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Old 15-02-2013, 04:49 AM   #81
bindujain
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Default Re: गहरे पानी पैठ

संत तिरुवल्लुवर अपने आश्रम में बैठे थे। आसपास सारे शिष्य अपने-अपने कार्यों में लगे हुए थे। कहीं कोई फर्श की सफाई में जुटा था तो कोई कपड़े धो रहा था। कोई भोजन बनाने में व्यस्त था तो कोई लड़कियां काट रहा था। तभी संत से मिलने एक गृहस्थ आया और संत के साथ धर्मचर्या में लग गया। लेकिन उसके हाव-भाव और बातों से लग गया कि उसे कोई खास परेशानी है। संत ने उसकी परेशानी का कारण पूछा तो वह बोला- प्रभु, भरा-पूरा परिवार है मेरा। बेटे-बेटियां, बहुएं और पोते-पोतियां सब हैं। मगर दिक्कत यह है कि कोई मेरी बात नहीं सुनता। यहां तक कि पोते-पोतियां भी मेरी बातों पर ध्यान नहीं देते। सबने मुझे उपेक्षित कर दिया है। जमाने को देखते हुए मैं किसी को कुछ कहता नहीं। सब को पूरी स्वतंत्रता मिली हुई है अपनी जिंदगी जीने के लिए।

तभी एक शिष्य वहां आया और संत से लकडि़यां बांधने के लिए रस्सी मांगने लगा। संत ने गृहस्थ से कहा- जरा पीछे से सुतली उठाकर मेरे उस शिष्य को पकड़ा देना। सुतली देखकर गृहस्थ हंसता हुआ बोला- महाराज, अगर कमजोर रस्सी से लकड़ियां बांधी जाएंगी तो गट्ठर बंधेगा नहीं, बिखर जाएगा।

संत ने कहा- बिल्कुल ठीक। एकदम यही बात तुम्हारी गृहस्थी पर भी सटीक बैठती है। घर के मुखिया का नेतृत्व और अनुशासन ही अगर ढुलमुल रहेगा तो परिवार भी बिखरेगा ही। परिवार को एकजुट और अनुशासित रखने के लिए तुम्हारा दृढ़ और मजबूत होना जरूरी है। यह बात गृहस्थ के मन में बैठ गई। उसने संत को प्रणाम किया और वहां से चल पड़ा।
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Old 10-03-2013, 06:35 PM   #82
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Default Re: गहरे पानी पैठ


साधु की सीख

किसी गाँव मे एक साधु रहा करता था ,वो जब भी नाचता तो बारिस होती थी . अतः गाव के लोगों को जब भी बारिस की जरूरत होती थी ,तो वे लोग साधु के पास जाते और उनसे अनुरोध करते की वे नाचे , और जब वो नाचने लगता तो बारिस ज़रूर होती.

कुछ दिनों बाद चार लड़के शहर से गाँव में घूमने आये, जब उन्हें यह बात मालूम हुई की किसी साधू के नाचने से बारिस होती है तो उन्हें यकीन नहीं हुआ .

शहरी पढाई लिखाई के घमंड में उन्होंने गाँव वालों को चुनौती दे दी कि हम भी नाचेंगे तो बारिस होगी और अगर हमारे नाचने से नहीं हुई तो उस साधु के नाचने से भी नहीं होगी.फिर क्या था अगले दिन सुबह-सुबह ही गाँव वाले उन लड़कों को लेकर साधु की कुटिया पर पहुंचे.

साधु को सारी बात बताई गयी , फिर लड़कों ने नाचना शुरू किया , आधे घंटे बीते और पहला लड़का थक कर बैठ गया पर बादल नहीं दिखे , कुछ देर में दूसरे ने भी यही किया और एक घंटा बीतते-बीतते बाकी दोनों लड़के भी थक कर बैठ गए, पर बारिश नहीं हुई.

अब साधु की बारी थी , उसने नाचना शुरू किया, एक घंटा बीता, बारिश नहीं हुई, साधु नाचता रहा …दो घंटा बीता बारिश नहीं हुई….पर साधु तो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था ,धीरे-धीरे शाम ढलने लगी कि तभी बादलों की गड़गडाहत सुनाई दी और ज़ोरों की बारिश होने लगी . लड़के दंग रह गए
और तुरंत साधु से क्षमा मांगी और पूछा-

” बाबा भला ऐसा क्यों हुआ कि हमारे नाचने से बारिस नहीं हुई और आपके नाचने से हो गयी ?”

