13-01-2015, 05:56 PM | #41 |
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Re: मां
एक बेटे की आत्मकथा के कुछ अंषः--साभार 1) मेरा जन्म एक गरीब परिवार में हुआ। घर में खाने का अभाव ही रहता था। जब भी, जितना खाना माँ बनाती, अपने हिस्से का बहुत सा भाग मुझे दे देती थी। जब मेरी थाली में खाना परोस रही होती तो थोड़ा-थोड़ा खाना मेरी थाली में और डालती रहती और ले लो, मुझे भूख नहीं है। यह माँ का पहला झूठ था । 2) जैसे ही मैं व्यस्क हुआ, माँ अपने खाली समय में घर के पास ही नदी पर मछलियाँ पकड़ने चली जाती थी। माँ, मुझे पौष्टिक भोजन थोड़ा ज्यादा देना चाहती थी। जितनी भी मछलियाँ मिलती, वह चाहती थी कि मुझे ज्यादा दें। एक बार माँ ने दो ही मछलियाँ पकड़ी थी। माँ ने उन मछलियों का शोरबा बनाया । जब मैं शोरबा पी रहा था, माँ मेरे पास ही बैठी थी और बचा खुचा भोजन खा रही थी, मुझे बुरा लगा। मैं बहुत दुखी हुआ। मैनें माँ को भी शोरबा देना चाहा ताकि वह भी कभी कुछ पौष्टिक खा लिया करें। परन्तु माँ ने फौरन मना कर दिया, कहा ‘‘बेटा, मछली का शोरबा अच्छा नहीं लगता । यह माँ का दूसरा झूठ था । 3) उच्चा षिक्षा पर काफी खर्च होता है, इस खर्च को पूरा करने के लिए माँ माचिस की फैक्ट्री से इस्तेमाल की गई खाली डिब्बियां ला कर उनमें माचिस की तीलियां भरती थी। इससे थोड़ी सी आमदनी हो जाती थी और उससे घर का गुजारा चलता था। एक भयंकर सर्दी की रात जब मैं जागा तो देखा, माँ मोमबत्ती की रोषनी से माचिस की तीलियां भर रही थी। मैनंे कहा, माँ सो जाओ, रात बहुत हो चुकी है। बाकी काम कल कर लेना। माँ हंस कर बोली, तुम सो जाओ, मैं अभी थकी नहीं हूँ । यह माँ का तीसरा झूठ था । जब मुझे अपनी फाइनल परीक्षा के लिए बैठना था, मेरी माँ साथ गई। सूयास्त होने पर भी मेरी माँ घंटो भीष्म गर्मी में प्रतीक्षा कर रही थी। जब घंटी बजी, मैं दौड़ कर माँ के पास गया। माँ ने मुझे छाती पर लगा कर प्यार किया और थरमॅस से नींबू पानी निकाल कर दिया। नींबू पानी से अधिक मेरे लिए माँ का वात्सल्य जरूरी था। माँ को पसीने में लथपथ देख कर, मैंने अपने गलास से नींबू पानी दिया ताकि वह भी कुछ प्यास बुझा ले। माँ ने कहा, ‘बेटा ! तुम पी लो, मुझे प्यास नहीं है। यह माँ का चैथा झूठ था । 5) मेरे पिता के स्वर्गवास होने के बाद माँ को एकल माता-पिता की भूमिका निभानी पड़ रही थी। जिस दफतर में माँ काम करती थी, वहीं काम जारी रखा क्यों कि उसके बिना हमारे घर का गुजारा नहीं हो सकता था। हमारे परिवार की व्यवस्था काफी पेचीदा थी। हमनें भूख के दिन भी देखे थे। हमारे परिवार के बिगड़ते हालात देख कर मेरे चाचा जो पास ही रहते थे, हमारी सहायता के हमें मिलने आए ताकि हमारी छोटी-बड़ी समस्याओं का समाधान कर सकें। हमारे पड़ोसी हमारी गरीबी की हालत से परिचित थे। उनमें से एक ने सलाह भी दी कि मेरी माँ दुबारा शादी कर लें। किन्तु मेरी माँ ने साफ इंकार कर दिया, यह कह कर कि उसे किसी सहारे की जरूरत नहीं है। यह माँ का पांचवा झूठ था । 6) मेरी पढ़ाई खत्म होने के बाद मुझे अच्छी नौकरी मिल गई और यही उचित समय था कि मेरी मां काम से निवृत हो जाए परन्तु वह रोज़ बाज़ार जाती थी और एकसटरा काम करती । मैं उसे पैसे भेजता, लेकिन वह अटल रही, मुझे पैसे वापस भेज देती थी। वह कहती थी, मेरे पास काफी पैसे हैं। यह माँ का छटवा झूठ था। 7) मैंने अपनी पार्ट टाइम स्नातोकतर की पढ़ाई जारी रखी। मैं एक अमरीकन कम्पनी के लिए काम करता था। उन्होनें मेरी पढ़ाई का खर्चा भी उठाया । मैं परीक्षा में सफल रहा । वेतन भी काफी मिलता था। मैनें फैसला किया कि माँ को अमरीका साथ ले जाऊं ताकि वह भी वहां आराम की जिंदगी जी सके। लेकिन मेरी माँ मुझे कष्ट नहीं देना चाहती थी । उसने कहा ‘‘मैं हाई सोसाइटी में नहीं रह सकती’’ । यह माँ का सातवां झूठ था। माँ मुझे बहुत प्यार करती थी। माँ को कंेसर हो गया और उसे अस्पताल में भर्ती करवा दिया गया । मैं अब विदेष में थ, अपनी माँ को मिलने