My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > New India > Religious Forum
Home Rules Facebook Register FAQ Community

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 03-01-2013, 09:28 PM   #11
aspundir
VIP Member
 
aspundir's Avatar
 
Join Date: May 2011
Location: churu
Posts: 122,463
Rep Power: 244
aspundir has a reputation beyond reputeaspundir has a reputation beyond reputeaspundir has a reputation beyond reputeaspundir has a reputation beyond reputeaspundir has a reputation beyond reputeaspundir has a reputation beyond reputeaspundir has a reputation beyond reputeaspundir has a reputation beyond reputeaspundir has a reputation beyond reputeaspundir has a reputation beyond reputeaspundir has a reputation beyond repute
Default Re: गहरे पानी पैठ

बेहतरीन सूत्र । जीवन की छोटी-छोटी घटनाएं भी ज्ञान का सार्थक आधार है ।
aspundir is offline   Reply With Quote
Old 04-01-2013, 05:36 AM   #12
bindujain
VIP Member
 
bindujain's Avatar
 
Join Date: Nov 2012
Location: MP INDIA
Posts: 42,448
Rep Power: 144
bindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond repute
Default Re: गहरे पानी पैठ

समय की कीमत

एक शहर में एक परिवार रहता था | पति-पत्नी और उनकी एक प्यारी सी बेटी | पति हर रोज़ की तरह अपने दफ्तर जाता और रात में घर आता | एक दिन वो देर रात से घर आया और दरवाज़ा खटखाया और तभी उसकी ६ वर्षीय बेटी ने दरवाज़ा खोला और या देख कर उसको आश्रय हुआ की उसकी बेटी अभी तक सोई नहीं |

जैसे बचो की आदत होती है घर आते ही अपने माँ पाप से लिपट जाते है और बाते करना शुरु कर देते है उसी तरह उसकी बेटी ने भी वही किया | अन्दर घुसते ही बेटी ने पूछा —“ पापा पापा क्या मैं आपसे एक प्रशन पूछ सकती हू |

पिता ने कहा: हा बिलकुल बेटी | तो बेटी ने पूछा की आप एक दिन में कितना कमा लेते हो |

पिता का उसका ये सवाल अच्छा नहीं लगा पर फिर भी पिता ने उसको बता दिया और फिर बेटी ने दुबारा पूछा की पापा पापा आप एक धंटे में कितना कमा लेता हो | बस यह सुन कर पिता आग बबूला हो गया और अपनी बेटी तो डानट दिया और यह कह कर वो अपने कमरे में चला गया |


थोरी देर बाद जब पिता का दुस्सा थोडा शांत हो गया तो उसको लगा की मैंने बिना बात के उसको गुस्सा कर दिया, वो अपनी बेटी के पास गया | उसको अपनी गोदी में बैठाया और कहा: “बेटा में एक घंटे में २०० रुपये कमा लेता हू |”

तभी बेटी ने बड़ी मासूमियत से सर झुकाते हुए कहा अच्छा -, “ पापा क्या आप मुझे १०० रूपये दे सकते हो ?”

पिता ने कहा बिलकुल बेटी दे सकता हू पर तुम इसका क्या करोगे, तुम्हे क्या चाइये, तुम मुझे बता दो कल में ले आउगा | बेटी ने कहा नहीं पापा मुझे कुछ नहीं चाइये बस आप मुझे १०० रूपये दो | पर वो सोचने लगा कि क्या हो सकता है क्यों चाइये रुपये इसको क्या करेगी १०० रुपये का |

तभी पिता ने अपने पर्स में से १०० रुपये निकाल कर अपनी बेटी को दे दिए | “Thank You पापा ” बेटी ख़ुशी से पैसे लेते हुए कहा , और फिर वह तेजी से उठकर अपनी आलमारी की तरफ गई , वहां से उसने ढेर सारे सिक्के निकाले और धीरे -धीरे उन्हें गिनने लगी |

यह देख कर उसको समझ नहीं आ रहा था की हो क्या रहा है | जब मेरी बेटी के पास इतने पैसे है तो और क्यों मांग रही है |

पिता ने पूछ ही लिया, जब तुम्हारे पास पहले से ही पैसे थे तो तुमने मुझसे और पैसे क्यों मांगे ?”

