My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > Art & Literature > Hindi Literature
Home Rules Facebook Register FAQ Community

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 30-08-2013, 10:21 PM   #1
rajnish manga
Super Moderator
 
rajnish manga's Avatar
 
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242
rajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond repute
Default डायरी के पन्ने

डायरी के पन्ने (1)
(अंतर-जाल से)

अब एक बार फिर पीछे मुड़ें? जब मैं एल.टी. की परीक्षा दे चुकी थी। शायद परीक्षा परिणाम उस समय तक निकला भी नहीं था (या निकल गया था, याद नहीं) कि यू.पी. में सर्विस करने का अवसर मिला। हमारे प्रिन्सिपल डॉ. इबादुर रहमान खान जो वहाँ इन्सपेक्टर ऑव स्कूल्स भी थे, के हस्ताक्षर से एक फरमान आया कि वे मुझे मेरठ में डिप्टी इन्स्पैक्ट्रैस की पोस्ट पर लाना चाहते हैं। पर शर्त यह कि मैं उर्दू की कोई प्रारम्भिक परीक्षा उर्त्तीण कर लूँ । उर्दू का अलिफ़बे भी मैं नहीं सीख पाई थी। दादा ने अपनी मृत्यु से पूर्व एक बार मुझ उर्दू की वर्णमाला सिखाने का प्रयास भी किया, किन्तु मेरे पल्ले वह पड़ा ही नहीं। उन दिनों उत्तरप्रदेश में राजकीय कार्य की वर्नाक्यूलर भाषा उर्दू ही हुआ करती थी। अतः डॉ. खान को विनम्र शब्दों में उनकी ऑफर के लिए आभार तो व्यक्त किया ही साथ में उर्दू न सीख पाने की असमर्थता भी बता दी थी। दीदी को ही मैंने लिखा कि जयपुर में मेरे लिए कोई उचित नौकरी की कोशिश करें। उनका जो उत्तर आया बड़ा निराशाजनक था। कुछ ही दिनों पश्चात्* अचानक उन्होंने फौरन जयपुर पहुँचने का बुलावा भेजा। उस निराशाजनक उत्तर के पीछे अनुमान मात्र था कि एक ही विभाग में दो बहिनें कार्यरत हों, यह शायद उनके डाइरेक्टर ऑव एज्यूकेशन को मान्य नहीं होगा। यह 1940 का वर्ष था।

Last edited by rajnish manga; 31-08-2013 at 11:13 AM.
rajnish manga is offline   Reply With Quote
Old 30-08-2013, 10:22 PM   #2
rajnish manga
Super Moderator
 
rajnish manga's Avatar
 
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242
rajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond repute
Default Re: डायरी के पन्ने

जयपुर में कन्या विद्यालय के नाम पर ही संस्था थी- महाराज गर्ल्स हाई स्कूल। उसमें हिन्दी अध्यापिका के पद के लिए मैं इन्टरव्यू देने गई। इन्टरव्यू लेने वालों में मुख्य थे जोबनेर के ठाकुर साहब श्री नरेन्द्र सिंह जी। उनका पहला प्रश्न था- राष्ट्रकवि कौन हैं? उनकी किसी कविता की पंक्तियाँ सुनाने को कहा। फिर सुभद्रा कुमारी चौहान की किसी प्रसिद्ध कविता की पंक्तियाँ सुनानी पड़ीं- बुन्देले हर बोलों के मुख, हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वह तो, झाँसी वाली रानी थी॥ उस समय की उनकी मुख-मुद्रा से मुझे आभास हुआ की मेरा चयन हो जाएगा। यह घटना जुलाई मध्य की है। फिर नियुक्ति पत्र मिला और मैंने 1 अगस्त 1940 को महाराजा गर्ल्स हाई स्कूल में हिन्दी अध्यापिका का पद सम्हाल लिया। एक बात और याद आ गई। जब मैं बी.ए. पढ़ रही थी, जीजाजी का आग्रह हुआ कि हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग द्वारा आयोजित विशारदकी परीक्षा मैं दूँ । उस समय विशारदहिन्दी को बी.ए. के समकक्ष मान्यता प्राप्त थी। वह परीक्षा भी मैंने सहजता से उत्तीर्ण कर ली थी। जोबनेर ठाकुर साहब- शिक्षामन्त्री, इस तथ्य से विशेष प्रभावित हुए थे। अब तक जो कुछ लिखा, टीटू, तुम निस्सन्देह बोर हो रही होगी। आवश्यक-अनावश्यक सब कुछ ही तो लिख मारा। अब आज इतना ही। अध्यापनकाल का प्रारम्भ कैसे हुआ इसका उल्लेख, कल तक के लिए स्थगित । ठीक?

