27-04-2013, 08:01 AM | #1 |
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श्री कृष्ण महिर थे इन ६४ कलाओं में
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !! दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !! |
27-04-2013, 08:02 AM | #2 |
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Re: श्री कृष्ण महिर थे इन ६४ क्लो में
भगवान श्रीकृष्ण ‘लीलाधर’ पुकारे जाते हैं। श्रीकृष्ण ने हर लीला के जरिए अधर्म को सहन करने की आदत से सभी के दबे व सोए आत्मविश्वास और पराक्रम को जगाया। भगवान होकर भी श्रीकृष्ण का सांसारिक जीव के रूप में लीलाएं करने के पीछे मकसद उन आदर्शों को स्थापित करना ही था, जिनको साधारण इंसान देख, समझ व अपनाकर खुद की शक्तियों को पहचाने और ज़िंदगी को सही दिशा व सोच के साथ सफल बनाए।
इसी कड़ी में श्रीकृष्ण का सांसारिक धर्म का पालन कर, गुरुकुल जाना, वहां अद्भुत 64 कलाओं व विद्याओं को सीखने के पीछे भी असल में, गुरुसेवा व ज्ञान की अहमियत दुनिया के सामने उजागर करने की ही एक लीला थी। यह इस बात से भी जाहिर होता है कि साक्षात जगतपालक के अवतार होने से श्रीकृष्ण स्वयं ही सारे गुण, ज्ञान व शक्तियों के स्त्रोत थे। इस बात को भागवतपुराण में कुछ इस तरह उजागर भी किया गया है – प्रभवौ सर्वविद्यानां सर्वज्ञौ जगदीश्वरौ। नान्यसिद्धामलज्ञानं गूहमानौ नरेहितैः।। यानी श्रीकृष्ण और बलराम ही जगत के स्वामी हैं। सारी विद्याएं व ज्ञान उनसे ही निकला है और स्वयंसिद्ध है। फिर भी उन दोनों ने मनुष्य की तरह बने रहकर उन्हें छुपाए रखा
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27-04-2013, 08:02 AM | #3 |
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Re: श्री कृष्ण महिर थे इन ६४ क्लो में
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27-04-2013, 08:03 AM | #4 |
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Re: श्री कृष्ण महिर थे इन ६४ क्लो में
दरअसल, किताबी ज्ञान से कोई भी व्यक्ति भरपूर पैसा और मान-सम्मान तो बटोर सकता है, किंतु मन की शांति भी मिल जाए, यह जरूरी नहीं। शांति के लिए अहम है – सेवा। क्योंकि खुद की कोशिशों से बटोरा ज्ञान अहंकार पैदा कर सकता है व अधूरापन भी। किंतु सेवा से, वह भी गुरु सेवा से पाया ज्ञान इन दोषों से बचाने के साथ संपूर्ण, विनम्र व यशस्वी बना देता है।
श्रीकृष्ण व बलराम ने भी अंवतीपुर (आज के दौर का उज्जैन) नगरी में गुरु सांदीपनी से केवल 64 दिनों में ही गुरु सेवा व कृपा से ऐसी 64 कलाओं में दक्षता हासिल की, जो न केवल कुरुक्षेत्र के महायुद्ध में बड़े-बड़े सूरमाओं को पस्त करने का जरिया बनी, बल्कि गुरु से मिले इन कलाओं और ज्ञान के अक्षय व नवीन रहने का आशार्वाद श्रीमद्भगवद्गगीता के रूप में आज भी जगतगुरु श्रीकृष्ण के साक्षात ज्ञानस्वरूप के दर्शन कराता है और हर युग में जीने की कला भी उजागर करने वाला विलक्षण धर्मग्रंथ है। गुरु सांदीपनि ने श्रीकृष्ण व बलराम को सारे वेद, उनका गूढ़ रहस्य बताने वाले शास्त्र, उपनिषद, मंत्र व देवाताओं से जुड़ा ज्ञान, धनुर्वेद, मनुस्मृति सहित सारे धर्मशास्त्रों, तर्क विद्या या न्यायशास्त्र का ज्ञान दिया। संधि, विग्रह, यान, आसन, द्वैध व आश्रय जैसे 6 रहस्यों वाली राजनीति भी सिखाई। यही नहीं, दोनों भाइयों ने केवल गुरु के 1 बार बोलनेभर से ही 64 दिन-रात में 64 अद्भुत कलाओं को भी सीख लिया।
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27-04-2013, 08:03 AM | #5 |
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Re: श्री कृष्ण महिर थे इन ६४ क्लो में
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27-04-2013, 08:08 AM | #6 |
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Re: श्री कृष्ण महिर थे इन ६४ क्लो में
1- नृत्य – नाचना
2- वाद्य- तरह-तरह के बाजे बजाना 3- गानविद्या – गायकी। 4- नाट्य – तरह-तरह के हाव-भाव व अभिनय
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27-04-2013, 08:08 AM | #7 |
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Re: श्री कृष्ण महिर थे इन ६४ क्लो में
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27-04-2013, 08:09 AM | #8 |
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Re: श्री कृष्ण महिर थे इन ६४ क्लो में
5- इंद्रजाल-जादूगरी
6- नाटक आख्यायिका आदि की रचना करना 7- सुगंधित चीजें- इत्र, तैल आदि बनाना 8- फूलों के आभूषणों से श्रृंगार करना
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27-04-2013, 08:09 AM | #9 |
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Re: श्री कृष्ण महिर थे इन ६४ क्लो में
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27-04-2013, 08:10 AM | #10 |
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Re: श्री कृष्ण महिर थे इन ६४ क्लो में
9- बेताल आदि को वश में रखने की विद्या
10- बच्चों के खेल 11- विजय प्राप्त कराने वाली विद्या 12- मन्त्रविद्या
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