11-12-2014, 03:13 PM | #1 |
Special Member
Join Date: Dec 2011
Location: किसी के दिल में
Posts: 3,781
Rep Power: 33 |
दूनिया अजब गजब ....अद्भुत ...
दूनिया अजब गजब ....अद्भुत ... डिअर फोरम के मित्रो ...
हमारी दुनिया बहुत बड़ी है ... बहुत अजब ग़जब .... क्यूँ ना कुछ ख़ास बाते इकट्ठे करे ... आशा है आप भी सहयोग देंगे ....... देवराज |
11-12-2014, 03:18 PM | #2 |
Special Member
Join Date: Dec 2011
Location: किसी के दिल में
Posts: 3,781
Rep Power: 33 |
तोड़ा पाकिस्तान का रिकॉर्ड, लिखा एक इतिहाì
तोड़ा पाकिस्तान का रिकॉर्ड, लिखा एक इतिहास तिरंगे के नाम चेन्नई। भारत ने मानव श्रृंखला से सबसे बड़ा राष्ट्रीय ध्वज बनाकर नया विश्व रिकॉर्ड बनाया है। यह राष्ट्रीय ध्वज एक एनजीओ द्वारा चलाए जा रहे अभियान माई फ्लैग-माई इंडिया के तहत आयोजित कार्यक्रम में बनाया गया था। कार्यक्रम का आयोजन क्वांटा जी और रोटरी क्लब के तत्वावधान में नंदनम स्थित वाईएमसीए ग्राउंड्स में रविवार को हुआ। यहां विश्व का सबसे बड़ा ह्यूमन नेशनल फ्लैग बनाकर गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड में नाम दर्ज करवाया गया। सभी लोगों ने उम्र, लिंग, धर्म, जाति एवं पंथ की भावना से ऊपर उठकर इसमें भाग लिया। इससे पहले यह रिकार्ड पाकिस्तान के स्पोट्र्स क्लब ऑफ लाहौर के नाम था। -1.5 लाख लोगों ने लिया अभियान में हिस्सा -50 हजार से अधिक लोगों ने मिलकर बनाया राष्ट्रीय ध्वज -28,957 लोगों ने लाहौर में बनाया था राष्ट्रीय ध्वज |
11-12-2014, 03:23 PM | #3 |
Special Member
Join Date: Dec 2011
Location: किसी के दिल में
Posts: 3,781
Rep Power: 33 |
ओएमजी! कभी देखा है गुड्डों का गांव
ओएमजी! कभी देखा है गुड्डों का गांव जयपुर। गांव में लोग रहते है लेकिन आपने कभी ऎसे गांव के बारे मे नहीं सुना होगा जहां लोगों से ज्यादा गुड्डे-गुड्डीयां रहते है। डेली मेल के मुताबिक जापान के भीतरी द्वीप में शिकोकू नाम का एक गांव है जहां ज्यादातर लोग जा चुके है। ये गांव भी ऎसे कई गांवों में से एक है जिसे लोग किसी ना किसी कारण से खाली कर चुके है। अब शिकोकू में केवल 35 लोग बचे हैं। वहीं सुकीमी अयानो नाम की महिला गांव छोड़ चुके अपने रिश्तेदारों और गांववालों के गुड्डे-गुड्डीयां बनाती रहती है। ये उन्हें सिलती है और किसी को अपना ताउ तो किसी को चाचा कहती है। सुकीमी को गांव के बच्चे भी याद हैं जो अब वहां नहीं रहते। उनका कहना है* कि सालों पहले अपने पिता की देखरेख करने के लिए वो ओसाका से गांव चली आई थी। पिता की मौत के बाद और धीरे-धीरे कम होती जनता के बीच उन्होंने तय किया कि वो यहां से नहीं जाएगी और एक नई तरह का गांव तैयार करेंगी। वो हर रोज अपना सारा काम निबटाकर किसी ना किसी गांव वाले को सीने बैठ जाती हैं। |
11-12-2014, 03:31 PM | #4 |
Special Member
Join Date: Dec 2011
Location: किसी के दिल में
Posts: 3,781
Rep Power: 33 |
सोशल मीडिया पर छाई हरी बिल्ली
सोशल मीडिया पर छाई हरी बिल्ली जयपुर। आपने कभी हरी बिल्ली देखी है, नहीं तो देखें हरे रंग की बिल्ली को। बुल्गारिया के सी साइड रिजॉट्र्स वाले शहर वर्ना में इन दिनों हरे रंग की बिल्ली अखबारों में छाई हुई है। ये बिल्ली कहां से आई है, किसने इसे पाला और इसका रंग हरा कैसे पड़ा इस बात पर कई सवाल उठ रहे है। जीव विज्ञानियों के अनुसार उन्होंने ऎसी बिल्ली कभी नहीं देखी थी। बिल्ली को सड़क पर देखने वालों ने बताया कि से देखकर ऎसा नहीं लगता कि किसी ने उस पर कलर किया हो। कई वेबसाइटों पर हरे ब्राइट रंग की बिल्ली की फोटो और वीडियो दिखाया जा रहा है। कुछ लोगों का मानना है कि अगर इसका प्राकृतिक रंग ऎसा है तो ये शोध का बड़ा विषय है। पशुप्रेमियों ने उसके लिए फेसबुक पर पेज बना दिया है जिसका टाइटल पनिशमेंट टू द प्रिप्रेटर ऑफ दिस क्रिमिनल एक्ट है। ये पेज बनाने वालों का मानना है कि अगर किसी ने जहरील कैमिकल का प्रयोग बिल्ली पर किया है तो वो सजा का हकदार है। |
11-12-2014, 03:34 PM | #5 |
Special Member
Join Date: Dec 2011
Location: किसी के दिल में
Posts: 3,781
Rep Power: 33 |
Re: दूनिया अजब गजब ....अद्भुत ...