बेटी ने कहा क्योंकि मेरे पास पैसे कम थे , पर अब पूरे हो गए है |

बेटी ने बहुत ही प्यार से अपने पिता को कहा, “पापा अब मेरे पास २०० रूपये हैं . क्या मैं आपका एक घंटा खरीद सकती हूँ ? Please आप ये पैसे ले लोजिये और कल घर जल्दी आ जाइये , हम सभी साथ मिल कर खाना खाएगे | यह सुन कर पिता की आँखों में आंसू आ गए और अपनी बेटी को गले लगा लिया |”

दोस्तों , इस तेज रफ़्तार ज़िन्दगी हम सभी लोग इतना व्यस्थ हो गए है की अपने परिवार वालो को वक़्त ही नहीं दे पाते | हम उन लोगो के लिए ही समय नहीं निकाल पाते जो हमारे जीवन में सबसे ज्यादा importance रखते हैं | दोस्तों हमे ये ख्याल रखना होगा की इस व्यस्त ज़िन्दगी में हम अपने परिवार वालो के साथ भी कुछ समय बिता सके |
__________________
मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !!
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !!
bindujain is offline   Reply With Quote
Old 04-01-2013, 04:21 PM   #13
bindujain
VIP Member
 
bindujain's Avatar
 
Join Date: Nov 2012
Location: MP INDIA
Posts: 42,448
Rep Power: 144
bindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond repute
Default Re: गहरे पानी पैठ

सर्वोत्तम गाउन

राजकुमारी अलीना को सुंदर वस्त्र पहनने का बहुत शौक था। उसके पास बहुत सारी सुंदर गाउन थीं। कुछ गाउन सिल्क की बना हुयीं थी और कुछ सैटिन की। ज्यादातर गाउनों में फीते, मनके और झालरें लगी हुयी थीं। उसके पास लगभग सभी रंगों की गाउन थीं। प्रत्येक गाउन विशेष रूप से उसके नाप की बनायी गयी थी। परिधान सिलने के लिए उसके पास दरजिनों की अपनी अलग टीम थी।

एक दिन राजकुमारी ने अपनी मुख्य सेविका से यूं ही कहा - "मेरी ज्यादातर गाउन दाहिने हाथ की कलाई पर गंदी हो गयी हैं। केवल कुछ गाउन ही गंदी नहीं हुयीं हैं। ऐसा कैसे संभव है?" मुख्य सेविका ने बिना दाग वाली सभी गाउन को अलग किया। उसने सभी दरजिनों को बुलाकर इसके बारे में पूछा। उसे ज्ञात हुआ कि ये सभी गाउन एक ही दरजिन द्वारा सिली गयीं हैं। उसने तत्काल उस दरजिन को बुलाया। अपने बुलावे से अचंभित वह दरजिन भागी-भागी आयी। मुख्य सेविका ने उससे कहा - "राजकुमारी जी का कहना है कि तुम्हारे द्वारा सिली गयी गाउनों की दाहिनी कलाई भोजन करते समय गंदी नहीं होती जबकि अन्य सभी गाउन दाहिनी कलाई पर गंदी हो जाती हैं। इसका क्या कारण है?"

दरजिन ने उत्तर दिया - "राजकुमारी की दाहिनी भुजा बांयी भुजा से एक इंच छोटी है। इसलिए मैंने गाउनों की दाहिनी भुजा एक इंच छोटी बनायी है ताकि यह सही जगह रहे, न कि नीचे लटकती रहे।"

सेविका की आँखें आश्चर्य से फटी रह गयीं। वह उस दरजिन को राजकुमारी के पास ले गयी। उस लड़की ने राजकुमारी के हाथों की फिर से नाप ली। वास्तव में दाहिनी भुजा छोटी पायी गयी। केवल इसी लड़की ने यह अंतर देख पाया था।


विस्तार से दे ध्यान देना! विस्तार से दे ध्यान देना! विस्तार से दे ध्यान देना! विस्तार में ही ईश्वर का वास है।
__________________
मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !!
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !!
bindujain is offline   Reply With Quote
Old 04-01-2013, 04:23 PM   #14
bindujain
VIP Member
 
bindujain's Avatar
 
Join Date: Nov 2012
Location: MP INDIA
Posts: 42,448
Rep Power: 144
bindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond repute
Default Re: गहरे पानी पैठ

