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Old 16-01-2011, 02:43 AM   #1
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पर्यटन भूगोल

पर्यटन भूगोल या भू-पर्यटन, मानव भूगोल की एक प्रमुख शाखा हैं। इस शाखा में पर्यटन एवं यात्राओं से सम्बन्धित तत्वों का अध्ययन, भौगोलिक पहलुओं को ध्यान मे रखकर किया जाता है। नेशनल जियोग्रेफ़िक की एक परिभाषा के अनुसार किसी स्थान और उसके निवासियों की संस्कृति, सुरुचि, परंपरा, जलवायु, पर्यावरण और विकास के स्वरूप का विस्तृत ज्ञान प्राप्त करने और उसके विकास में सहयोग करने वाले पर्यटन को "पर्यटन भूगोल" कहा जाता है। भू पर्यटन के अनेक लाभ हैं। किसी स्थल का साक्षात्कार होने के कारण तथा उससे संबंधित जानकारी अनुभव द्वारा प्राप्त होने के कारण पर्यटक और निवासी दोनों का अनेक प्रकार से विकास होता हैं। पर्यटन स्थल पर अनेक प्रकार के सामाजिक तथा व्यापारिक समूह मिलकर काम करते हैं जिससे पर्यटक और निवासी दोनों के अनुभव अधिक प्रामाणिक और महत्त्वपूर्ण बन जाते है। भू पर्यटन परस्पर एक दूसरे को सूचना, ज्ञान, संस्कार और परंपराओं के आदान-प्रदान में सहायक होता है, इससे दोनों को ही व्यापार और आर्थिक विकास के अवसर मिलते हैं, स्थानीय वस्तुओं कलाओं और उत्पाद को नए बाज़ार मिलते हैं और मानवता के विकास की दिशाएँ खुलती हैं साथ ही बच्चों और परिजनों के लिए सच्ची कहानियाँ, चित्र और फिल्में भी मिलती हैं जो पर्यटक अपनी यात्रा के दौरान बनाते हैं। पर्यटन भूगोल के विकास या क्षय में पर्यटन स्थल के राजनैतिक, सामाजिक और प्राकृतिक कारणों का बहुत महत्त्व होता है और इसके विषय में जानकारी के मानचित्र आदि कुछ उपकरणों की आवश्यकता होती है।

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पर्यटन का भौगोलिक प्रारम्भ

भूगोल और पर्यटन का सम्बंध बहुत पुराना है, लेकिन पर्यटन का भौगोलिक प्रारम्भ धीरे-धीरे हुआ। प्राचीन काल से ही लोग एक स्थान से दूसरे स्थान को गमनागमन करते थे। अनेक प्रजातियों जैसे मंगोलायड प्रजाति, नीग्रोइड्स इत्यादि ने अन्तरमहाद्वीपीय स्थानान्तरण किया, किन्तु ये पलायन केवल जीवन के स्तर पर आधारित था और यह मानव बसाव की स्थायी प्रक्रिया थी अतएव इसका कोई पर्यटन महत्व नहीं माना जा सकता। जब खोज का युग आया तो पुर्तगाल और चीन जैसे देशों के यात्रियों ने आर्थिक कारणों, धार्मिक कारणों एवं दूसरी संस्कृतियों को जानने और समझने की जिज्ञासा के साथ अनेक अज्ञात स्थानों की खोज करने की शुरुआत की। इस समय परिवहन का साधन केवल समुद्री मार्ग एवं पैदल यात्रा थे। यहीं से पर्यटन को एक अलग रूप एवं महत्त्व मिलना प्रारम्भ हुआ। भूगोल ने पर्यटन को विकास का रास्ता दिखाया और इसी रास्ते पर चलकर पर्यटन ने भूगोल के लिए आवश्यक तथ्य एकत्रित किए। आमेरिगो वेस्पूची, फ़र्दिनान्द मैगलन, क्रिस्टोफ़र कोलम्बस, वास्को दा गामा और फ्रांसिस ड्रेक जैसे हिम्मती यात्रियों ने भूगोल का आधार लेकर समुद्री रास्तों से अनजान स्थानों की खोज प्रारम्भ की और यही से भूगोल ने पर्यटन को एक प्राथमिक रूप प्रदान किया। अनेक संस्कृतियों, धर्मों और मान्यताओं का विकास पर्यटन भूगोल के द्वारा ही संभव हुआ। विश्व के विकास और निर्माण में पर्यटन भूगोल का अत्यधिक महत्त्व है। इसकी परिभाषा करते हुए कहा भी गया है कि खोज का जादुई आकर्षण ही पर्यटन भूगोल का आधार है और स्वयं संपर्क में आकर प्राप्त किया गया प्रामाणिक अनुभव इसकी शक्ति है। आजकल भू पर्यटन का परिधि भू पार कर अंतरिक्ष की ओर बढ़ चली है।
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वास्को डि गामा कालीकट, भारत के तट पर 20 मई, 1498