Last edited by rajnish manga; 31-08-2013 at 11:13 AM.
rajnish manga is offline   Reply With Quote
Old 30-08-2013, 10:26 PM   #3
rajnish manga
Super Moderator
 
rajnish manga's Avatar
 
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242
rajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond repute
Default Re: डायरी के पन्ने

डायरी के पन्ने (2)

इलाहाबाद छोड़ने के पूर्व की कुछ घटनाएँ याद आ रही हैं। जब मैं इन्टरमीडियेट में पढ़ रही थी, दादा को मेरे विवाह की चिन्ता हुई। कानपुर के एक क्रान्तिकारी, स्वतंत्रता सेनानी विख्यात पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी हुआ करते थे। हरिशंकर विद्यार्थी नामक उनके पुत्र के साथ दादा ने मेरे विवाह की चर्चा अपने कानपुरी मित्रों के मार्फत की। दादा ने उन्हें मेरे लिए अति योग्य वर के रूप में पसन्द कर लिया। अपने एक पत्र द्वारा दादा ने मुझे इतनी सूचना दी और मेरी सहमति माँगी। संयोग से वह पत्र भी अभी मिल गया। मेरे सहमत-असहमत होने से पूर्व ही जीजाजी ने दादा को लिखा कि वे स्वयँ कानपुर जा कर उस विद्यार्थी परिवार से मिलेंगे, लड़के को स्वयं देखकर निर्णय लेना चाहेंगे। जीजाजी कानपुर गए हरिशंकर जी की जाँच-परख करके लौट कर मेरी उपस्थिति में दीदी को बताया की परिवार यद्यपि बहुत अच्छा है पर लड़के की टाँग में कुछ खोट है। वह झुक कर के चलता है। दीदी ने आँख से कनखी मार कर मेरी ओर देखा और स्वयँ झुक कर चलना शुरू किया। फिर जीजीजी से पूछा ऐसे चलता है? ‘हाँजीजाजी का संक्षिप्त उत्तर था। उस समय ठहाका मार कर हम सब हँस पड़े थे। आखिर जीजाजी ने दादा को लिख दिया कि मित्थल के लिए यह रिश्ता उपयुक्त नहीं है। कुछ समय बाद शायद मौसी के द्वारा सुना गया कि उनकी कोई रिश्ते में लगने वाली लड़की मुक्ता’ (जो मेरे साथ पढ़ती थी) का विवाह हरिशंकरजी से सम्पन्न हुआ। अपने गिरते स्वास्थ्य को देखते दादा अपने जीवनकाल में ही मेरे विवाह के लिए चिन्तित रहते थे। इसी कारण वह अपने भाइयों को भी मेरे लिए उपयुक्त वर खोजने के लिए लिखते होंगे। उन दिनों हमारे सबसुख चाचा (जो मुझे बहुत प्यार करते थे) जावरा स्टेशन पर बुकिंग क्लर्क थे। जावरा छोटी सी मुस्लिम रियासत थी। इन्टर की परीक्षा देकर ग्रीष्मकालीन अवकाश में हम सब अजमेर आए थे। उसी बीच सबसुख चाचा का एक पोस्टकार्ड दादा के नाम आया। उन्होंने दादा को सूचित किया कि नूरचश्मी मित्थल (चाचा मेरे लिए सदा यही सम्बोधन प्रयुक्त करते थे) को देखने दो सज्जन हैदराबाद से आ रहे हैं

Last edited by rajnish manga; 31-08-2013 at 11:14 AM.
rajnish manga is offline   Reply With Quote
Old 30-08-2013, 10:29 PM   #4
rajnish manga
Super Moderator
 
rajnish manga's Avatar
 
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242
rajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond repute
Default Re: डायरी के पन्ने

