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Old 13-12-2014, 07:10 PM   #41
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देखना



है



जीता जागता



नरक


का



द्वार


.


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तुमने मजबूर किया हम मजबूर हो गये ,...

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Old 13-12-2014, 07:14 PM   #42
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नरक का दरवाज़ा


(डोर टू हेल)



तुर्कमेनिस्तान
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Old 13-12-2014, 07:15 PM   #43
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Default Re: अनसुलझे रहस्य

230 फीट चौड़े


65 फीट गहरे



क्रेटर में



42 सालों से



लगातार



जल रही है



आग
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Old 13-12-2014, 07:16 PM   #44
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हमारी पृथ्वी बहुत ही अजूबों से भरी हुई है। ऐसा ही एक अजूबा है "डोर टू हेल" या नरक का दरवाज़ा जो कि तुर्कमेनिस्तान के दरवेज़े गाँव में स्तिथ है। दरवेज़े एक पर्सियन शब्द है जिसका हिंदी में अर्थ होता है फाटक या दरवाज़ा। इस गाँव में एक 230 फीट चौड़ा क्रेटर या खढ्ढा है जिसमे कि 1971 से अब तक लगातार प्राकर्तिक रूप से आग जल रही है। इस क्रेटर के बनने कि कहानी भी बड़ी रोमांचक है।
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Old 13-12-2014, 07:23 PM   #45
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Default Re: अनसुलझे रहस्य

रात के समय डोर टू हेल





यहाँ है ...ये जीता जागता नरक ...





1971 में पूर्व सोवियत संघ के वैज्ञानिक इस डेजर्ट एरिया में आयल और गैस कि खोज करने के लिए आये उन्होंने दरवेज़े गाँव के पास स्तिथ इस जगह को ड्रिलिंग के लिए चुना। उन्होंने यहाँ सेटअप लगाकर ड्रिलिंग शुरू करी। पर ड्रिलिंग शरू करने के कुछ देर बाद यह जगह ढह (Collapsed) गयी और यहाँ पर 230 फीट चौड़ा और 65 फीट गहरा क्रेटर बन गया। इस दुर्घटना में कोई जन हानि तो नहीं हुई पर इस क्रेटर से बहुत ज्यादा मात्रा में मीथेन गैस निकलने लगी। मीथेन गैस एक ग्रीनहाउस गैस है जिसका कि वातावरण और मानव दोनों पर प्रतिकूल असर होता है। इसिलए इस मीथेन गैस को बाहर निकलने से रोकना जरूरी था। इसके दो विकल्प थे या तो इस क्रेटर को बंद किया जाय या फिर इस मीथेन गैस को जला दिया जाए। पहला तरीका बेहद ही खर्चीला और समय लगने वाला था। इसलिए वैज्ञानिकों ने दूसरा तरीका अपनाया और इस क्रेटर में आग लगा दी। उनका सोचना था कि कुछ एक दिन में सारी मीथेन गैस जल जाएंगी और आग स्वतः ही बुझ जाएंगी। पर वैज्ञानिकों का यह अंदाजा गलत निकला तब कि लगी आग आज 42 साल बाद भी जल रही है इससे आप अंदाजा लगा सकते है कि उस जगह मीथेन का कितना विशाल भण्डार है।


क्लोज अप ऑफ़ डोर टू हेल





बन चूका है टूरिस्ट स्पॉट (Now it is Tourist spot) :-


"डोर टू हेल", तुर्कमेनिस्तान का एक प्रमुख टूरिस्ट आकर्षण बन चूका है। इस जगह कि पूरी भव्यता रात के समय ही दिखती है जब कई किलोमीटर दूर से भी इस जगह के ऊपर सुनहरी आभा नज़र आती है, दिन में सूरज कि रोशनी में यह दूर से एक आम क्रेटर ही नज़र आता है।





हो चुकी है बंद करने कि घोषणा (May be Cleanup):-


सन 2010 में तुर्कमेनिस्तान के नेता Berdimuhamedow ने इस क्रेटर को बंद करने के आदेश दिए ताकि इस क्षेत्र में तेल और गैस का उत्खनन किया जा सके पर शायद वितीय समस्या के कारण इसे अब तक अमल में नहीं लाया जा सका है और "डोर टू हेल" लगातार जल रहा है।





डोर टू हेल का विडियो (Video of Door to Hell) :-



https://www.youtube.com/watch?v=_toN...layer_embedded


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Old 13-12-2014, 08:30 PM   #46
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Default Re: अनसुलझे रहस्य

रात को इस मंदिर में रुकने वाले जीवित नहीं बचते !