अल्फ्रेड नोबल को मौत का सौदागर भी कहा गया नई दिल्ली। विस्फोटक डायनमाइट के आविष्कारक अल्फ्रेड नोबल के नाम से आज भले ही शांति तथा अन्य क्षेत्रों में पुरस्कार दिए जाते हैं लेकिन 1888 में एक फ्रांसीसी अखबार ने उन्हें मौत का सौदागर बताया था। यह बात और है कि इस अखबार ने भूलवश अल्फ्रेड के बडे भाई की मौत के बाद जो जीवनी छापी दरअसल वह अल्फ्रेड के लिए लिखी गई थी और उसमें उन्हें मौत का सौदागर बताया था।
विस्फोटकों के आविष्कार में वर्षो जुटे रहे अल्फ्रेड ने नाइट्रोग्लिीसिरीन के साथ प्रयोग करना शुरू किया। उन्हें उम्मीद थी कि यह सुरक्षित विस्फोटक होगा लेकिन 1964 में स्टाकहोम के निकट उसकी फैक्ट्री में धमाका हो गया जिसमे उसके छोटे भाई एमिल और चार लोगों की जान चली गई थी। नोबल पुरस्कार की स्थापना 1896 में अल्फ्रेड नोबल के निधन के बाद उनकी वसीयत के मुताबिक हुई थी लेकिन पांच साल तक वसीयत को लेकर चले विवाद के बाद 10 दिसंबर 1901 को पहली बार पुरस्कार वितरित किया था। नोबेल फाउंडेशन की सबसे बड़ी भूल राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को नोबल पुरस्कार से नहीं नवाजे जाने को नोबेल फाउंडेशन की सबसे बड़ी भूल माना जाता है। पांच बार महात्मा गांधी का नाम भेजा गया लेकिन दुनिया में अहिंसा के पुजारी के रूप में पूजे जाने वाले इस महात्मा को इससे सम्मानित नहीं किया गया। आखिरी बार 1948 में गांधीजी का नाम उनके निधन से कुछ पहले भेजा गया था तब शांति पुरस्कार समिति ने यह कहते हुए उस साल पुरस्कार नहीं दिया कि इसके लिए कोई उपयुक्त जीवित व्यक्ति नहीं है। |
11-12-2014, 03:43 PM | #6 |
Special Member
Join Date: Dec 2011
Location: किसी के दिल में
Posts: 3,781
Rep Power: 33 |
Re: दूनिया अजब गजब ....अद्भुत ...