बहुत ऊँचा खानदान है, मित्थल के लिए इससे बढ़िया घर-वर नहीं मिलेगा। दादा ने वह खत, जो उर्दू में लिखा था (हमारे सभी चाचा ईवन दादा की वर्नेक्यूलर उर्दू ही हुआ करती थी) पढ़ कर हमें सुना दिया। उस समय लजा कर मैं दादा के कमरे से बाहर निकल आई थी। यथासमय हैदराबाद के दोनों महानुभाव हमारे यहाँ पधारे। कुछ देर तक दादा से गुफ्तगू चलती रही। वे लोग मुझे एक बार देखना तो चाह ही रहे थे। उनके लिए नाश्ता और शर्बत आदि की व्यवस्था दादा ने करा रखी थी। उनके सामने नाश्ता प्रस्तुत करने के नाम पर मुझे दादा ने बुलाया। बड़े संकोच से मैंने ड्रॉईंग रूम में प्रवेश किया प्लेट्स मेज़ पर रख सिर झुकाए उल्टे कदम लौट आई। एक झलक पर ही उन लोगों ने मुझे देखा और पसन्द कर लिया। कुछ ही समय पश्चात् दादा तथाकथित भावी वर की फोटो ले कर अन्दर आए। दीदी को थमाते हुए कहा कि लड़के की यह तस्वीर है। मित्थल को भी दिखा दो। उस भलेमानस का नाम दीपकथा। फोटो में एक नयनसुख चेहरा देखा। आकर्षक व्यक्तित्व। दादा फोटो लेने वापिस अन्दर आए। दीदी ने सहमति व्यक्त कर दी। उस समय मेरे असहमत होने का प्रश्न ही कहाँ था। बात फाइनल स्टेज पर पहुँची और वे जाने को खड़े हुए। इतने में उन में से एक व्यक्ति ने दादा को और अधिक इम्प्रेस करने को कह दिया कि आपकी बेटी हमारे यहाँ जब बहूरानी बन कर आएँगी, इनके लिए भी पर्देवाली एक शानदार कार का प्रबन्ध कर दिया जाएगा। कार पर पर्दे चढ़े हों और उसमें दादा की बेटी कैदी जैसी बैठेगी, यह दादा को कैसे मान्य होता। उन्होंने तत्काल ही कह दिया कि उन्हें पर्दे से परहेज है। लिहाजा उन्हें अब यह रिश्ता मंजूर नहीं।

Last edited by rajnish manga; 31-08-2013 at 11:15 AM.
rajnish manga is offline   Reply With Quote
Old 30-08-2013, 10:32 PM   #5
rajnish manga
Super Moderator
 
rajnish manga's Avatar
 
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242
rajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond repute
Default Re: डायरी के पन्ने

दादा ने उन्हें निराश कर दिया था। असल में ये लोग उस खानदान के गुमाश्ता और दीवान थे। अजमेर से लौटते समय वे दोनों जावरा रुक कर चाचा से फिर मिले और उन्हें सारा किस्सा सुना कर कह दिया कि हम लोग आपके भाई साहब के यहाँ से कितनी निराशा लेकर लौट रहे हैं। चाचा अवाक्*! दूसरे दिन ही चाचा स्वयँ दादा से मिलने अजमेर आ गए। दादा को बहुत मनाने की कोशिश की। पर अपने दादा निश्चय पर अडिग रहे। ऐसा अच्छा मौका दादा चूक रहे हैं, यह कह कर चाचा लौट गए। आज तुम्हारे सामने अपने मन की बात खोलूँ? दादा का हठ मुझे भी कचोटता रहा, कुछ दिनों तक। दीदी मेरी मित्र जैसी थीं। उनसे मैंने कह भी दिया कि दादा पूछते तो सही कि मुझे पर्दा गाड़ी में बैठते कष्ट होता क्या? जालीदार पर्दे में से मैं बाहर झाँक तो सकती थी। बाहर वाला मुझे क्यों देखें? आदि-आदिऐसे नाज़ुक मसले पर मैं दादा के आगे मन खोलने की हिम्मत न जुटा पाई थी। हाँ, दीदी ने अलबत्ता दादा को कह दिया कि मित्थल को पर्दे में रहने से उज्र नहीं था। जानती हो, उस समय दादा ने क्या तर्क दिया था? अम्मा यद्यपि परलोकगामी हो गई थीं पर अम्मा का आदर्श, उनका सिद्धान्त दादा को सदैव सजग रखता था। अम्मा पर्दे को कुप्रथा की संज्ञा दे चुकी थीं। अम्मा की हर इच्छा का मान रखना दादा के जीवन का महान्* लक्ष्य था। इस रिश्ते को नामंजूर कर दादा ने अम्मा की आत्मा को सन्तोष पहुँचाया। ऐसा विश्वास दादा का रहा होगा। टीटू, ऐसे संवेदनशील प्रसंग और भी आने हैं। आज इतना ही । पुराने पत्रों को पढ़ने की इच्छा है।