साधु ने उत्तर दिया – ” जब मैं नाचता हूँ तो दो बातों का ध्यान रखता हूँ , पहली बात मैं ये सोचता हूँ कि अगर मैं नाचूँगा तो बारिस को होना ही पड़ेगा और दूसरी ये कि मैं तब तक नाचूँगा जब तक कि बारिस न हो जाये .”
Friends सफलता पाने वालों में यही गुण विद्यमान होता है वो जिस चीज को करते हैं उसमे उन्हें सफल होने का पूरा यकीन होता है और वे तब तक उस चीज को करते हैं जब तक कि उसमे सफल ना हो जाएं. इसलिए यदि हमें सफलता हांसिल करनी है तो उस साधु की तरह ही अपने लक्ष्य को प्राप्त करना होगा.
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Old 26-03-2013, 08:55 PM   #83
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Default Re: गहरे पानी पैठ

"वाह रे प्रभु" रहते कहाँ हो और पता कहाँ का देते हो...
एक बार एक फ़क़ीर भीख मांगने के लिए मस्जिद
के बाहर बैठा हुआ
होता है।
सब नमाज़ी उस से आँख बचा कर चले गए और
उसे कुछ नहीं मिला।
... वो फिर चर्च गया।
फिर मंदिर और फिर गुरुद्वारे।
लेकिन उसको किसी ने कुछ नहीं दिया।
आखिरी में वह हार कर एक शराब की दुकान के
बहार आ कर बैठ
गया।
उस शराब की दुकान से जो भी निकलता उसके
कटोरे में कुछ न कुछ
डाल देता।
कुछ देर बाद उसका कटोरा नोटों से भर
गया तो नोटों से
भरा कटोरा देख कर फ़क़ीर ने आसमान की तरफ
देखा और बोला।
"वाह रे प्रभु" रहते कहाँ हो और
पता कहाँ का देते हो...
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Old 26-03-2013, 08:57 PM   #84
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Default Re: गहरे पानी पैठ

एक शिक्षिका ने अपने छात्रों को एक निबंध लिखने को कहा....

-निबंध-

प्राथमिक पाठशाला की एक शिक्षिका ने अपने छात्रों को एक निबंध लिखने को कहा. विषय था"भगवान से आप क्या बनने का वरदान मांगेंगे" इस निबंध ने उस क्लास टीचर को इतना भावुक कर दिया कि रोते-रोते उस निबंध को लेकर वह घर आ गयी. पति ने रोने का कारण पूछा तो उसने जवाब दिया इसे पढ़ें, यह मेरे छात्रों में से एक नेयह निबंध लिखा है..
निबंध कुछ इस प्रकार था:-
हे भगवान, मुझे एक टीवी बना दो क्योंकि तब मैं अपने परिवार में ख़ास जगह ले पाऊंगा और बिना रूकावट या सवालों के मुझे ध्यान से सुना व देखा जायेगा. जब मुझे कुछ होगा तब टीवी खराब की खलबली पूरे परिवार में सबको होगी और मुझे जल्द से जल्द सब ठीक हालत में देखने के लिए लालायित रहेंगे. वैसे मम्मी पापा के पास स्कूल और ऑफिस में बिलकुल टाइम नहीं है लेकिन मैं जब अस्वस्थ्य रहूँगा तब मम्मी का चपरासी और पापा के ऑफिस का स्टाफ मुझे सुधरवाने के लिए दौड़ कर आएगा. दादा का पापा के पास कई बार फोन चला जायेगा कि टीवी जल्दी सुधरवा दो दादी का फेवरेट सीरियल आने वाला हे. मेरी दीदी भी मेरे साथ रहने के लिए के लिए हमेशा सबसे लडती रहेगी. पापा जब भी ऑफिस से थक कर आएँगे मेरे साथ ही अपना समय गुजारेंगे. मुझे लगता है कि परिवार का हर सदस्य कुछ न कुछ समय मेरे साथ अवश्य गुजारनाचाहेगा मैं सबकी आँखों में कभी ख़ुशी के तो कभी गम के आंसू देख पाऊंगा. आज मैं "स्कूल काबच्चा" मशीन बन गया हूँ. स्कूल में पढ़ाई घर में होमवर्क और ट्यूशन पे ट्यूशन ना तो मैं खेल पाता हूँ न ही पिकनिक जा पाता हूँ इसलिए भगवान मैं सिर्फ एक टीवी की तरह रहना चाहता हूँ, कम से कम रोज़ मैं अपने परिवार के सभी सदस्यों के साथ अपना बेशकीमती समय तो गुजार पाऊंगा.
पति ने पूरा निबंध ध्यान से पढ़ा और अपनी राय जाहिर की. हे भगवान ! कितने जल्लाद होंगे इस गरीब बच्चे के माता पिता !
पत्नी ने पति को करुण आँखों से देखा और कहा,...... यह निबंध हमारे बेटे ने लिखा है ! 0 Google +0 0 0
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Old 26-03-2013, 08:59 PM   #85
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Default Re: गहरे पानी पैठ

