My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > New India > Religious Forum

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 18-11-2011, 01:12 AM   #21
GForce
Member
 
GForce's Avatar
 
Join Date: Nov 2011
Location: Banglore/Moscow
Posts: 118
Rep Power: 15
GForce has a spectacular aura aboutGForce has a spectacular aura aboutGForce has a spectacular aura about
Default Re: उपनिषदों का काव्यानुवाद

केनोपनिषद



ॐ श्री परमात्मने नमः


शांति पाठ
ॐ आप्यायन्तु ममाङ्गानि वाक्प्राणश्चक्षुः
श्रोत्रमथो बलमिन्द्रियाणि च सर्वाणि।
सर्वं ब्रह्मौपनिषदं माऽहं ब्रह्म निराकुर्यां मा
मा ब्रह्म निराकारोदनिराकरणमस्त्वनिराकरणं मेऽस्तु।
तदात्मनि निरते य उपनिषत्सु धर्मास्ते मयि सन्तु ते मयि सन्तु ॥


हे ईश ! मेरे अंग सब परिपूर्ण और बलवान हों,
नेत्र, श्रोत्रम, प्राण, वाणी, बल इन्द्रियों में महान हों।
उपनिषदों में प्रतिपाद्य ब्रह्म से, गहन मम सम्बन्ध हों,
हो त्रिविध तापों की निवृत्ति, परब्रह्म तत्त्व प्रबंध हों॥
GForce is offline   Reply With Quote
Old 18-11-2011, 01:29 AM   #22
GForce
Member
 
GForce's Avatar
 
Join Date: Nov 2011
Location: Banglore/Moscow
Posts: 118
Rep Power: 15
GForce has a spectacular aura aboutGForce has a spectacular aura aboutGForce has a spectacular aura about
Default Re: उपनिषदों का काव्यानुवाद

प्रथम खंड

ॐ केनेषितं पतति प्रेषितं मनः केन प्राणः प्रथमः प्रैति युक्तः।
केनेषितां वाचमिमां वदन्ति चक्षुः श्रोत्रं क उ देवो युनक्ति ॥१॥


किससे है प्रेरित प्राण वाणी, ज्ञानेंद्रियाँ, कर्मेंद्रियाँ।
है कौन मन का नियुक्ति कर्ता, कौन संपादक यहाँ॥
अति प्रथम प्राण का कौन प्रेरक, कौन जिज्ञासा महे।
वाणी को वाणी दाता की, करे कौन मीमांसा अहे॥ [1]
GForce is offline   Reply With Quote
Old 18-11-2011, 01:31 AM   #23
GForce
Member
 
GForce's Avatar
 
Join Date: Nov 2011
Location: Banglore/Moscow
Posts: 118
Rep Power: 15
GForce has a spectacular aura aboutGForce has a spectacular aura aboutGForce has a spectacular aura about
Default Re: उपनिषदों का काव्यानुवाद

श्रोत्रस्य श्रोत्रं मनसो मनो यद् वाचो ह वाचं स उ प्राणस्य प्राणः ।
चक्षुषश्चक्षुरतिमुच्य धीराः प्रेत्यास्माल्लोकादमृता भवन्ति ॥२॥


जो मन का मन अति आदि कारण, प्राण का भी प्राण है।
वाक् इन्द्रियों का वाक् है, कर्ण इन्द्रियों का कर्ण है॥
चक्षु इन्द्रियों का चक्षु प्रभु, एक मात्र प्रेरक है वही।
ऋत ज्ञानी जीवन्मुक्त हो, पुनि जगत में आते नहीं॥ [2]
GForce is offline   Reply With Quote
Old 18-11-2011, 01:31 AM   #24
GForce
Member
 
GForce's Avatar
 
Join Date: Nov 2011
Location: Banglore/Moscow
Posts: 118
Rep Power: 15
GForce has a spectacular aura aboutGForce has a spectacular aura aboutGForce has a spectacular aura about
Default Re: उपनिषदों का काव्यानुवाद

न तत्र चक्षुर्गच्छति न वाग्गच्छति नो मनः ।
न विद्मो न विजानीमो यथैतदनुशिष्यात् ॥३॥


उस ब्रह्म तक मन प्राण वाणी, की पहुँच होती नहीं।
फिर ब्रह्म तत्त्व के ज्ञान की, विधि पायें हम कैसे कहीं॥
अथ पूर्वजों से प्राप्य ज्ञान का सार, ब्रह्म ही नित्य है।
चेतन व जड़ से भिन्न है, एकमेव ब्रह्म ही सत्य है॥ [3]
GForce is offline   Reply With Quote
Old 18-11-2011, 01:32 AM   #25
GForce
Member
 
GForce's Avatar
 
Join Date: Nov 2011
Location: Banglore/Moscow
Posts: 118
Rep Power: 15
GForce has a spectacular aura aboutGForce has a spectacular aura aboutGForce has a spectacular aura about
Default Re: उपनिषदों का काव्यानुवाद

यद्वाचाऽनभ्युदितं येन वागभ्युद्यते ।
तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते ॥४॥