Last edited by rajnish manga; 31-08-2013 at 11:16 AM.
rajnish manga is offline   Reply With Quote
Old 30-08-2013, 10:34 PM   #6
rajnish manga
Super Moderator
 
rajnish manga's Avatar
 
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242
rajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond repute
Default Re: डायरी के पन्ने

डायरी के पन्ने (3)

आज सुबह-सुबह तुमसे फोन पर बात कर के लौटी अपने भ्रम का बयान स्वाति से करती-करती खूब हँसी। हँसने के ऐसे क्षण अब जीवन में यदा-कदा आते हैं ना? ना जाने किस ख़ुमारी में फोन पकड़ा होगा कि तुम्हारा स्वर भी नहीं पहचान सकी। उत्तर-प्रत्युत्तर में स्थिति स्पष्ट हुई। तो तुम आज नहीं आ रही हो। कल सन्ध्या समय लिखने की छुट्टी कर अपने खतों का अम्बार खोला। कुछ सॉर्टिंग की। आज वह कार्य बड़े परिश्रम से सम्पन्न कर पाई। दादा, भाईजी, शरण भाई, नाना, मौसी, दीदी, जीजाजी तथा अन्याय अपनी सहेलियों और सहपाठिनों के पत्र अलग-अलग छाँट कर पिन-अप कर दिये हैं। बिर्जन के पत्र तुम्हारे लिए विशेष रुचिकर होंगे। प्रतापभाई का एक पत्र गुजराती में लिखा प्राप्त हुआ। वह तुम्हीं से पढ़वा कर समझँगी। दादा का, न जाने क्यों, केवल एक ही पत्र मिला। निश्चय ही एक बण्डल और कहीं ढूँढने से मिल जाने की आशा है। हाँ अब बताओ इस नई कॉपी का शुभारम्भ किस प्रसंग से किया जाए? युनिवर्सिटी के अध्ययन-काल के कुछ दृश्य देखोगी? इलाहाबाद युनिवर्सिटी की स्थापना सन् 1887 में हुई थी। अतः 1937 में बड़ी धूमधाम से इसकी स्वर्ण जयन्ती मनाने की योजना बनी थी। इस शुभावसर पर भारत कोकिला श्रीमती सरोजनी नायडू का दर्शन किया। उनका भाषण भी सुना। उसी अवसर पर जो कॉन्वोकेशन हुआ, उसे उन्होंने ही अर्डेस किया था। इस समारोह के विभिन्न कार्यक्रम एक सप्ताह तक चलते रहे। एक सन्ध्या हिन्दी नाटक के लिए निश्चित की गई थी। श्री रविन्द्रनाथ द्वारा लिखित विसर्जननामक नाटक का मंचन किया गया। उसमें मुझे रानी का अभिनय करना था। इस नाटक का चयन किसने किया था व निर्देशन किसका था, यह सब बिल्कुल याद नहीं। हमारी एक सहपाठिन थी प्रीती मुखर्जी। बंगाली क्रिश्चियन थी। लखनऊ आई.टी. कॉलेज से इन्टर पास करके इस युनिवर्सिटी में प्रवेश लिया था। आई.टी. कॉलेज लखनऊ की लड़कियाँ अल्ट्रा फैशनेबल और इंगलिश बोलचाल में पटु थीं। हमारे प्रॉक्टर थे मिस्टर रुद्रा। उन्होंने हम लोगों के मेकअप का दायित्व प्रीति को सौंपा।