बिल गेट्स ने एक विशाल साक्षात्कार के जरिए माइक्रोसॉफ़्ट यूरोप के लिए एक नए अध्यक्ष की भर्ती के लिए ...
बिल गेट्स ने एक विशाल साक्षात्कार के जरिए माइक्रोसॉफ़्ट यूरोप के लिए एक नए अध्यक्ष की भर्ती के लिए एक आयोजन किया. एक बड़े कमरे में 5000 से अधिक उम्मीदवार इकट्ठे हुए. इनमें से एक उम्मीदवार अरुण है जो कि एक भारतीय लड़का है.

बिल गेट्स ने सभी उम्मीदवारों को आने के लिए धन्यवाद दिया और कहा कि जो जावा प्रोग्राम नहीं जानते वे कमरे से बाहर चले जाएँ. 2000 लोगों ने कमरा छोड़ दिया. अरुण ने अपने आप से कहा, 'मैं जावा नहीं जानता, लेकिन अगर मैं यहाँ रुका रहा तो भी कोई नुकसान तो नहीं ही है. मैं दौड़ में बने रहने की कोशिश करता हूं'

बिल गेट्स ने उम्मीदवारों से पूछा कि जिन लोगों के पास 100 से अधिक प्रोफ़ेशनल के प्रबंधन का अनुभव नहीं है, वे कमरे से बाहर चले जाएँ, क्योंकि उनके लिए इस चयन प्रक्रिया में कोई संभावना नहीं है.
...
2000 लोग कमरे से बाहर चले गए. अरुण ने अपने आप से कहा, 'मैंने 100 क्या 1 को भी प्रबंधित नहीं किया, अब तक अपने आप को भी नहीं, लेकिन यदि मैं यहाँ रुकता हूं तो क्या नुकसान है? तो वह वहाँ कमरे में बना रहता है.

फिर बिल गेट्स ने उम्मीदवारों से कहा कि जिनके पास बढ़िया, टॉप रैंकिंग इंस्टीट्यूशन का प्रबंधन डिप्लोमा नहीं है, वे कमरे से बाहर चले जाएँ. ऐसे उम्मीदवारों की उम्मीदवारी के अवसर नहीं हैं. 500 लोगों ने कमरा छोड़ दिया. अरुण ने खुद से कहा - 'मैंने तो 15 साल की उम्र में स्कूल छोड़ दिया लेकिन यदि मैं कमरे में बना रहता हूं तो मैं क्या खो दूंगा? तो वह कमरे में बना रहता है.

अंत में, बिल गेट्स उम्मीदवारों से बोलता है कि जो सर्बो भाषा नहीं जानते हैं वे कमरे से बाहर चले जाएँ. इतना सुनते ही भुनभुनाते हुए कोई 498 लोगों ने कमरा छोड़ दिया. अरुण ने अपने आप से कहा, 'मैं सर्बो का एक भी शब्द नहीं जानता, लेकिन यदि मैं यहाँ कमरे में रुका रहूं तो क्या नुकसान है'? तो वह कमरे में टिका रहता है. कमरे में उसके अलावा सिर्फ एक और उम्मीदवार बच रहता है.

तो इस तरह से 2 उम्मीदवारों को छोड़ बाकी सब उम्मीदवार एक एक कर कमरे से बाहर चले गए.