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कोलम्बस की यात्राओं सें संबंधित यह मानचित्र १४९० में बनाया गया था
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वास्को द गामा

जन्म: १४६०-१४६९ (साइन्स, अलेन्तेजो, पुर्तगाल)

मृत्यु: दिसंबर 24, 1524 (आयु लगभग ५४-६४) कोच्चि

व्यवसाय: अन्वेषक, सैन्य नैसेना कमांडर

जीवनसाथी: कैटरीना द अतायदे


डॉम वास्को द गामा (Vasco da Gama) (लगभग १४६० या १४६९ - २४ दिसंबर, १५२४) एक पुर्तगाली अन्वेषक, यूरोपीय खोज युग के सबसे सफल खोजकर्ताओं में से एक, और यूरोप से भारत सीधी यात्रा करने वाले जहाज़ों का कमांडर था, जो केप ऑफ गुड होप, अफ्रीका के दक्षिणी कोने से होते हुए भारत पहुँचा। वह जहाज़ द्वारा तीन बार भारत आया। उसकी जन्म की सही तिथि तो अज्ञात है लेकिन यह कहा जाता है की वह १४९० के दशक में साइन, पुर्तगाल में एक योद्धा था।
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आरंभिक जीवन
वास्को द गामा का जन्म अनुमानतः १४६० में या में साइन्स, पुर्तगाल के दक्षिण-पश्चिमी तट के निकट हुआ था। इनका घर नोस्सा सेन्होरा दास सलास के गिरिजाघर के निकट स्थित था। तत्कालीन साइन्स जो अब अलेन्तेजो तट के कुछ बंदरगाहों में से एक है, तब कुछ सफ़ेद पुती, लाल छत वाली मछुआरों की झोंपड़ियों का समूह भर था। वास्को द गामा के पिता एस्तेवाओ द गामा, १४६० में ड्यूक ऑफ विसेयु, डॉम फर्नैन्डो के यहां एक नाइट थे। डॉम फर्नैन्डो ने साइन्स का नागर-राज्यपाल नियुक्त किया हुआ था। वे तब साइन्स के कुछ साबुन कारखानों से कर वसूलते थे।एस्तेवाओ द गामा का विवाह डोना इसाबेल सॉद्रे से हुआ था। वास्को द गामा के परिवार के बारे में आरंभिक अधिक ज्ञात नहीं है।

पुर्तगाली इतिहासकार टेक्सियेरा द अरागाओ बताते हैं, कि एवोरा शहर में वास्को द गामा की शिक्षा हुई, जहां उन्होंने शायद गणित एवं नौवहन का ज्ञान अर्जित किया होगा। यह भी ज्ञात है कि गामा को खगोलशास्त्र का भी ज्ञान था, जो उन्होंने संभवतः खगोलज्ञ अब्राहम ज़क्यूतो से लिया होगा। १४९२ में पुर्तगाल के राजा जॉन द्वितीय ने गामा को सेतुबल बंदरगाह, लिस्बन के दक्षिण में भेजा। उन्हें वहां से फ्रांसीसी जहाजों को पकड़ कर लाना था। यह कार्य वास्को ने कौशल एवं तत्परता के साथ पूर्ण किया।
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यात्रा


८ जुलाई, १४९७ के दिन चार जहाज़ (साओ गैब्रिएल, साओ राफेल, बेरियो, और अज्ञात नाम का एक संचयन जहाज़) लिस्बन से चल पड़े, और उसकी पहली भारत यात्रा आरंभ हुई। उससे पहले किसी भी यूरोपीय ने इतनी दूर दक्षिण अफ़्रीका या इससे अधिक यात्रा नहीं की थी, यद्यपि उससे पहले एक और पुर्तगाली खोजकर्ता, बारटोलोमीयु डियास बस इतनी ही दूरी तक गया था। चूंकि वह क्रिसमस के आसपास का समय था, द गामा के कर्मीदल ने एक तट का नाम, जिससे होकर वे गुजर रहे थे, "नैटाल" रखा। इसका पुर्तगाली में अर्थ है "क्रिसमस", और उस स्थान का यह नाम आज तक वही है।