सामर्थ्य वाणी में कहाँ जो ब्रह्म विषयक कह सके।
वाणी में जितनी वाणी है, किंचित न किंचित कह सके॥
यह ब्रह्म तत्त्व तो वाणी से, अतिशय अतीत अतीत है।
प्रेरक प्रवर्तक वाणी का, ज्ञाता है ब्रह्म, प्रतीति है॥ [4]
GForce is offline   Reply With Quote
Old 18-11-2011, 01:33 AM   #26
GForce
Member
 
GForce's Avatar
 
Join Date: Nov 2011
Location: Banglore/Moscow
Posts: 118
Rep Power: 15
GForce has a spectacular aura aboutGForce has a spectacular aura aboutGForce has a spectacular aura about
Default Re: उपनिषदों का काव्यानुवाद

यन्मनसा न मनुते येनाहुर्मनो मतम् ।
तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते ॥५॥


मन बुद्धि के जो विषय हैं, परब्रह्म तो उससे परे।
मन बुद्धि में सामर्थ्य क्या, जो ब्रह्म का वर्णन करे॥
परब्रह्म शक्ति के अंश से, मन में मनन सामर्थ्य है।
परब्रह्म की मीमांसा को, बुद्धि मन असमर्थ हैं॥ [5]
GForce is offline   Reply With Quote
Old 28-11-2011, 10:49 PM   #27
GForce
Member
 
GForce's Avatar
 
Join Date: Nov 2011
Location: Banglore/Moscow
Posts: 118
Rep Power: 15
GForce has a spectacular aura aboutGForce has a spectacular aura aboutGForce has a spectacular aura about
Default Re: उपनिषदों का काव्यानुवाद

यच्चक्षुषा न पश्यति येन चक्षूँषि पश्यति ।
तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते ॥६॥


इस दृश्यमान जगत में जो भी दृश्य है दृष्टव्य हैं।
दृग दृष्टि के ही विषय हैं , नहीं दृष्टि के गंतव्य हैं॥
परब्रह्म प्रभु तो चक्षु इन्द्रियों से परे अति भव्य है।
उसकी ही शक्ति अंश से जग दृष्टिगोचर नव्य है॥ [6]
GForce is offline   Reply With Quote
Old 28-11-2011, 10:50 PM   #28
GForce
Member
 
GForce's Avatar
 
Join Date: Nov 2011
Location: Banglore/Moscow
Posts: 118
Rep Power: 15
GForce has a spectacular aura aboutGForce has a spectacular aura aboutGForce has a spectacular aura about
Default Re: उपनिषदों का काव्यानुवाद

यच्छ्रोत्रेण न शृणोति येन श्रोत्रमिदं श्रुतम् ।
तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते ॥७॥


प्राकृतिक श्रोत्रों से मात्र जग श्रवणीय है संभाव्य है।
सामर्थ्य क्या हम सुन सकें, उस ब्रह्म का जो काव्य है॥
श्रुति इन्द्रियों के विषय से, परब्रह्म तो अतिशय परे।
सामर्थ्य इन्द्रियों में कहाँ, सम्पूर्ण जो वर्णन करे॥ [7]
GForce is offline   Reply With Quote
Old 28-11-2011, 10:51 PM   #29
GForce
Member
 
GForce's Avatar
 
Join Date: Nov 2011
Location: Banglore/Moscow
Posts: 118
Rep Power: 15
GForce has a spectacular aura aboutGForce has a spectacular aura aboutGForce has a spectacular aura about
Default Re: उपनिषदों का काव्यानुवाद

यत्प्राणेन न प्राणिति येन प्राणः प्रणीयते ।
तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते ॥८॥


प्रेरक प्रवर्तक शक्तिमन, प्रभु नित्य है प्राकृत नहीं।
शुचि रूप उसका वास्तविक , फिर पायें हम कैसे कहीं ?
प्राकृतिक प्राणों की शक्ति सीमा से परे प्रभु मर्म है।
प्रिय प्राण में प्रभु प्रवृत अंश से प्रवृत जीव के कर्म हैं॥ [8]
GForce is offline   Reply With Quote
Old 28-11-2011, 10:51 PM   #30
GForce
Member
 
GForce's Avatar
 
Join Date: Nov 2011
Location: Banglore/Moscow
Posts: 118
Rep Power: 15
GForce has a spectacular aura aboutGForce has a spectacular aura aboutGForce has a spectacular aura about
Default Re: उपनिषदों का काव्यानुवाद

द्वितीय खंड


यदि मन्यसे सुवेदेति दहरमेवापि नूनं त्वं वेत्थ ब्रह्मणो रूपम् ।
यदस्य त्वं यदस्य देवेष्वथ नु मीमाँस्येमेव ते मन्ये विदितम् ॥१॥


यदि तेरा यह विश्वास कि तू ब्रह्म से अति विज्ञ है।
मति भ्रम है किंचित विज्ञ, पर अधिकांश तू अनभिज्ञ है॥
मन, प्राण में, ब्रह्माण्ड में, नहीं ब्रह्म है ब्रह्मांश है।
तुमसे विदित ब्रह्मांश जो, वह तो अंश का भी अंश है॥ [1]
GForce is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks

Tags
upnishads

Thread Tools
Display Modes

Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 01:29 PM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.