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Old 01-01-2013, 05:35 PM   #1
bindujain
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Default गहरे पानी पैठ

जिन खोजा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैठ |
मैं बौरी ढूडन गयी ,रही किनारे बैठ ||


अर्थात जिसने खोजा , उसने गहरे पानी में उतरकर ही पाया |मैं ऐसी पागल की ढूंडने गयी तो किनारे बैठ कर ही रह गई ||

जितना सोचते जाईये , गहरे उतरते जाईये , उतना ही अर्थ और मर्म उजागर होता जाएगा | धर्म , कर्म, अध्ययन , भोग और योग सबकी सफलता की कुंजी एक ही है --गहरे पानी पैठ
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !!
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !!
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Old 01-01-2013, 05:39 PM   #2
bindujain
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Default Re: गहरे पानी पैठ

सबका खुशी से फासला एक कदम है |
हर घर में बस एक ही कमरा कम है ||

--जाबेद अख्तर
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Old 02-01-2013, 04:47 AM   #3
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Default Re: गहरे पानी पैठ

कई मूर्ख एक साथ टोली में रहते थे। वे परस्पर एक-दूसरे की बात का विश्वास करते तथा साथ-साथ ही बाहर भ्रमण करने जाते थे। एक बार वे अपने स्थान से दूर किसी गांव को जा रहे थे कि रास्ते में एक नदी थी। उन्हें नदी पार करके दूसरी और जाना था, किन्तु उनमें से किसी को भी तैरना नहीं आता था। वे नदी के किनारे खडे हो गए और सोचने लगे कि अब क्या किया जाए? आश्चर्य! सबको एक ही साथ एक ही विचार आया।
उन्होंने सोचा कि यहां नदी के किनारे पानी बडा उथला है। जैसे-जैसे नदी में आगे बढेंगे, पानी घुटनों तक आएगा और बीच में पानी अवश्य ही गहरा होना चाहिए। यानी कि बीच में पानी हमारे सिर के ऊपर से बह रहा होगा। फिर आगे कम होता जाएगा। घुटनों तक हो जायेगा। दूसरे किनारे पर जल पुनः उथला होगा। विचार करने पर वे सभी इस परिणाम पर पहुंचे कि जल का औसत स्तर केवल घुटनों तक होगा।
प्रसन्नता से उन्होंने एक-दूसरे के हाथ पकडे और नदी में आगे बढे। और वे सब डूब गये।
नदी पार करते समय औसत किसी को भी नही निकालना चाहिए। कहने का तात्पय। यही है कि पतन की ओर ले जाने वाली समस्त बुराइयों का हमें विवके होना चाहिए और उनसे प्रतिक्षण बचते रहना
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Old 02-01-2013, 04:48 AM   #4
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Default Re: गहरे पानी पैठ