Last edited by rajnish manga; 31-08-2013 at 11:21 AM.
rajnish manga is offline   Reply With Quote
Old 30-08-2013, 10:36 PM   #7
rajnish manga
Super Moderator
 
rajnish manga's Avatar
 
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242
rajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond repute
Default Re: डायरी के पन्ने

मैं साड़ी व कृत्रिम आभूषण आदि पहन कर जब मेकअप के लिए प्रीति के सामने खड़ी हुई उसने मेरे अधरों पर लिपस्टिक लगाना चाहा। इससे पूर्व मैं देख रही थी कि एक ही लिपिस्टिक अन्य सभी लड़कियों के होठों पर लेपा जा रहा था। मैंने बलवा कर दिया। प्रीति से साफ कह दिया कि मैं लिपिस्टिक नहीं लगवाऊँगी। उसने प्रेम से समझाने की कोशिश की रानी का पार्ट कर रही हो लिपिस्टिक लगाए बिना कैसे चलेगा? फिर भी मैं अपने निर्णय पर अड़ी रही। हमारे प्रॉक्टर साहब ग्रीन-रूम के बाहर कुर्सी लगा कर बैठे थे। सारी व्यवस्था उन्हीं को करनी थी। प्रीति गुस्से में तमतमाती रुद्रा साहब के पास पहुंची और मेरी शिकायत उनसे कर आई। हमारे प्रॉक्टर साहब बहुत ही स्नेही, सम्वेदनशील और सबका कष्ट दूर करने के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने दरवाज़े पर खड़े हो कर मुझे आवाज़ दी। मैं घबराती हुई उनके सामने आ गई। शर्म और घबराहट के कारण मैं उनसे नज़र नहीं मिला सकी। उन्होंने स्नेहपूर्वक मेरे सिर पर हाथ रख कर कहा – ‘‘मेरी ओर देखो…” बोले – ‘‘तुम लिपिस्टिक नहीं लगाना चाहतीं मैं मान गया पर दूसरा उपाय तुम्हारे पास क्या है?” मैंने कितनी प्रफुल्लता से उन्हें कह दिया पान खा लूँगी। होठों पर अच्छी लाली जा जाएगी। तत्काल ही उन्होंने चपरासी को भेज छः पान मँगवा दिये बस क्या था मंच पर जाने से कुछ ही मिनट पहले मैं पान चबा लेती। लिपिस्टिक से बढ़िया लाली अधरों पर रच जाती। प्रीति इस व्यवस्था से बहुत कुढ़ गई क्योंकि उसे विश्वास था कि रुद्रा साहब मुझे तिड़ी पिला कर लिपिस्टिक लगाने को अनिवार्य करवा देंगे। यह ड्रेस रिहर्सल के दिन का वृत्तान्त है। उस दिन हॉल में स्टूडेन्ट जैन्ट्री ही थी। कुछ शरारती तत्व उनमें होने ही थे। दो चार लड़कों ने एक विचित्र योजना बना डाली। हुआ यों कि उस नाटक के ओपनिंग सीन में देवी का एक छोटा सा मन्दिर दर्शाया गया। जिस रानी का पार्ट करने मैं जा रही थी, वह निःसन्तान थी। अतः वह देवी की पूजा करने आई और देवी से एक पुत्र प्राप्ति की कामना कर रही थी।

Last edited by rajnish manga; 31-08-2013 at 11:23 AM.
rajnish manga is offline   Reply With Quote
Old 30-08-2013, 10:37 PM   #8
rajnish manga
Super Moderator
 
rajnish manga's Avatar
 
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242
rajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond repute
Default Re: मेरी कहानी /डायरी के पन्ने