बिल गेट्स बड़ा प्रसन्न हुआ और वह उन दोनों उम्मीदवारों से मुखातिब होकर कहा कि 'चलिए, आप कम से कम दो उम्मीदवार तो इस लायक मिले. तो मैं चाहूंगा कि आप दोनों आपस में सर्बो भाषा में बातचीत करें. मैं आप दोनों को उस भाषा में बातचीत करते देखना सुनना चाहूंगा’

शांति पूर्वक, अरुण उस दूसरे उम्मीदवार की तरफ पलटता है और कहता है, 'का गुरु, का हाल चाल ?'

दूसरा उम्मीदवार जवाब देता है –‘मस्त .. आपन कहा
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Old 26-03-2013, 09:01 PM   #86
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[एक स्त्री एक दिन एक स्त्रीरोग विशेषज्ञ के पास के गई और बोली...

एक स्त्री एक दिन एक स्त्रीरोग विशेषज्ञ के पास के गई और बोली, " डाक्टर मैँ एक गंभीर समस्या मेँ हुँ और मेँ आपकीमदद चाहती हुँ । मैं गर्भवती हूँ, आप किसी को बताइयेगा नही मैने एक जान पहचान के सोनोग्राफी लैब से यह जान लिया है कि मेरे गर्भ में एक बच्ची है । मै पहले से एकबेटी की माँ हूँ और मैं किसी भी दशा मे दो बेटियाँ नहीं चाहती ।"
डाक्टर ने कहा ,"ठीक है, तो मेँ आपकी क्या सहायता कर सकता हु ?" तो वो स्त्री बोली," मैँ यह चाहती हू कि इस गर्भ को गिराने मेँ मेरी मदद करें ।" ... डाक्टर अनुभवी और समझदार था।
थोडा सोचा और फिर बोला,"मुझे लगता है कि मेरे पास एक और सरल रास्ता है जो आपकी मुश्किल को हल कर देगा।"
वो स्त्री बहुत खुश हुई.. डाक्टर आगे बोला, " हम एक काम करते है आप दो बेटियां नही चाहती ना ?? ? तो पहली बेटी को मार देते है जिससे आप इस अजन्मी बच्ची को जन्मदे सके और आपकी समस्या का हल भी हो जाएगा. वैसे भी हमको एक बच्ची को मारना है तो पहले वाली को ही मार देते है ना.?"
तो वो स्त्री तुरंत बोली"ना ना डाक्टर.".!!! हत्या करनागुनाह है पाप है और वैसे भी मैं अपनी बेटी को बहुत चाहती हूँ । उसको खरोंच भी आती है तो दर्द का अहसास मुझे होता है डाक्टर तुरंत बोला, "पहले कि हत्या करो या अभी जो जन्मा नही उसकी हत्या करो दोनो गुनाह है पाप हैं ।" यह बात उस स्त्री को समझ मेँ आयी आ गई ।
वह स्वयं की सोच पर लज्जित हुई और पश्चाताप करते हुए घर चली गई |
क्या आपको समझ मेँ आयी ?
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Last edited by bindujain; 27-03-2013 at 08:50 PM.
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Old 27-03-2013, 08:53 PM   #87
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जिंदगी की चकाचौंध में आत्मा की न करें उपेक्षा