आडंबर

कसाई के पीछे घिसटती जा रही बकरी ने सामने से आ रहे संन्यासी को देखा तो उसकी उम्मीद बढ़ी. मौत आंखों में लिए वह फरियाद करने लगी—
‘महाराज! मेरे छोटे-छोटे मेमने हैं. आप इस कसाई से मेरी प्राण-रक्षा करें. मैं जब तक जियूंगी, अपने बच्चों के हिस्से का दूध आपको पिलाती रहूंगी.’
बकरी की करुण पुकार का संन्यासी पर कोई असर न पड़ा. वह निर्लिप्त भाव से बोला—
‘मूर्ख, बकरी क्या तू नहीं जानती कि मैं एक संन्यासी हूं. जीवन-मृत्यु, हर्ष-शोक, मोह-माया से परे. हर प्राणी को एक न एक दिन तो मरना ही है. समझ ले कि तेरी मौत इस कसाई के हाथों लिखी है. यदि यह पाप करेगा तो ईश्वर इसे भी दंडित करेगा…’
‘मेरे बिना मेरे मेमने जीते-जी मर जाएंगे…’ बकरी रोने लगी. ‘नादान, रोने से अच्छा है कि तू परमात्मा का नाम ले. याद रख, मृत्यु नए जीवन का द्वार है. सांसारिक रिश्ते-नाते प्राणी के मोह का परिणाम हैं, मोह माया से उपजता है. माया विकारों की जननी है. विकार आत्मा को भरमाए रखते हैं…’
बकरी निराश हो गई. संन्यासी के पीछे आ रहे कुत्ते से रहा न गया, उसने पूछा—‘महाराज, क्या आप मोह-माया से पूरी तरह मुक्त हो चुके हैं?’
‘बिलकुल, भरा-पूरा परिवार था मेरा. सुंदर पत्नी, भाई-बहन, माता-पिता, चाचा-ताऊ, बेटा-बेटी. बेशुमार जमीन-जायदाद…मैं एक ही झटके में सब कुछ छोड़कर परमात्मा की शरण में चला आ आया. सांसारिक प्रलोभनों से बहुत ऊपर…जैसे कीचड़ में कमल…’ संन्यासी डींग मारने लगा.
‘आप चाहें तो बकरी की प्राणरक्षा कर सकते हैं. कसाई आपकी बात नहीं टालेगा.’
‘मौत तो निश्चित ही है, आज नहीं तो कल, हर प्राणी को मरना है.’ तभी सामने एक काला भुजंग नाग फन फैलाए दिखाई पड़ा. संन्यासी के पसीने छूटने लगे. उसने कुत्ते की ओर मदद के लिए देखा. कुत्ते की हंसी छूट गई.
‘मृत्यु नए जीवन का द्वार है…उसको एक न एक दिन तो आना ही है…’ कुत्ते ने संन्यासी के वचन दोहरा दिए.
‘मुझे बचाओ.’ अपना ही उपदेश भूलकर संन्यासी गिड़गिड़ाने लगा. मगर कुत्ते ने उसकी ओर ध्यान न दिया.
‘आप अभी यमराज से बातें करें. जीना तो बकरी चाहती है. इससे पहले कि कसाई उसको लेकर दूर निकल जाए, मुझे अपना कर्तव्य पूरा करना है…’ कहते हुए वह छलांग लगाकर नाग के दूसरी ओर पहुंच गया. फिर दौड़ते हुए कसाई के पास पहुंचा और उसपर टूट पड़ा. आकस्मिक हमले से कसाई के औसान बिगड़ गए. वह इधर-उधर भागने लगा. बकरी की पकड़ ढीली हुई तो वह जंगल में गायब हो गई.
कसाई से निपटने के बाद कुत्ते ने संन्यासी की ओर देखा. वह अभी भी ‘मौत’ के आगे कांप रहा था. कुत्ते का मन हुआ कि संन्यासी को उसके हाल पर छोड़कर आगे बढ़ जाए. लेकिन मन नहीं माना. वह दौड़कर विषधर के पीछे पहुंचा और पूंछ पकड़कर झाड़ियों की ओर उछाल दिया, बोला—
‘महाराज, जहां तक मैं समझता हूं, मौत से वही ज्यादा डरते हैं, जो केवल अपने लिए जीते हैं. धार्मिक प्रवचन उन्हें उनके पापबोध से कुछ पल के लिए बचा ले जाते हैं…जीने के लिए संघर्ष अपरिहार्य है, संघर्ष के लिए विवेक, लेकिन मन में यदि करुणा-ममता न हों तो ये दोनों भी आडंबर बन जाते हैं.’
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Old 02-01-2013, 06:58 PM   #5
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Default Re: गहरे पानी पैठ

मेरे नर्सिंग स्कूल के दूसरे माह हमारे प्रोफेसर ने एक सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता आयोजित की। मैं एक मेहनती विद्यार्थी था अतः मैंने एक ही बार में पूरा प्रश्नपत्र पढ़ लिया।

"रोज सुबह विद्यालय की सफाई करने वाली महिला का क्या नाम है?"

निश्चित रूप से मुझे यह प्रश्न एक तरह का मजाक लगा। मैंने विद्यालय साफ करने वाली उस महिला को कई बार देखा था। वह लंबी, काले बालों वाली एक अधेड़वय महिला थी। लेकिन मुझे उसका नाम कैसे पता होगा? उस प्रश्न को छोड़ मैंने पूरा प्रश्नपत्र हल कर दिया। कक्षा समाप्त होने के पहले एक सहपाठी ने पूछा कि क्या अंतिम प्रश्न को सामान्यज्ञान की श्रेणी में रखना उचित है?

