदोषी तो तीनों - साकी बाला,
नित्य पिलानेवाला प्याला, पी जानेवाली हाला, साथ इन्हें भी ले चल मेरे न्याय यही बतलाता है, कैद जहाँ मैं हूँ, की जाए कैद वहीं पर मधुशाला। |
25-09-2011, 07:41 PM | #69 |
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Re: प्रणय रस
शांत सकी हो अब तक, साकी, पीकर किस उर की ज्वाला,
'और, और' की रटन लगाता जाता हर पीनेवाला, कितनी इच्छाएँ हर जानेवाला छोड़ यहाँ जाता! कितने अरमानों की बनकर कब्र खड़ी है मधुशाला। |
25-09-2011, 07:42 PM | #70 |
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Re: प्रणय रस
जो हाला मैं चाह रहा था, वह न मिली मुझको हाला,
जो प्याला मैं माँग रहा था, वह न मिला मुझको प्याला, जिस साकी के पीछे मैं था दीवाना, न मिला साकी, जिसके पीछे था मैं पागल, हा न मिली वह मधुशाला!। |
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