सुअर और गाय


एक बार की बात है किसी गांव में एक बहुत धनी और कंजूस व्यक्ति रहता था। सभी गांव वाले उससे बहुत नफरत करते थे। एक दिन उस व्यक्ति ने गांव वालों से कहा - "या तो तुम लोग मुझसे ईर्ष्या करते हो या तुम लोग धन के प्रति मेरे दीवानेपन को ठीक से नहीं समझते, केवल मेरा ईश्वर ही जानता है। मुझे पता है कि आप लोग मुझसे नफरत करते हैं। लेकिन जब मैं मरूंगा तो अपने साथ यह धन नहीं ले जाऊंगा। मैं यह धन अन्य लोगों के कल्याण के लिए छोड़ जाऊंगा। तब आप सभी लोग मुझसे खुश हो जायेंगे।"

उसकी ये बात सुनने के बाद भी लोग उसके ऊपर हँसते रहे।

गांव वाले उसके ऊपर जरा भी विश्वास नहीं रखते थे। वह फिर बोला - "मैं क्या अमर हूं? मैं भी दूसरे लोगों की ही तरह मरूंगा। तब यह धन सभी के काम आएगा।" उस व्यक्ति को यह समझ में नहीं आ रहा था कि लोग उसकी बातों पर भरोसा क्यों नहीं कर रहे हैं।

एक दिन वह व्यक्ति टहलने गया हुआ था कि अचानक जोरदार बारिश शरू हो गयी। उसने एक पेड़ के नीचे शरण ली। पेड़ के नीचे उसने एक सुअर और गाय को खड़ा पाया। सुअर और गाय के मध्य बातचीत चल रही थी। वह व्यक्ति चुपचाप उनकी बातें सुनने लगा।

सुअर, गाय से बोला - "ऐसा क्यों है कि सभी लोग तुमसे प्रेम करते हैं और मुझसे नफरत? जब मैं मरूंगा तो मेरे बाल, चमड़ी और मांस लोगों के काम में आयेंगे। मेरी तीन-चार चीजें काम की हैं जबकि तुम सिर्फ एक चीज ही देती हो - दूध। तब भी सब लोग हर वक्त तुम्हारी ही सराहना करते रहते हैं, मेरी नहीं।"

गाय ने उत्तर दिया - "तो सुनो, मैं लोगों को जिंदा रहते दूध देती हूं। इस कारण सभी लोग मुझे उदार समझते हैं। और तुम सिर्फ मरने के बाद ही काम आते हो। लोग भविष्य में नहीं वर्तमान में यकीन रखते हैं। सीधी सी बात है, यदि तुम जिंदा रहने
के दौरान ही लोग के काम आओ तो लोग तुम्हारी भी तारीफ करेंगे।"
__________________
मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !!
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !!
bindujain is offline   Reply With Quote
Old 04-01-2013, 04:25 PM   #15
bindujain
VIP Member
 
bindujain's Avatar
 
Join Date: Nov 2012
Location: MP INDIA
Posts: 42,448
Rep Power: 144
bindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond repute
Default Re: गहरे पानी पैठ

सबसे अच्छी दवा

एक नौजवान लड़का प्रायः निराश और दुःखी रहा करता था। वह हमेशा चुप और अकेला रहता। वह अपने दोस्तों के साथ खेलना और रहना भी नहीं चाहता था। वह तो सिर्फ अकेले बैठकर सुबकना चाहता था।
उसकी माँ उसे यह डॉक्टर के पास ले गयीं। उन्होंने डॉक्टर को सारी समस्यायें विस्तार से बतायीं। उन्हें यह चिंता थी कि उनका पुत्र अवसाद का शिकार हो रहा है। डॉक्टर ने भलीभांति उस नौजवान का परीक्षण किया और सब कुछ सामान्य पाया। माँ को संतुष्ट करने के लिए डॉक्टर ने कुछ दवायें लेने का परामर्श दिया। लेकिन वास्तव में डॉक्टर ने उसे बीमारी की नहीं बल्कि ताकत की दवायें ही लिखी थीं। इसके बाद वह डॉक्टर उस महिला को एक किनारे ले गया और बोला - हालाकि मैंने बच्चे के लिए दवायें लिखीं हैं परंतु उसे दवाओं से ज्यादा प्यार की जरूरत है। आप उसे अधिक से अधिक प्यार दें। यही उसके लिए सबसे अच्छी दवा होगी। मुझे विश्वास है कि इससे वह जल्द ठीक हो जाएगा।

चिंतित महिला ने प्रश्न किया - और यदि इसका भी असर नहीं हुआ तो?

