23-07-2014, 11:02 PM | #1 |
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सच्चा सुख
साभार: जया शुक्ला बात बीस बरस पहले की है। उन दिनों मैं विवाहकेउपरान्त लालाजयचन्द जी के घर के सामने किराये के मकान में रहती थी। एक दिन अचानक सामनेके बंगले से किसी के रोने की आवाज आई थी। मैं ने देखा कि एकलडक़ा जो लगभग तीस वर्ष की आयु का था वो अपने पिता जयचन्द जी से बहस कर रहाथा और बात बढते बढते इस हद तकपहुँच गई थी कि उसने अपने पिताको जिनकी उम्र लगभग सत्तर के करीब होगी, उन्हें इस बुरी तरह से ढकेला था कि वो गिर पडे थे। उनकी हड्डी टूट गईथी। उसके बादवहाँ काफी भीड ज़मा हो गई थी। उसकी मां जो रेवाबा के नाम से प्रसिध्द थीं, जोर जोर से रो रहीं थीं और डांटरही थी कि क्या इसीलिये तुझे इतना बडा किया था कि ये दिन देखना पडे? मेरे जीवन में तो यह पहला अनुभव था कि बेटा बाप को मारे। अभी तक सुना तो थालेकिन पहली बार साक्षात अनुभव किया था। मुझे उस लडक़े सेघृणा हो रही थी। जयचन्द जी को उठने मेंपरेशानी हो रही थी इसलिये वहां अस्पताल से एम्बुलेन्स बुलाई गई। उनकी तबियत वहांकाफी बिगड ग़ई थी। पुलिस ने उनकीरिर्पोट लिखना चाही और पूछा कि यह सब कैसे हुआ तो उन्होंने कहा था कि वेपलंग से गिर पडे थे। उनके साथ गए लोगउन्हें कितना समझाते रहे कि आप सच बता दें, ऐसे दुष्ट लडक़े को तो दण्ड मिलना ही चाहिये लेकिनजयचन्द जी ने पुलिस को अपने बयान में यही कहा कि वे पलंग से गिर पडे थे। गवाह साक्षी थे किउनकी अपने बेटे से बहस हुई थी, वह जायदाद का बडा हिस्सा मांग रहा था और बात बढने परउसने उन्हें धकेल दिया। लेकिन जयचन्द जी नेकहा कि ऐसा कुछ भी नहीं है और उनके लडक़े को कोई सजा नहीं मिली। डॉक्टर ने देखा पीठपर डंडे के मारे हुए कई नीले निशान थे और पैरों की हड्डियों में तीन चारफ्रैक्चर भी थे किन्तु उनकी जिद के आगे डॉक्टर क्या किसी की भी नहीं चलीउन्होंने अपना बयान नहीं बदला। अस्पताल में वे छ:महीने रहे और उसके बाद वापस कभी उस घर में लौट कर नहीं गये।
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23-07-2014, 11:05 PM | #2 |
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Re: सच्चा सुख
मेरी उत्सुकता बढ ग़ई थी किआखिर वेकहाँ रहने चले गये थे।उसक्षेत्र में उनका बंगला ख्यातिनाम था। जल्दी ही लोगों सेउस घटना का पूरा ब्यौरा मुझे आस पास के लोगों से मिल गया।
जयचन्द जी का तीन लडक़े औरएक लडक़ी का भरापूरा परिवार था। हर समय मेहमानों कातांता लगा रहता। कहते हैं कि वेहीरे के बहुत बडे व्यापारी थे। अपनी जवानी मेंउन्होंने बहुत कमाया। एक बार कोई व्यक्तिउनके नाम का एक कमरा किसी वृध्दाश्रम में बनवाने के लिये दान मांगने आया था, तब उन्होंने उसे पांच लाख का चन्दा दिया था। उन्होने तब सोचा थाकि वृध्द लोग उन्हें हृदय से आर्शीवाद देंगे। एक एक करके तीनों लडक़ों औरलडक़ी का विवाह हो गया। तीनों बहुएं मिलजुल कर रहती थीं। सारे