एक अमीर व्यापारी था. उसके चार बेटे थे. वह अपने चौथे बेटे से सबसे ज्यादा प्यार करता था, क्योंकि वह दिखने में आकर्षक था. वह उसका बहुत ख्याल रखता. वह तीसरे बेटे से भी प्यार करता. उस पर गर्व करता. उसे अपने दोस्तों से मिलाता. वह दूसरे बेटे से भी प्यार करता, क्योंकि वह विचारशील था और विश्वासपात्र भी.
जब भी व्यापारी किसी समस्या से घिर जाता, उसका दूसरा बेटा उसे समस्या से बाहर निकाल लाता. व्यापारी का पहला बेटा बहुत ईमानदार था. व्यापारी की संपत्ति और उसके व्यापार को संभालने में उसका खासा योगदान था.
हालांकि व्यापारी उससे प्यार नहीं करता था, लेकिन वह उन्हें बहुत प्यार करता था. एक दिन व्यापारी बीमार पड़ गया. उसे समझ आ गया कि अब वह मरनेवाला है. उसने चौथे बेटे से कहा, आज तक तुमने मुझसे जो मांगा, मैंने तुम्हें दिया. अब जबकि मैं मर रहा हूं, क्या तुम भी मौत में मेरा साथ दोगे? दूसरा बेटा बोला- ‘कभी नही’. व्यापारी को धक्का लगा. वह टूट गया. उसने तीसरे बेटे से भी यही पूछा. उसने कहा, ‘मैं तो जीना चाहता हूं. मैं अपना नया बिजनेस शुरू करूंगा’.
व्यापारी निढाल हो गया. वह रोने लगा. उसने दूसरे बेटे से पूछा- तुमने हमेशा मुझे मुसीबतों से निकाला है. क्या तुम मरोगे मेरे साथ? दूसरा बेटा बोला- ‘सॉरी, मैं अंतिम संस्कार तक आपके साथ रहूंगा, बस’.
व्यापारी ने दुख से अपनी आंखें बंद कर लीं. तभी उसे सुनायी दिया, मैं आपके साथ मरूंगा पिताजी. यह कहनेवाला उसका पहला बेटा था. व्यापारी ने उसकी तरफ देखा. वह भी व्यापारी की तरह बीमार दिख रहा था. व्यापारी ने पछताते हुए कहा- काश, मैंने तुम्हें सबसे ज्यादा प्यार किया होता, तुम्हारी देखभाल की होती.
दोस्तो, हम सभी की जिंदगी में चार बेटे हैं. चौथा बेटा हमारा शरीर है. हम उसकी कितनी भी देखभाल करें, एक दिन वह हमें छोड़ कर जायेगा ही. तीसरा बेटा है हमारी संपत्ति. जब हम मर जाते है, तो वह दूसरे के पास चला जाता है. दूसरा बेटा हमारा परिवार व दोस्त हैं.
जब हम जिंदा होते है, तब भले ही वे कितने करीब क्यों न हों, मरने के बाद सिर्फ अंतिम संस्कार तक साथ रह सकते हैं. पहला बेटा है हमारी आत्मा, जिसकी हम रुपये, पैसे, शोहरत, खूबसूरती की चकाचौंध में हमेशा उपेक्षा करते हैं. दरअसल वही एकमात्र चीज हैं, जो हमेशा हमारा साथ देती है. बेहतर होगा कि हम उसे मजबूत बनायें, उसका ख्याल रखें.
- बात पते की
* कई लोग अपनी पूरी जिंदगी दिखावटी चीजों को संभालने, बटोरने में लगा देते हैं और बाद में पछताते हैं कि बेवजह इन चीजों पर इतना समय गंवाया.
* आत्मा ही ऐसी चीज है जो हमेशा हमारा साथ देती है, लेकिन जीवन भर हम उसी की * आवाज नहीं सुनते. बेहतर होगा हम शुरुआत से ही उस पर ध्यान दें
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Old 27-03-2013, 08:58 PM   #88
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हर कोई, हर काम में अपना बेस्ट नहीं दे सकता

महात्मा बुद्ध का एक शिष्य उनके पास पहुंचा और बोला, ‘‘आज मैंने एक भिखारी को बुला कर बहुत देर तक उसे धर्म की शिक्षा दी, उपदेश दिये, परंतु उस मूर्ख ने मेरी बातों पर कोई गौर नहीं किया.’’ शिष्य की बात सुन कर बुद्ध ने उसे भिखारी को बुला लाने को कहा. जब भिखारी दीन-हीन अवस्था में आया तो बुद्ध ने उसे भर पेट खाना खिला कर प्रेमपूर्वक विदा कर दिया.
इस पर उनके शिष्य ने आश्चर्य से पूछा, आपने उसे बिना कोई उपदेश दिये भेज दिया. इस पर बुद्ध बोले, आज उसके लिए भोजन ही उपदेश था. उसे प्रवचन से ज्यादा अन्न की जरूरत थी. यही सच्च उपदेश है. यह सुन कर उनका शिष्य निरुत्तर रह गया. उसे अपनी गलती का पता चल चुका था.
प्रोफेशनल लाइफ में भी ऐसे उदाहरण भरे हुए हैं. ज्यादातर लोगों को पता ही नहीं होता कि किससे क्या काम लिया जा सकता है. अगर इस बात की गहराई में जायें, तो मूल सवाल यही है. अगर यह पता चल जाये कि किससे क्या काम लेना है, तो हमारी आधी से अधिक समस्या का हल तो ऐसे ही हो जाता है और ऐसा शायद ही कोई होता है, जिसे कुछ भी नहीं आता हो. कुछ तो आता होगा, उसे वही काम दें, जो वह अच्छी तरह कर सकता है. किसी को भी कोई भी काम दे देना असफलता का सबसे बड़ा कारण है.
उदाहरण के लिए एक सीए फर्म में किसी ऐसे व्यक्ति को आप फील्ड का काम दे दें, जिसे लोगों से इंटरेक्शन रखने में बिल्कुल भी रुचि न हो या किसी ऐसे व्यक्ति को क्लाइंट से बात करने का मौका दें, जिसे बोलने का तरीका न पता हो, तो वह अपने काम में कितना सफल होगा? हां, अगर उसे ही यह काम देना जरूरी है, तो पहले उसे इस बात का प्रशिक्षण दें कि उसे क्लाइंट से कैसे बात करनी चाहिए, उसके बाद ही उसे फील्ड में भेजें. अपनी टीम में यह आकलन करें कि कौन, किस काम में बेस्ट दे सकता है. किसी को भी कोई भी काम केवल इसलिए दे देना कि किसी न किसी को तो यह काम करना ही है, न केवल गलत है, बल्कि आपकी परेशानियों का एक बड़ा कारण भी है. आखिर हर कोई, हर काम में अपना बेस्ट नहीं दे सकता
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Default Re: गहरे पानी पैठ

