31-10-2012, 07:33 AM | #11 |
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Re: शहंशाह जो दिल से शायर था
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
31-10-2012, 07:33 AM | #12 |
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Re: शहंशाह जो दिल से शायर था
भारत में मुगल साम्राज्य के आखिरी शहंशाह बहादुर शाह जफर उर्दू के माने हुए शायर भी थे। उनके दरबारी साथियों में मिर्जा गालिब, जौक, मोमिन जैसे अरबी-फारसी और उर्दू के कई विद्वान और शायर शामिल थे। उनकी गजले भी हिन्दी-उर्दू की परंपरा को आगे बढ़ाती हैं। जहां जफर के समकालीन शायर अरबी और फारसी में रचनाएं कर रहे थे, वहीं बहादुरशाह जफर हिन्दुस्तानी तहजीब की हिन्दी-उर्दू मिश्रित गजलें लिख रहे थे। सांप्रदायिक सौहार्द के लिए उनका यह उदाहरण भी अप्रतिम है।
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04-11-2012, 09:09 PM | #13 |
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Re: शहंशाह जो दिल से शायर था
इसमे कोई शक नहीं की बहादुर शाह भारत के सच्चे सपूतों मे से एक थे । ये उनका दुर्भाग्य ही था की उनके काल मे मुगल साम्राज्य अंतिम साँसे ले रहा था और जज्बे के बावजूद कुछ करने मे अक्षम थे । 1857 की क्रान्ति मे उन्हे अचानक ही सैनिकों का नेतृत्व मिल गया । बुढ़ापे के बावजूद उन्होने नेतृत्व की चुनौती को स्वीकार किया और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बिगुल फूंका ।
उनकी देशभक्ति को हमारा नमन । 'दो गज़ जमीन न मिली' उनकी ही रचना थी जो उन्होने शायद बर्मा मे निर्वासन काल मे रचा था ।
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ये दिल तो किसी और ही देश का परिंदा है दोस्तों ...सीने में रहता है , मगर बस में नहीं ...
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04-11-2012, 09:57 PM | #14 |
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Re: शहंशाह जो दिल से शायर था
सूत्र की जानकारियों में सार्थक इजाफा करने के लिए आपका शुक्रगुज़ार हूं, रणवीरजी ! यदि आपके पास कोई अतिरिक्त जानकारी हो, तो उसका सदैव स्वागत है ! अब मैं इसमें ज़फर का कलाम प्रस्तुत करूंगा !
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