त्यौहार वेधूमधाम से मनाया करते थे। घर में बहुओं सेरौनक आ गई थी। जयचन्द जी और रेवा बाखुशहाल वृध्दावस्था का आनन्द उठा रहे थे। उन्हें लगता था किउनकी जीवनभर की तपस्या पूर्ण हुई अब। तीनों बेटे व्यापारमें उनका हाथ बंटाते थे। बंग्ला काफी बडा थासबके अपने अपने बेडरूम थे पर खाना एक साथ ही बनता था। एक दिन बडी बहू ने न जानेअपने पति के कान में क्या मंत्र फूंका कि उसने जयचन्द जी से कहा कि वह अलगहोना चाहता है। स्वतन्त्र रूप से रहनाचाहता है। यानि खाना पीना भी अलग करलेना चाहता है क्योंकि उसकी पत्नी के ऊपर घर के कामों की जिम्मेदारी अधिक आगई है, बाकिदोनों बहुए तो मजा लूटती हैं। रेवा बा ने बहुओंको और जयचन्द जी ने बेटों को खूब समझाने का प्रयास किया किन्तु अन्तत:तीनों बहुओं ने अपने अपने रसोईघर अपने अपने हिस्सों में बना लिये। रेवा बा और जयचन्दजी अकेले रह गये। अब पैंसठ की उम्रमें उन्हें अपने हाथ से खाना बनाना पडता था। बेटे बहुएं कोईझांकते तक नहीं थे। आसपडौस के लोगों में कानाफूसीहोती जब तीनों बहुएं अलग अलग सब्जी खरीदने बाहर आतीं। साथ ही रेवा बा भीअपनी अलग सब्जी खरीदतीं। लोग मुस्कुराते औरबातें बनाते। लोगों से यह बात अब छुपी नरह सकी कि वे सब अलग हो गये हैं।
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23-07-2014, 11:09 PM | #3 |
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Re: सच्चा सुख
एक दिन बडे भाई ने बाकिदोनों भाइयों को पास बुलाकर मीटींग की और तय किया कि अब वक्त आ गया है किवे पिताजी से व्यापार में अपना हक मांग लें। पर उनका सामना करनेकी किसी अकेले बेटे में हिम्मत न थी। अंतत: तय हुआ कितीनों मिल कर यह बात पिताजी से करें। जयचन्द जी ने जबसुना तो उन्हें बडा आघात लगा। उन्होंने फिरसमझाया कि आज व्यापार इतना बढा हुआ है कि इसमें जितना पैसा लगाया जाये कमहै, फिरबंटवारा होने से तो इस पर बहुत बुरा असर होगा। लेकिन किसी ने भीयह बात नहीं मानी और बंटवारा होकर रहा। जयचन्द जी ने अपनेलिये शेष जीवन के लिये आवश्यक पर्याप्त धन रख शेष तीनों बेटों में बांटदिया। व्यापार भी बांट कर उन्हेंसंभला दिया, घर अपनी पत्नी के नाम कर दिया। रेवा बा ने लडक़ोंसे कहा कि वे सब जब तक चाहें इस घर में रहें उन्हें आपत्ति नहीं है। दोनों बडे लडक़ों नेअपना अलग अलग मकान खरीद लिया किन्तु छोटा मां के ही साथ रहने लगा। दोनों को लडक़े कासहारा था, मनमें संतोष था कि चलो एक लडक़ा तो उनके साथ है।
एक दिन बडा लडक़ा उनके घरआया और उसने जयचन्द जी से कहा कि वे मकान भी बेच दें और अपने रहते हुए उसधन के तीन हिस्से कर दें नहीं तो बाद में कहीं यह आलीशान मकान कहीं छोटे कोन मिल जाये। वैसे भी उसका व्यापार कुछठीक नहीं चल रहा उसे पैसों की जरूरत है। जयचन्द जी ने कहाकि यह असंभव है। छोटा लडक़ा उनके साथअपने परिवार को लेकर रह रहा है। बची खुची एक यही तोचीज है जिसे वे अपने जीते जी नहीं बेचेंगे।