डॉक्टर ने उत्तर दिया - तब खुराक बढ़ाकर दोगुनी कर देना।
__________________
मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !!
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !!
bindujain is offline   Reply With Quote
Old 04-01-2013, 04:27 PM   #16
bindujain
VIP Member
 
bindujain's Avatar
 
Join Date: Nov 2012
Location: MP INDIA
Posts: 42,448
Rep Power: 144
bindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond repute
Default Re: गहरे पानी पैठ

प्रेम का व्यवहार

एक रात मेरे घर एक व्यक्ति आया और बोला - ॑एक परिवार है जिसमें आठ बच्चे हैं और वे कई दिन से भूखे हैं। मैंने अपने साथ खाने का कुछ सामान लिया और वहाँ पहुंचा। जब मैं उस घर पर पहुंचा तो मैंने बच्चों के भूख से मुरझाये हुए चेहरों को देखा। उनके चेहरे पर दुःख या उदासी नहीं बल्कि भूख से पैदा हुआ गहरा दर्द दिखायी दे रहा था। मैंने उन बच्चों की माँ को थोड़ा सा चावल दिया। उसने आधा चावल बच्चों को खाने के लिए दिया और आधा चावल अपने साथ लेकर चली गयी। जब वह वापस आयी तो मैंने उससे पूछा कि वह कहाँ गयी थी?

उसने सीधा सा उत्तर दिया - अपने पड़ोस में गयी थी, वे भी भूखे हैं?

मुझे यह सुनकर जरा भी आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि गरीब लोग उदार होते ही हैं। लेकिन मुझे आश्चर्य इस बात का था कि उसे यह कैसे पता चला कि उसके पड़ोसी भी भूखे हैं। सामान्यतः जब हम कष्ट में होते हैं तो हमें सिर्फ अपने ही कष्ट दिखायी देते हैं, दूसरों के नहीं।

मेरे मित्र तारिक भाई ने एकबार मुझसे कहा था - वह कभी सच्चा मुसलमान नहीं हो सकता जो अपने पड़ोसियों के भूखा रहते हुए भी भरपेट भोजन करे। जरूरतमंद की तलाश करना तुम्हारा काम है। कोई स्वयं तुम्हारे आगे हाथ फैलाने नहीं आएगा।
__________________
मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !!
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !!
bindujain is offline   Reply With Quote
Old 05-01-2013, 07:05 PM   #17
bindujain
VIP Member
 
bindujain's Avatar
 
Join Date: Nov 2012
Location: MP INDIA
Posts: 42,448
Rep Power: 144
bindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond repute
Default Re: गहरे पानी पैठ

उस पुल पर से गुजरते हुए कुछ आदत–सी हो गई। छुट्टे पैसों में से हाथ में जो भी सबसे छोटा सिक्का आता, उस अपंग बौने भिखारी के बिछे हुए चीकट अंगोछे पर उछाल देती। आठ बीस की बी0टी0 लोकल मुझे पकड़नी होती और अक्सर मैं ट्रेन पकड़ने की हड़बड़ाहट में ही रहती, मगर हाथ यंत्रवत् अपना काम कर जाता। दुआएँ उसके मुँह से रिरियायी–सी झरतीं...आठ–दस डग पीछा करतीं।
उस रोज इत्तिफाक से पर्स टटोलने के बाद भी कोई सिक्का हाथ न लगा। मैं ट्रेन पकड़ने की जल्दबाजी में बिना भीख दिए गुजर गई ।
दूसरे दिन छुट्टे थे, मगर एक लापरवाही का भाव उभरा, रोज ही तो देती हूँ। फिर कोई जबरदस्ती तो है नहीं!...और बगैर दिए ही निकल गई।
तीसरे दिन भी वही हुआ। उसके बिछे हुए अंगोछे के करीब से गुजर रही थी कि पीछे उसकी गिड़गिड़ाती पुकार ने ठिठका दिया–‘‘माँ..मेरी माँ...पैसा नई दिया ना? दस पैसा फकत....’’
ट्रेन छूट जाने के अंदेशे ने ठहरने नहीं दिया, किंतु उस दिन शायद उसने भी तय कर लिया था कि वह बगैर पैसे लिए मुझे जाने नहीं देगा। उसने दुबारा ऊँची आवाज में मुझे संबोधित कर पुकार लगाई। एकाएक मैं खीज उठी। भला यह क्या बदतमीजी है? लगातार पुकारे जा रहा है, ‘‘माँ..मेरी माँ....’’ मैं पलटी और बिफरती हुई बरसी, ‘‘क्यों चिल्ला रहे हो? तुम्हारी देनदार हूँ क्या?’’
‘‘नई, मेरी माँ !’’ वह दयनीय हो रिरियाया, ‘‘तुम देता तो सब देता....तुम नई देता तो कोई नई देता....तुम्हारे हाथ से बोनी होता तो पेट भरने भर को मिल जाता....तीन दिन से तुम नई दिया माँ...भुक्का है, मेरी माँ!’’
भीख में भी बोहनी। सहसा गुस्सा भरभरा गया। करुण दृष्टि से उसे देखा, फिर एक रुपए का एक सिक्का आहिस्ता से उसके अंगोछे पर उछालकर दुआओं से नख–शिख भीगती जैसी ही मैं प्लेटफॉर्म पर पहुँची मेरी आठ बीस की गाड़ी प्लेटफॉर्म छोड़ चुकी थी। आँखों के सामने मस्टर घूम गया अब...?
__________________
मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !!
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !!
bindujain is offline   Reply With Quote
Old 05-01-2013, 07:07 PM   #18
bindujain
VIP Member
 
