13-12-2016, 10:13 AM | #1 |
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सरदर्द का इलाज उर्फ़ भक्त का समर्पण
सरदर्द का इलाज उर्फ़ भक्त का समर्पण
- ओशो कथा कहती है कि श्री कृष्ण भगवान ने जब सिरदर्द मिटाने के लिए भक्तों से उनकी चरण धूलि मांगी, तब सबने इंकार कर दिया, लेकिन गोपियों ने चरणधूलि दी।प्रभु, इस प्रसंग का रहस्य बताने की कृपा करें। रहस्य बिलकुल साफ है। बताने की कोई जरूरत नहीं है। सीधा-सीधा है। दूसरे डरे होंगे। दूसरों की अस्मिता रही होगी, अहंकार रहा होगा। अब यह बड़े मजे की बात है। अहंकार को विनम्र होने का पागलपन होता है। अहंकार को ही विनम्रहोने का खयाल होता है। तो जो दूसरे रहे होंगे, उन्होंने कहा, पैर की धूलभगवान के लिए? कभी नहीं। कहां भगवान, कहां हम! हम तो क्षुद्र हैं, तुमविराट हो। हम तो ना-कुछ हैं, तुम सब कुछ हो। लेकिन इस ना-कुछ में भी घोषणाहो रही है कि हम हैं, छोटे हैं। हमारे पैर की धूल तुम्हारे सिर पर? पापलगेगा, नर्क में पड़ेंगे। लेकिन गोपियां जो सच में ही ना-कुछ हैं, उन्होंने कहा हमारे पैर कहां? हम कहां? हमारे पैर की धूल भी तुम्हारे हीपैर की धूल है। और यह धूल भी कहां? तुम ही हो। और फिर तुम्हारी आज्ञा हो गईतो हम बीच में बाधा देनेवाले कौन? हम कौन हैं जो कहें नहीं? प्रेम की विनम्रता बड़ी अलग है। ज्ञान की विनम्रता थोथी है, धोखे से भरी है।ज्ञानी जब तुमसे कहता है, हम तो आपके पैर की धूल हैं, तुम मान मत लेना।जरा उसकी आंख में देखना। वह कह रहा है, समझे कि नहीं, कि हम महाविनम्र हैं! >>>
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
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ओशो, सरदर्द, osho |
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