प्रोफेसर ने उत्तर दिया - "निश्चित रूप से! अपने जीवन में तुम्हारी कई लोगों से मुलाकात होगी। वे सभी महत्त्वपूर्ण हैं। वे सभी तुमसे ध्यानाकर्षण और देखभाल चाहते हैं। उन्हें देख मुस्कराना और अभिवादन करना ही पर्याप्त होगा।"

और मैं यह सबक आज तक नहीं भूला हूं.....
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Old 02-01-2013, 07:02 PM   #6
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Default Re: गहरे पानी पैठ

सिकंदर महान और डायोजिनीस

भारत आने से पूर्व सिकंदर डायोजिनीस नामक एक फकीर से मिलने गया। उसने डायोजिनीस के बारे में बहुत सी बातें सुनी हुयी थीं। प्रायः राजा-महाराजा भी फकीरों के प्रति ईर्ष्याभाव रखते हैं।

डायोजिनीस इसी तरह के फकीर थे। वह भगवान महावीर की ही तरह पूर्ण नग्न रहते थे। वे अद्वितीय फकीर थे। यहां तक कि वे अपने साथ भिक्षा मांगने वाला कटोरा भी नहीं रखते थे। शुरूआत में जब वे फकीर बने थे, तब अपने साथ एक कटोरा रखा करते थे लेकिन एक दिन उन्होंने एक कुत्ते को नदी से पानी पीते हुए देखा। उन्होंने सोचा - "जब एक कुत्ता बगैर कटोरे के पानी पी सकता है तो मैं अपने साथ कटोरा लिए क्यों घूमता हूं? इसका तात्पर्य यही हुआ कि यह कुत्ता मुझसे ज्यादा समझदार है। जब यह कुता बगैर कटोरे के गुजारा कर सकता है तो मैं क्यों नहीं?" और यह सोचते ही उन्होंने कटोरा फेंक दिया।

सिकंदर ने यह सुना हुआ था कि डायोजिनीस हमेशा परमानंद की अवस्था में रहते हैं, इसलिए वह उनसे मिलना चाहता था। सिकंदर को देखते ही डायोजिनीस ने पूछा -"तुम कहां जा रहे हो?"

सिकंदर ने उत्तर दिया - "मुझे पूरा एशिया महाद्वीप जीतना है।"

डायोजिनीस ने पूछा - "उसके बाद क्या करोगे? डायोजिनीस उस समय नदी के किनारे रेत पर लेटे हुए थे और धूप स्नान कर रहे थे। सिकंदर को देखकर भी वे उठकर नहीं बैठे। डायोजिनीस ने फिर पूछा - "उसके बाद क्या करोगे?

सिकंदर ने उत्तर दिया - "उसके बाद मुझे भारत जीतना है।"

डायोजिनीस ने पूछा - "उसके बाद?" सिकंदर ने कहा कि उसके बाद वह शेष दुनिया को जीतेगा।

डायोजिनीस ने पूछा - "और उसके बाद?"

सिकंदर ने खिसियाते हुए उत्तर दिया - "उसके बाद क्या? उसके बाद मैं आराम करूंगा।"

डायोजिनीस हँसने लगे और बोले - "जो आराम तुम इतने दिनों बाद करोगे, वह तो मैं अभी ही कर रहा हूं। यदि तुम आखिरकार आराम ही करना चाहते हो तो इतना कष्ट उठाने की क्या आवश्यकता है? मैं इस समय नदी के तट पर आराम कर रहा हूं। तुम भी यहाँ आराम कर सकते हो। यहाँ बहुत जगह खाली है। तुम्हें कहीं और जाने की क्या आवश्यकता है। तुम इसी वक्त आराम कर सकते हो।"

सिकंदर उनकी बात सुनकर बहुत प्रभावित हुआ। एक पल के लिए वह डायोजिनीस की सच्ची बात को सुनकर शर्मिंदा भी हुआ। यदि उसे अंततः आराम ही करना है तो अभी क्यों नहीं। वह आराम तो डायोजिनीस इसी समय कर रहे हैं और सिकंदर से ज्यादा संतुष्ट हैं। उनका चेहरा भी कमल के फूल की तरह खिला हुआ है।

सिकंदर के पास सबकुछ है पर मन में चैन नहीं। डायोजिनीस के पास कुछ नहीं है पर मन शांत है। यह सोचकर सिकंदर ने डायोजिनीस से कहा - "तुम्हें देखकर मुझे ईर्ष्या हो रही है। मैं ईश्वर से यही मांगूगा कि अगले जन्म में मुझे सिकंदर के बजाए डायोजिनीस बनाए।"