भोपाल। भारत यूं तो विविधताओं का देश है, लेकिन इस धरा पर भी कई ऐसी जगह हैं, जो आश्चर्यचकित करने के साथ-साथ डराती भी हैं। इन जगहों में छिपे रहस्यों का अभी तक खुलासा नहीं हो सका है। रहस्य भी ऐसे, जिस पर एकबारगी विश्वास करना मुश्किल होता है। इनमें कई स्थान ऐसे हैं जो विज्ञान को भी चुनौती देते हैं।

पौराणिक मान्यताएं हों या प्रकृति के अनूठी रचना, इन स्थानों को देश के रहस्यमयी इलाकों में गिना जाता है। समय-समय पर इनकी चर्चाएं भी होती हैं, लेकिन आखिरकार नतीजा कुछ नहीं निकल पाता। वास्तविक सच अनसुलझा ही रहता है।
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Old 13-12-2014, 08:33 PM   #47
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Default Re: अनसुलझे रहस्य

तिब्बत का यमद्वार- जहां रात में रुकने वाला नहीं मिलता जिंदा




चीन के स्वायत्त क्षेत्र तिब्बत में दारचेन से 30 मिनट की दूरी पर है यह यम का द्वार। ये पवित्र कैलाश पर्वत के रास्ते में पड़ता है। हिंदू मान्यता अनुसार, इसे मृत्यु के देवता यमराज के घर का प्रवेश द्वार माना जाता है। यह कैलाश पर्वत की परिक्रमा यात्रा के शुरुआती प्वाइंट पर है। तिब्बती लोग इसे चोरटेन कांग नग्यी के नाम से जानते हैं, जिसका मतलब होता है दो पैर वाले स्तूप।

ऐसा कहा जाता है कि यहां रात में रुकने वाला जीवित नहीं रह पाता। ऐसी कई घटनाएं हो भी चुकी हैं, लेकिन इसके पीछे के कारणों का खुलासा आज तक नहीं हो पाया है। साथ ही यह मंदिर नुमा द्वार किसने और कब बनाया, इसका कोई प्रमाण नहीं है। ढेरों शोध हुए, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल सका।






अंधेरा होते ही खुद-ब-खुद बंद हो जाता है यह मंदिर-

वृंदावन का यह मंदिर अपने आप में आज भी रहस्य समेटे हुए हैं। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण एवं श्रीराधा आज भी आधी रात के बाद रास रचाते हैं। रास के बाद निधिवन परिसर में स्थापित रंग महल में शयन करते हैं। रंग महल में आज भी प्रसाद के तौर पर माखन मिश्री रोजाना रखा जाता है। सोने के लिए पलंग भी लगाया जाता है। सुबह जब आप इन बिस्तरों को देखें, तो साफ पता चलेगा कि रात में यहां जरूर कोई सोया है और प्रसाद भी ग्रहण कर चुका है। इतना ही नहीं, अंधेरा होते ही इस मंदिर के दरवाजे अपने आप बंद हो जाते हैं। इसलिए मंदिर के पुजारी अंधेरा होने से पहले ही मंदिर में पलंग और प्रसाद की व्यवस्था कर देते हैं।

मान्यता के अनुसार, यहां रात के समय कोई नहीं रहता है, इंसान छोड़िए, पशु-पक्षी भी नहीं। ऐसा बरसों से लोग देखते आए हैं, लेकिन रहस्य के पीछे का सच धार्मिक मान्यताओं के सामने छुप-सा गया है। यहां के लोगों का मानना है कि अगर कोई व्यक्ति इस परिसर में रात में रुक जाता है, तो वह तमाम सासारिक बंधनों से मुक्त होकर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।
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क्या अब भी जिंदा भटक रहे हैं अश्वत्थामा-

