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Old 15-10-2013, 06:51 PM   #1
rajnish manga
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Default सनक, ना चीन्है ठांव-कुठांव

सनक, ना चीन्हैठांव-कुठांव

ओमप्रकाश कश्यप

उस समय भी वे सनकाए हुए थे. सनक की खनक के साथ-साथ यात्रा आगे बढ़ रही थी. मंत्री जी नई सनक थी पागलों के बीच भाषण देकर उन्हें अपना बनाने की. देश में पागलों की संख्या कम नहीं. कवि-कलाकार और दूसरे ऐसे ही संस्कृति-कर्मियों, सरकार से लोककल्याण की अपेक्षा रखने वालों तथा इन मुद्दों पर सरकार के विरुद्ध आंदोलन छेड़ने वालों को सरकार वैसे ही पागलों की गिनती में रखती है. इन लोगों को अपना बना लेना, उन्हें अपनी सरकार के पक्ष में लाने से न केवल पार्टी हाईकमान को खुश किया जा सकता था, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रशंसा बटोरी जा सकती थी. कार्यक्रम की शुरुआत से पहले उन्होंने हमेशा की तरह उसकी चर्चा एक पत्रकार सम्मेलन में की. उस समय एक सिरफिरे ने तपाक से सलाह दी कि उन्हें अपना अभियान संसद-भवन से शुरु करना चाहिए. मंत्री जी उस पत्रकार को विरोधियों का जासूस कहकर निकलवा दिया. अपने अभियान के श्रीगणेश के लिए राजधानी के पागलों के सबसे बड़े अस्पताल को चुना. हर सनक में उनका साथ निभाने वाला उनका सेक्रेटरी भी उनकी नई सनक को समझ नहीं पा रहा था-

सर पागलों में इतनी अक्ल ही कहां कि आपके भाषणों की गंभीरता को समझ सकें.मन के डर को छिपाते हुए सेकेटरी ने हौले से कहा.
देखते हैं…’

पागलों को वोट देने का अधिकार नहीं होता, सर…’ सेकेटरी ने फिर हतोत्साहित किया.

शहर की दीवारों पर पोस्टर तो चिपक गए हैं?’ मंत्री जी इतने सनकाए हुए थे कि सेक्रेटरी की सलाह गोल कर गए.

पागलों का कोई भरोसा नहीं है. आपको कुछ हो गया तो?’
सारे अखबार वालों को सूचना भेज दी…?’
मैंने पता लगाया है. कई पागल तो हिंसक हैं. वहां आपकी जान को खतरा हो सकता है.
चैनल वालों को भी बता दिया न?’
प्लीज, जाने से पहले एक बार फिर सोच लीजिए सर.
हर कैमरामेन के पीछे अपना आदमी रहना चाहिए. एक भी फोटो खराब न आने पाए…’
वो सब तो ठीक है सर, लेकिन….
चैनलियों से कह देना कि ऐसी-वैसी बात मुंह से निकल जाए तो दबा लें. हम उनका ध्यान रखेंगे.
यस सरकिंतु!सेकेटरी की हिम्मत पस्त होने लगी.
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Old 15-10-2013, 06:58 PM   #2
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Default Re: सनक, ना चीन्है ठांव-कुठांव

ताली बजाने के लिए कितने लोग साथ चल रहे हैं…?’
काफिले की कुल चालीस गाड़ियों में पेंतीस में तालीबाज हैं.सेकेटरी ने हथियार डाल दिए.
बाकी…?’

आजकल इनकी काफी डिमांड हो चली है. पहले हजार भी मांगो तो आध घंटे के भीतर ठेकेदार इंतजाम कर देता था. आजकल दुगुनी कीमत पर भी मंजे हुए तालीबाज नहीं मिलतेइस देश का जाने क्या होगा.
आज का हमारा भाषण इतना लाजवाब होगा कि इनकी जरूरत शायद ही पड़े…’ कत्था-चूना से रंगे दांतों का प्रदर्शन किया मंत्री जी ने. अजीब शौक था उनका. तालियों की आवाज सुनते ही उनकी जवानी वापस लौट आती. उमंगें कुलांच मारने लगतीं. संदेश सुख का या दुःख का, श्रोताओं की सजीव प्रतिक्रिया के बिना वे उसे पढ़ ही नहीं सकते थे.