डायोजिनीस ने उत्तर दिया - " तुम फिर अपने आप को धोखा दे रहे हो। इस बात में तुम ईश्वर को क्यों बीच में ला रहे हो? यदि तुम डायोजिनीस ही बनना चाहते हो तो इसमें कौन सी कठिन बात है? मेरे लिए सिकंदर बनना कठिन है क्योंकि मैं शायद पूरा विश्व न जीत पाऊं। मैं शायद इतनी बड़ी सेना भी एकत्रित न कर पाऊं। लेकिन तुम्हारे लिए डायोजिनीस बनना सरल है। अपने कपड़ों को शरीर से अलग करो और आराम करो।"

सिकंदर ने कहा - "आप जो बात कह रहे हैं वह मुझे तो अपील कर रही है परंतु मेरी आशा को नहीं। आशा उसे प्राप्त करने का भ्रम है, जो आज मेरे पास नहीं। मैं जरूर वापस आऊंगा। लेकिन मुझे अभी जाना होगा क्योंकि मेरी यात्रा अभी पूरी नहीं हुयी है। लेकिन आप जो कह रहे हैं वह सौ फीसदी सच है।"
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Old 03-01-2013, 04:50 AM   #7
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Default Re: गहरे पानी पैठ

एक बेकार आदमी साक्षात्कार देने के लिये जा रहा था। रास्ते में उसका एक बेकार घूम रहा मित्र मिल गया। उसने उससे पूछा-‘कहां जा रहा है?
उसने जवाब दिया कि -‘साक्षात्कार के लिये जा रहा हूं। इतने सारे आवेदन भेजता हूं मुश्किल से ही बुलावा आया है।’
मित्र ने कहा-‘अरे, तू मेरी बात सुन!’
उसने जवाब दिया-‘यार, तुम फिर कभी बात करना। अभी मैं जल्दी में हूं!’
मित्र ने कहा-‘पर यह तो बता! किस पद के लिये साक्षात्कार देने जा रहा है।’
उसने कहा-‘‘पहरेदार की नौकरी है। कोई एक सेठ है जो पहरेदारों को नौकरी पर लगाता है।’
उसकी बात सुनकर मित्र ठठाकर हंस पड़ा। उसे अपने मित्र पर गुस्सा आया और पूछा-‘क्या बात है। हंस तो ऐसे रहे हो जैसे कि तुम कहीं के सेठ हो। अरे, तुम भी तो बेकार घूम रहे हो।’
मित्र ने कहा-‘मैं इस बात पर दिखाने के लिये नहीं हंस रहा कि तुम्हें नौकरी मिल जायेगी और मुझे नहीं! बल्कि तुम्हारी हालत पर हंसी आ रही है। अच्छा एक बात बताओ? क्या तम्हें कोई लूट करने का अभ्यास है?’
उसने कहा-‘नहीं!’
मित्र ने पूछा-‘कहीं लूट करवाने का अनुभव है?’
उसने कहा-‘नहीं!
मित्र ने कहा-‘इसलिये ही हंस रहा हूं। आजकल पहरेदार में यह गुण होना जरूरी है कि वह खुद लूटने का अपराध न कर अपने मालिक को लुटवा दे। लुटेरों के साथ अपनी सैटिंग इस तरह रखे कि किसी को आभास भी नहीं हो कि वह उनके साथ शामिल है।’
उसने कहा-‘अगर वह ऐसा न करे तो?’
मित्र ने कहा-‘तो शहीद हो जायेगा पर उसके परिवार के हाथ कुछ नहीं आयेगा। अलबत्ता मालिक उसे उसके मरने पर एक दिन के लिये याद कर लेगा!’
उसने कहा-‘यह क्या बकवास है?’
मित्र ने कहा’-‘शहीद हो जाओगे तब पता लगेगा। अरे, आजकल लूटने वाले गिरोह बहुत हैं। सबसे पहले पहरेदार के साथ सैटिंग करते हैं और वह न माने तो सबसे पहले उसे ही उड़ाते हैं। इसलिये ही कह रहा हूं कि जहां तुम्हारी पहरेदार की नौकरी लगेगी वहां ऐसा खतरा होगा। तुम जाओ! मुझे क्या परवाह? हां, जब शहीद हो जाओगे तब तुम्हारे नाम को मैं भी याद कर दो शब्द बोल दिया करूंगा।’
मित्र चला गया और वह भी अपने घर वापस लौट पड़ा।
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Default Re: गहरे पानी पैठ