भरोसा रखें, जिंदगी बदलते देर नहीं लगती

आपके साथ कई बार ऐसा हुआ होगा कि आपके हाथ में अगर कोई दो चीजें हों, जिनमें से किसी एक को कूड़े में डालना हो और दूसरे को बैग में रखना हो, तो ध्यान कहीं और रहने के कारण बैग में डाली जानेवाली चीज को आप कूड़े में फेंक देते हैं और कूड़े में डालनेवाली चीजों को बैग में रखने लगते हैं. जब हम निराश होते हैं, तो हमें चारों तरफ सिर्फ नकारात्मकता दी दिखायी देती है. हम यह मान लेते हैं कि जो कुछ भी होगा वह बुरा ही होगा. कुछ अच्छा भी हो रहा हो, तो ढूंढ़ कर हम उसकी बुराई निकालते हैं और उसे ही अपने हिस्से का मान लेते हैं. यह नकारात्मकता की हद है. उम्मीद कभी न छोड़ें. कभी-कभी तो सिर्फ एक फोन कॉल से ही जिंदगी बदल जाती है.
एक मछुआरा था. एक दिन सुबह से शाम तक वह नदी में जाल डाल कर मछलियां पकड़ने की कोशिश करता रहा, लेकिन एक भी मछली जाल में न फंसी. जैसे-जैसे सूरज डूबने लगा, उसकी निराशा गहरी होती गयी. भगवान का नाम लेकर उसने एक बार और जाल डाला. इस बार भी वह असफल रहा, पर एक वजनी पोटली जाल में अटक गयी. मछुआरे ने पोटली निकाला और टटोला तो झुंझला गया और बोला-हाय ये तो पत्थर है! फिर मन मार कर वह नाव में चढ़ा.
बहुत निराशा के साथ कुछ सोचते हुए वह अपनी नाव को आगे बढ़ाता जा रहा था और मन में आगे की योजनाओं के बारे में सोचता चला जा रहा था. मन चंचल था तो फिर हाथ कैसे स्थिर रहता? वह एक हाथ से उस पोटली के पत्थर को एक-एक करके नदी में फेंकता जा रहा था. पोटली खाली हो गयी. जब एक पत्थर बचा था तो अनायास ही उसकी नजर उस पर गयी तो वह स्तब्ध रह गया. उसे अपनी आंखों पर यकीन नही हो रहा था. यह क्या! यह तो ‘नीलम’ था. मछुआरे के पास अब पछताने के अलावा कुछ नही बचा था. नदी के बीचोबीच अपनी नाव में बैठा वह सिर्फ अब अपने को कोस रहा था.
आपकी झोली में भी कई बार ‘नीलम’ आया होगा और आपने उसे पत्थर समझ कर ठुकरा दिया होगा. याद कीजिए ऐसे कितने मौके आपने गंवाये हैं, जब आपको गंवाने के बाद पता चला हो कि आपने कितना कीमती मौका गंवा दिया?
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