उसी सन्दर्भ में उन लड़कों ने आपस में तय किया कि कल अपन एक गुड्डा लाकर मंच पर फेंक कर कहेंगे कि लो इस पुत्र को अपनी गोद में बिठा लो। मेरी एक सहपाठिन थी विमला सक्सेना। उसके भाई ने (जो युनिवर्सिटी का ही छात्र था) इस योजना की बात सुन ली। उसने घर पहुँच कर विमला के कान में यह बात डाल कर सावधान रहने की सलाह दी। दूसरी दिन जब मेन शो होना था विमला ने मुझे इस अटपटी योजना की बात बताई। मैं कितनी घबराई, कह नहीं सकती। पर हमारे संरक्षक रुद्रा साहब जो थे। लड़कियों का मामला था, बड़ी महती जिम्मेवारी उन पर थी। मैंने उनसे जा कर यह बात बताई। उन्होंने आश्वासन दिया कि ‘‘तुम घबराती क्यों हो? मैं यहां किसलिए बैठा हूँपर्दे के पीछे मन्दिर तैयार, मैं भी सजी-धजी साइड विन्ग में पूजा का थाल लिए खड़ी हो गई। पर्दा ऊँचा होने से क्षण भर पूर्व रुद्रा साहब स्टेज पर आ कर खड़े हो गए। पल भर चुप रह कर उन्होंने हॉल के चारों और दृष्टि डाल कर अपनी उपस्थिति जता दी। पर उनका ऐसा करना आउट ऑव प्लेस न मालूम दे इसलिए उन्होंने एक वाक्य बोल कर घोषणा की कि अब नाटक का मंचन होने वाला है। यद्यपि इस दिन केवल इन्वाइटेड जेन्ट्री ही की अपेक्षा थी, किन्तु कुछ छात्र अपनी दादागिरी से प्रवेश पा ही चुके थे। रुद्रा साहब के व्यक्तित्व का जादू ही था कि उन लड़कों को गुडिया स्टेज पर फेंकने का साहस नहीं हुआ। बड़ी शान्ति से सारा कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। हाँ, इस दिन भी बिना मेरी विनती किए रुद्रा साहब ने पान की पुडिया मुझे थमा दी थी। उन दिनों प्रॉक्टर का दायित्व और अधिकार क्षेत्र आज के जैसा सीमित नहीं था। वह अपने डिस्क्रीशन पर किसी छात्र को एक्सपैल भी कर सकते थे। उनका व्यक्तित्व कैसा दोहरा रहा होगा।
rajnish manga is offline   Reply With Quote
Old 30-08-2013, 10:39 PM   #9
rajnish manga
Super Moderator
 
rajnish manga's Avatar
 
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242
rajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond repute
Default Re: मेरी कहानी /डायरी के पन्ने

एक ओर आतंक दूसरी ओर संरक्षण। वैसे युनिवर्सिटी में वह सब के संरक्षक के रूप में अधिक जाने जाते थे। छात्र-छात्राओं के हित का वह पूरा ध्यान रखते थे। उनके हाथ का लिखा एक सर्टिफिकेट मेरे पास अभी भी सुरक्षित है। जब मैं बी.ए. फर्स्ट इयर में थी हिन्दी विभाग के अध्यक्ष श्री धीरेन्द्र वर्मा ने कहानी लेखन की प्रतियोगिता का कार्यक्रम बनाया। छात्र-छात्राओं को कहानी मात्र लिख कर ही प्रेषित नहीं करनी थी, अपितु स्वयं पढ़कर सुनानी भी थी। प्रो. रामकुमार वर्मा इस कार्यक्रम के आयोजक थे। मैं उस दिन बिर्जन को अपने साथ ले कर गई थी। वह स्टेज शाय बिल्कुल नहीं थी। कई अर्थों में वाचाल भी थी। जब मेरी कहानी का नम्बर आया मैं श्री रामकुमार वर्मा के पास गई और बता दिया कि नर्वसनेस की वजह से अपनी कहानी स्वयं नहीं पढ़ सकँगी। इसके आगे जो कहना चाह रही थी, उससे पूर्व ही उन्होंने कहा- ‘‘कोई बात नहीं, मैं पढ़ दूँगा।मैंने बड़ी घृष्टता की और कहा- ‘‘आप नहीं पढ़ेंगे, मेरी छोटी बहिन पढ़ेगी।उन्होंने हमारी बलकट्टी बहन को देखा और सहमति दे दी। पर मेरा दुर्भाग्य देखो। उस दिन, उस समय, बिर्जन को जाने क्या हुआ वह कहीं-कहीं ही नहीं, कई जगह अटकी। गला उसका रुँधने लगा पर पूरा पढ़ ही डाला। मेरी कहानी का शीर्षक बड़ा अजीब लगेगा तुम्हें। पर बता ही दूँ। ‘‘जुन्हैया, मैं उई कै बिसै जायानी ज्योत्सना (चाँदनी) तू उदित हुई और अस्त भी हो गई? कहानी का सार अब तनिक भी याद नहीं रहा। मेरी कहानी फेल हो गई। हिन्दी विभाग में मेरा जो वर्चस्व था, उस दिन बिखर गया। बाद में रामकुमार जी ने मुझे मौखिक सान्त्वना अवश्य दी कि आपकी कहानी सुन्दर थी। आपने मुझे पढ़ने से मना कर गलती की। निर्णायक-गण भी धुरन्धर लोग थे। विभागाध्यक्ष श्री धीरेन्द्र वर्मा, श्री भगवती चरण वर्मा और शायद रमाशंकर शुक्ल रिसाल। मैंने उस दिन कसम खा ली कहानी कभी न लिखने की।
rajnish manga is offline   Reply With Quote
Old 30-08-2013, 10:51 PM   #10
rajnish manga
Super Moderator
 