मन में इच्छा रखना वैसा ही है जैसे मरे हुए चूहे को पकड़ना

एक चील अपनी चोंच में मरे हुए चूहे को पकड़कर उड़ गयी। जैसे ही अन्य चीलों ने उस चील को चूहा ले जाते हुए देखा, वे उसके आसपास मडराने लगीं और उस पर हमला शुरू कर दिया। चीलों ने उसे चोंच मारना शुरू कर दिया जिससे वह लहुलुहान हो गयी। हालाकि वह इस हमले से अचंभित थी परंतु उसने चूहे को नहीं छोड़ा। लेकिन अन्य चीलों के लगातार हमले के कारण चूहा उसकी पकड़ से छूट गया। जैसे ही वह चूहा उसकी पकड़ से छूटा, उन सभी चीलों ने, जो उसके आसपास मडरा रही थीं, सारा ध्यान उस चूहे पर लगा दिया। वह चील एक पेड़ पर बैठ गयी और सोचने लगी।

उसने सोचा - पहले मैंने सोचा कि बाकी सभी चीलें मेरी दुश्मन थीं लेकिन जैसे ही मैंने चूहे को छोड़ा वे सभी मुझसे दूर चली गयीं। इसका मतलब यह है कि उनकी मुझसे कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं थी। वह चूहा ही उनके हमले का कारण था। गलती मेरी थी कि मैं चूहे को अपनी चोंच में दबाये रही। मुझे उस चूहे को पहले ही छोड़ देना चाहिए था लेकिन मैं बेवकूफ यह सोच रही थी कि वे सभी मुझसे जाराज़ हैं।

स्वामी रामकृष्ण यह कहानी प्रायः सुनाते थे और कहा करते थे कि मन में इच्छा रखना वैसा ही है जैसे मरे हुए चूहे को पकड़ना।
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Default Re: गहरे पानी पैठ

एकता और फुट

एक जंगल में बटेर पक्षियो का बहुत बड़ा झुंड था | वे निर्भय होकर जंगल में रहते थे | इसी करण उनकी संख्या भी बढती जा रही है |

एक दिन एक शिकारी ने उन बटेरो को देख लिया | उसने सोचा की अगर थोड़े – थोड़े बटेर में रोज पकडकर ले जाऊ तो मुझे शिकार के लिए भटकने की जरूरत नहीं पड़ेगी |

अगले दिन शिकारी एक बड़ा सा जाल लेकर आया | उसने जाल तो लगा दिया, किन्तु बहुत से चतुर बटेर खतरा समझकर भाग गए | कुछ नासमझ और छोटे बटेर थे, वे फंस गए |

शिकारी बटेरो के इतने बड़े खजाने को हाथ से नहीं जाने देना चाहता था | वह उन्हें पकड़ने की नई – नई तरकीबे सोचने लगा | फिर भी बटेर पकड़ में न आते |

अब शिकारी बटेर की बोली बोलने लगा | उस आवाज को सुनकर बटेर जैसे ही इकटठे होते कि शिकारी जाल फेककर उन्हें पकड़ लेता | इस तरकीब में शिकारी सफल हो गया | बटेर धोखा खा जाते और शिकारी के हाथो पकड़े जाते | धीरे – धीरे उनकी संख्या कम होने लगी |

तब एक रात एक बूढ़े बटेर ने सबकी सभा बुलाई | उसने कहा – “इस मुसीबत से बचने का एक उपाय में जनता हु | जब तुम लोग जाल में फंसे ही जाओ तो इस उपाय का प्रयोग करना | तुम सब एक होकर वह जाल उठाना और किसी झाड़ी पर गिरा देना | जाल झाड़ी के ऊपर उलझ जाएगा और तुम लोग निचे से निकलकर भाग जाना | लेकिन वह कम तभी हो सकता है जब तुममे एकता होगी |”


अगले दिन से बटेरो ने एकता दिखाई और वे शिकारी कि चकमा देने लगे | शिकारी अब जंगल से खाली हाथ लोटने लगा | उसकी पत्नी ने करण पूछा तो वह बोला – “बटेरो ने एकता का मंत्र जान लिया है | इसलिए अब पकड़ में नहीं आते है | तू चिंता मत कर | जिस दिन उनमे फुट पड़ेगी, वे फिर पकड़े जाएगे |”