bindujain's Avatar
 
Join Date: Nov 2012
Location: MP INDIA
Posts: 42,448
Rep Power: 144
bindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond repute
Default Re: गहरे पानी पैठ

नपुंसक
सुकेश साहनी

पूरे हॉस्टल में हलचल मची हुई थी, नवाब किसी रेजा (मजदूरिन) को पकड़ लाया था,उसे कमरा नम्बर चार में रक्खा था, पाँच लड़के तो ‘हो’ भी गए थे। शोर,कहकहों और भद्दे इशारों के बीच कुछ लड़कों ने शेखर को उस कमरे में धकेल कर दरवाजा बाहर से बंद कर लिया था। भीतर ‘वह’ बिल्कुल नग्नावस्था में दरवाजे के पास दीवार से सटी खड़ी थी। वह बेहद डरी हुई थी। भयभीत आँखें शेखर को ही घूर रही थीं। शेखर को अपने आप से नफरत हुई। दिमाग में विचारों के चक्रवात घूमने लगे। बेबस नारी के साथ कैसा क्रूर, घिनौना मजाक! वह बाहर निकलकर सबको धिक्कारेगा। जगाएगा उनके सोए हुए जमीर को । अश्लील चुटकलों पर अट्टाहस हो रहे थे। फिर भी, थोड़ा समय गुजर जाने के बाद ही वह कमरे का दरवाजा खुलवाने के लिए दस्तक दे सका।
कई जोड़ी सवालिया आँखें ‘कैसा रहा’ के अंदाज में उस पर टिकी थीं। अब तक विचित्र–सी शिथिलता उसके शरीर पर छा गई थी। न जाने उसे क्या हुआ कि वह बेशर्मी से मुस्कराया और हाथ के इशारे के साथ अपनी बायीं आंख दबाकर बोला–‘‘धाँसू!’’ प्रत्युत्तर में सीटियाँ बजीं, ठहाके लगे, उसके कन्धे थपथपाए गए। इतनी ही देर में सातवाँ लड़का भीतर जा चुका था।
शेखर वहाँ से चलने को हुआ।
‘‘कहाँ यार?’’ कई स्वर एक साथ उभरे।
वह अपने होंठों को जबरदस्ती खींचकर मुस्कराया और हाथ के इशारे से उन्हें बताने लगा कि वह अपनी सफाई करके अभी लौटता है। अपने कमरे की ओर बढ़ते हुए अपने ही पदचापों से उसके दिमाग में धमाके से हो रहे थे–नपुसंक....नंपुसक....! मुक्तिदाता !....नंपुसक !
__________________
मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !!
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !!
bindujain is offline   Reply With Quote
Old 05-01-2013, 07:08 PM   #19
bindujain
VIP Member
 
bindujain's Avatar
 
Join Date: Nov 2012
Location: MP INDIA
Posts: 42,448
Rep Power: 144
bindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond repute
Default Re: गहरे पानी पैठ