हैरतअंगेज, दो बैग के लिए प्लेन से किया ट्रेन का पीछा! जयपुर। ट्रेन पकड़ कर दूसरे शहर में स्थित हवाई अड्डे तक पहुंचने के किस्से तो आपने बहुत सुने होंगे, लेकिन फ्लाइट पकड़कर ट्रेन तक पहुंचने की बात शायद ही आपने सुनी होगी। ऎसा ही अनोखा मामला सामने आया है गुजरात के सूरत रेलवे स्टेशन पर, जहां एक यात्री ने बीकानेर-सिकंदराबाद एक्सप्रेस ट्रेन छूट जाने के बाद उसमें रखा अपना सामान पाने के लिए मुंबई से फ्लाइट पकड़ी और ट्रेन के सिकंदराबाद पहुंचने से पहले वहां पहुंच गया। बिस्लेरी की बोतल पड़ी भारी राजस्थान के जैसलमेर निवासी निजी कंपनी में इंजीनियर मुरली कृष्णा शुक्रवार को जोधपुर से बीकानेर-सिकंदराबाद एक्सप्रेस में सफर कर रहे थे। उनके पास कन्फर्म टिकट नहीं था। उन्होंने द्वितीय श्रेणी शयनयान में सफर करने का जुर्माना भरकर सीट ली। ट्रेन शनिवार दोपहर जब सूरत स्टेशन पहुंची तो मुरली कृष्णा प्लेटफॉर्म पर पानी खरीदने के लिए उतरे, उन्होंने बिस्लेरी की एक बोतल खरीदी इस दौरान उनकी ट्रेन छूट गई। ट्रेन छूटने के बाद वह स्टेशन मैनेजर वीएन कदम के पास पहुंचे और उन्हें ट्रेन में अपना सामान होने की जानकारी दी। कदम ने नंदुरबार और अमलनेर स्टेशन पर फोन कर यात्री के सामान की जांच कराई, लेकिन सामान का पता नहीं चला क्योंकि मुरली कृष्णा किस कोच में सफर कर रहे थे, इसकी जानकारी उन्हें भी नहीं थी। रेन से पहले पहुंचे स्टेशन मुरली कृष्णा सूरत से भावनगर-काकीनाड़ा एक्सप्रेस में सिकंदराबाद जाने के लिए चढ़े, लेकिन बीच रास्ते में उन्होंने फ्लाइट से सिक ंदराबाद जाने का फैसला किया। वे वसई रोड स्टेशन पर उतर गए और रविवार तड़के चार बजे मुंबई से हैदराबाद की फ्लाइट पकड़ी। वे हैदराबाद पहुंचे, जहां उनकी पत्नी कार से रिसीव करने आ गई थी। हैदराबाद से कुछ ही दूरी स्थित सिकंदराबाद तक का सफर मुरली कृ ष्णा ने कार से तय किया। ट्रेन के सिकंदराबाद पहुंचने का समय सुबह साढ़े आठ बजे था, लेकिन मुरली ट्रेन पहुंचने से पहले ही प्लेटफॉर्म पहुंच गए। ट्रेन के आने के बाद मुरली ने अपना सामान लिया। |
11-12-2014, 03:43 PM | #7 |
Special Member
Join Date: Dec 2011
Location: किसी के दिल में
Posts: 3,781
Rep Power: 33 |
Re: दूनिया अजब गजब ....अद्भुत ...
हैरतअंगेज, दो बैग के लिए प्लेन से किया ट्रेन का पीछा! जयपुर। ट्रेन पकड़ कर दूसरे शहर में स्थित हवाई अड्डे तक पहुंचने के किस्से तो आपने बहुत सुने होंगे, लेकिन फ्लाइट पकड़कर ट्रेन तक पहुंचने की बात शायद ही आपने सुनी होगी। ऎसा ही अनोखा मामला सामने आया है गुजरात के सूरत रेलवे स्टेशन पर, जहां एक यात्री ने बीकानेर-सिकंदराबाद एक्सप्रेस ट्रेन छूट जाने के बाद उसमें रखा अपना सामान पाने के लिए मुंबई से फ्लाइट पकड़ी और ट्रेन के सिकंदराबाद पहुंचने से पहले वहां पहुंच गया। बिस्लेरी की बोतल पड़ी भारी राजस्थान के जैसलमेर निवासी निजी कंपनी में इंजीनियर मुरली कृष्णा शुक्रवार को जोधपुर से बीकानेर-सिकंदराबाद एक्सप्रेस में सफर कर रहे थे। उनके पास कन्फर्म टिकट नहीं था। उन्होंने द्वितीय श्रेणी शयनयान में सफर करने का जुर्माना भरकर सीट ली। ट्रेन शनिवार दोपहर जब सूरत स्टेशन पहुंची तो मुरली कृष्णा प्लेटफॉर्म पर पानी खरीदने के लिए उतरे, उन्होंने बिस्लेरी की एक बोतल खरीदी इस दौरान उनकी ट्रेन छूट गई। ट्रेन छूटने के बाद वह स्टेशन मैनेजर वीएन कदम के पास पहुंचे और उन्हें ट्रेन में अपना सामान होने की जानकारी दी। कदम ने नंदुरबार और अमलनेर स्टेशन पर फोन कर यात्री के सामान की जांच कराई, लेकिन सामान का पता नहीं चला क्योंकि मुरली कृष्णा किस कोच में सफर कर रहे थे, इसकी जानकारी उन्हें भी नहीं थी। रेन से पहले पहुंचे स्टेशन मुरली कृष्णा सूरत से भावनगर-काकीनाड़ा एक्सप्रेस में सिकंदराबाद