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23-07-2014, 11:10 PM | #4 |
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Re: सच्चा सुख
सुबह का समय था, छोटा लडक़ा व्यापार के सिलसिले में घर से बाहर गया हुआथा। तभी यह बडा लडक़ा घर आया था। पहले धीरे धीरे बातकरता रहा किन्तु जब उसने देखा कि पिताजी तो अपनी बात से टस से मस नहीं होरहे तो उनकी पीठ पर उन्हीं की लाठी सेजोर से दे मारा। जयचन्द जी वहीं गिरपडे। ईसपर भी उसने उन्हें उठाने की कोशिश नहीं की, बडबडाता हुआ वहीं खडा रहा। रेवा बा उन्हेंउठाने में मदद करने आगे आईं। अभी वे पूरी तरह सेउठ भी नहीं पाए थे कि उसने उन्हें जोर से धक्का दे दिया। अबकि बार जो वेगिरे उनके उठने की शक्ति जाती रही वे बेहोश हो गये और एम्बुलेन्स में उनकोअस्पताल ले जाया गया।
अस्पताल में छ: महीनों केदौरान बडा, मंझला लडक़े और दोनों बहुएं बच्चे मिलने आते थे, बडे लडक़े ने एक बार कहा भी, ''पिताजी मुझसे बहुतबडी भूल हो गई, मैं अकेले व्यापार चला न पाने केतनाव में था। मुझे माफ कर दीजिये। आगे से कभी मैं ऐसाव्यवहार नहीं करुंगा।'' पर सम्बन्धों में दरार आ गई। मानो प्रेम के धागेमें टूटने के बाद जोडने पर गांठ पड ग़ई थी। नफरत से जयचन्द जीने मुंह फेर लिया। किन्तु कभी डॉक्टरऔर पुलिस या किसी के भी सामने कह न सके कि क्या हुआ था? सबसे यही कहते पलंग से गिर पडा था। तन से ज्यादा तो मनपर चोट आई थी। धीरे धीरे वह दिन भी आया जबडॉक्टर ने उन्हें घर जाने की इजाजत दे दी। उन्होंने रेवा बासे कहा कि उनकी एक इच्छा है क्या वे पूरी करेंगी? तब उन्होने कहा कि, '' मेराजीवन तो आप ही के लिये है। आप के कारण तो मैंमाथे में सिन्दूर लगाने की अधिकारिणीहूँ। कह डालिये आपको क्या कहनाहै?'' '' इसबार मेरी घर जाने की इच्छा नहीं है। यदि मुझे तुम्हारासाथ मिले तो मैं बाकि की जिन्दगी वृध्दाश्रम में गुजारना चाहताहूँ। क्या तुम इसके लिये तैयारहो? '' उन्होंने कहा तो रेवा बा ने सहर्ष अपनी सहमति दे दी। छोटे लडक़े सेउन्होंने वचन लिया कि उनकी मृत्यु के बाद अपनी मां का ख्याल रखना। उन्होंने अपनीपत्नी के बाद छोटे के नाम बंगला कर दिया।
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23-07-2014, 11:13 PM | #5 |
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Re: सच्चा सुख
जयचन्द जी रेवा बा के साथवृध्दाश्रम आ गये। यहाँ उन्हें नई हीदुनिया देखने को मिली। उन्होंने पायावहाँ रहने वाले अन्य लोगों केदु:खों के आगे उनका दु:ख तो कुछ भी नहीं। हम लोगों के पास कमसे कम पर्याप्त धन तो है कि वे जो चाहें खरीदें, जहां चाहें यात्रा करें और बाकि के दो बच्चे और उनकेपरिवार के लोग और बेटी कम से कम कभी कभी तो मिलने आते हैं। लेकिनवहाँ जो लोग थे, उन्हें तो जैसे उनके बच्चे घर से निकाल कर भूल गयेथेवृध्दाश्रम आने से पहले जिन्होंने अपने माता पिता के भरपेट खाने तक परपाबन्दी लगाई थी। इस उम्र में भी कमाकर पेट भरना पडा करता था उनको। किसी को अपने लडक़ेसे शिकायत थी तो किसी को बहू से।