rajnish manga's Avatar
 
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242
rajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond repute
Default Re: डायरी के पन्ने

बी.ए. में हिन्दी साहित्य, अंग्रेजी साहित्य के साथ मेरा तीसरा विषय दर्शनशास्त्र था। दर्शनशास्त्र पर एक एसे कॉम्पिटिशन हुआ। मेरी एक अच्छी सखी थी कमल कार। उसको प्रथम पुरस्कार मिला और मुझे सांत्वना। एक कप मिला था जो वर्षों हमारे ड्राइंग रूम में सजा रहता था। जर्मन सिल्वर का था। काला-पीला होकर अभी भी कहीं कबाड़े में पड़ा होगा। मैं सम्भवतः पूर्व में वर्णन कर चुकी हूँ मेरी दो घनिष्ठ मित्र थीं सावित्री गुप्ता और कला मालवीय। हम तीनों यूनिवर्सिटी मैदान में सदा साथ ही चलते- विचरते दीखते इसलिए हमारा नाम त्रिमूर्ति पड़ गया था। हमारे तीन पीरियड एक साथ खाली रहते थे। मैं उन दोनों को अपने साथ घसीटती और युनिवर्सिटी लाइब्रेरी में बड़े चाव से आल्मारी की पुस्तकों का अवलोकन किया करती। पुस्तकालयाध्यक्ष थे बाबू सरयू प्रसाद सक्सेना (नाटक के सन्दर्भ में उल्लिखित विमला सक्सेना के पिता जी)। पुस्तकों के प्रति मेरा जैसा झुकाव था उसे देख श्री सरयू प्रसाद जी मुझ पर बहुत मेहरबान थे। घर जा कर मेरी तारीफ करते और विमला-तारा से कहते कि तुम लोगों को कोर्स के अलावा कुछ भी पढ़ने का शौक नहीं है। हाँ, उल्लेखनीय यह भी है कि मैं केवल हिन्दी की पुस्तकों पर रीझी रहती। धार्मिक ग्रन्थों को छोड़ मैंने उस लाइब्रेरी की लगभग सभी पुस्तकों को छान लिया था। मैं जितनी पुस्तकें घर पर ले जाने को कहती- लाइब्रेरियन साहब बहुत उत्साह से मुझे इश्यू करवा दिया करते थे। मेरे छात्र-जीवन की यह स्मरणीय उपलब्धि है। दादा के देहावसान के छह मास पश्चात् सन् 1938 की बी.ए. की परीक्षा में जीजा जी के हठ से मैंने परीक्षा दी अवश्य, पर दादा के स्वर्गारोहण के फलस्वरूप जो रिक्तता मेरे जीवन में आई मैंने रो-रो कर परीक्षा दी। कुछ पेपर खाली ही छोड़ आई थी। अनुत्तीर्ण घोषित हुई। तब मुझे इतना पश्चाताप नहीं था जितना दीदी-जीजा और अनन्य सखी सावित्री को हुआ था। उनके पत्र इस तथ्य के साक्षी स्वरूप मेरे पास मौजूद हैं। अभी आज इतना ही!

Last edited by rajnish manga; 31-08-2013 at 11:24 AM.
rajnish manga is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks

Tags
diary, diary ke panne, meri kahani


Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 03:42 PM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.