काफिला अस्पताल पहुंचा. रात-दिन मरीजों को निपटाने वाले डा॓क्टरों की ओर से स्वागत का पक्का इंतजाम था. पागलों के मुखिया ने आगे बढ़कर मंत्रीजी को माला पहनाई. मंत्री जी गदगद. तभी एक पागल जोर से चिल्लाया-


सरदार, अपनों के बीच आपका स्वागत है.

एक दूर खड़े पागल को मंत्री जी का सफेदी से चमचमाता हुआ कुर्ता पसंद आ गया. वह उसी के लिए जिद करने लगा. बड़ी मुश्किल से उसको काबू में लाया गया. तब तक मंत्री की सनक के भी पसीने छूटने लगे थे. आगे की औपचारिकताओं को जल्दी-जल्दी समेटा गया. धोती समेटते हुए मंत्रीजी माइक के आगे पहुंचे तो तालीबाजों ने अपना धर्म निभाया. गला खंखारकर उन्होंने अपने वक्तव्य प्रारंभ कर दिया-
भाइयो और बहनो! मुझे आपके बीच आने की बेहद खुशी है.

मैंने तो पहले ही कह दिया था कि ये हमारे गुरु हैं.एक पागल तालियां बजा-बजाकर चिल्लाने लगा. सारे पागल तालियां बजाने लगे.
मंत्री के साथ आए उनके चेले-चपाटों ने शुरू में ही माहौल बनाने का काम किया. तालियों का एक दनदनाता दौर चला. उसके बाद तालियां सिमटती चली गईं. मैदान मंत्री जी के सनकाने के लिए मैदान खाली छोड़ दिया गया. मंत्रीजी अभी भी मलाल-ग्रस्त थे. वे चाहते थे कि पागलों की ओर से तालियों की गड़गड़ाहट सुनाई दे. पर वहां ठंडापन पसरा हुआ था. मंत्री जी इतनी जल्दी हार मानने वाले भी वे नहीं थे. सो धीरे-धीरे फिर मुंह खोला



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Old 15-10-2013, 07:02 PM   #3
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Default Re: सनक, ना चीन्है ठांव-कुठांव

लोकतंत्र में कोई छोटा या बड़ा नहीं. सब बराबर हैं. सब एक समान हैं. पागलों को तो मैं हमेशा ही अपना करीबी मानता आया हूं, क्यों भाइयो?’
इस बार पागलों को जोश आया. तालियों की शुरुआत हुई. मंत्रीजी का हौसला बढ़ा
, बोले- इस देश में पागलों की कमी नहीं है. इसीलिए मैंने ऐसी सीट को चुना जहां पागलों की संख्या देश की किसी भी दूसरी सीट से ज्यादा है. उन्हीं के दम पर मैं संसद और विधानसभा का चुनाव जीतता रहा हूं. आपमें और मुझमें कोई फर्क नहीं है. सिवाय इसके कि आप इस अस्पताल से बाहर नहीं जा सकते. पर मैं चाहे जहां जाऊं अपने साथ अस्पताल को ले जा सकता हूं. आप झूठ बोलते समय लड़खड़ा जाते हैं. मेरी जुबान सच बोलने में पपड़ा जाती हैआपको वोट देने का अधिकार नहीं. मुझे बूथ लूटने का भी अभ्यास है. कहते समय मंत्रीजी रुके. तालीबाजों ने अपना धर्म निभाया. पागल गंभीर बने रहे. मंत्री जी के चेहरे से भी लगा कि उन्हें मजा नहीं आया. सेकेटरी समझ गया. समझ गया कि मंत्री जी पागलों की ओर से सजीव प्रतिक्रिया चाहते हैं. उसने संकेत से कुछ पागलों को ताली बजाने का निर्देश भी दिया. लेकिन उधर से कोई आवाज नहीं आई. तालीबाजों की कम संख्या होने के कारण वह मन मसोस कर रह गया. मंत्री जी अपने सचिव की ओर मुडे़-

मेरा भाषण तो सही पड़ रहा न!

एकदम झकास!सचिव तपाक से बोला-अर्से बाद आपके मुंह से ऐसा धांसू भाषण निकला है.
आज आप पूरी रंगत में हैं, सरबोलते रहिए..दरबारियों में से एक बोला.
फिर पागल क्यों शांत हैं?’

पागल हैं न सर! आपके भाषण को एकाएक कहां समझ पाएंगे.
फिर तुम्हीं बताओ, हम अपने भाषण में क्या जोड़ें कि इन्हें खुशी मिले.

दरबारी ने कान के पास मुंह ले जाकर कहा-
सर पागलों को कुछ दुनियादारी भी समझाएं.