जनवरी तक वे लोग आज के मोज़ाम्बीक तक पहुँच गए थे, जो पूर्वी अफ़्रीका का एक तटीय क्षेत्र है जिसपर अरब लोगों ने हिन्द महासागर के व्यापार नेटवर्क के एक भाग के रूप में नियंत्रण कर रखा था। उनका पीछा एक क्रोधित भीड़ ने किया जिन्हें ये पता चल गया की वे लोग मुसलमान नहीं हैं, और वे वहाँ से कीनिया की ओर चल पड़े। वहाँ पर, मालिंडि में, द गामा ने एक भारतीय मार्गदर्शक को काम पर रखा, जिसने आगे के मार्ग पर पुर्तगालियों की अगुवाई की और उन्हें २० मई, १४९८ के दिन कालीकट (इसका मलयाली नाम कोज़ीकोड है), केरल ले आया, जो भारत के दक्षिण पश्चिमी तट पर स्थित है। गामा ने कुछ पुर्तगालियों को वहीं छोड़ दिया, और उस नगर के शासक ने उसे भी अपना सब कुछ वहीं छोड़ कर चले जाने के लिए कहा, पर वह वहाँ से बच निकला और सितंबर १४९९ में वापस पुर्तगाल लौट गया।

उसकी अगली यात्रा १५०३ में हुई, जब उसे ये ज्ञात हुआ की कालीकट के लोगों ने पीछे छूट गए सभी पुर्तगालियों को मार डाला है। अपनी यात्रा के मार्ग में पड़ने वाले सभी भारतीय और अरब जहाज़ो को उसने ध्वस्त कर दिया, और कालीकट पर नियंत्रण करने के लिए आगे बढ़ चला, और उसने बहुत सी दौलत पर अधिकार कर लिया। इससे पुर्तगाल का राजा उससे बहुत प्रसन्न हुआ।

सन् १५३४ में वह अपनी अंतिम भारत यात्रा पर निकला। उस समय पुर्तगाल की भारत में उपनिवेश बस्ती के वाइसरॉय (राज्यपाल) के रूप में आया, पर वहाँ पहुँचने के कुछ समय बाद उसकी मृत्यु हो गई।
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क्रिस्टोफ़र कोलम्बस

क्रिस्टोफर कोलम्बस ( १४५१ - २० मई, १५०६) एक समुद्री-नाविक, उपनिवेशवादी, खोजी यात्री उसकी अटलांटिक महासागर में बहुत से समुद्री यात्राओं के कारण अमेरिकी महाद्वीप के बारे में यूरोप में जानकारी बढ़ी। यद्यपि अमेरिका पहुँचने वाला वह प्रथम यूरोपीय नहीं था किन्तु कोलम्बस ने यूरोपवासियों और अमेरिका के मूल निवासियों के बीच विस्तृत सम्पर्क को बढ़ावा दिया। उसने अमेरिका की चार बार यात्रा की जिसका खर्च स्पेन की रानी इसाबेला (Isabella) ने उठाया। उसने हिस्पानिओला (Hispaniola) द्वीप पर बस्ती बसाने की कोशिश की और इस प्रकार अमेरिका में स्पेनी उपनिवेशवाद की नींव रखी। इस प्रकार इस नयी दुनिया में यूरोपीय उपनिवेशवाद की प्रक्रिया आरम्भ हुई।
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||.....अब वापस आते हैं भू-पर्यटन पर.....||
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भौगोलिक विचारधाराओं मे पर्यटन

प्राचीन एवं मध्य काल में कई प्रसिद्ध भूगोलवेत्ताओं ने अनेक स्थानों की यात्राएँ की। कुछ प्रसिद्ध भूगोलवेत्ताओं द्वारा दिए पर्यटन सम्बन्धी विचार निम्नलिखित हैं।
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यूनानी विचारधारा प्राचीन यूनानी विद्वानों ने भूगोल का बहुत विकास किया। यह वह काल था जब संसार केवल एशिया, यूरोप और अफ़्रीका तक ही सीमित माना जाता था। अनेग्जीमेण्डर, ने अनेक स्थानों की यात्राएँ कीं। उसे संसार का सर्वप्रथम मानचित्र निर्माता बताया गया है। इरैटोस्थनिज़ ने पृथ्वी की परिधि नापने के लिए मिस्र के आस्वान क्षेत्र में साइने नामक स्थान को अपना प्रयोगस्थल बनाया,जो आज भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र है।
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