स्वदेष आया क्यों वह रोग पीडि़त थी और आॅपरेषन के बाद काफी कमजोर हो चुकी थी और चल फिर नहीं सकती थी। माँ मुस्काराने का प्रयास कर रही थी, परन्तु मैं बहुत उदास था। माँ ने कहा ‘‘बेटा, उदास मत हो, मुझे कोई पीड़ा नहीं है। यह माँ का आठवां झूठ था। हाँ, मेरी माँ सचमुच एक देवी का रूप था । जिस की माँ उस के साथ है, वह भाग्यषाली है। जिस की माँ नहीं है, वह उसकी यादों का सहारा लें, बीते पलों को याद करें। माँ के ऋण से उऋण नहीं हुआ जा सकता । माता का हृदय एक स्नेहपूर्ण निर्झर है जो सृष्टि के आदि से अनवरत झरता हुआ मानवता का सिंचन कर है। इसी पृथ्वी पर देवी तत्व का एक मात्र प्रतीक मातृत्व है। उसके प्रति उच्चकोटि की श्रद्धा रखें बिना देवत्व की पूजा एवं साधना नहीं हो सकती। मातृरूपा नारी को हम बार-बार नमन करते हैं। मनुष्य जीवन की सभी संभावनाओं के मूल में माँ का असीम प्यार, उसका त्याग, उसकी महान सेवाएं ही निहित है। माँ महान है और कोई भी शब्द माँ की तुलना नही कर सकता सिवा खुद माँ शब्द के आँखों में वास्तविक आंसुओ के साथ देव
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************************************ मेरी चित्रशाला : दिल दोस्ती प्यार ....या ... . तुमने मजबूर किया हम मजबूर हो गये ,... तुम बेवफा निकले हम मशहूर हो गये .. एक " तुम " और एक मोहब्बत तेरी, बस इन दो लफ़्ज़ों में " दुनिया " मेरी.. ************************************* |
13-01-2015, 06:02 PM | #42 |
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13-01-2015, 06:02 PM | #43 |
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13-01-2015, 06:03 PM | #44 |
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13-01-2015, 06:03 PM | #45 |
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13-01-2015, 06:03 PM | #46 |
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13-01-2015, 06:04 PM | #47 |
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13-01-2015, 06:05 PM | #48 |
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13-01-2015, 06:06 PM | #49 |
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आज फिर अल्लसुबह
उसी तुलसी के विरवा के पास केले के झुरमुटों के नीचे पीताम्बर ओढ़े वो औरत नित्य की भांति दियना जला रही थी ! मै मिचकती आँखों से उसे देखने में रत था , वो साधना वो योग वो ध्यान वो तपस्या, उस देवी के दृढ संकल्प के आगे नतमस्तक थे ! वो नित्य अपनी प्रतिज्ञा पर अडिग थी और मैं अनभिज्ञ अपनी दलान से, उसे मौन देखता था ! आखिर एक दिन मैंने अपना मौन व्रत तोड़ दिया हठात पूछ पडा यह सब क्या है…? क्यों है? उसने गले लगा कर कहा , सब तुम्हारे लिए और यह तथ्य मेरे ज्ञानवृत्त के परे था ! किन्तु इतना सुनते ही मेरा सर भी नत हो गया ! उस तुलसी के बिरवे पर नहीं , उस केले के झुरमुट पर नही उस ज्योतिर्मय दियने पर भी नहीं …. मेरा सर झुका और झुका ही रह गया उस देवी के देव तुल्य चरणों पर ! उसके चिरकाल की तपस्या का फल , मुझे उसी पल मिलता नज़र आया क्योंकि…. परहित में किसी को , कठोर साधना घोर तपस्या सर्वस्व न्योछावर करते प्रथम दृष्टया देखा था ! अपनी दिनचर्या के प्रति अडिग वो औरत मेरी माँ थी …मेरी माँ ! उस अल्पायु में मै माँ शब्द को बहुत ज्यादा नहीं जान पाया था , पर, उस दिन के अल्प संवाद ने माँ शब्द को परिभाषित किया और मै संतुष्ट था ! मुझे माँ की व्याख्या नहीं परिभाषा की जरुरत थी माँ की व्याख्या इतनी दुरूह है कि मै समझ नहीं पाता ! पर मै संतुष्ट था संतुष्ट हूँ ! नत था आज भी नत हूँ ! उसके चरणों में उसके वंदन में उसके अभिनन्दन में उसके आलिंगन में उसके दुलार भरे चुम्बन में !!!!! -शिवानन्द द्विवेदी “सहर”
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माँ, माता है अनमोल, mother |
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