वहाँ पर एक रुक्मणी बा थीं उनकीस्थिति काफी खराब थी, उनसे रेवा बा ने पूछा तो वे रो पडीं। उन्होंने बताया वहएम ए तक पढी हैं। उसके चार बेटे हैं, सबकी शादी हो चुकी है। किन्तु घर में सबकीनजर उसी के पैसों पर थी। सारी जिन्दगी हाडतोड मेहनत की थी, शिक्षिका थी तो जो कुछ पैसे बचा पाई वो उसने बैंक मेंफिक्स करवा कर रख दिये थे। बस एक दिन चारोंबच्चों ने उससे यह कह कर कि वह उन्हें ॠण दे दे थोडे ही समय में वे उसेवापस कर देंगे। उसके भोलेपन का फायदाउठाते हुए उससे पैसे तो ले लिये और जो हर महीने ब्याज आता था वह भी हाथ सेगया। हालत इतनी खराब हो गई किउनके खाने पर भी बहुओं ने टोका टोकी शुरु कर दी। कहती थीं कि इसबुढापे में इनको खाने का कितना लालच बढ ग़या है। उन्हें हलुवा बहुतप्रिय था। वह भी सूजी की जगह आटे का, वह भी खाने को तरस गईं। यहाँ वृध्दाश्रमआकर अब शान्ति है। अपनी पेन्शन केपैसों से चाहे समाचार पत्र पढे या कोई किताब खरीदे किसी के आगे हाथ नहींफैलाना पडता है.
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23-07-2014, 11:16 PM | #6 |
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Re: सच्चा सुख
उस वृध्दाश्रम में एक नियमथा। सभी लोगों को सुबह पांच बजेउठ जाना पडता था और फिर नित्यकर्म से निपट कर प्रार्थनासभा में जाना पडताथा, जहाँ कभी मुरारी बापू तो कभीआसाराम बापू के प्रवचन सुनने का सुअवसर भी मिलता था। सबसे बडी बात यह थीकि सभी वृध्द लोगों को एक एक जिम्मेदारी सौंपी गई थी। उन सभी को चायनाश्ते व खाने के समय साथ रहना होता था। वहाँ लाईब्रेरी भीथी और खेलने के लिये एक छोटा सा मैदान था। जयचन्द जी को अपनाबचपन याद आ गया। धीरे धीरे वे पूर्णस्वस्थ हो गये। अब उन्हें लकडी क़े सहारेकी जरूरत नहीं थी। उन्होंने अपनेपिछले जीवन को भुला दिया था। रेवा बा भी खुश थींयहाँ। अपनी हमउम्र सहेलियों केसाथ वे रचपच गईं थीं। वृध्दाश्रम के रूपमें उन्हें अमूल्य रत्न हाथ लगा था। सुन्दर उपदेशों केरूप में प्राप्त पारसमणि के स्पर्श पश्चात पिछले जीवन की लौह कालिमा अबअमूल्य कंचन में परिणित होकर जीवन को प्रकाशित कर रही थी। उन दोनों को लगनेलगा था कियहाँ तो उन्हें बहुत पहले आजाना चाहिये था। घर पर तो वे लोगअपने लिये समय ही नहीं निकाल पाते थे परयहाँ सारा समय अपने ही लिये था।
इस प्रकार वृध्दाश्रम मेंजयचन्द जी और रेवा बा बहुत ही आनन्दपूर्वक जीवन यापन कर रहे हैं। कुछ दिन पहले हीमैं उनसे मिलने गई थी, उनसे पूछा कि क्या उनको अपना परिवार याद नहीं आता? कभी उन सबसे मिलने की इच्छा नहीं होती? तो आंखों में आंसू भर रेवा बा ने कहा था - अब यही मेरा परिवार है। इन सबके बीच हमेंजो अपनापन मिला है वो खून के रिश्तों से भी बढ क़र है।अबये ही मेरे अपने हैं। पास बैठे जयचन्द जीमुस्कुरा रहे थे। (इति)
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