एक लघु कहानी / अफ़लातून
हालात ने उसे पेशेवर भिखारी बना दिया होगा । उमर करीब पाँच- छ: साल। पेशे को अपनाने में दु:ख या संकोच होने की गुंजाइश ही नहीं छोड़ी थी उसकी कच्ची उमर ने । माँगने के कष्ट की शायद कल्पना ही न रही हो उसे और माँग कर न पाना भी उसके लिए उतना ही सामान्य था जितना माँग कर पाना ।
उस दिन सरदारजी की जलेबी की दुकान के करीब वह पहुँचा । सरदारजी पुण्य पाने की प्रेरणा से किसी माँगने वाले को अक्सर खाली नहीं जाने देते थे । उसे कपड़े न पहनने का कष्ट नहीं था परन्तु खुद के नंगे होने का आभास अवश्य ही था क्योंकि उसकी खड़ी झण्डी ग्राहकों की मुसकान का कारण बनी हुई थी । ’सिर्फ़ आकार के कारण ही आ-कार हटा कर ’झण्डी’ कहा जा रहा है । वरना पुरुष दर्प तो हमेशा एक साम्राज्यवादी तेवर के साथ सोचता है , ’ विजयी विश्व तिरंगा प्यारा , झण्डा ऊँचा रहे हमारा’ ! बहरहाल , सरदारजी ने गल्ले से सिक्का निकाला। उनकी नजर उठी परन्तु लड़के की ’झण्डी” पर जा टिकी। उनके चेहरे पर गुस्से की शिकन खिंच गयी । उसने एक बार सरदारजी के गुस्से को देखा , फिर ग्राहकों की मुस्कान को और फिर खुद को – जितना आईने के बगैर देखा जा सकता है। और वह भी मुस्कुरा दिया । इस पर उसे कुछ और जोर से डाँट पड़ी और उसकी झण्डी लटक गई । ग्राहक अब हँस पड़े और लड़का भी हँस कर आगे बढ़ चला।
भीख देने से सरदारजी खुद को इज्जतदार समझते थे मगर उस दिन मानो उनकी तौहीन हो रही थी । लड़का अभी भी हँस रहा था और मेरा दोस्त भी । दोस्त ने मेरे हाथ से दोना ले लिया जिसमें दो जलेबियाँ बची थी और उसे दे दिया। सरदारजी से उस दिन भीख न पाने में भी उसे मजा आया ।
__________________
मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !!
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !!
bindujain is offline   Reply With Quote
Old 05-01-2013, 07:13 PM   #20
bindujain
VIP Member
 
bindujain's Avatar
 
Join Date: Nov 2012
Location: MP INDIA
Posts: 42,448
Rep Power: 144
bindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond reputebindujain has a reputation beyond repute
Default Re: गहरे पानी पैठ

Corruption
पांडेयजी जो सीबीआई में भर्ती हुवे थे हमारी शहर मैं ट्रेनिंग पर आये हुए थे. मेरा पहेला पोस्टिंग था इसलिए शुरुवात की तनख्वाह पर घर ही चलता था. पांडेयजी प्रक्टिकल किस्म के ऑफिसर थे. उन्हों ने ट्रेनिंग के समय अपना लेना देना शुरू कर लिया था. मेरी मुलाकात उनसे तब हुई जब वह किसी घडी की दुकानदर से कुछ मांग रहे थे. उस १९७१ के जमाने में भारत में smuggled घड़ियों का आलम था. घडी के दुकानदार से मेरा परिचय था और उन्हों ने मेरा पांडेयजी से आगे परिचय करते हुए कहा "साहब पाण्डेय साब से कहें कि थोडा कम करें मैं इतना पैसा नहीं दे सकता. " पांडेयजी मान गए और मेरा उनसे परिचय और गहरा हो गया. वह अकेले थे इसलिए जब भी समय होता था वह घर आ जाते और हम भोजन साथ करते. महीने के अंत में पांडेयजी वापस जाने लगे. रात को हम,मतलब कि मैं,मेरी पत्नी और छोटी बेटी उन्हे बस स्टॉप पर बाय बाय करने के लिए गए. महीने का आखरी दिन था,सोचा पाण्डेय जी ने चाय आदि कि फरमाइश कर ली तो formality मैं हमे ही पैसे देने पड़ेंगे.जेब मैं दो रूपए के अलावा कुछ नहीं था. पर पांडेयजी जल्दी से बस मैं बैठने लगे पर जाते जाते उन्हों ने मेरी बेटी के हाथ १० रूपए का नोट रखा. हम ने कुछ आना कानी नहीं की. बस की पूँछ बत्ती अभी दिख ही रही थी कि हम ने बिटिया के हाथ से १० का नोट छीन लिया और ताबड़ तोड़ पान की दूकान पहुँच गए. दो coke ली और गट गट्टा गए. हमारी बेटी देखते रही. पता नहीं वह पांडेयजी का पैसा था या किसी smuggled घड़ियाँ बेचनेवाले का?
__________________
मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !!
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !!
bindujain is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks

Tags
बोध कथाएं, लघु कहानियाँ, संस्मरण आख्यान


Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 04:37 PM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.