महाभारत के अश्वत्थामा याद हैं आपको। कहा जाता है कि अश्वत्थामा का वजूद आज भी है। दरअसल, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने निकले अश्वत्थामा को उनकी एक चूक भारी पड़ी और भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें युगों-युगों तक भटकने का श्राप दे दिया। ऐसा कहा जाता है कि पिछले लगभग पांच हजार वर्षों से अश्वत्थामा भटक रहे हैं।
मध्यप्रदेश के बुरहानपुर शहर से 20 किमी दूर असीरगढ़ का किला है। कहा जाता है कि इस किले में स्थित शिव मंदिर में अश्वत्थामा आज भी पूजा करने आते हैं। स्थानीय निवासी अश्वत्थामा से जुड़ी कई कहानियां सुनाते हैं। वे बताते हैं कि अश्वत्थामा को जिसने भी देखा, उसकी मानसिक स्थिति हमेशा के लिए खराब हो गई। इसके अलावा कहा जाता है कि अश्वत्थामा पूजा से पहले किले में स्थित तालाब में नहाते भी हैं।

बुरहानपुर के अलावा मप्र के ही जबलपुर शहर के गौरीघाट (नर्मदा नदी) के किनारे भी अश्वत्थामा के भटकने का उल्लेख मिलता है। स्थानीय निवासियों के अनुसार, कभी-कभी वे अपने मस्तक के घाव से बहते खून को रोकने के लिए हल्दी और तेल की मांग भी करते हैं। इस संबंध में हालांकि स्पष्ट और प्रमाणिक आज तक कुछ भी नहीं मिला है।
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समुद्र के नीचे श्रीकृष्ण की नगरी द्वारिका-


गुजरात के तट पर भगवान श्रीकृष्ण की बसाई हुई नगरी यानी द्वारिका। इस जगह का धार्मिक महत्व तो है ही, रहस्य भी कम नहीं है। कहा जाता है कि कृष्ण की मृत्यु के साथ उनकी बसाई हुई यह नगरी समुद्र में डूब गई। आज भी यहां उस नगरी के अवशेष मौजूद हैं। लेकिन प्रमाण आज तक नहीं मिल सका कि यह क्या है। विज्ञान इसे महाभारतकालीन निर्माण नहीं मानता।

काफी समय से जाने-माने शोधकर्ताओं ने यहां पुराणों में वर्णित द्वारिका के रहस्य का पता लगाने का प्रयास किया, लेकिन वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित कोई भी अध्ययन कार्य अभी तक पूरा नहीं किया गया है। 2005 में द्वारिका के रहस्यों से पर्दा उठाने के लिए अभियान शुरू किया गया था। इस अभियान में भारतीय नौसेना ने भी मदद की।अभियान के दौरान समुद्र की गहराई में कटे-छटे पत्थर मिले और यहां से लगभग 200 अन्य नमूने भी एकत्र किए, लेकिन आज तक यह तय नहीं हो पाया कि यह वही नगरी है अथवा नहीं जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने बसाया था। आज भी यहां वैज्ञानिक स्कूबा डायविंग के जरिए समंदर की गहराइयों में कैद इस रहस्य को सुलझाने में लगे हैं।

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बंगाल में भूतों की रहस्यमयी रोशनी-

प.बंगाल के दलदली इलाकों में कई बार रहस्यमयी रोशनी देखे जाने की जानकारी मिली थी। स्थानीय लोगों के मुताबिक, यह उन मछुआरों की आत्माएं हैं, जो मछली पकड़ते वक्त किसी वजह से मर गए थे। लोग इन्हें भूतों की रोशनी भी कहते हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि जिन मछुआरों को यह रोशनी दिखती है, वे या तो रास्ता भटक जाते हैं या ज्यादा दिन जिंदा नहीं रह पाते। इन दलदली क्षेत्रों से कई मछुआरों की लाशें भी मिली हैं, लेकिन स्थानीय प्रशासन यह मानने को तैयार नहीं कि यह भूतों के चलते ऐसा हुआ। उनके मुताबिक, मछुआरों के साथ अक्सर ऐसी दुर्घटनाएं होती रहती हैं। हालांकि अभी तक इस रहस्य से भरी गुत्थी सुलझ नहीं पाई है।

वैज्ञानिकों को अंदेशा है कि दलदली क्षेत्रों में अक्सर मीथेन गैस बनती है और वे किसी तत्व के संपर्क में आने से रोशनी पैदा करती हैं।
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