जाने के लिए चढ़े, लेकिन बीच रास्ते में उन्होंने फ्लाइट से सिक ंदराबाद जाने का फैसला किया। वे वसई रोड स्टेशन पर उतर गए और रविवार तड़के चार बजे मुंबई से हैदराबाद की फ्लाइट पकड़ी। वे हैदराबाद पहुंचे, जहां उनकी पत्नी कार से रिसीव करने आ गई थी। हैदराबाद से कुछ ही दूरी स्थित सिकंदराबाद तक का सफर मुरली कृ ष्णा ने कार से तय किया। ट्रेन के सिकंदराबाद पहुंचने का समय सुबह साढ़े आठ बजे था, लेकिन मुरली ट्रेन पहुंचने से पहले ही प्लेटफॉर्म पहुंच गए। ट्रेन के आने के बाद मुरली ने अपना सामान लिया। |
11-12-2014, 03:57 PM | #8 |
Special Member
Join Date: Dec 2011
Location: किसी के दिल में
Posts: 3,781
Rep Power: 33 |
केन्या के पोकोट आदिवासी, लड़की के बदले दहे
केन्या के पोकोट आदिवासी, लड़की के बदले दहेज में लेते हैं ऊंट-बकरियां नैरोबी। ये तस्वीर केन्या के पोकोट आदिवासियों की है, जो परंपरिक गहनों से ढकी अपनी बेटी को दहेज के लिए पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं। केन्या के आदिवासियों में भी शादी के मौके पर दहेज के लेन-देन की परंपरा है। फर्क सिर्फ इतना है कि यहां दहेज लड़की के घरवाले देते नहीं, बल्कि लेते हैं। पारंपरिक समारोह में लड़की के घरवाले दहेज के तौर पर पशुधन के बदले लड़की का सौदा करते हैं। कई बार लड़की को ले जाने के बदले में लड़के को 20 बकरियों, तीन ऊंट और दस गाएं तक चुकानी पड़ती हैं। ये समारोह लड़की के नारीत्व में प्रवेश का भी प्रतीक होता है। शादी से अनजान होती है लड़की पोकोट आदिवासियों की लड़कियों को तो इस बात की जानकारी भी नहीं होती कि एक महीना अकेले बिताने के बाद जब पारंपरिक समारोह में उनका पति उन्हें लेने आएगा, तो उसे पहले दहेज चुकाना होगा। लड़कियों के माता-पिता आमतौर पर उनसे शादी की जानकारी छिपाकर रखते हैं। उन्हें इस बात का डर रहता है कि अगर लड़की को सौदे के बारे में पता चल गया, तो वो कहीं भाग न जाएं। इस पारंपरिक समारोह के दौरान गांव के लोग एक बैल चुनते हैं, जिसे काटा जाता है। हाल ही में ये समारोह बरिंगो काउंटी में मारीगेट कस्बे से 50 किलोमीटर दूर झाड़ियों में किया गया, जो 133,000 पोकोट आदिवासियों के घर हैं। बालविवाह पर कोई रोक नहीं इस समारोह में शादी के लिए इकट्ठा हुई ज्यादातर लड़कियों की उम्र 14 साल से कम थी, जबकि केन्या में बालविवाह गैरकानूनी है। हालांकि, आदिवासियों के अपने अलग रीति-रिवाज हैं और वो अपनी मान्यताओं और परंपराओं का ही पालन करते आ रहे हैं। समारोह के दौरान लड़की को दोपहर से अगले दिन सुबह तक खड़े रहकर गाना गाना होता है। समारोह के अंत में बड़े-बुजुर्गों के संरक्षण में लड़का और लड़की डांस भी करते हैं। |
12-12-2014, 04:08 AM | #9 |
Special Member
Join Date: Dec 2011
Location: किसी के दिल में
Posts: 3,781
Rep Power: 33 |
Re: दूनिया अजब गजब ....अद्भुत ...
__________________
************************************ मेरी चित्रशाला : दिल दोस्ती प्यार ....या ... . तुमने मजबूर किया हम मजबूर हो गये ,... तुम बेवफा निकले हम मशहूर हो गये .. एक " तुम " और एक मोहब्बत तेरी, बस इन दो लफ़्ज़ों में " दुनिया " मेरी.. ************************************* |
12-12-2014, 04:09 AM | #10 |
Special Member
Join Date: Dec 2011
Location: किसी के दिल में
Posts: 3,781
Rep Power: 33 |
Re: दूनिया अजब गजब ....अद्भुत ...
__________________
************************************ मेरी चित्रशाला : दिल दोस्ती प्यार ....या ... . तुमने मजबूर किया हम मजबूर हो गये ,... तुम बेवफा निकले हम मशहूर हो गये .. एक " तुम " और एक मोहब्बत तेरी, बस इन दो लफ़्ज़ों में " दुनिया " मेरी.. ************************************* |
Bookmarks |
|
|