भाइयो! यह दुनिया एक पागलखाना है. यहां जिन्हें खुले में होना चाहिए वे भीतर दीवारों से बतियाते रहते हैं. और जिन्हें भीतर होना चाहिए वे बाहर मटरगश्ती करते रहते हैं. भाषण झाड़ते हैंऔर जिन्हें बाहर होना चाहिए उन्हें यह सरकार किसी न किसी बहाने अंदर कर देती है…’ मंत्री जी का इतना कहना था कि पागलों की ओर से जोरदार तालियां पड़ने लगीं. सिखाए-पढ़ाए तालीबाज इस बार शांत ही रहे. पागलों को ताली बजाते देख इधर मंत्री जी का हौसला बढ़ा. उधर सेक्रेटरी की बेचैनी. उसने कान में कहा- सर केंद्र में अपनी ही सरकार है.सरकार का नाम सुनते ही मंत्री जी एकाएक सनका गए-
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Old 15-10-2013, 07:04 PM   #4
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Default Re: सनक, ना चीन्है ठांव-कुठांव

ऐसी सरकार को तो गोली मार देनी चाहिए. मैं प्रधानमंत्री बना तो यही करूंगा…’ पागलों की ओर से इस बात पर भी जोरदार तालियां पड़ीं. सेक्रेटरी ने माथा पीट लिया. अस्पताल के अधिकारियों के पांव तले की जमीन खिसकने लगी. मगर मंत्रीजी का जोश बढ़ता ही गया. सनक जो खुली तो खुलती ही गई. जिस समय उनका भाषण पूरा हुआ, पागलों को छोड़कर बाकी सब सकते की हालत में थे.

लौटते समय मंत्री खुश थे और अपनी आज की उपलब्धि पर बल्लियों उछल रहे थे. सेक्रेटरी ने उन्हें पहली बार इतना तनाव मुक्त देखा था.
कैसा रहा मेरा भाषण?’ लौटते समय मंत्री जी ने पूछा. सेक्रेटरी चुप. मंत्री जी ने कार में लगा टेलीविजन चालू करने का आदेश दे दिया. लगभग सभी चैनलों पर एक ब्रेकिंग न्यूज प्रसारित की जा रही थी-

अपनी मजेदार सनकों के लिए मशहूर सरकार के एक मंत्री आज फिर सनका गए. उन्होंने पागलों के बीच जाकर अपनी ही सरकार के विरुद्ध खूब कहा. सरकार का कहना है कि उन्हें मानसिक बीमारी है. हम जांच कराकर विस्तृत रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत करेंगे. उन मंत्री जी को इलाज के लिए अमेरिका भेजा जा रहा है.

मंत्री जी को अमेरिका भेज दिया गया. वहां से भी उनके सनकाने की तरह-तरह की खबरें आती रहती हैं. हाल ही में मंत्री जी ने ओबामा को पत्र लिखकर कहा है कि वे और ओबामा पिछले जन्म में जुड़वा भाई थे. इसलिए ओबामा को चाहिए कि उन्हें अमेरिकी राजनीति में स्थापित करने की कोशिश करे. क्योंकि भारत जैसे पिछड़े हुए देश में तो उनकी सनकों का कोई मोल नहीं है. ओबामा ने सिर्फ इतना स्वीकार किया है कि वे पिछले अमेरिकी राष्ट्रपतियों की तुलना में सनकाने में पीछे पड़ते जा रहे हैं. अपने मंत्री जी अभी निराश नहीं हैं. उन्हें अपना भविष्य अमेरिकी राजनीति में नजर आता है
, इसलिए इलाज के बहाने अमेरिका में टिककर अपने पक्ष में माहौल बनाने का प्रयास कर रहे हैं.
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Old 16-10-2013, 07:12 PM   #5
Dr.Shree Vijay
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Default Re: सनक, ना चीन्है ठांव-कुठांव



श्री कश्यप जी ने बड़ा ही गहरा कटाक्ष किया हें............................


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.........: सूत्र पर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दे :.........


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Old 17-10-2013, 01:00 AM   #6
rajnish manga
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Default Re: सनक, ना चीन्है ठांव-कुठांव

Quote:
Originally Posted by dr.shree vijay View Post

श्री कश्यप जी ने बड़ा ही गहरा कटाक्ष किया हें............................

धन्यवाद, डॉ. श्री विजय. लेखक ने बड़ी गहराई से विषय को पकड़ा तथा समझाया है.
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Old 19-10-2013, 09:25 PM   #7
dipu
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