कुछ दिन बाद ऐसा ही हुआ | बटेरो का एक समूह जाल में फंस गया | उसे लेकर उड़ने कि बात हुई | बटेरो ने बहस छिड गई | कोई कहता –“में क्यों जाल उठाऊ? क्या यह सिर्फ मेरा ही कम है?” दूसरा कहता –“जब तुझे चिंता नहीं है तो में क्यों जाल उठाऊ |” तीसरा कड़ता –“ऐसा लगता है जैसे उठाने का ठेका तुम्ही लोगो ने ले रखा है |”

वे आपस की फुट में पड़कर बहस कर ही रहे थे कि शिकारी आ गया और उसने सब बटेरो को पकड़ लिया | अगले दिन बूढ़े बटेर ने बचे हुए बटेरो को समझाया –“एकता बड़े-से-बड़े संकट का मुकाबला कर सकती है | कलह पर फुट से सिर्फ विनाश होता है | अगर इस बात को भूल जाओगे तो तुम सब अपना विनाश कर लोगे |” और फिर वह शिकारी कभी भी बटेर नहीं पकड़ सका |
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लालची तोता

एक जंगल में तोतो का समूह था | वे तोते हर रोज सुबह हजारो मील कि यात्रा पर जाते | और शाम को अपने घोसलों में लोट आते |

तोतो के समूह में सभी के अपने अपने परिवार थे | तोते कि अपनी तेज गति कि उडान के लिए सदा से प्रसिद रहे है | इसलिय बुडापे में सबसे पहले उनकी आंखे कमजोर हो जाती है |

तोतो के एक परिवार में माता – पिता बूढे हो चले थे | उनका बेटा उनके लिए फल आदि ले आता था | बूढे माता पिता घोसले में बैठे बैठे ही खा लेते और सूख से रहते | वह तोता अपना माता पिता कि सेवा में कोई कमी नहीं रखता था | किंतु स्भाव का मनमोजी था | माता – पिता का कहना न मानना और मनचाहे सेर सपाटे करना उसकी आदत बन गई थी |

एक दिन उस तोते ने समुंद्र के बिच में एक सुंदर द्वीप देखा और वहा पहुचना चाहा | उसके साथियों ने समझाया – “सुमंदर बहुत विशाल है | उस द्वीप से समुंदर का किनारा पकड़ना सरल काम नहीं है | तुम वहा मत जाओ |”लेकिन उस तोते ने किसीकी बात न सुनी |

वह द्वीप कि और उड़ चला | द्वीप पर पहुचकर उसने आम के पेड़ो को देखा | उनमे बड़े – बड़े रसीले और मीठे आम लगे हुए थे | ऐसे आम तो उसने देखे ही नहीं थे | उसने ज़ल्दी ज़ल्दी कुछ आम खाए और एक आम लेकर वापस चल दिया |

अपने घोसले में आकर उसने वह आम बूढे माता – पिता को खिलाया | उसके माता पिता अंधे अवश्य थे, किंतु उन्होंने आम खाते ही कहा – “क्या हम समुंदर पार हजारो मील दूर स्थित उस द्वीप पर गए थे?”

“हा वहा बड़े असिले फल है |”

“लेकिन वह स्थल हमारी सीमा से बहार है | लालच में पड़कर सीमा तोड़ने से हानि उठानी पडती है|”

किंतु वह तोता भला माननेवाला था | वह रोज ही वहा जाने लगा | उसके मन में हर दिन उन फलो के लिए लालच बढता गया |

एक दिन उसने आवश्कता से अधिक फल खा लिये | उस दिन उसने अपने माता – पिता के लिए भी रोज से जयादा बड़ा फल तोडा |

यात्रा लम्बी थी और बोझ अधिल था | जयादा फल खाने के कारण वह ज़ल्दी ही थकने लगा | बड़े फल का बोझ भी उड़ने में बाघा उत्पन कर रहा था | वह जितना जोर लगाता उतना ही थक रहा था | समुंद्र पार से उसके साथियों ने उसे इस तरह उड़ते देखा तो परेशान होने लगे | पर करते भी क्या ? आखिर वह तोता चक्कर खाकर समुंद्र में गिरा और डूब गया |

अब अन्य तोतो ने उसके माँ-बाप को यह खबर दी तब वे बोले – “हम जानते थे कि एक दिन लालच में पड़कर वह अपनी जान खो देगा | लालची आदमी का यही हाल होता है |”
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !!
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !!

Last edited by bindujain; 03-01-2013 at 07:40 PM.
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बोध कथाएं, लघु कहानियाँ, संस्मरण आख्यान


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